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शेतकरी बंधूंनो, मशरूम ही बुरशी वर्गाची वनस्पती आहे, त्याचे बुरशीचे जाळे हे त्याचे फळ भाग आहे ज्याला मशरूम म्हणतात. मशरूम लागवडीचे खालील फायदे आहेत.
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मशरूम वाढताना खताची कोणतीही आवश्यकता भासत नाही.
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याची शेती शेतकरी, मध्यमवर्गीय आणि कामगार वर्ग आपली आर्थिक स्थिती मजबूत करू शकतो.
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ज्यांना जमिनीची कमतरता किंवा उपलब्धता नाही त्यांच्यासाठी मशरूमची लागवड सर्वोत्तम आहे.
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मशरूमची लागवड करताना खर्च कमी आणि उत्पादन जास्त.
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मशरूमच्या शेतीमध्ये इतर शेतीच्या तुलनेत धोका नगण्य आहे.
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मशरूमची लागवड कोणत्याही हंगामात नियंत्रित वातावरणात आणि तापमान आणि आर्द्रतेमध्ये करता येते.
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मशरूम अशा ठिकाणी पिकवता येते जिथे सूर्यप्रकाश पोहोचत नाही.
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पिकांचे अवशेष मशरूम लागवडीमध्ये वापरले जातात जे सहज उपलब्ध असतात.
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मशरूममध्ये उपयुक्त आणि पौष्टिक पदार्थ असतात आणि त्यात भरपूर प्रथिने असतात.
कपास की फसल में बुवाई के बाद ऐसे करें खरपतवारों का प्रबंधन
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कपास की फसल में खरपतवार के कारण पैदावार में बहुत ज्यादा कमी आती है। बुवाई से 50-60 दिनों तक कपास का खेत खरपतवार मुक्त होना चाहिए। यह अच्छी उपज के लिए आवश्यक है।
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बुवाई के बाद पहली सिंचाई से पहले हाथ से खरपतवार हटाएं। साथ ही हर सिंचाई के बाद इस प्रक्रिया को दोहराएं।
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शाकनाशी का प्रयोग बुवाई के तीन दिन के अंदर करें, इसके लिए दोस्त (पेंडीमेथलीन 30% ईसी) 1000 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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शाकनाशी के प्रयोग के समय मिट्टी में पर्याप्त नमी मौजूद होनी चाहिए। इसके प्रयोग से फसल 20-30 दिनों तक खरपतवार मुक्त बनी रहती है।
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यदि बुआई के समय शाकनाशी का प्रयोग नहीं किया गया हो तो बुवाई के 18 से 20 दिन के बीच निराई-गुड़ाई जरूर करें।
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कपास की फसल में आद्र गलन की समस्या एवं निवारण के उपाय
आद्र गलन रोग के लक्षण:
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आद्र गलन रोग कपास की फसल में लगने वाले कुछ घातक रोगों में से एक है। इस रोग के कारण 5 से 20% तक फसल नष्ट हो जाते हैं।
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आद्र गलन रोग का प्रभाव 10-15 दिन के पौधों में ज्यादा देखने को मिलता है। इस रोग से पौधों के जड़ और तना गलने लगते हैं।
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इससे तने पतले होने लगते हैं और पत्ते मुरझाने लगते हैं। इस रोग की समस्या बढ़ने पर, पौधों की पत्ती पीली होकर, सूखने लगती है एवं पौधे जमीन पर गिर जाते हैं।
आद्र गलन रोग पर नियंत्रण के तरीके:
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इस रोग से बचाव के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिए और आद्र गलन रोग के प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए।
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बीजों की बुवाई से पूर्व बीजोपचार करना अति आवश्यक है।
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जैविक नियंत्रण के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 8 ग्राम ट्राइकोडर्मा से उपचारित करें।
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विटावेक्स (कार्बोक्सिन37.5%+ थिरम37.5%डब्ल्यू एस) 3 ग्राम/किलो बीज से उपचारित करें।
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मूंग में सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग की पहचान व नियंत्रण के उपाय
सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग के कारण मूंग की पत्तियों पर भूरे गहरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं जिनका बाहरी किनारा गहरे से भूरे लाल रंग का होता है। यह धब्बे पत्ती के ऊपरी सतह पर अधिक स्पष्ट दिखाई देते हैं। रोग का संक्रमण पुरानी पत्तियों से प्रारम्भ होता है। अनुकूल परिस्थतियों में यह धब्बे बड़े आकार के हो जाते हैं और अंत में रोगग्रस्त पत्तियाँ गिर जाती हैं।
रोकथाम: इसके नियंत्रण के लिए बुवाई से पहले बीज को कैप्टान या थीरम नामक कवकनाशी से (2.5 ग्रा./कि.ग्रा. की दर से) शोधित करें या बुबाई के 10-15 दिन बाद यह रोग दिखाई दे तो धानुस्टिंन (कार्बेन्डाजिम 50% डब्लू.पी) 200 ग्राम/एकड़ या एम-45 (मैनकोजेब 75% डब्लू.पी) 400 ग्राम/एकड़ रोग की शुरुआत में और 10 दिन बाद 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।
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खीरे की फसल में फल मक्खी का प्रकोप एवं निवारण के उपाय
यह खीरे की फसल में पाए जाने वाला एक प्रमुख कीट है, इसकी मादा मक्खियां नए फल के छिलके के अंदर की ओर अंडे देती हैं और फिर इसके मेगट फल के गुद्दे को खाती है। इसी वजह से फल गलना शुरू हो जाता है। मक्खी फल में छेद कर देती है जिससे फल का आकार बिगड़ जाता है और फल धीरे धीरे सड़ जाता है।
रोकथाम: इसकी रोकथाम के लिए नीमगोल्ड नीम तेल 1000 मीली/एकड़ या फेरोमोन – फ्रूट फ्लाई ट्रैप 10/एकड़ की दर से लगाएं या बवे कर्व (बवेरिया बेसियाना 5% डब्ल्यूपी) 500 ग्राम/एकड़ की दर 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।
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खीरे की फसल में पाउडरी मिल्ड्यू की पहचान एवं निवारण के उपाय
पाउडरी मिल्ड्यू रोग खीरे की फसल में लगने वाला एक प्रमुख रोग है जो फंगस के माध्यम से फैलता है। यह पत्तों और तने पर सफ़ेद रंग के पाउडर के रूप में दिखाई देता है। पाउडरी मिल्ड्यू से प्रभावित हिस्सों पर हाथ लगाने पर, उंगलियों में पाउडर लग जाता है। इस रोग के कारण प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बाधित होती है एवं फसल में फूल और फल नहीं बन पाते हैं। पाउडरी मिल्ड्यू रोग की समस्या ज्यादा होने पर, उत्पादन में कमी भी आ जाती है।
नियंत्रण: यदि इसका संक्रमण फसलों में दिखे तो एम -45 (मैनकोजेब 75% डब्ल्यूपी) 400 ग्राम/एकड़ या जटायु क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यू पी 400 ग्राम/एकड़ 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें। 10 दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव करके डाउनी मिल्ड्यू को नियंत्रित किया जा सकता है।
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