सोयाबीन का हरी इल्ली के प्रकोप से करें बचाव

  • यह इल्ली वयस्क व्वस्था में मध्यम आकार एवं सुनहरा पीले रंग की होता है। इसके आगे के पंखों का रंग भूरा होता है जिस पर बड़ा सुनहरा तिकोना धब्बा होता है। इसके अंडे पीले रंग के एवं गोल होते हैं। नवजात इल्लियाँ हरे रंग की होती है वहीं पूर्ण विकसित इल्लियाँ 4 मि.मी. लम्बी होती हैं।

  • प्रकोप: अंडों से निकलने के बाद छोटी–छोटी इल्लियाँ, सोयाबीन के कोमल पत्तियाँ को खुरच कर खाती हैं। इसके अत्यधिक प्रकोप की स्थिति में पौधे का हरापन ख़त्म हो जाता है। जब आसमान में अधिक बादल होते हैं तब इस इल्ली का प्रकोप अधिक होता है। बड़ी इल्ली पहले सोयाबीन की पत्तियों में और बाद में फलियों में छेद करके दानो को नुकसान पहुँचाती है।

  • सोयाबीन की फसल को इस इल्ली से बचाने के लिए, तीन प्रकार यांत्रिक, रासायनिक एवं जैविक विधि से रोकथाम की जा सकती है।

  • यांत्रिक नियंत्रण: सोयाबीन की बुवाई के पहले गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें। इससे इस इल्ली के प्यूपा ज़मीन में ही नष्ट हो जाएगा। मानसून पूर्व बुवाई ना करें क्योंकि इससे इल्ली को अपनी संख्या बढ़ाने के लिए उचित तापमान मिल जाता है। बहुत अधिक घनी फसल की बुवाई ना करें। यदि कोई संक्रमित पौधा दिखाई दे तो उसे उखाड़ कर नष्ट कर दें। इल्ली के अच्छे नियंत्रण के लिए खेत में 10 नग प्रति एकड़ की दर फेरामोन ट्रैप स्थापित करें। इस ट्रैप में लगने वाला ल्युर हर 3 सप्ताह के अंतराल से बदलते रहना चाहिए।

  • रासायनिक नियंत्रण: प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिली/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @ 100 ग्राम/एकड़ या फ्लूबेण्डामाइड 20% WG @ 100 ग्राम/एकड़ या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़ का छिड़काव करें।

  • जैविक नियंत्रण: बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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