मूग पिकामध्ये 40 दिवसांच्या अवस्थेत केली जाणारी आवश्यक फवारणी

Know the benefits of growing summer moong
  • शेतकरी बंधूंनो, सध्या बहुतांश शेतात मुगाचे पीक घेतले जाते. ज्या भागात मुगाची पेरणी लवकर झाली तेथे पिके आता 40 ते 50 दिवसांची झाली आहेत.

  • पिकाचा हा टप्पा हा एक प्रमुख टप्पा आहे ज्यामध्ये सोयाबीनातील धान्याचा दर्जा वाढवण्यासाठी आणि कीड आणि बुरशी रोगांचे नियंत्रण करण्यासाठी विशेष काळजी घेणे आवश्यक आहे.

  • यावेळी खालील शिफारशींचा अवलंब करून पिकापासून योग्य फायदा मिळवता येतो.

  • नोवालूरान 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% एससी [बाराज़ाइड] 600 मिली + प्रोपिकोनाज़ोल [जेरॉक्स] 200 मिली + 0:00:50 [ग्रोमोर] 1 किग्रॅ/एकर या दराने फवारणी करावी. 

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खीरे की फसल में डाउनी मिल्ड्यू रोग की पहचान और निवारण के उपाय

Identification and Prevention of Downy Mildew in Cucumber

डाउनी मिल्ड्यू को हिंदी भाषा में मृदुरोमिल आसिता कहते हैं। यह खीरे के पौधों को बहुत अधिक प्रभावित करने वाला एक फंगस जनित रोग है, जो पौधे को सभी अवस्था में प्रभावित कर सकता है। इस रोग के कारण पौधे की पत्तियों की शिराओं के बीच की सतह पर धब्बे दिखाई देने लगते हैं और पत्तियां पीली होकर गिर जाती हैं। डाउनी मिल्ड्यू से प्रभावित पौधे ठीक तरह से वृद्धि नहीं कर पाते और पौधों में अच्छे फल नहीं लग पाते हैं।

नियंत्रण: यदि इसका हमला देखा जाये तो एम -45 (मैनकोजेब 75% डब्ल्यूपी) 400 ग्राम/एकड़ या जटायु (क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यू पी) 400 ग्राम/एकड़ 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें। 

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टमाटर में पछेती झुलसा रोग की पहचान और निवारण के उपाय

Identification and prevention of Late Blight disease in Tomato

इस रोग के कारण पत्तियों और तने पर पानी से लथपथ काले धब्बे बन जाते है। घाव तेजी से फैलते हैं और पूरी पत्ती सूख जाती है। पत्तियों पर किनारे से धब्बे बनना शुरू होते हैं और धीरे-धीरे ये धब्बे तने और फल पर भी दखाई देते हैं। फल पर गहरे भूरे रंग के घाव बन जाते हैं। मौसम में बार-बार बदलाव होना, खेतों में ज्यादा नमी, से इस रोग का फैलाव तीव्रता से होता है। 

नियंत्रण: यदि इसका हमला देखा जाए तो ब्लू कॉपर (कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्ल्यूपी) 300 ग्राम/एकड़ या नोवाक्रस्ट (एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एससी) 300 मिली/एकड़ या  ताक़त कैप्टान 70% + हेक्साकोनाज़ोल 5% डब्ल्यू पी 370 ग्राम/एकड़, 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें। 

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टमाटर में अगेती झुलसा रोग की पहचान और निवारण के उपाय

Identification and prevention of early Blight disease in Tomato

यह टमाटर की खेती में पाई जाने वाली प्रमुख बीमारी है। इसके कारण शुरू में पत्तों पर छोटे भूरे धब्बे बनते हैं पर बाद में ये धब्बे तने और फल के ऊपर भी दिखाई देने लगते हैं। पूरी तरह से विकसित धब्बे अनियमित, गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं जिनमें धब्बों के अंदर संकेंद्रित छल्ले होते हैं। ज्यादा हमला होने पर इसके पत्ते झड़ जाते हैं और पौधा सूख जाता है। 

नियंत्रण: यदि इसका हमला देखा जाए तो नोवाक्रस्ट (एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एससी) 300 मिली/एकड़ या ताक़त (कैप्टान 70% + हेक्साकोनाज़ोल 5% डब्ल्यू पी) 370 ग्राम/एकड़, 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

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टमाटर की फसल में एन्थ्रेक्नोज की समस्या और निवारण के उपाय

Anthracnose disease increasing in tomato

गर्म तापमान और ज्यादा नमी वाली स्थिति में यह एन्थ्रेक्नोज की बीमारी फसलों में सबसे ज्यादा फैलती है। इस बीमारी से टमाटर के पौधे के प्रभावित हिस्सों पर काले धब्बे पड़ जाते हैं। यह धब्बे आमतौर पर गोलाकार, पानी के साथ भीगे हुए और काली धारियों वाले होते हैं। जिन फलों पर ज्यादा धब्बे हों वे पकने से पहले ही झड़ जाते हैं, जिससे फसल की पैदावार में भारी गिरावट आ जाती है।

नियंत्रण: इसके निवारण के लिए ताक़त (कैप्टान 70% + हेक्साकोनाज़ोल 5% डब्ल्यू पी), 370 ग्राम/एकड़ 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

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टमाटर की फसल में फूल और फल झड़ने की समस्या एवं समाधान के उपाय

Problem and solution of flower and fruit drop in tomato crop

टमाटर एक प्रमुख सब्जी है। इसका प्रयोग हर सब्जी के साथ किया जाता है। इसकी फसल से अधिक पैदावार लेने के लिए सही से देखभाल करना बहुत जरूरी होता है। अगर टमाटर की फसल में फूल अवस्था के दौरान फूल झड़ रहे हों तो इसका उत्पादन पर सीधा असर होता है। 

तापमान कम या ज्यादा होने के कारण टमाटर के पौधे से फूल गिरने लगते हैं, ऐसा दिन और रात में तापमान कम या ज्यादा होने के कारण होता है। टमाटर के पौधे के लिए उचित तापमान 15-27°C होता है और इससे अधिक तापमान होने पर लाइकोपीन का स्तर शीघ्रता से गिरने लगता है और गर्म व शुष्क मौसम में कच्चे फल गिरने लगते हैं। 

मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी होने से भी पौधों के विकास में समस्या आती है और फूलों के झड़ने की समस्या शुरू हो जाती है। अधिक मात्रा में रसायनों का छिड़काव करना भी पौधे को नुकसान पहुंचाता है। आवश्यकता से अधिक और कम मात्रा में, पानी देने से भी कई बार फूल झड़ने लगते हैं।

फूलों और फलों को झड़ने से बचाने के उपाय:

  • तापमान के हिसाब से पौधे लगाएं। अधिक तापमान में पौधों को सीधा धूप के सम्पर्क में आने से बचाएं। फसल का तापमान 21 से 30 डिग्री के बीच रखें।

  • पौधों को गहराई तक पानी दें जिससे इनकी जड़ों को पर्याप्त मात्रा में पानी मिल सकें।

  • फूल अवस्था के वक्त रसायन युक्त उर्वरकों का प्रयोग कम करें।

  • उचित मात्रा में नाइट्रोजन व खाद का प्रयोग करें।

  • इसके फलों की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए 3 से 4 बार 0.3% बोरेक्स के घोल को 15 ग्राम कैल्शियम के साथ 15 लीटर पानी में मिलाकर फल आने पर पौधों पर छिड़कें।

  • ठंड में ‘पाला’ तथा गर्मी में ‘लू’ से बचाव के लिए 10-12 दिनों के अंतराल पर फसल में सिंचाई करते रहें।

  • फूल झड़ने पर, प्लानोफिक्स 4 मिली दवा का 16 लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करें।

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मूंग की फसल में पिस्सू भृंग का प्रकोप एवं नियंत्रण के उपाय

Control of Flea beetles in Moong crop

लक्षण: मूंग की फसल की 20-35 दिन की अवस्था में ही पिस्सू भृंग के प्रौढ़ रूप पत्तों को काट कर उसमें छेद बनाते हैं जिससे 30 से 40 प्रतिशत पत्ते क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। प्रकोप होने की स्थिति मे, पत्ते छन्नी जैसे दिखते हैं। इससे पौधे की बढ़वार प्रभावित होने के साथ, कई बार पौधा सूख भी जाता है। प्रौढ़ कीट छोटे शरीर वाले, लाल भूरे धारीदार होते हैं और रात्रि के समय हमला करते हैं। यह मात्र स्पर्श से उड़ जाता है जबकि इस कीट की इल्ली फसल की जड़ एवं तने को खाकर फसल को हानि पंहुचाते हैं।

नियंत्रण: इसके नियंत्रण के लिए सेलक्वीन (क्विनालफॉस 25% ईसी) 25% डब्ल्यू/डब्ल्यू को 250 मिली लीटर/एकड़ 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें। 

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भिंडी की फसल में तना एवं फल छेदक कीट की पहचान और नियंत्रण के उपाय

Identification and control of stem and fruit borer in okra crop

लक्षण: इस कीट का प्रकोप सबसे अधिक होता है। प्रारंभिक अवस्था में इसकी इल्ली कोमल तने में छेद करती है जिससे पौधे का तना एवं शीर्ष भाग सूख जाता है। इसके आक्रमण से फूल लगने के पूर्व हीं गिर जाते है। इसके बाद फल में छेद बनाकर अंदर घुसकर गूदे को खाते हैं जिससे ग्रसित फल मुड़ जाते हैं और फल खाने योग्य नहीं रहते हैं। इससे बाजार भाव में काफी गिरावट देखने को मिलती है। 

नियंत्रण: इस कीट के नियंत्रण के लिए लैमनोवा (लैम्ब्डा-साइहलोथ्रिन 04.90% सीएस) 120 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करे या  कवर (क्लोरेंट्रानिलिप्रोएल 18.50% एस.सी) 50 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें। 

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टमाटर के फलों के फटने का कारण एवं नियंत्रण के उपाय

Causes and control of tomato fruit cracking

टमाटर की खेती में फलों के फटने की समस्या बढ़ती जा रही है। फलों के पकने के समय यह समस्या अधिक होती है। फलों के फटने का कारण एवं इस पर नियंत्रण की उचित जानकारी नहीं होने के कारण इस समस्या से निजात पाना किसानों के लिए कठिन होता जा रहा है। फटे हुए फलों की बाजार में बिक्री भी नहीं होती है जिससे किसानों को भारी नुकसान होता है। 

टमाटर के फलों के फटने का कारण

  • सही समय पर सिंचाई नहीं करना 

  • बोरोन की कमी होने पर

  • तापमान में बदलाव के कारण 

  • फूल अवस्था में अत्यधिक नाइट्रोजन का प्रयोग

  • पोटाश की कमी से भी यह समस्या होती है

टमाटर के फलों को फटने से बचाने के तरीके

  • मिट्टी में नमी बनाये रखें और इसके लिए एक निश्चित अंतराल पर सिंचाई करें।

  • बोरोन की कमी की पूर्ति के लिए, खेत में प्रति एकड़ 3 से 4 किलोग्राम बोरेक्स का प्रयोग करें।

  • पौधों में फूल आने के बाद यूरिया का प्रयोग कम करें। यूरिया की जगह पानी में घुलनशील एनपीके 19:19:19 उर्वरक का प्रयोग करें।

  • पौधों की रोपाई से पहले, मुख्य खेत में पोटाश मिलाएं। इससे पौधों में पोटाश की कमी पूरी होगी और यह रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाएगा।

  • 2 ग्राम बोरोन 20% प्रति लीटर पानी में स्टीकर के साथ मिला कर प्रयोग करें।

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आइये जानते है मिट्टी परीक्षण से मिलने वाले लाभ

Sample Collection Method for Soil Testing
  • मिट्टी परीक्षण कराने से, मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों के साथ, लवणों की मात्रा की भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

  • परीक्षण के बाद मिट्टी में जिन पोषक तत्वों की कमी हो उनकी पूर्ति की जा सकती है।

  • मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों के अनुसार फसलों का चयन कर अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।

  • मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ाई जा सकती है।

  • मिट्टी जांच से मिट्टी के पी.एच स्तर की जानकारी मिलती है।

  • मिट्टी जांच से मिट्टी में पाए जाने बाले 12 प्रकार के पोषक तत्व की जानकारी मिलती है और खेती में लगने वाले खर्च को कम किया जा सकता है। 

  • मिट्टी परीक्षण, हर 3 साल में एक बार अवश्य करवाना चाहिए। 

  • इससे फसल में लगने वाले उर्वरक या खाद की सही मात्रा तय हो जाती है। किसान अपनी फसल में उर्वरकों का अच्छा प्रबंधन करके अतिरिक्त लागत को कम कर सकते हैं।

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