लहसुन की खुदाई के समय नहीं बरती सावधानी तो होगा नुकसान

Precautions to be taken while digging in garlic crop

लहसून की फसल 130 से 180 दिन में पूरी तरह पक कर तैयार हो जाती है। पूरी तरह तैयार होने पर फसल की पत्तियां पीली होने लगती है और सूख कर गिरने लगती है। साथ ही कंद के आस-पास पौधों की पकड़ कमजोर पड़ने से भी फसल के पकने का अनुमान लगाया जा सकता है। 

लहसुन की खुदाई के समय रखें इन बातों का ध्यान

  • फसल परिपक्व होने की अवस्था में सिंचाई पूरी तरह से रोक देनी चाहिए और कुछ दिनों बाद फसल की खुदाई शुरू कर देनी चाहिए।

  • लहसुन की मिट्टी पर पकड़ कमजोर होने पर हाथ से या कुदाल के प्रयोग से भी इसकी खुदाई की जा सकती है।

  • कुदाल से खुदाई करते समय कुदाल के नोक को जड़ पर न लगने दें।

  • खुदाई के बाद खेत में ही पत्तियों सहित लहसुन के पौधों को सूखने दें।

  • लहसुन में उपस्थित नमी को देखते हुए हीं इसे धूप में रखें। अधिक नमी या अधिक धूप फसल को खराब कर सकती है।

  • अधिक समय तक भंडारण के लिए लहसुन को 2 से 3 सेंटीमीटर डंठल सहित काटें।

  • पर्याप्त भंडारण व्यवस्था उपलब्ध होने पर लहसुन को पत्तियों सहित बंडल बना कर रखें।

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मूंग की फसल में ऐसे करें तिहरा बीज उपचार और पाएं तेज शुरुआती बढ़वार

Method of seed treatment in moong crop

मूंग की फसल में बीज उपचार करने से बीज जनित तथा मिट्टी जनित बीमारियों का आसानी से नियंत्रण कर फसल के अंकुरण को भी बढ़ाया जा सकता है। बीज उपचार आमतौर पर 3 प्रकार से किया जाता है, जिसे हम ‘फकीरा’ (FIR) पद्धति कहते है। फकीरा पद्धति में हम बारी बारी से फफूंदनाशक, कीटनाशक और राइज़ोबियम से बीज उपचार करते हैं। 

फफूंदनाशक: इस बीज उपचार पद्धति में सबसे पहला फफूंदनाशक का प्रयोग करते हैं। इसका उपयोग जमीन में या बीज अंकुरण के समय लगने वाले फफूंद जानित रोग के रोकथाम के लिए करते हैं। फफूंदनाशक से बीज उपचार के लिए करमानोवा (कार्बेन्डाझिम 12% + मैंकोज़ेब 63% डब्लू पी) @ 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज के दर से उपयोग करें।

कीटनाशक: इसका प्रयोग फफूंदनाशक के बाद करना चाहिए। कीटनाशक से बीज उपचार करने से जमीन के अंदर पाए जाने वाले कीट अथवा फसल के शुरूआती अवस्था में लगने वाले रस चूसक कीट जैसे माहू या सफ़ेद मक्खी के रोकथाम में मदद मिलती है। कीटनाशक से बीज उपचार करने के लिए थियानोवा सुपर (थायोमिथाक्साम 30% एफएस) @ 4-5 मिली प्रति किलो बीज के दर से उपयोग करें।

 राइज़ोबियम: इसका प्रयोग कीटनाशक के बाद करना चाहिए। राइज़ोबियम एक जीवाणु है, जो मूंग के पौधों की जड़ों में सहजीवी के रूप में रहता है, और पौधों की जड़ों में गठानें बनाता है, जिससे वायुमंडलीय नाइट्रोजन सरल रूप में जमीन में उपलब्ध होता है, जो पौधे द्वारा किसी भी अवस्था में इस्तेमाल किया जा सकता है।

राइज़ोबियम से बीज उपचार करने के लिए जैव वाटिका (राइज़ोबियम) @ 5 ग्राम प्रति किलो बीज के दर से उपयोग करें। 

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टरबूज आणि खरबूज पिकांमध्ये पिंचिंग काय आहे?

Pinching in watermelon and muskmelon crop
  • शेतकरी बंधूंनो, टरबूज आणि खरबूज पिकांमध्ये चांगल्या दर्जाचे उत्पादन मिळविण्यासाठी पिंचिंग ही एक महत्त्वाची प्रक्रिया आहे.

  • वेलींची अतिवृद्धी रोखण्यासाठी आणि फळांच्या चांगल्या विकासासाठी वेलींमध्ये चिमटे काढण्याची प्रक्रिया केली जाते.

  • या प्रक्रियेमध्ये जेव्हा वेलीला पुरेशी फळे येतात तेव्हा वेलींचा शेंडा उपटला जातो त्यामुळे वेलांची वाढ थांबते.

  • वेलीच्या वाढीस प्रतिबंध केल्याने फळांचा आकार आणि गुणवत्ता सुधारते.

  • एका वेलीवर जास्त फळ असल्यास लहान व कमकुवत फळे काढून टाकावी म्हणजे मुख्य फळ चांगली वाढू शकेल.

  • अनावश्यक फांद्या काढून टाकल्याने टरबूज आणि खरबूज फळांना पूर्ण पोषण मिळते आणि ते लवकर वाढतात.

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भिंडी की फसल में हरा तेला कीट के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of jassids in okra crop

यह कीट हरे पीले रंग के होते हैं। इसके शिशु व प्रौढ़ पत्तियों की निचली सतह पर रहकर रस चूसते हैं। इसका प्रकोप मार्च से सितंबर माह तक होता है। रस चूसने की वजह से पत्तियां पीली पड़ जाती हैं, और किनारों के ऊपर की ओर मुड़ कर कप का आकार बना लेती हैं। अधिक संक्रमण पर पत्तियां जल जाती हैं एवं मुरझा कर सूख जाती हैं।

ऐसे करें नियंत्रण: 

  • बीज की बुआई के पूर्व, थियानोवा सुपर (थियामेथॉक्सम 30% एफएस) @ 5 मिली, प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें।

  • खड़ी फसल में समस्या दिखाई देने पर, थियानोवा -25 ( थियामेथोक्सम 25% डब्ल्यूजी) @ 80 ग्राम, 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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टमाटर की फसल में लीफ माइनर के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of leaf miner in tomato crop

वयस्क कीट हलके पीले रंग का एवं मैगट बहुत छोटी पैरविहीन व पीले रंग की होती है वहीं सुरंग में प्युपा बनता है। 

लक्षण: इस कीट के शिशु पत्तियों के हरे भाग को खाकर इनमें टेढ़ी मेढ़ी सफ़ेद सुरंग बना देते हैं और प्रभावित पत्तियों पर सफ़ेद सर्पिलाकार धारियां दिखाई देती हैं। इससे पौधों में प्रकाश संश्लेषण कम हो जाता है। अधिक प्रकोप पर पत्तियां सूखकर गिर जाती हैं। 

नियंत्रण: ग्रसित पत्तियों को निकालकर नष्ट करे दें तथा नियंत्रण के लिए टफगोर (डायमिथोएट 30 ईसी)@ 396 मिली/एकड़ या मीडिया (इमिडाक्लोप्रिड 17.80% एस एल) @ 60 मिली /एकड़, इसके 2 दिन बाद, नोवामैक्स  (जिबरेलिक ऍसिड 0.001% एल) @ 30 मिली प्रति एकड़ के दर से छिड़काव करें।

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माहू, थ्रिप्स, जैसिड सबको ख़त्म करेगा ये जैविक कीटनाशक

This organic insecticide will kill aphids thrips jassids

वर्टिसिलियम लेकानी फफूंद पर आधारित जैविक कीटनाशक है। यह 1 प्रतिशत डब्लू पी, एवं 1.15 प्रतिशत डब्लू पी के फार्मुलेशन में उपलब्ध है। इस फफूंद का उपयोग विभिन्न प्रकार के फसलों में रस चूसने वाले कीट जैसे माहू, थ्रिप्स, जैसिड, मिलीबग इत्यादि के रोकथाम के लिए लाभकारी होता है। वर्टिसिलियम लेकानी सफेद रुई के समान दिखने वाली फफूद है। इससे संक्रमित कीटों के किनारों पर सफेद फफूंद की वृद्धि दिखाई देती है। इस फफूंद के बीजाणु (स्पोर्स) कुछ चिपचिपे प्रवृत्ति के होते हैं जिससे ये कीटों के ऊपरी आवरण पर चिपक जाते हैं। इसके प्रयोग से 15 दिन पहले एवं बाद में रासायनिक फफूंदनाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। वर्टिसिलियम लेकानी की सेल्फ लाइफ एक वर्ष है। 

उपयोग की विधी

इसके छिड़काव की मात्रा फसल घनत्व और पेड़ पर निर्भर करती है। यदि किसी भी फसल में चूसक कीटों का प्रकोप बार-बार हो रहा हो तो वर्टिसिलियम लेकानी का प्रयोग 15 से 20 दिनों के अन्तराल से करते रहना चाहिए, और ग्रीन हाउस फसलों में इसका प्रयोग 10 से 15 दिनों के अन्तराल से करने की सिफारिश की जाती है।

वर्टिसिलियम लेकानी को नीम और अन्य जैविक कीट और फफूंदनाशकों के साथ मिलाकर प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन इसको किसी रासायनिक फफूंदनाशक के साथ मिलाकर प्रयोग न करें।

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कद्दुवर्गीय फसलों में लाल मकड़ी के प्रकोप की ऐसे करें पहचान

Identification of red spider mites in cucurbit crops

लाल मकड़ी दरअसल आंखों से दिखाई न देने वाली यह एक सूक्ष्म जीव है। यह पौधों की पत्तियों की निचली सतह पर चिपक कर पत्तियों से रस चूसते हैं। यह कीट कपास, बैंगन, टमाटर, भिंडी तथा कद्दूवर्गीय फसलों पर आक्रमण करती है। इस कीट का वयस्क लाल रंग का होता है जो अंडाकार होता है तथा इसके शरीर के ऊपरी भाग में दो धब्बे पाए जाते हैं। इनकी शिशु एवं वयस्क दोनों ही अवस्था हानिकारक होती है। पत्तियों की निचली सतह पर इनके द्वारा बनाई गई जाली से इनकी उपस्थिति पता चलती है। मार्च-अप्रैल का गरम मौसम इनके अधिक प्रकोप के लिए अनुकूल समय है। अपने सूक्ष्म आकार के कारण ये हवा के सहारे एक स्थान से दूसरे स्थान तक विचरण कर सकती है। अधिक प्रकोप होने पर पत्तियां सूखकर गिरने लगती हैं।

नियंत्रण: ग्रसित पत्तियों को तथा खरपतवारों को नष्ट करें। अधिक प्रकोप होने पर टफगोर (डायमिथोएट 30 ईसी) की 300 मिली प्रति एकड़ या ओमाइट (प्रोपेरगाईट 57 ईसी) @ 200 मिली प्रति एकड़ 150-200 लीटर पानी में घोलकर प्रकोपित पौधें पर छिड़काव करें।

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तरबूज की तुड़ाई के समय बरतें सावधानी, रखें उचित समय का ध्यान

Best time to harvest fruit in watermelon crop
  • तरबूज के फलों को बुआई के 75 से 80 दिन बाद तोड़ना आरम्भ कर देना चाहिए। फलों को यदि दूर के मार्केट में भेजना हो तो तुड़ाई जल्दी करना चाहिए।

  • तुड़ाई का समय हर किस्म के हिसाब से फलों के आकार एवं रंग पर निर्भर करता है। सामान्यता जब परिपक्व फलों पर अंगुलियों से बजाते है तब धप- धप की आवाज आती है साथ ही जब डंडरेल सूखने लगे तभी फल तुड़ाई के लिए योग्य हो जाते हैं।

  • फल का पेंदा जो भूमि में रहता है, यदि यह सफ़ेद से पीला हो जाये तो फल पका हुआ समझा जाता है। फल दबाने पर यदि आसानी से दब जाए, एवं हाथों को दबाते समय ज्यादा ताकत नहीं लगानी पड़े तो फल पका हुआ समझें। 

  • फल की तुड़ाई करते समय ध्यान दें कि फलों को डंठल से अलग करने के लिए तेज चाकू का उपयोग करें। इसके अलावा फलों को ठंडे स्थान पर एकत्रित करके रखना चाहिए।

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कटाई के बाद फसल अवशेष जलाने से होंगे गंभीर नुकसान

Disadvantages of burning crop residue after harvesting

अधिकतर किसान दूसरी फसल की जल्दी बुआई के करने लिए गेहूँ की कटाई के पश्चात बची हुई पराली को खेत में हीं जलाकर नष्ट कर देते हैं, इसके कारण खेतों में जीवाष्म पदार्थ की मात्रा में सतत कमी आती है, एवं मृदा की ऊपरी सतह कठोर हो जाती है। इससे मृदा की उर्वरा शक्ति नष्ट होने के साथ साथ कार्बन की मात्रा में भी कमी आती है। मृदा की भौतिक संरचना भी प्रभावित होती है, एवं जल धारण क्षमता कम होती है। इससे मृदा की जैव विविधता लगभग समाप्त हो जाती है, और मृदा में जैविक क्रियाओं में कमी आती है। 

फसल अवशेषों को जलाने से केचुओं की संख्या में भी भारी गिरावट देखी जाती है। फसल अवशेषों को जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड एवं नाइट्रसऑक्साइड का उत्सर्जन होता है जो वातावरण को प्रदूषित करता है, तथा भूमि में नाइट्रोजन एवं कार्बन का अनुपात प्रभावित होता है।

फसल अवशेषों में आग लगाने से मेड़ों पर लगे पौधे जल जाते हैं, तथा कभी कभी गावों में भी आग लगने की संभावना बढ़ जाती है।

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जानें मूंग की फसल में क्या है राइज़ोबियम कल्चर का महत्व

Importance of rhizobium culture in moong crop

राइजोबियम एक सहजीवी जीवाणु है। जो विशेष कर दलहनी फसलों के जड़ों में पाया जाता है। यह एक विशिष्ट प्रजाति का जीवाणु है जो विशिष्ट पौधे के साथ रहता है जैसे सोयाबीन, मूंगफली, चना, मूंग, उड़द, मटर आदि। विभिन्न फसलों के राइजोबियम जीवाणु भी अलग होते हैं। राइजोबियम जीवाणु मुख्य रूप से सभी तिलहनी और दलहनी फसलों में सहजीवी के रूप में रहकर वायुमंडलीय नाइट्रोज़न को नाइट्रेट में परिवर्तित करके फसलों में नाइट्रोजन की पूर्ति करता है। राइजोबियम जीवाणु मिट्टी में जाने के बाद फसलों की जड़ों में प्रवेश करके छोटी छोटी छोटी गाठें बना लेते हैं। इन गाठों में जीवाणु बहुत अधिक मात्रा में रहता है। यह जीवाणु प्राकृतिक नाइट्रोजन को वायुमंडल से ग्रहण करके पोषक तत्वों में परिवर्तित कर के पौधों को उपलब्ध करवाते हैं। पौधे की जड़ों में अधिक गाठों का होना पौधे को स्वस्थ रखता है। राइजोबियम द्वारा नाइट्रोजन के स्थिरीकरण की प्रक्रिया में, एक अन्य उत्पाद और बनता हैं वह है हाइड्रोजन। राइजोबियम की कुछ विशेष किस्मे इस हाइड्रोज़न का उपयोग नाइट्रोज़न स्थिरीकरण की प्रक्रिया में ही कर लेती हैं। 

राइजोबियम जीवाणु का उपयोग फसलों के लिए दो प्रकार से किया जा सकता है, बीज़ उपचार और मिट्टी उपचार के तौर पर। 

बीज़ उपचार: नाइट्रोज़न स्थिरीकरण जीवाणु की 5 ग्राम मात्रा/किलो बीज़ के हिसाब से लेकर बीजों के ऊपर लेप बनाकर बीज़ उपचार करें एवं बीज़ उपचार किये गये बीजों को तुरंत बुवाई के लिए उपयोग करें। 

मिट्टी उपचार: नाइट्रोज़न स्थिरीकरण जीवाणु की 1 किलो/एकड़ मात्रा लेकर पकी हुई गोबर की खाद या खेत की मिट्टी में मिलाकर बुवाई से पहले खाली खेत में भुरकाव करें। 

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