- इस रोग से प्रभावित आलू के पौधे के आधार भाग पर काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।
- रोग की शुरुआती अवस्था में पौधा पीला पड़ने लगता है।
- संक्रमित कंद पर नरम, लाल या काले रंग की रिंग दिखाई देती है।
- रोग की गंभीर अवस्था में पौधा मुरझाने लगता है और अंत में सूख कर नष्ट होने लगता है।
- इसके प्रबंधन हेतु कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@300 ग्राम/एकड़ या कासुगामायसिन 3% SL@ 400मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ का उपयोग मिट्टी उपचार के रूप में करें। स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम की दर से छिड़काव करें।
गेहूं की फसल में बीज उपचार करने की विधि और इसके लाभ
- बीज़ उपचार करने से बुआई के बाद गेहूं के सभी बीजों का एक सामान अंकुरण होता है।
- इससे मिट्टी जनित एवं बीज़ जनित रोगों से गेहूं की फसल की रक्षा होती है।
- बीज़ उपचार करने से करनाल बंट, गेरुआ, लुस स्मट, ब्लाइट आदि रोगों से गेहूं की फसल की रक्षा होती है।
- गेहूं की फसल में हम रासायनिक और जैविक दो विधियों से बीज उपचार कर सकते हैं।
- रासायनिक उपचार के लिए बुआई से पहले बीजों को कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 2.5 ग्राम/किलो बीज या कार्बोक्सिन 17.5% + थायरम 17.5% @ 2.5 ग्राम/किलो बीज से बीज उपचार करें।
- जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 5 ग्राम/किलो + PSB @ 2 ग्राम/किलो बीज़ या PSB @ 2 ग्राम + मायकोराइज़ा @ 5 ग्राम/किलो बीज की दर से बीज उपचार करें।
चने की फसल में बीज़ उपचार करने की सही विधि
- जिस प्रकार बुआई के पूर्व मिट्टी उपचार आवश्यक होता है ठीक उसी प्रकार बुआई के पहले बीज उपचार करना भी बहुत आवश्यक होता है।
- बीज उपचार करने से कवक जनित रोगों जैसे एन्थ्रेक्नोज धब्बा रोग, गेरुआ, उकठा रोग आदि का नियंत्रण होता है साथ ही बीजों का अंकुरण भी अच्छा होता है।
- बीज उपचार की प्रक्रिया रासायनिक और जैविक दो विधियों से कर सकते हैं।
- रासायनिक उपचार में बुआई से पहले बीजों को कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 2.5 ग्राम/किलो बीज या कार्बोक्सिन 17.5% + थायरम 17.5% @ 2.5 ग्राम/किलो बीज से बीज उपचार करें।
- जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 5 ग्राम/किलो + PSB @ 2 ग्राम/किलो बीज़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 5 ग्राम/किलो बीज की दर से बीज उपचार करें।
गेहूं की बुआई का क्या है सही समय और कैसे करें खेत की तैयारी
- बुआई का उचित समय मध्य अक्टूबर से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक रहता है।
- बुआई के पूर्व खेत में गहरी जुताई जरूर करें।
- जुताई के बाद 2 से 3 बार कल्टीवेटर का इस्तेमाल कर खेत को समतल करें।
- गेहूं की बुआई से पहले मिट्टी उपचार जरूर करें और इसके लिए गेहूं समृद्धि किट का उपयोग करें।
- इस किट में सभी आवश्यक तत्व उपस्थित है जो किसी भी फसल की बुआई के समय मिट्टी में मिलाने पर आवश्यक तत्वों की पूर्ति करने में मदद करते हैं।
इस स्कीम से किसानों को पीएम किसान के 6000 के अलावा और 5000 रूपये मिलेंगे
किसानों को फायदा पहुँचाने के लिए केंद्र सरकार जल्द ही एक नई खुशख़बरी देने वाली है। अब किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के अंतर्गत मिलने वाले 6000 रुपए के अलावा 5000 रुपए और देने की तैयारी चल रही है। इसका मतलब ये हुआ की अब किसानों को 6000 रूपये की जगह पर हर साल 11000 रुपए की रकम मिलेगी।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के अंतर्गत मिलने वाले 6000 रुपए के अलावा जो 5000 रुपए दिए जाने की बात चल रही है वो दरअसल किसानों को खाद के लिए मिलेगी। इस योजना से सरकार बड़ी-बड़ी खाद कंपनियों को सब्सिडी देने के बदले सीधे किसानों के खाते में पैसा भेजने की सोच रही है।
बता दें की कृषि लागत एवं मूल्य आयोग ने केंद्र सरकार से किसानों को सीधे 5000 रुपए सालाना खाद सब्सिडी के रूप में नगद देने की अपील की है। आयोग यह चाहता है कि यह पूरी रकम किसानों को 2500 रुपए की दो किश्तों में भुगतान किये जाएँ। इनमे पहली किश्त खरीफ सीजन के आरम्भ में और दूसरी किश्त रबी सीजन के आरम्भ में दिए जाएँ।
स्रोत: कृषि जागरण
Shareकाले गेहूं की खेती के फायदे
- काला गेहूं दरअसल गेहूं की एक खास किस्म होती है, जिसकी खेती खास तरीके से की जाती है।
- काले गेहूं में सामान्य गेहूं की तुलना में लगभग 60 प्रतिशत अधिक आयरन होता है।
- इस गेहूं में प्रोटीन, पोषक तत्व और स्टार्च की मात्रा सामान्य गेहूं की तरह ही समान रहती है।
- भारत में आम तौर पर काले गेहूं की खेती बहुत कम होती है।
- साधारण गेहूं में एंथोसाइनिन की मात्रा 5 से 15 पीपीएम होती है जबकि काले गेहूं में इसकी मात्रा 40 से 140 पीपीएम होती है।
- एंथ्रोसाइनीन एक नेचुरल एंटी ऑक्सीडेंट व एंटीबायोटिक है जो हार्ट अटैक, कैंसर, शुगर, मानसिक तनाव, घुटनों का दर्द, एनीमिया जैसे रोगों में काफी कारगर सिद्ध होता है।
कवक जनित रोगों के नियंत्रण हेतु क्या करना चाहिए?
- किसी भी फसल से अच्छे उत्पादन की प्राप्ति के लिए फसल में कवक जनित रोगों को नियंत्रण करना बहुत आवश्यक होता है।
- कवक जनित रोगों की रोकथाम में ‘सावधानी ही सुरक्षा है’ का मूल मंत्र काम करता है। इस रोग के प्रकोप होने से पहले उपचार करना बहुत आवश्यक है। अर्थात इसके लिए बुआई के पूर्व ही नियंत्रण करना बहुत आवश्यक होता है।
- सबसे पहले बुआई के पूर्व मिट्टी उपचार करना बहुत आवश्यक होता है।
- मिट्टी उपचार बाद बीजो को कवक रोगों से बचाव के लिए कवक नाशी से बीज़ उपचार करना बहुत आवश्यक है।
- बुआई के 15-25 दिनों में कवकनाशी का छिड़काव करें जिससे की फसल को अच्छी शुरुआत मिल जाए एवं जड़ों विकास अच्छे से हो जाए।
- इसके अधिक प्रकोप की स्थिति में हर 10 से 15 दिनों में छिड़काव करते रहें।
करेले की फसल में लाल भृंग कीट का नियंत्रण
- इस कीट के अंडे से निकले हुये ग्रब जड़ों, भूमिगत भागों एवं जो फल भूमि के संपर्क में रहते है उनको खाता है।
- इनसे प्रभावित पौधे के संक्रमित भागों पर मृतजीवी फंगस का आक्रमण हो जाता है जिसके फलस्वरूप अपरिपक्व फल व लताएँ सुख जाती हैं।
- ये पत्तियों को खाकर उनमें छेद कर देते हैं। पौध अवस्था में बीटल का आक्रमण होने पर यह मुलायम पत्तियों को खाकर हानि पहुँचाते है जिसके कारण पौधे मर जाते हैं।
- गहरी जुताई करने से भूमि के अंदर उपस्थित प्यूपा या ग्रब ऊपर आ जाते हैं और सूर्य की किरणों के सम्पर्क में मर जाते हैं।
- इससे बचाव के लिए बीजो के अंकुरण के बाद पौध के चारों तरफ भूमि में कारटाप हाईड्रोक्लोराईड 4G@ 7.5 किलो प्रति एकड़ की दर से मिट्टी उपचार करें।
- इसके अलावा आपक प्रोफेनोफोस 40 % + सायपरमेथ्रिन 4% EC@ 400 मिली/एकड़ या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS@ 200 मिली/एकड़ की दर से भी छिड़काव में उपयोग कर सकते हैं।
- जैविक उपचार के रूप बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करे या मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें।
अगले दस दिनों में सर्दियाँ देने वाली है दस्तक, जानें अपने क्षेत्र के मौसम का हाल
पिछले कुछ दिनों से मौसम का मिजाज बदलने लगा है और न्यूनतम तापमान में गिरावट देखने को मिल रही है। गिरते हुए तापमान से अब संभावना जताई जा रही है की आने वाले आठ से दस दिनों में ठंड की शुरुआत हो जायेगी। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मौसम विभाग ने भी यह संभावना जताई है कि आने वाले 10 दिनों में ठंड देश के कई राज्यों में दस्तक दे देगी।
बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर में निम्न वायुदाब का क्षेत्र विकसित हो गया है जिस कारण पश्चिम बंगाल, बिहार, असम और मध्य प्रदेश समेत पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई राज्यों में हल्की बारिश के आसार हैं।
मौसम विज्ञानी डॉ. एसएन सुनील पांडेय ने बताया कि बंगाल की खाड़ी के मध्य भाग में निम्न दबाव का क्षेत्र बना है। गौरतलब है की मानसून के समय बारिश की हवा नमी लाती है पर वर्तमान में मानसून का सिस्टम कमजोर होने के बारिश नहीं हो रही है। पश्चिमी विक्षोभ की हवा शुष्क होती है तो वातावरण में ठंडक बढ़ती है। यही हवा हिमालय से टकराकर मैदानी क्षेत्रों में सर्दियों के समय बारिश कराती हैं।
स्रोत: जागरण
Shareबैंगन की फसल में छोटी पत्ती रोग से बचाव के उपाय
- यह एक विषाणु जनित रोग है जो लीफ हॉपर के कारण होता है।
- यह छोटी पत्ती रोग बैगन की फसल में भारी आर्थिक नुकसान का कारण बनती है।
- जैसा कि नाम से समझ आता है, इस रोग के लक्षणों में बैगन की फसल के पेटीओल्स का आकार छोटा रह जाता है।
- पत्तियों का आकार भी इसके कारण बहुत छोटा रह जाता है। इसके अलावा पेटीओल्स इतने कम होते हैं कि पत्तियां तने से चिपकी हुई लगती है।
- इससे बचाव के लिए एसिटामिप्रीड 20% SP@ 80 ग्राम/एकड़ या थियामेंथोक्साम 25% WG@100 ग्राम/एकड़ या थियामेंथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% ZC@ 100 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।