सोयाबीन की फसल को गेरुआ रोग के प्रकोप से जल्द दें सुरक्षा

Give protection to soybean crop from the outbreak of Rust disease

यह रोग केकोप्सोरा पैकीराईजी नामक फफूंद के द्वारा होता है। लगातार बारिश होने से तापमान जब 18 से 28 डिग्री सेल्सियस के बीच रहे या फिर अपेक्षित आद्रता 80 प्रतिशत के आसपास रहे या फिर पत्तियां गीली बनी रहे तो ऐसी दशा में गेरुआ रोग की संभावना बढ़ जाती है।

इस रोग से ग्रसित पौधों की पत्तियों पर निचली सतह में सुई की नोक के आकार के मटमैले भूरे व लाल धब्बे दिखाई देते हैं। कुछ ही समय में यह धब्बे समूह में बढ़ने लगते हैं व पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं। इनसे कत्थई रंग का पाउडर निकलता है जो स्वस्थ पत्तियों पर गिरकर रोग की तीव्रता को बढ़ाता है।

इस रोग की प्रारम्भिक अवस्था पर नोवाकोन (हैक्साकोनाजोल 5% EC) 300 ml या गैलीलियो (पिकोक्सीस्ट्रोबिन 22.52% w/w SC) 160 मिली/एकड़ 150 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

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भात पिकाच्या योग्य वाढीसाठी आणि अधिक कळ्यांचा प्रसार होण्यासाठी आवश्यक पोषक व्यवस्थापन

Tri Dissolve Paddy Maxx

शेतकरी बांधवांनो, भात पिकाचे अधिक उत्पादनासाठी पोषक व्यवस्थापन हा एक महत्त्वाचा उपाय आहे. ज्यामध्ये रासायनिक खते, सूक्ष्म पोषक तत्त्वे, जैविक खते, हिरवे-निळे शेवाळ, शेणखत व हिरवळीचे खत इत्यादींचा योग्य वापर करावा.

भात पिकाच्या पेरणी किंवा लावणीच्या वेळी दिलेल्या नत्रजनचे उर्वरित 1/4 मात्रा अंकुर फुटण्याच्या अवस्थेत द्यावी. जर लावणीच्या वेळी जिंक सल्फेट न दिल्यास जिंक सल्फेट 10 किलो प्रति एकर या प्रमाणात वापरावे आणि गंधकची कमतरता असलेल्या भागात गंधक युक्त खते जसे की, सिंगल सुपर फास्फेट या सल्फरयुक्त खतांचा वापर करावा. सोबतच पिकांच्या चांगल्या गुणवत्तेसाठी ट्रॉय डिज़ाल्व पैडी मैक्सचा देखील वापर करावा. 

ट्राई डिज़ाल्व पैडी मैक्स : हे जैव उत्तेजक पोषक तत्त्व आहे. ज्यामध्ये जैविक कार्बन, पोटॅशियम, कॅल्शियम, इतर प्राकृतिक स्थिरक इत्यादि तत्त्वे आढळतात. हे निरोगी आणि वनस्पतिवत् होणारी बाह्यवृद्धी, लवकर मुळांच्या विकासास प्रोत्साहन देते यासोबतच विविध पोषकतत्त्वांचे प्रमाणही वाढवते. 

वापरण्याची पद्धत : याचा वापर 400 ग्रॅम प्रती एकर या दराने त्यावेळी दिल्या जाणाऱ्या पोषक तत्वासोबत मिसळून पसरावे आणि 200 ग्रॅम ट्राई डिसॉल्व पैडी मैक्स प्रती एकर 150 ते 200 लिटर पाण्याच्या दराने फवारणी करावी.

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सोयाबीन में बढ़ेगा पीला मोजेक रोग, जानें नियंत्रण के उपाय

Yellow mosaic disease will increase in soybean

इस रोग की शुरूआती अवस्था में पतियों पर गहरे पीले रंग के धब्बे नजर आने शुरू होते हैं। ये धब्बे धीर धीरे फैलकर आपस में मिल जाते हैं। जिससे पूरी पत्ती हीं पीली पड़ जाती हैं। पत्तियों के पीले पड़ने के कारण अनेक जैविक क्रियांए प्रतिकुल रूप से प्रभावित होती हैं तथा पौधो में आवश्यक भोज्य पदार्थ का संश्लेषण नही हो पाता है। इस वजह से पौधों पर फूल कम आते हैं एवं फलियां लगती भी हैं तो उनमें दानों का विकास नही हो पाता हैं। सफेद मक्खी इस वायरस (विषाणु) के वाहक होते हैं और ये रोग को पूरे फसल में फैलाते भी हैं।

पीला मोजेक रोग पर नियंत्रण के उपाय

इस रोग के नियंत्रण के लिए प्रारंभिक अवस्था में ही अपने खेत में जगह-जगह पर पीला चिपचिपा ट्रैप लगाएं जिससे इसका संक्रमण फैलाने वाली सफेद मक्खी का नियंत्रण होने में सहायता मिले। इसके रोकथाम के लिए फसल पर पीला मोजेक रोग के लक्षण देखते ही ग्रसित पौधों को अपने खेत से बाहर निकाल दें। ऐसे खेत में सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए अनुशंसित पूर्व मिश्रित सम्पर्क रसायन जैसे स्पेर्टो (एसिटामिप्रिड 25% + बिफेन्थ्रिन 25% WG) 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिडक़ाव करें।

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सोयाबीन की फसल में तना मक्खी प्रकोप का ऐसे करें निदान

This is how to diagnose stem fly infestation in soybean crop
  • इस कीट की मैगट सफेद रंग के तने के अंदर रहती हैं। व्यस्क कीट चमकीले काले रंग का दो मिलीमीटर आकार के होते हैं।

  • इस कीट की मादा पत्तियों पर पीले रंग के अंडे देती हैं जिनसे मैगट निकलकर पत्तियों की शिराओं में छेद कर सुरंग बनाती हुई तने में प्रवेश करती है तथा तने को खोखला कर देती हैं।

  • इसके कारण पौधे की पत्तियां शुरूआती अवस्था में पीली दिखाई देने लगती हैं और बाद में पूरा पौधा पीला पड़ जाता है।

  • तना मक्खी से बचाव के लिए नोवालक्सम (लेम्बडासाइलोथ्रिन 9.5% + थायोमिथाक्सॉम 12.9 प्रतिशत ZC) 50 मिली प्रति एकड़ या कवर (क्लोरएन्ट्रानिलीप्रोल 18.5% SC) 60 मिली प्रति एकड़ का उपयोग करें।

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कापूस पिकामध्ये पांढऱ्या माशीचे नियंत्रण कसे करावे?

Identify and control whitefly infestation in cotton
  • या किडीचे अप्सरा (लहान मुले) आणि प्रौढ झाडाची फळे शोषतात आणि तिचा विकास थांबवतात हे कीटक बाल्याअवस्थेत आणि प्रौढ अवस्थेत दोन्ही कापूस पिकाचे मोठ्या प्रमाणात नुकसान करतात.

  • या कीटकातून उत्सर्जित होणारा “मधुरस” काळ्या बुरशीच्या वाढीस मदत करतो. तीव्र बाधा झाल्यास संपूर्ण कापसाचे पीक काळे पडते व पाने जळलेली दिसतात.

  • कधीकधी पीक पूर्ण विकसित झाल्यानंतरही या किडीचा प्रादुर्भाव झाल्याने कापूस पिकाची पाने कोरडे पडतात व खाली पडतात. विषाणूजन्य पर्णासंबंधी रोगाचा प्रसार होण्यासही या किडीचा महत्त्वाचा वाटा आहे.

  • रासायनिक प्रबंधन: या कीटकांच्या नियंत्रणासाठी  डायफैनथीयुरॉन 50% डब्ल्यूपी 250 ग्रॅम / एकर किंवा  फ्लोनिकामिड 50% डब्ल्यूजी 60 मिली / एकर किंवा  एसिटामिप्रीड 20% एसपी 100 ग्रॅम / एकर किंवा पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% ईसी 250 मिली / एकर दराने फवारणी करावी.

  • जैविक व्यवस्थापन: या किडीच्या नियंत्रणासाठी  बवेरिया बेसियाना 500 ग्रॅम प्रति एकर फवारणी करावी.

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कापूस पिकामध्ये हिरव्या तेलाची समस्या आणि नियंत्रणाचे उपाय

Jassid problem and control measures in cotton crop

नुकसानीची लक्षणे –

या किटकांचे शिशु आणि प्रौढ दोघेही पिकाचे नुकसान करतात. यासोबतच हे कीटक वनस्पतींचे देठ, पाने आणि फुले यांचे रस शोषून झाडांच्या वाढीस प्रतिबंध करतात, त्यामुळे झाडे कमकुवत, लहान व बौने राहतात व उत्पादनात घट येते व या किडीने रस शोषल्याने पाने आकुंचन पावतात व जास्त प्रादुर्भाव होऊन झाड मरते.

नियंत्रणाचे उपाय –

शेतकरी बंधू, कीटकांच्या प्रादुर्भावाची तक्रार करण्यासाठी, पिवळे चिपचिपे ट्रैप (येलो स्टिकी ट्रैप) 8 ते 10 प्रती एकर या दराने शेतामध्ये स्थापन करा. 

जैविक नियंत्रणासाठी, ब्रिगेड बी (बवेरिया बेसियाना 1.15% डब्ल्यूबी) 1 किग्रॅ/एकर 150 – 200 लिटर पाण्याच्या दराने फवारणी करावी.

या किटकांच्या नियंत्रणासाठी, मीडिया (इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एसएल) 50 मिली किंवा थियामिथोक्साम 25% डब्ल्यूजी 40 ग्रॅम किंवा लांसर गोल्ड (ऐसीफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% एसपी) 400 ग्रॅम + (सिलिको मैक्स) 50 मिली प्रती एकर 150 – 200 लिटर पाण्याच्या दराने फवारणी करावी.

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मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन का क्या होता है महत्व?

Importance of Organic Carbon for soil
  • ऑर्गेनिक कार्बन मिट्टी में ह्यूमस के निर्माण में सहायता करता है। इससे मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार होता है और उर्वरता को बनाए रखता है।

  • मिट्टी में इसकी अधिकता होने से मिट्टी की भौतिक और रासायनिक गुणवत्ता बढ़ जाती है। मिट्टी की भौतिक गुणवत्ता जैसे मिट्टी की संरचना, जल धारण क्षमता, आदि को कार्बनिक कार्बन द्वारा बढ़ाया जाता है।

  • इसके अतिरिक्त पोषक तत्वों की उपलब्धता, स्थानांतरण एवं रूपांतरण और सूक्ष्मजीवी पदार्थों व जीवों की वृद्धि के लिए भी जैविक कार्बन बहुत उपयोगी होता है।

  • यह पोषक तत्वों की लिंचिंग (भूमि में नीचे जाना) को भी रोकता है।

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जैविक खेती में ह्यूमिक एसिड होता है बेहद महत्वपूर्ण

Humic acid is very important in organic farming
  • ह्यूमिक एसिड खदान से उत्पन्न एक बहुपयोगी खनिज है। इसे सामान्य भाषा में मिट्टी का कंडीशनर भी कहा जा सकता है।

  • यह बंजर भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है तथा मिट्टी की संरचना को सुधार कर एक नया जीवनदान देता है।

  • इसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य मिट्टी को भुरभुरा बनाना है जिससे जड़ों का विकास अधिक हो सके।

  • ये प्रकाश संलेषण की क्रिया को तेज करता है जिससे पौधे में हरापन आता है और शाखाओं में वृद्धि होती है।

  • यह पौधों की तृतीयक जडों का विकास करता है जिससे की मिट्टी से पोषक तत्वों का अवशोषण अधिक होता है।

  • पौधों की चयापचयी क्रियाओं में वृद्धि कर मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी यह बढाता है।

  • पौधों में फलों और फूलों की वृद्धि कर फसल की उपज को बढ़ाने में भी यह सहायक होता है।

  • यह बीज की अंकुरण क्षमता बढाता है तथा पौधों को प्रतिकूल वातावरण से भी बचाता है।

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मिलेगी प्याज की उपज बेमिसाल, पंचरत्न के पुष्कर बीज हैं कमाल

Pushkar seeds of Pancharatna are amazing

प्याज की पावरफुल उपज पाने के लिए आप पंचरत्न के पुष्कर बीज का चुनाव कर सकते हैं। आइये जानते हैं इस बीज की क्या हैं खूबियां?

  • खरीफ और पछेती खरीफ किस्म

  • 2.5 से 3 किलोग्राम बीज दर

  • गहरे लाल अंडाकार कंद

  • 80 से 100 ग्राम वज़नदार कंद

  • 80 से 90 दिन की फसल अवधि

  • 2 महीने की भंडारण क्षमता

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मिर्च की 20 से 30 दिनों की फसल अवस्था में ऐसे करें उर्वरकों का प्रबंधन

Know how to manage fertilizers in 20 to 30 days crop stage of chilli
  • जिस प्रकार मिर्च की रोपाई के समय उर्वरक प्रबंधन आवश्यक होता है ठीक उसी प्रकार रोपाई के 20 से 30 दिनों के बाद भी उर्वरक प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।

  • यह प्रबंधन मिर्च की फसल की अच्छी बढ़वार एवं रोगों के विरुद्ध पौधों में  प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जाता है।

  • रोपाई के बाद इस समय में ही पौधे की जड़ ज़मीन में फैलती है और इसीलिए इस समय जड़ों की अच्छी बढ़वार सुनिश्चित करने के लिए उर्वरक प्रबंधन बहुत आवश्यक होता है।

  • इस समय उर्वरक प्रबंधन के लिए यूरिया @ 45 किलो/एकड़ DAP @ 50 किलो/एकड़, मैग्नेशियम सल्फेट @15 किलो/एकड़, सल्फर@ 5 किलो/एकड़, जिंक सल्फेट @ 5 किलो/एकड़ की दर से खेत में भुरकाव करें।

  • इस बात का भी ध्यान रखें की उर्वरकों के उपयोग के समय खेत में नमी जरूर हो।

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