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गेहूँ की फसल काटने के बाद जो तने के अवशेष अथार्त डंठल (नरवाई) बचती है, उसे बहुत सारे किसान आग लगाकर नष्ट कर देते हैं।
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नरवाई में लगभग 0.5%, फास्फोरस 0.6% और पोटाश 0.8% पाया जाता है, जो आग में जलकर नष्ट हो जाता है।
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गेहूँ की फसल में दाने से डेढ़ गुना भूसा होता है, यदि 1 हेक्टेयर में 40 क्विंटल गेहूँ का उत्पादन होता है तो भूसे की मात्रा 60 क्विंटल होगी।
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इस भूसे से 30 किलो नाइट्रोजन, 36 किलो फास्फोरस और 90 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर प्राप्त किया जा सकता है। जो वर्तमान मूल्य के आधार पर लगभग 3,000 रुपये का होगा।
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वहीं फसल के अवशेष जलाने से भूमि में उपस्थित सूक्ष्मजीव एवं केंचुआ आदि भी नष्ट हो जाते हैं। जिससे खेत की उर्वरता व जमीन की भौतिक दशा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
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इससे जमीन कठोर हो जाती है, जिसके कारण जमीन की जल धारण क्षमता कम हो जाती है। जिस वजह से फसलें जल्द सूखती हैं।
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इससे जमीन में होने वाली रासायनिक क्रियाएं भी प्रभावित होती हैं, जैसे- कार्बन-नाइट्रोजन एवं कार्बन-फास्फोरस आदि का अनुपात बिगड़ जाता है। जिस कारण पौधों को पोषक तत्व उपलब्ध अवस्था में नहीं मिल पाते हैं।
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