बागवानी फसलों में दीमक के प्रकोप का ऐसे करें नियंत्रण

How to control the outbreak of termites in horticulture crops
  • दीमक की समस्या बागवानी वाले फसल जैसे अनार, आम, अमरुद, जामुन, निम्बू, संतरा, पपीता, आंवला आदि में काफी देखने को मिलता है।

  • यह जमीन में सुरंग बनाकर पौधों की जड़ों को खाते हैं। अधिक प्रकोप होने पर ये तने को भी खाते हैं और मिट्टी युक्त संरचना बनाते हैं।

  • गर्मियों के मौसम में मिट्टी में दीमक को नष्ट करने के लिए गहरी जुताई करें और हमेशा अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद का हीं उपयोग करें।

  • 1 किग्रा ब्यूवेरिया बेसियाना को 25 किग्रा गोबर की सड़ी खाद में मिलाकर पौधरोपण से पहले डालना चाहिए।

  • दीमक के टीले को केरोसिन से भर दें ताकि दीमक की रानी के साथ-साथ अन्य सभी कीट मर जाएँ।

  • दीमक द्वारा तनों पर बनाए गए छेद में क्लोरोपायरिफोस 50 EC @ 250 मिली प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर प्रयोग करें और पेड़ की जड़ों के पास यही दवा 50 मिली प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर डालें।

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कपास की फसल में फूल व पूड़ी झड़ने की समस्या का ऐसे करें निदान

This is how to control the problem of flowers and Square dropping in cotton crop
  • कपास की फसल में फूल व पूड़ी के झड़ने की बहुत सारी वजहें हो सकती हैं।

  • कई बार प्रकाश संश्लेषक की क्रिया में बाधा उत्पन्न होने की वजह से पूड़ी तथा फूलों के झड़ने की समस्या आती है।

  • फूल वाली अवस्था में खेत में पानी भरा रहने पर भी फूलो के झड़ने की दर को बढ़ावा मिलता है।

  • मिट्टी में पानी की अधिकता हवा के आवागमन को प्रभावित करती है जिससे फूल तथा फल दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

  • पौधे में जिंक और बोरान की कमी की वजह से भी फूल और फल झड़ जाते है।

  • फूल और फल की अवस्था में आसमान में अधिक समय तक बादलों का होना या बहुत दिनों तक धुप का न निकलना फूलों को प्रभावित करता है।

  • प्रति इकाई पौधों की अधिक संख्या भी फूल तथा फल झड़ने का एक कारण हो सकती है।

  • नाइट्रोजन के अत्यधिक उपयोग से वानस्पति विकास को बढ़ावा मिलता है जिसके परिणामस्वरूप फूल व पूड़ी झड़ते हैं, कीट या रोगों के लगने से भी फूल एवं फल समय से पहले झड़ जाते हैं। कभी-कभी पौधे में हार्मोनल असंतुलन की वजह से भी यह समस्या देखने को मिलती है।

  • फूलों को झड़ने से बचाने तथा अच्छे बॉल्स के विकास के लिए होमोब्रासिनोलॉइड 0.04% W/W 100-120 मिली/एकड़ का स्प्रे करें। समुद्री शैवाल विगरमैक्स जेल गोल्ड का 400 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें और सूक्ष्म पोषक तत्त्व न्यूट्रीफुल मैक्स 250 मिली/एकड़ का स्प्रे करें।

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कपास में फ्यूजेरियम विल्ट के लक्षणों को पहचाने और अपनाएं नियंत्रण के उपाय

Identify the symptoms of fusarium wilt in cotton and adopt control measures
  • फ्यूजेरियम विल्ट रोग का रोग कारक फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम एफ.एस.पी. है।

  • यह कपास के सबसे प्रमुख रोगों में से एक मुख्य रोग के रूप में जाना जाता है।

  • इस रोग में पत्तियां किनारों से मुरझाना शुरू कर देती हैं तथा मुख्य शिरे की ओर मुरझाती चली जाती हैं।

  • पत्तियों की शिराये गहरी, संकरी और धब्बे वाली हो जाती हैं तथा अंत में पौधा सूख कर मर जाता है।

  • इस रोग का मुख्य लक्षण जड़ों के पास वाले तने का अंदर से क्षतिग्रस्त हो जाना है।

  • कपास में इस रोग के नियंत्रण हेतु छह वर्षीय फसल चक्र अपनाएँ। गर्मी के दिनों में गहरी जुताई (6-7 इंच) करके खेत को समतल करें, रोग मुक्त बीज का उपयोग करें।

  • इसके अलावा बीजों को 2.5 ग्राम/किग्रा करमानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैन्कोजेब 63% WP) से उपचारित करें।

  • फूल आने से पहले नोवाफ़नेट (थायोफिनेट मिथाईल 75% wp) @ 300 ग्राम/एकड़ का स्प्रे करें और बॉल बनते समय ज़ेरोक्स (प्रोपिकोनाज़ोल 25%) @ 200 मिली/एकड़ का स्प्रे करें।

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पौध गलन रोग से प्याज की फसल को होगा नुकसान, ऐसे करें रोकथाम

Onion crop will be damaged due to Damping off disease
  • खरीफ के मौसम में मिट्टी मे अत्यधिक नमी होती है साथ हीं इस दौरान तापमान मध्यम होता है जो प्याज की फसल में इस रोग के विकास का मुख्य कारक बनता है।

  • इस रोग की वजह से बीज अंकुरित होने से पहले ही सड़ जाते हैं बाद की अवस्था में रोगजनक पौधे के कालर भाग पर आक्रमण करता है। इसके कारण अतंतः कालर भाग विगलित हो जाता है और पौध गल कर मर जाते हैं।

  • इस रोग से सुरक्षा प्राप्त करने के लिए किसानों को बुवाई के लिए स्वस्थ बीज का चयन करना चाहिए।

  • रोगग्रस्त फसल में नियंत्रण प्राप्त करने के लिए करमानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैन्कोजेब 63% WP) 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिडकाव करें।

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धान में लीफ ब्लास्ट रोग की पहचान कर जल्द अपनाएं बचाव के उपाय

Identify leaf blast disease in paddy and adopt preventive measures soon
  • लीफ ब्लास्ट रोग धान की फसल को किसी भी अवस्था में संक्रमित कर सकता हैं।

  • संक्रमण की गंभीर अवस्था में यह रोग पत्ती के सतही भाग को कम कर देता हैं जिससे दाने कम भरते हैं परिणामस्वरूप उपज कम होती हैं।

  • इसके शुरूआती लक्षणों के रूप में सफेद से धूसर हरे रंग के धब्बे पत्तियों पर नजर आते हैं जिसके किनारे गहरे हरे रंग के होते हैं।

  • पुराने धब्बे अण्डाकार या धुरी के आकार के होते हैं जिसका केंद्र सफ़ेद से धूसर रंग का तथा लाल से भूरे रंग की परिगलित किनारे होते हैं।

नियंत्रण के उपाय

  • बीजों को 2.5 ग्राम/किग्रा करमानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैन्कोजेब 63% WP) से उपचारित करें।

  • जून-जुलाई के दौरान ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई के बाद संक्रमित पौधों के मलबे को निकालकर जला दें।

  • नाइट्रोजन और फॉस्फेटिक उर्वरकों की संतुलित खुराक के साथ पोटाश की बढ़ी हुई खुराक डालें।

  • 100 टन/हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद या अन्य जैविक खाद की भारी मात्रा डालें।

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धान में शीथ ब्लाइट पहुंचाएगा भारी नुकसान, जल्द करें रोकथाम

Sheath Blight will cause heavy loss in paddy
  • शीथ ब्लाइट एक फफूंद जनित रोग है, और इस रोग का कारक राइजोक्टोनिया सोलेनाई है। अधिक पैदावार देने वाली एवं अधिक उर्वरक उपभोग करने वाली प्रजातियों के विकास से यह रोग धान के रोगों में अपना प्रमुख स्थान रखता है। इसका इतना असर है क‍ि यह उपज में 50 प्रतिशत तक नुकसान कर सकता है।

  • इस रोग का संक्रमण नर्सरी से ही दिखना शुरू हो जाता है, जिससे पौधे नीचे से सड़ने लगते हैं। मुख्य खेत में ये लक्षण कल्ले बनने की अंतिम अवस्था में प्रकट होते हैं। लीफ शीथ पर जल सतह के ऊपर से धब्बे बनने शुरू होते हैं। इन धब्बों की आकृति अनियमित तथा किनारा गहरा भूरा व बीच का भाग हल्के रंग का होता है।

  • इससे पत्तियों पर घेरेदार धब्बे बनते हैं और कई छोटे-छोटे धब्बे मिलकर बड़े धब्बे बनाते हैं। इसके कारण शीथ, तना, ध्वजा पत्ती पूर्ण रूप से ग्रसित हो जाती है और पौधे मर जाते हैं। खेतों में यह रोग अगस्त एवं सितंबर में अधिक तीव्र हो जाता है। संक्रमित पौधों में बाली कम निकलती है तथा दाने भी नहीं बनते हैं।

  • इस रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखते ही नोवाकोन (हैक्साकोनाजोल 5% EC) 400 ml या शीथमार (वैलिडामाइसिन 3% L) 600 – 800 ml प्रति एकड़ की दर से छिडक़ाव करें।

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सोयाबीन की फसल को गेरुआ रोग के प्रकोप से जल्द दें सुरक्षा

Give protection to soybean crop from the outbreak of Rust disease

यह रोग केकोप्सोरा पैकीराईजी नामक फफूंद के द्वारा होता है। लगातार बारिश होने से तापमान जब 18 से 28 डिग्री सेल्सियस के बीच रहे या फिर अपेक्षित आद्रता 80 प्रतिशत के आसपास रहे या फिर पत्तियां गीली बनी रहे तो ऐसी दशा में गेरुआ रोग की संभावना बढ़ जाती है।

इस रोग से ग्रसित पौधों की पत्तियों पर निचली सतह में सुई की नोक के आकार के मटमैले भूरे व लाल धब्बे दिखाई देते हैं। कुछ ही समय में यह धब्बे समूह में बढ़ने लगते हैं व पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं। इनसे कत्थई रंग का पाउडर निकलता है जो स्वस्थ पत्तियों पर गिरकर रोग की तीव्रता को बढ़ाता है।

इस रोग की प्रारम्भिक अवस्था पर नोवाकोन (हैक्साकोनाजोल 5% EC) 300 ml या गैलीलियो (पिकोक्सीस्ट्रोबिन 22.52% w/w SC) 160 मिली/एकड़ 150 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

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सोयाबीन में बढ़ेगा पीला मोजेक रोग, जानें नियंत्रण के उपाय

Yellow mosaic disease will increase in soybean

इस रोग की शुरूआती अवस्था में पतियों पर गहरे पीले रंग के धब्बे नजर आने शुरू होते हैं। ये धब्बे धीर धीरे फैलकर आपस में मिल जाते हैं। जिससे पूरी पत्ती हीं पीली पड़ जाती हैं। पत्तियों के पीले पड़ने के कारण अनेक जैविक क्रियांए प्रतिकुल रूप से प्रभावित होती हैं तथा पौधो में आवश्यक भोज्य पदार्थ का संश्लेषण नही हो पाता है। इस वजह से पौधों पर फूल कम आते हैं एवं फलियां लगती भी हैं तो उनमें दानों का विकास नही हो पाता हैं। सफेद मक्खी इस वायरस (विषाणु) के वाहक होते हैं और ये रोग को पूरे फसल में फैलाते भी हैं।

पीला मोजेक रोग पर नियंत्रण के उपाय

इस रोग के नियंत्रण के लिए प्रारंभिक अवस्था में ही अपने खेत में जगह-जगह पर पीला चिपचिपा ट्रैप लगाएं जिससे इसका संक्रमण फैलाने वाली सफेद मक्खी का नियंत्रण होने में सहायता मिले। इसके रोकथाम के लिए फसल पर पीला मोजेक रोग के लक्षण देखते ही ग्रसित पौधों को अपने खेत से बाहर निकाल दें। ऐसे खेत में सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए अनुशंसित पूर्व मिश्रित सम्पर्क रसायन जैसे स्पेर्टो (एसिटामिप्रिड 25% + बिफेन्थ्रिन 25% WG) 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिडक़ाव करें।

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सोयाबीन की फसल में तना मक्खी प्रकोप का ऐसे करें निदान

This is how to diagnose stem fly infestation in soybean crop
  • इस कीट की मैगट सफेद रंग के तने के अंदर रहती हैं। व्यस्क कीट चमकीले काले रंग का दो मिलीमीटर आकार के होते हैं।

  • इस कीट की मादा पत्तियों पर पीले रंग के अंडे देती हैं जिनसे मैगट निकलकर पत्तियों की शिराओं में छेद कर सुरंग बनाती हुई तने में प्रवेश करती है तथा तने को खोखला कर देती हैं।

  • इसके कारण पौधे की पत्तियां शुरूआती अवस्था में पीली दिखाई देने लगती हैं और बाद में पूरा पौधा पीला पड़ जाता है।

  • तना मक्खी से बचाव के लिए नोवालक्सम (लेम्बडासाइलोथ्रिन 9.5% + थायोमिथाक्सॉम 12.9 प्रतिशत ZC) 50 मिली प्रति एकड़ या कवर (क्लोरएन्ट्रानिलीप्रोल 18.5% SC) 60 मिली प्रति एकड़ का उपयोग करें।

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कापूस पिकामध्ये पांढऱ्या माशीचे नियंत्रण कसे करावे?

Identify and control whitefly infestation in cotton
  • या किडीचे अप्सरा (लहान मुले) आणि प्रौढ झाडाची फळे शोषतात आणि तिचा विकास थांबवतात हे कीटक बाल्याअवस्थेत आणि प्रौढ अवस्थेत दोन्ही कापूस पिकाचे मोठ्या प्रमाणात नुकसान करतात.

  • या कीटकातून उत्सर्जित होणारा “मधुरस” काळ्या बुरशीच्या वाढीस मदत करतो. तीव्र बाधा झाल्यास संपूर्ण कापसाचे पीक काळे पडते व पाने जळलेली दिसतात.

  • कधीकधी पीक पूर्ण विकसित झाल्यानंतरही या किडीचा प्रादुर्भाव झाल्याने कापूस पिकाची पाने कोरडे पडतात व खाली पडतात. विषाणूजन्य पर्णासंबंधी रोगाचा प्रसार होण्यासही या किडीचा महत्त्वाचा वाटा आहे.

  • रासायनिक प्रबंधन: या कीटकांच्या नियंत्रणासाठी  डायफैनथीयुरॉन 50% डब्ल्यूपी 250 ग्रॅम / एकर किंवा  फ्लोनिकामिड 50% डब्ल्यूजी 60 मिली / एकर किंवा  एसिटामिप्रीड 20% एसपी 100 ग्रॅम / एकर किंवा पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% ईसी 250 मिली / एकर दराने फवारणी करावी.

  • जैविक व्यवस्थापन: या किडीच्या नियंत्रणासाठी  बवेरिया बेसियाना 500 ग्रॅम प्रति एकर फवारणी करावी.

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