कपास में बढ़ेगा हरा तेला, चेपा और सफेद मक्खी का प्रकोप, ऐसे करें रोकथाम

Outbreak and prevention of sucking pests like Aphids Jassids and Whitefly in cotton

इस कीट के शिशु व प्रौढ़ दोनो हीं रूप पत्तियों की निचली सतह पर रहकर पत्तियों का रस चूसते हैं। ये कीट आकार में बहुत छोटे होते हैं, और कपास की पत्तियों की निचली सतह पर समूह में पाए जाते हैं। ये कीट पौधे की पत्तियों से रस चूसते हैं, जिससे पत्तियों का आकार बिगड़ जाता है और पौधा कमजोर हो जाता है। ये कीट पत्तों पर मधुरस भी उत्सर्जित करते हैं, जिससे पौधों की पत्तियों पर एक काली परत बन जाती हैं, जिसके कारण प्रकाश संश्लेषण क्रिया नहीं हो पाती है और इसी वजह से पौधे सूखने लगते हैं। 

रोकथाम: इस कीट के निवारण के लिए, बुवाई से पहले बीज का उपचार जरूर करना चाहिए। फसल में कीट दिखाई दें तो, नीमगोल्ड (नीमआयल 3000 PPM 1 लीटर/एकड़ या बवेकर्ब (बवेरिया बेसियाना 5% WP) 500 ग्राम/एकड़ या पेजर (डायफेंथियुरॉन 50% WP) 240 ग्राम/एकड़ या उलाला (फ्लोनिकैमिड 50% WG) 60 ग्राम/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें। 

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कपास की फसल में ट्राई-कोट मैक्स से पाएं तेज ग्रोथ और बंपर उपज

Get fast growth and bumper yield in cotton crop with Tri-Coat Maxx
  • ट्राई-कोट मैक्स उर्वरकों की कार्य क्षमता को बढ़ाता है, जिससे जड़ जमीन में अधिक गहराई तक जाती हैं और जड़ों जड़ का फैलाव फुटाव भी अच्छा होता है।

  • ट्राई-कोट मैक्स फसलों में पोषक तत्वों को एकत्रित करके पौधे की जड़ तक पहुंचने में मदद करता है, जिससे संपूर्ण पोषक तत्व फसल को मिल जाते हैं और पौधे का विकास अच्छा होता है।

  • इससे पौधा शुरूआती अवस्था से ही मजबूत और स्वस्थ्य हो जाता है। यह उत्पाद एक जैविक उत्पाद है, इसलिए इससे मिट्टी की संरचना एवं गुणवत्ता बेहतर होती है।

  • यह वनस्पति विकास और प्रजनन क्षमता बढ़ाने में मदद करता है। ट्राई-कोट मैक्स के उपयोग से मिट्टी में लंबे समय तक नमी रहती है।

  • इसके प्रयोग से फसल हरी और स्वस्थ्य रहती है, जिससे अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

  • ट्राई-कोट मैक्स के उपयोग के बात करें तो कम अवधि वाली फसल में 4 किलो/एकड़ और लंबी अवधि वाली फसल (गन्ना) में 8 किलो/एकड़ की दर से इसका भुरकाव करें।

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एजोटोबैक्टर क्यों होता है फसलों के लिए बेहद लाभकारी?

What is Azotobacter and what is its importance in crops

एजोटोबैक्टर ऑक्सीजन की उपस्थिति में वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने वाला जैव उर्वरक है। इसके प्रयोग से मिट्टी में 12-15 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति एकड़ स्थिर हो जाती है। एजोटोबैक्टर का उपयोग मिट्टी और बीजाें के उपचार तथा रोपाई के लिए किया जाता है। एजोटोबैक्टर का उपयोग मिट्टी के उपचार के लिए, 750 ग्राम एजोटोबैक्टर को 25 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद में समान रूप से मिलाएं और जुताई से पहले खेत मे डालें। एजोटोबैक्टर के उपयोग से लगभग 4-6 किलोग्राम तक नाइट्रोजन प्रति एकड़ परिवर्तित होकर पौधों को मिल जाती है। इसके इस्तेमाल से फसल का उत्पादन भी लगभग 10-20 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। एजोटोबैक्टर, भूमि में पर्याप्त मात्रा में जैव सक्रिय पदार्थ विटामिन के लिए वृद्धिकारक है। इसके कारण बीज का अंकुरण तथा पौधे की बढ़वार अच्छी होती है। 

एजोटोबैक्टर कल्चर के उपयोग की विधि: एजोटोबैक्टर कल्चर से बीजों को उपचारित करने के लिए आवश्यकतानुसार पानी में 50 ग्राम गुड़ घोलकर उसमें 200 ग्राम कल्चर मिलाएं। इसको एक एकड़ के बीजाें पर छिड़कते हुए हल्के हाथाें से मिला दें, ताकि बीजाें पर कल्चर की एक बारीक परत चढ़ सके, इसके बाद बीजों की बुवाई करें। 

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सोयाबीन की खेत की तैयारी के समय उचित पोषण जरूर दें

Fertilizer Management in Soybean

किसानों को सोयाबीन की खेती से अच्छा मुनाफ़ा मिलता है। हालांकि कई बार सोयाबीन की खेती के समय कुछ लापरवाहियों के कारण पैदावार में कमी आ जाती है। इन लापरवाहियों में सही उर्वरक प्रबंधन ना करना भी शामिल है। सही समय पर एवं सही मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग नहीं करने से फसल की गुणवत्ता पर भी प्रतिकूल प्रभाव होता है। सोयाबीन की बेहतर फसल प्राप्त करने के लिए उर्वरक प्रबंधन करना अति आवश्यक है।

बेहतर फसल के लिए, खेत की तैयारी करते समय प्रति एकड़ खेत में 4-5 टन अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद का उपयोग करें।

सोयाबीन की अच्छी वृद्धि विकास के लिए, DAP-40 किलो, म्यूरेट ऑफ पोटाश-20 किलो, ग्रोमोर (सल्फर 90%) 5 किलो और ट्राई-कोट मैक्स  4 किलो प्रति एकड़ की दर से आखिरी जुताई या खेत की तैयारी करते समय दें। 

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धान की नर्सरी में बुवाई से पहले बीज उपचार से मिलेंगे कई फायदे

Benefits of seed treatment before sowing in paddy nursery

बीज उपचार एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें फसल को बीमारियों और कीटों से बचाव के लिए रसायन, जैव रसायन या ताप से बीजों को उपचारित किया जाता है। बीज उपचार से बीजों में उपस्थित आन्तरिक या बाहरी रूप से जुड़े रोगजनकों (फफूँद, बैक्टीरिया आदि) की रोकथाम होती है। बीजों की ऊपरी तथा अंदर की परतों में सूक्ष्म फफूँद रहती है जो बीज को ख़राब कर देता है, साथ ही साथ बीज की अंकुरण क्षमता को भी प्रभावित करता है। बीज उपचार करने से बीजों का अंकुरण अच्छा होता है, तथा फसल की बीमारियों के प्रसार को रोकता है। मिट्टी जनित रोग एवं कीटों को नियंत्रित करता है, जिससे  बीजों को सड़ने और अंकुरों के झुलसने से बचाया जा सकता है।

धान के बीज को बोने से पूर्व बीजोपचार कर लेना चाहिए। इसके लिए, कॉम्बैट (ट्राइकोडर्मा विरडी) 8 ग्राम/किलो बीज या धानुस्टिन (कार्बेन्डाजिम 50% WP) 2.5 ग्राम/किलो बीज या विटावैक्स पावर (कार्बोक्सिन 37.5% + थिरम 37.5% WS)- 2.5 ग्राम/किलो बीज से उपचारित करें। जीवाणु झुलसा रोग की समस्या आने पर, 4 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन या 40 ग्राम प्लान्टोमाइसीन को 25 किग्रा बीज के साथ मिलाकर रात भर के लिए भिगों दें, तथा अतिरिक्त पानी निकाल कर बीजों की बुवाई करें।

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सही खेत की तैयारी व प्रबंधन से तैयार होगी धान की बेस्ट नर्सरी

Preparation and management of field for paddy nursery

धान की नर्सरी तैयार करने के लिए उचित जल-निकास एवं उच्च पोषक तत्व युक्त दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। साथ हीं इसमें सिंचाई की उचित व्यवस्था भी होनी चाहिए।

धान की नर्सरी तैयार करते समय, उचित मात्रा में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग करना बहुत जरूरी है। सही मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग नहीं करने से धान के पौधों में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, और पौधे का विकास, ठीक से नहीं हो पाता है।

नर्सरी तैयार करते समय सबसे पहले जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें। इसके बाद 1.25 मीटर चौड़ी एवं 8 मीटर लंबी क्यारियां तैयार करें।

पौधे के अच्छे विकास के लिए धान नर्सरी में प्रति 100 वर्ग मीटर के हिसाब से 2-3 किलोग्राम यूरिया, 3 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 1 किलोग्राम पोटाश, 10 किलोग्राम गोबर की खाद और 1 किलो ट्राई-कोट मैक्स का उपयोग करना चाहिए। पौधों के अच्छे अंकुरण के लिए पानी की बहुत ज्यादा जरूरत होती है साथ हीं क्यारियों में पर्याप्त नमी भी रखनी चाहिए।

धान के बीज को बोने से पूर्व बीजोपचार जरूर कर लेना चाहिए। इसके लिए, कॉम्बैट (ट्राइकोडर्मा विरडी) 8 ग्राम/किलो बीज या धानुस्टिन (कार्बेन्डाजिम 50% WP) 2.5 ग्राम/किलो बीज या विटावैक्स पावर (कार्बोक्सिन 37.5% + थिरम 37.5% WS)- 2.5 ग्राम/किलो बीज से उपचारित करें।

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ट्राइकोडर्मा अपनाएं और फसलों में मिट्टी के माध्यम से होने वाले रोगों से सुरक्षा पाएं

Adopt Trichoderma for soil-borne disease management

ट्राइकोडर्मा दरअसल एक जैविक फफूंदनाशी/कवकनाशी है, जो कई प्रकार के रोगजनकों को मारता है। इससे फसलों में लगने वाले जड़ सड़न, तना सड़न, उकठा और आर्द्र गलन जैसे रोगों से सुरक्षा होती है। ट्राइकोडर्मा सभी प्रकार की फसलों में उपयोग किया जा सकता है। ट्राइकोडर्मा का उपयोग बीज उपचार, मिट्टी उपचार, जड़ों का उपचार और ड्रेंचिंग के लिए किया जा सकता है।

बीज उपचार के लिए, 5-10 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलो बीज की दर से उपयोग किया जाता है। यह बीज उपचार बुवाई से पहले किया जाता है।

जड़ों के उपचार के लिए, 10 किलो अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद तथा 100 लीटर पानी मिला कर घोल तैयार करें और फिर इसमें 1 किलो ट्राइकोडर्मा पाउडर मिला कर मिश्रण तैयार कर लें। इस मिश्रण में, पौध की जड़ों को रोपाई से पहले, 10 मिनट के लिए डुबो कर रखें। कुछ इस तरह जड़ों को उपचारित किया जा सकता है।

वहीं इससे मिट्टी उपचार करने के लिए 2 किलो ट्राइकोडर्मा पाउडर प्रति एकड़ की दर से अच्छी सड़ी गोबर की खाद के साथ मिला कर खेत में मिलाया जाता है।

खड़ी फसल में इसका उपयोग करने के लिए एक लीटर पानी में 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर मिलाकर तना क्षेत्र के पास की मिट्टी में ड्रेंचिंग करें।

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पौधों के लिए नाइट्रोजन होता है महत्वपूर्ण, जानें इसके लाभ

Importance of Nitrogen for plants

नाइट्रोजन प्रोटीन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, यह पर्णहरित का महत्वपूर्ण भाग होता है जो प्रकाश संश्लेषण के लिए अतिआवश्यक होता है। नाइट्रोजन पौधे की वानस्पतिक वृद्धि को बढ़ाता है एवं गहरा हरा रंग प्रदान करता है। नाइट्रोजन पौधे की शुरूआती वृद्धि को बढ़ाता है। 

मिट्टी जिसमें जैविक कार्बन का स्तर कम होना या फिर हल्की गठन वाली रेतीली मिट्टी जिसमें अत्यधिक वर्षा या सिंचाई द्वारा अपक्षालन होना दरअसल नाइट्रोजन की कमी को दर्शाता है। अनाज वाली फसलों की सघन कृषि प्रणाली में भी इसकी कमी देखी जाती है।

पौधे में नाइट्रोजन की कमी के लक्षण पुरानी पत्तियों पर दिखाई देते हैं। नाइट्रोजन की कमी वाले पौधों की वृद्धि इसके कारण रुक जाती है, और पौधे आकार में पतले एवं छोटे दिखाई देते हैं। अनाज वाली फसलों में इसके कारण कल्ले बहुत कम हो जाते हैं। इससे पत्तियाँ नोक की तरफ से पीली पड़ने लगती हैं। यह प्रभाव पहले पुरानी पत्तियों पर दिखाई देते हैं, फिर बाद में नई पत्तियों पर भी दिखाई देते हैं।

नाइट्रोजन का प्रबंधन: 

नाइट्रोजन की मिट्टी में उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए मिट्टी की जांच करवाएं। जांच के आधार पर, सिफारिश की गई नाइट्रोजन को खाद एवं जैविक उर्वरकों की सहायता से बुआई के समय प्रयोग करें। खड़ी फसल में आवश्यकतानुसार यूरिया का भुरकाव करें।

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मक्का में सही पोषक तत्व प्रबंधन से मिलेगी बंपर उपज

Nutrient Management in Maize

मक्का मुख्य रूप से एक खरीफ सीजन की फसल है, लेकिन बाजार में इसकी बढ़ती मांग और सभी मौसम के अनुकूल उपलब्ध किस्मों के कारण अब यह तीनों ही सीजन में उगाई जाती है। मौसम, जलवायु और किस्म के अनुसार मक्का की फसल में पोषक तत्वों का प्रबंधन भिन्न-भिन्न होता है। इसके अलावा मिट्टी के जांच के आधार पर फसल में पोषक तत्व प्रबंधन किया जाना आवश्यक है।

मक्का में बुवाई से लगभग 10-15 दिन पहले खेत की तैयारी के समय 5 टन अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति एकड़ खेत में मिलाएं। खेत की तैयारी के समय – 50 किलोग्राम डीएपी, 50 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश, ग्रोमोर (सल्फर 90% WG) 3 किलोग्राम की मात्रा प्रति एकड़ की दर से खेत में डाल दें।

मक्का में अधिक उत्पादन के लिए जिंक एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व माना जाट है जिसकी पूर्ति के लिए 3 – 4 किलोग्राम जिंक की मात्रा प्रति एकड़ के अनुसार इस्तेमाल करें। ध्यान रहे ! जिंक का प्रयोग किसी भी प्रकार के फास्फोरस युक्त उर्वरक के साथ न करें। यह फसल में जिंक की उपलब्धता को कम करता है।

वहीं मिट्टी में बोरॉन की कमी आने पर 500 ग्राम बोरॉन की मात्रा का इस्तेमाल प्रति एकड़ खेत के लिए काफी होता है। 

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कापूस पिकातील पोषण व त्याचे फायदे कसे व्यवस्थापित करावे

How to do nutrition management in cotton and know its benefits
  • कापूस पीक हे खरिपाचे मुख्य पीक आहे आणि हे पीक खूपच महाग पीक आहे, म्हणून चांगले उत्पादन मिळणे खूप महत्वाचे आहे, चांगल्या उत्पादनासाठी कापूस पिकामध्ये खत किंवा पोषण व्यवस्थापन करणे अत्यंत आवश्यक आहे.

  • कापूस पिकामधील पौष्टिक व्यवस्थापन पेरणीनंतर 40-45 दिवसांनी किंवा उगवणानंतर दुसऱ्यावाढीच्या टप्प्यात केले जाते, यासाठी खालील उत्पादने वापरली जातात

  • युरिया 40 किलो / एकर + एमओपी 30 किलो / एकर + मॅग्नेशियम सल्फेट 10 किलो / एकर दराने फवारणी करावी.

  • यूरिया: कापूस पिकामध्ये यूरिया हा नायट्रोजन पुरवठ्याचा सर्वात मोठा स्त्रोत आहे, त्याचा वापर केल्यामुळे पाने कोरडी होण्यासारखी समस्या उद्भवत नाही, युरिया प्रकाश संश्लेषणाच्या प्रक्रियेस वेगवान ठरते.

  • एमओपी (पोटॅश): कापसासाठी पोटॅश एक आवश्यक पोषक आहे, कापूस वनस्पतीमध्ये संश्लेषित केलेल्या शुगर्सला सूती रोपाच्या सर्व भागापर्यंत पोचविण्यासाठी पोटाश महत्त्वपूर्ण भूमिका बजावते.पोटॅश नैसर्गिक नायट्रोजनच्या कार्यक्षमतेस प्रोत्साहन देते.

  • मॅग्नेशियम सल्फेट: कापूस पिकामध्ये मॅग्नेशियम सल्फेट वापरल्याने कापूस पिकामध्ये हिरवळ वाढते आणि प्रकाश संश्लेषणाच्या प्रक्रियेस गती मिळते आणि शेवटी पिकांचे उत्पादन जास्त व गुणवत्तेत होते.

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