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कपास की फसल के पुष्प गूलर तथा अन्य बढ़वार अवस्थाओं में, भिन्न-भिन्न किस्म के कीट एवं रोग सक्रिय रहते हैं।
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इन कीटों एवं बीमारियों के नियंत्रण के लिए 40-45 दिनों में छिड़काव प्रबंधन करना बहुत आवश्यक है।
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गुलाबी सुंडी के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए बीटासायफ्लूथ्रिन 8.49% + इमिडाक्लोप्रिड19.81 OD% @ 150 मिली/एकड़ का या मकड़ी की रोकथाम के लिए एबामेक्टिन 1.9% EC @ 150 मिली/एकड़ का या जैविक नियंत्रण के लिए बेवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें।
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कवक जनित रोग के नियंत्रण के लिए, कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% WP @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें या जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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होमोब्रेसिनोलाइड 0.04 W/W @ 100मिली/एकड़ का उपयोग करें, पौधे की अच्छी वृद्धि एवं फूलों के अच्छे विकास के लिए यह छिड़काव करना बहुत आवश्यक है।
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छिड़काव के 24 घंटे के अंदर अगर वर्षा हो जाये तो पुनः छिड़काव करें।
पत्तियों की निचली सतह पर अच्छी तरह से छिड़काव किया जाना चाहिए क्योंकि कीट पत्तियों की निचली सतह पर अधिक सक्रिय होते हैं।
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कवक रोग, कीट नियंत्रण एवं पोषण प्रबंधन के लिए उपाय करने से कपास की फसल का उत्पादन अच्छा होता है। इस प्रकार से छिड़काव करने से डेंडू का निर्माण बहुत अच्छा होता है एवं उपज की गुणवत्ता बढती है।
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