कपास की फसल में सफेद मक्खी पहुंचाएगा भारी नुकसान

Management Of Whitefly In Cotton
  • सफ़ेद मक्खी को कपास के खेतों में फैलने से रोकने के लिए खेत की मेड़, बंजर भूमि, सड़क के किनारे और सिंचाई चैनलों/नहरों पर उगने वाले खरपतवारों को हटा दें।

  • सफेद मक्खी का आक्रमण बैंगन, खीरा, टमाटर, भिंडी आदि सब्जियों में भी होता है, इसलिए इन फसलों को कपास के साथ न उगाएं।

  • इन वैकल्पिक धारक फसलों पर फरवरी से और कपास, मूंग पर अप्रैल से नियमित निगरानी की जानी चाहिए ताकि इन फसलों पर सफेद मक्खी का समय पर प्रबंधन किया जा सके।

  • नाइट्रोजन युक्त उर्वरक के अत्यधिक प्रयोग से बचें क्योंकि यह रस चूसक कीड़ों के आक्रमण को बढ़ा देता है।

  • कपास के खेतों में प्रति एकड़ 40 पीले चिपचिपे ट्रैप लगाना सुनिश्चित करें, जिससे सफेद मक्खी के प्रकोप को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।

  • नोवासेटा (एसिटामिप्रिड 20% SP) @ 40 ग्राम प्रति एकड़ या नोवाफेन (पाइरीप्रोक्सीफेन 5% + डायफेनथियुरोन 25% SE) @ 400-500 मिली प्रति एकड़ के हिसाब से एक-दो स्प्रे करें।

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तिलहनी फसलों में सल्फर की कमी से होगा नुकसान, जानें इसके क्या हैं फायदे?

Why Sulphur is an important nutrient in oilseed crops

पौधों में प्रोटीन, अमीनो एसिड, कुछ विटामिन और एंजाइम, प्रकाश संश्लेषण, ऊर्जा चयापचय, कार्बोहाइड्रेट उत्पादन और प्रोटीन के संश्लेषण आदि में सल्फर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सल्फर अमीनो एसिड जैसे सिस्टीन, सिस्टीन और मेथियोनीन का एक अभिन्न अंग है जो प्रोटीन के आवश्यक घटक हैं। पौधों को पर्याप्त मात्रा में सल्फर देने से उपज और बीजों में तेल की मात्रा बढ़ जाती है।

तिलहनी फसलों में सल्फर की कमी के लक्षण क्या हैं?

सल्फर की कमी के कारण क्लोरोफिल उत्पादन कम होता है जिससे नई पत्तियों में  पीलापन की समस्या देखने को मिलती है। इसके कारण, पौधे की वृद्धि में कमी देखने को मिलती है। 

सल्फर की कमी को कैसे दूर करें?

सल्फर युक्त उर्वरकों की पूर्ति करके तिलहनी फसल में सल्फर की आवश्यकता को पूरा किया जा सकता है। सल्फर पोषक तत्वों को मिट्टी के अनुप्रयोगों जैसे बेसल, टॉप ड्रेसिंग, फर्टिगेशन और पर्ण आवेदन द्वारा पौधों में डाला जा सकता है।

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फर्टिगेशन विधि से उर्वरकों का उपयोग दिलाएगा फसलों को कई लाभ

Use of fertilizers through fertigation method will provide many benefits to the crops

फर्टिगेशन उर्वरक उपयोग करने की एक शानदार विधि है। इसमें ड्रिप सिस्टम द्वारा सिंचाई के पानी में उर्वरक को शामिल किया जाता है। इस प्रणाली में उर्वरक का घोल सिंचाई के माध्यम से फसल में समान रूप से वितरित किया जाता है। इसमें पोषक तत्वों की उपलब्धता बहुत अधिक होती है इसलिए दक्षता अधिक होती है। इस विधि में तरल उर्वरकों के साथ-साथ पानी में घुलनशील उर्वरकों का भी उपयोग किया जाता है। इस विधि से उर्वरक उपयोग दक्षता 80 से 90 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।

फर्टिगेशन के फायदे

  • फर्टिगेशन के माध्यम से सक्रिय रूट ज़ोन के पास पोषक तत्वों और पानी की आपूर्ति की जाती है जिसके परिणामस्वरूप फसलों द्वारा अधिक अवशोषण होता है।

  • चूंकि फर्टिगेशन के माध्यम से सभी फसलों को समान रूप से पानी और उर्वरक की आपूर्ति की जाती है, इसलिए 25-50 प्रतिशत अधिक उपज प्राप्त करने की संभावना रहती है।

  • फर्टिगेशन के माध्यम से उर्वरक उपयोग दक्षता 80-90 प्रतिशत के बीच होती है, जिससे न्यूनतम 25 प्रतिशत पोषक तत्वों को बचाने में मदद मिलती है।

  • इस तरह पानी की कम मात्रा और खाद की बचत के साथ-साथ समय, श्रम और ऊर्जा की खपत भी काफी कम हो जाती है।

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मृदा अपरदन से खेत की मिट्टी को पहुंचता है नुकसान!

Soil erosion causes damage to the soil of the farm

किसी भी कारण से जब मिट्टी का कटाव होता है तो उसे “मृदा अपरदन” कहा जाता है। मृदा अपरदन एक प्राकृतिक क्रिया होती है। भूगर्भीय क्रियाएं (जैसे पानी की धाराएँ या पिघलती बर्फ), जलवायु क्रियाएं (जैसे बारिश या तीव्र हवाएँ) या मानव गतिविधि (जैसे कृषि, वनों की कटाई, शहरों का विस्तार) ये सभी कारक मृदा अपरदन या भू-क्षरण के कारकों में से एक हैं।

मिट्टी के कटाव से कैसे बचें?

  • वृक्षारोपण- पेड़ पौधे लगाने से पारिस्थितिकी तंत्र और मिट्टी के रखरखाव में मदद मिलती है, और इससे मृदा अपरदन को भी रोका जा सकता है।

  • जल निकासी मार्गों का निर्माण- उन क्षेत्रों में जहां मिट्टी की अवशोषण क्षमता कम है, बाढ़ को रोकने के लिए नालियां और अन्य तरीके अपनाये जा सकते हैं जिससे हम मिट्टी के कटाव को रोक सकते हैं।

  • भूमि का सतत उपयोग- यह कृषि और पशुधन के प्रभावों को कम करने में मदद कर सकता है, और पोषक तत्वों के नुकसान के कारण मिट्टी के क्षरण को रोक सकता है।

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फसलों के लिए महत्वपूर्ण है जैविक उर्वरक माइकोराइजा, जानें इसके फायदे

Organic fertilizer mycorrhiza is important for crops
  • माइकोराइजा एक जैविक उर्वरक है जो कवक और पौधों की जड़ों के बीच का एक संबंध रखता है। इस प्रकार के संबंध में कवक पौधों की जड़ पर आश्रित हो जाता है और मृदा-जीवन का एक महत्वपूर्ण घटक बन जाता है। 

  • माइकोराइजा के उपयोग से जड़ों का बेहतर विकास होता है।

  • माइकोराइजा पौधों के लिए मिट्टी से फास्फोरस की उपलब्धता और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों को अवशोषित करने में मदद करता है। 

  • माइकोराइजा मिट्टी से फास्फोरस की उप्लब्धता को 60-80% तक बढ़ाता है।

  • माइकोराइजा पौधों के द्वारा जल के अवशोषण की क्रिया दर को बढ़ाकर पौधे को सूखे के प्रति सहनशीलता बढ़ाता है। जिससे पौधों को हरा भरा रखने में मदद मिलती है।

  • अतः यह फसलोें की पैदावार को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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धान की फसल में कीचड़ मचाने से मिलते हैं कई फायदे

There are many benefits of Puddling in paddy crop

धान की फसल में कीचड़ मचाने की प्रक्रिया में पानी की मदद से खेत की मिट्टी को मथा जाता है। यह धान के खेतों में देशी हल से प्रारंभिक जुताई के बाद 5-10 सेंटीमीटर गहरे पानी के साथ किया जाता है। इससे खेत की मिट्टी से बने ढेले टूटते हैं और मिट्टी को पूरी तरह से मथ दिया जाता है।

क्या कीचड़ मचाने का उद्देश्य?

धान की खेती में कीचड़ मचाने से होने वाले फायदों में खरपतवार नियंत्रण, पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि और आसान रोपाई शामिल हैं। चावल में खरपतवार नियंत्रण और जल संरक्षण इसके सबसे महत्वपूर्ण लाभ हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से खरपतवारों को नरम मिट्टी में दबा दिया जाता है। साथ हीं यह रिसने से होने वाली पानी की हानि काफी हद तक कम हो जाती है।

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सोयाबीन में उगने से पहले ही कर लें खरपतवारों का नियंत्रण

Pre-emergence weed control in soybean crop

सोयाबीन की फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए खरपतवारों का नियंत्रण अत्यंत आवश्यक होता है। सोयाबीन को नुकसान पहुंचाने वाले कुछ मुख्य कारक जैसे- खरपतवार, कीट एवं रोगों में से सबसे अधिक हानि खरपतवारों के प्रकोप से होती है। खरपतवारों के प्रकोप से सोयाबीन की फसल में 20 से 50% तक नुकसान हो जाता है। सोयाबीन में खरपतवार से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए सोयाबीन की फसल को बुवाई के 45 से 50 दिन तक खरपतवारों से मुक्त रखना चाहिए।

सोयाबीन की फसल में निराई-गुड़ाई का कार्य समय-समय पर जरूर करें, पहली निराई-गुड़ाई 20-25 दिन पर तथा दूसरी 40-45 दिन की फसल होने पर करें। रासायनिक नियंत्रण के लिए, बुवाई के 72 घंटे के भीतर पेन्ज़ोला 32 (पेंडीमिथालिन 30% + इमाज़ेथापायर 2%) 1 लीटर/एकड़ 200 लीटर  मिला कर छिड़काव करें। 

नोट – बेहतर परिणाम के लिए, खरपतवारनाशक दवा का प्रयोग करते समय मिट्टी में नमी होना बेहद जरूरी है और फ्लैट फैन नोज़ल का उपयोग करें।

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मक्का की फसल को खरपतवारों के प्रकोप से बचाएं, ऐसे करें नियंत्रण

Save maize crop from the outbreak of weeds

मक्का की फसल में उगने वाले खरपतवारों के प्रकोप से फसल में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। अधिक खरपतवार उगाने के कारण मक्का के पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में बाधा पहुंचती है। इसके कारण पौधों की अच्छी वृद्धि नहीं हो पाती है। अधिक खरपतवार होने से कीट व रोग का प्रकोप होने लगता है। जहां तक संभव हो, निराई-गुड़ाई से खरपतवारों की रोकथाम करें, इससे खरपतवार तो कम होंगे, साथ ही साथ पौधों का विकास भी अच्छी तरह से होगा।

रासायनिक नियंत्रण लिए, बुवाई के तुरंत बाद ट्रैवर (एट्राजिन 50% WP) 300-400 ग्राम/एकड़ या (बुवाई के 20 से 30 दिन बाद) एस्ट्राज़ू (टेंबोट्रीयोन 42% SC) 115 मिली/एकड़ को 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

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सोयाबीन में FIR का तिहरा बीज उपचार फसल को हर समस्या से बचाएगा

Benefits of seed treatment with fungicide, insecticide and rhizobium in soybean

सोयाबीन की फसल में बीज उपचार करने से बीज जनित तथा मिट्टी जनित बीमारियों का आसानी से नियंत्रण कर फसल के अंकुरण को भी बढ़ाया जा सकता है। बीज उपचार आमतौर पर 3 प्रकार से किया जाता है, जिसे हम ‘फकीरा’ (FIR) पद्धति कहते है। फकीरा पद्धति में हम बारी बारी से फफूंदनाशक, कीटनाशक और राइज़ोबियम से बीज उपचार करते हैं।

  • फफूंदनाशक से बीज़ उपचार करने से सोयाबीन की फसल उकठा व जड़ सड़न रोग से सुरक्षित रहती है। 

  • कीटनाशक से बीज़ उपचार करने से मिट्टी के कीटों जैसे सफ़ेद ग्रब, चींटी, दीमक आदि से सोयाबीन की फसल की रक्षा होती है। बीज का अंकुरण सही ढंग से होता है अंकुरण प्रतिशत बढ़ता है। 

  • राइज़ोबियम से बीज़ उपचार सोयाबीन की फसल की जड़ों में गाठो (नॉड्यूलेशन) को बढ़ाता है एवं अधिक नाइट्रोज़न का स्थिरीकरण करता है। 

सोयाबीन बीज उपचार की  FIR विधि :- 

  • सबसे पहले क्षेत्र के अनुसार आवश्यक बीज की मात्रा तिरपाल/प्लास्टिक शीट पर फैला दें। 

  • इसके बाद  बीज के ऊपर हल्की पानी की फुहार दें और इसके बाद, फफूंदनाशक के रूप में करमानोवा (कार्बेनडाज़िम 12% + मैनकोज़ेब 63% WP) 2.5 ग्राम/किलोग्राम बीज के हिसाब से बीज को उपचारित करें और 10 मिनट के लिए छायादार स्थान पर सुखाएं। 

  • फफूंदनाशक से उपचारित करने के बाद, कीटनाशक के रूप में थियानोवा सुपर (थियामेथोक्सम 25% WG) 5 मिली/किलोग्राम बीज के हिसाब से बीज को उपचारित करें।  

  • और अंत में, जैव वाटिका (राइजोबियम कल्चर) 5 ग्राम/किलोग्राम बीज के  हिसाब से बीज को उपचारित करने के उपरांत, बीज की बुआई खेत में करें।

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सोयाबीन की बुवाई के लिए ऐसे करें खेत को तैयार की मिले बंपर पैदावार

How to prepare the field for soybean sowing

सोयाबीन की फसल के लिए खेत की तैयारी गहरी जुताई से शुरू करनी चाहिए। इसके बाद 2-3 जुताई हैरो या मिट्टी पलटने वाले हल की सहायता से करें और मिट्टी को भुरभुरी बना लें, ताकि मिट्टी की जलधारण क्षमता बढ़ जाए और बीज अंकुरण भी अच्छे से हो सकें।

मई-जून के महीनों में सूरज की रोशनी ज़मीन पर सीधे पड़ती है और उच्च तापमान बहुत ज्यादा होता है। ऐसे में खेत की गहरी जुताई करने से मिट्टी में मौजूद खरपतवार, उनके बीज, हानिकारक कीट, उनके अंडे और प्युपा समाप्त हो जाते हैं। इसके साथ साथ मिट्टी में उपस्थित फफूंद जनित रोग के जनक भी खत्म हो जाते हैं।

खेत की तैयारी के वक़्त सोयाबीन समृद्धि किट के उन्नत उत्पादों का उपयोग बेहद फायदेमंद साबित होता है। ग्रामोफोन द्वारा तैयार की गई “सोया समृद्धि किट” की कुल मात्रा 8 किलो होती है जिसे प्रति एकड़ के हिसाब से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में मिला कर बीजों की बुवाई से पहले खेत में एक सामान रूप से बिखेर दें। इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल बना लें। इस बात का ध्यान रखें की किट का उपयोग करते समय मिट्टी में पर्याप्त नमी जरूर हो।

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