मटर में अधिक फूल वृद्धि व फली छेदक इल्ली से बचाव हेतू जरुरी छिड़काव!

Necessary spray for more flowers and pod borer control in pea crops

मटर की फसल में अधिक फूल 🌷धारण एवं फली छेदक इल्ली 🐛 के लिए, तुस्क (मैलाथियान 50.00% ईसी) @ 600 मिली +  न्यूट्रीफुल मैक्स (फुलविक एसिड का अर्क– 20% + कैल्शियम, मैग्नीशियम और पोटैशियम सूक्ष्म पोषक तत्व मात्रा में 5% + अमीनो एसिड) @ 250 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 50 मिली प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

न्यूट्रीफुल मैक्स:

👉🏻इससे फूल अधिक लगते है, एवं फलों की रंग एवं गुणवत्ता बढ़ती है। 

👉🏻सूखे, पाले आदि के खिलाफ पौधों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

👉🏻जड़ से पोषक तत्वों की परिवहन क्षमता भी बढ़ती है।

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फसल को दें 2 डोज ट्राई-कोट मैक्स और पाएं जबरदस्त पैदावार

Get fast growth and bumper yield in cotton crop with Tri-Coat Maxx

👉🏻ट्राई कोट मैक्स में कार्बनिक कार्बन 3%, ह्यूमिक, फुलविक, कार्बनिक पोषक तत्वों का एक मिश्रण है।
👉🏻यह अच्छे बीज अंकुरण के लिए प्रभावी है।
👉🏻यह फसल में विभिन्न पोषक तत्वों के अवशोषण को बढ़ाता है।
👉🏻उर्वरक दक्षता बढ़ाता है और तीव्र जड़ विकास में मदद करता है।
👉🏻पौधों की वानस्पतिक विकास एवं प्रजनन क्षमता बढ़ाने में मदद करता है।
👉🏻इसके उपयोग से फसल हरी भरी एवं स्वस्थ रहती है।
👉🏻यह एक जैविक उत्पाद है इसलिए इसके उपयोग से मिट्टी की संरचना बेहतर होती है।

इस उत्पाद के संघटकों को जानें
👉🏻इस उत्पाद में ह्यूमिक एसिड है जो बीज के अंकुरण को बढ़ाता है। मिट्टी में पहले से मौजूद पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढ़ाता है एवं सूखे की स्थिति के लिए फसल को सहनशील बनाता है। मिट्टी में उपलब्ध सूक्ष्म जीवों की गतिविधि को बढ़ाता है। जिससे यह एक उत्कृष्ट जड़ उत्तेजक बन जाता है।

👉🏻इस उत्पाद में फुलविक एसिड भी है जो प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को बढ़ावा देता है और मिट्टी में मौजूद पोषक तत्व को अवशोषित करने में मदद करता है।

उपयोग का समय एवं मात्रा: ट्राई कोट मैक्स @ 4 किग्रा प्रति एकड़ के हिसाब से भूमि की तैयारी या खाद के साथ जमीन में भुरकाव करें, एवं बुआई के 30 दिन बाद ट्राई कोट मैक्स 4 किग्रा प्रति एकड़ के हिसाब से एक बार फिर से उसी फसल में भुरकाव कर सिंचाई करें, और पाएं बेहतरीन उत्पादन।

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खरपतवारों से गेहूँ को होगा 25 से 35% तक का नुकसान, जानें बचाव के उपाय

Weeds will cause 25 to 35% damage to the wheat crop, learn preventive measures

🌾गेहूँ की फसल में खरपतवार एक सबसे बड़ी समस्या है। खरपतवारों के कारण फसल उत्पादन में 25 से 35% तक की कमी देखी गई है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जो पोषक तत्व फसलों को दिए जाते हैं, वे खरपतवार के द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं। जिससे मुख्य फसल कमजोर हो जाती है।

🌾गेहूँ में मुख्यतः दो तरह के खरपतवारों की समस्या होती है और ये होते हैं सकरी पत्ती वाले खरपतवार (मोथा, कांस, जंगली जई, गेहूंसा (गेहूँ का मामा) आदि) तथा चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार (बथुआ, सेंजी, कासनी, जंगली पालक,  कृष्णनील, हिरनखुरी आदि)। 

🌾इनसे बचाव के लिए बुवाई के 30 से 35 दिन के अंदर जब खरपतवार 2 से 5 पत्तों की अवस्था में होते हैं तब खरपतवारनाशक का छिड़काव करें। छिड़काव के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। छिड़काव के लिए फ्लैट फैन या फ्लड जेट नोजल का इस्तेमाल करें। 10 से 12 टंकी प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।  

👉🏻सकरी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए झटका (क्लोडिनाफॉप प्रोपरगिल 15% डब्ल्यूपी) @ 160 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

👉🏻चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए, वीडमार सुपर (2,4-डी डाइमिथाइल अमीन साल्ट 58% एसएल) @ 300-500 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

👉🏻सकरी एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए वेस्टा (क्लॉडिनाफोप प्रोपेरजील 15% + मेटसुल्फुरोन मिथाइल 1 % डब्ल्यूपी) @ 160 ग्राम या सेंकोर (मेट्रिब्यूजिन 70% डब्ल्यूपी) @ 100 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। 

👉🏻छिड़काव के समय सावधानी जरूर बरतें, मुंह पर मास्क और हाथों में दस्ताने पहन कर हीं छिड़काव करें तथा जब हवा का बहाव ज्यादा हो तब छिड़काव बिल्कुल न करें।

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लहसुन में बढ़िया पौध बढ़वार के लिए जरूर करें ये छिड़काव

For better plant growth in garlic do this spray

लहसुन की फसल में इस अवस्था में अच्छे जड़ों के विकास एवं पौधों की स्वस्थ वृद्धि के लिए, मैक्सरूट (ह्यूमिक एसिड + पोटेशियम + फुलविक एसिड) 10 ग्राम + 19:19:19 @ 75 ग्राम + रीजेंट (फिप्रोनिल 05% एससी) @ 30 मिली, प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

प्याज एवं लहसुन अनुसंधान निदेशालय के अनुसार 

  • 19:19:19 इसमें नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटैशियम तत्व पाया जाता है, जो फसल की इस अवस्था में वानस्पतिक वृद्धि को बढ़ाता है, साथ ही फसल को स्वस्थ बनाता है।

  • मैक्सरूट – इसमें ह्यूमिक एसिड + पोटेशियम + फुलविक एसिड होता है। जो मिट्टी की जल धारण क्षमता एवं सफ़ेद जड़ के विकास में मदद करता है। एवं पौधो को पोषक तत्व ग्रहण करने में मदद करता है।

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वाटाणा पिकांंमध्ये पावडर बुरशी कशी नियंत्रित करावी

Prevention of Powdery Mildew in Pea crop
    • या रोगाची लक्षणे प्रथम जुन्या पानांवर दिसतात, त्यानंतर ती वनस्पतीच्या इतर भागांत आढळतात.

    • वाटाणा पानांच्या दोन्ही पृष्ठभागांवर भुकटी जमा केली जाते. नंतर मऊ देठ, शेंगा इत्यादींवर पावडरी डाग तयार होतात. एकतर फळांचा विकास होत नाही किंवा तो लहान राहात नाही.

रासायनिक उपचार:

हेक्साकोनाज़ोल 5% एस.सी. 400 मिली / एकर किंवा गंधक 80% डब्ल्यूडीजी 500 ग्रॅम / एकर किंवा टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% डब्ल्यूजी 500 ग्रॅम / एकर किंवा मैक्लोबुटानिल 10% डब्ल्यूपी 100 ग्रॅम / दराने फवारणी करावी.

जैविक उपचार:

जैविक उपचार म्हणून 250 ग्रॅम दराने स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस फवारणी करावी.

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हरभऱ्यामध्ये पेरणीनंतर 20-25 दिवसांत आवश्यक फवारणी करावी

Necessary spraying to be done in gram in 20 -25 days after sowing
  • हरभरा हे भारतातील सर्वात महत्वाचे कडधान्य पीक आहे. याचा वापर मानवी वापरासाठी तसेच जनावरांना खाण्यासाठी केला जातो. ताजी हिरवी पाने आणि चणे भाजी म्हणून आणि भुसाचा उपयोग गुरांसाठी उत्कृष्ट चारा म्हणून केला जातो.

  • हरभरा पिकात पेरणीच्या 20-25  दिवसांत कीटक व बुरशीजन्य रोगांपासून पिकाचे संरक्षण करण्यासाठी, प्रथमकार्बेन्डाजिम 12 % + मैंकोजेब 63% 300 ग्रॅम + प्रोफेनोफॉस 40% + साइपरमेथ्रिन 4% ईसी 400 मिली प्रति एकर या प्रमाणात फवारणी करावी.

  • पिकाच्या वनस्पतिवत् वाढीसाठी आणि विकासासाठी, 400 ग्रॅम दराने सीवेड किंवा जिब्रेलिक अम्ल 0.001% 300 मिली प्रति एकर दराने शिंपडावे. 

  • या सर्व फवारण्यांसह, सिलिकॉन आधारित स्टीकर 5 मिली प्रति 15 लिटर पाण्यात वापरणे आवश्यक आहे.

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सब्जी वर्गीय फसलों में मल्चिंग लगाने से मिलते हैं कई फायदें

Benefits of applying mulching in vegetable crops

मल्चिंग एक ऐसी तकनीक है जिसमें फसलों के स्वस्थ विकास को बढ़ावा देने के लिए मिट्टी की सतह को एक मोटी परत से ढक दिया जाता है। यह सब्जी वाली फसलों के स्वस्थ विकास के लिए एक उपयोगी तकनीक है। मल्चिंग के उपयोग से निम्नलिखित लाभ होते हैं:

उन्नत पोषक तत्व प्रतिधारण: मल्चिंग से मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे वे पौधों को अधिक उपलब्ध होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप स्वस्थ और अधिक उत्पादक फसलें प्राप्त होती हैं।

जल संरक्षण: मल्चिंग वाष्पीकरण को कम करके, मिट्टी को अधिक समय तक नम रखने और सिंचाई की आवश्यकता को कम करके पानी के संरक्षण में मदद करता है।

खरपतवार नियंत्रण: मल्चिंग खरपतवार की वृद्धि को कम करता है, एक अवरोध प्रदान करता है जो खरपतवार के अंकुरों को बढ़ने से रोकता है और शाकनाशियों की आवश्यकता को कम करता है।

मृदा अपरदन नियंत्रण: मल्चिंग मिट्टी को एक जगह पर रोककर और मिट्टी पर वर्षा के प्रभाव को कम करके मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद करता है।

बेहतर मृदा स्वास्थ्य: मल्चिंग कार्बनिक पदार्थ सामग्री को बढ़ाकर, मिट्टी की संरचना में सुधार, और लाभकारी माइक्रोबियल गतिविधि को बढ़ावा देकर मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद करता है।

फसल उत्पादकता में वृद्धि: मल्चिंग को ऐसा वातावरण प्रदान करके फसल उत्पादकता बढ़ाने के लिए दिखाया गया है जो पौधों की वृद्धि और विकास के लिए अनुकूल है।

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टमाटर की फसल में जीवाणु धब्बा रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय!

Symptoms and control measures of bacterial spot disease in tomato crops!
  • टमाटर की फसल में जीवाणु धब्बा एक विनाशकारी रोग है। यह टमाटर के पौधे के सभी हिस्सों को प्रभावित कर सकता है, जिसमें पत्तियां, तना और फल शामिल हैं।

  • इसके प्रकोप की शुरुआती अवस्था में टमाटर के पत्ती पर पानी से लथपथ गोलाकार धब्बे दिखाई देते हैं।

  • सामान्य तौर पर ये गोलाकार धब्बे गहरे भूरे से काले रंग के पत्तियों और तनों पर होते हैं।  धीरे धीरे ये धब्बे आपस में जुड़कर बड़ा आकार लेते हैं और पत्ती पीली पड़ जाती है।

  • हरे फलों पर यह धब्बे आमतौर पर छोटे, उभरे हुए और छाले जैसे होते हैं। जैसे-जैसे फल पकते हैं, धब्बे बड़े हो जाते हैं और भूरे, खुरदुरे हो जाते हैं। जिससे फल की क्वालिटी ख़राब हो जाती है।

नियंत्रण के उपाय 

इस रोग के नियंत्रण के लिए तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के अनुसार धानुकोप (कॉपर ऑक्सिक्लोराइड 50% डब्ल्यूपी) @ 1 किग्रा + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 50 मिली प्रति एकड़, 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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ठिबक सिंचन- एक वरदान

Drip irrigation
  • चांगल्या पिकांच्या यशस्वी उत्पादनासाठी पाण्याची उपलब्धता हा एक महत्त्वाचा घटक आहे. सतत वाढणारी लोकसंख्या आणि हवामान बदलांमुळे भूगर्भात उपलब्ध पाण्याचे प्रमाण कमी होत आहे.

  • त्यामुळे पिकांचे उत्पादन सतत कमी होत आहे. या समस्येचे निराकरण करण्यासाठी ठिबक सिंचनचा शोध लावला गेला. जो शेतकऱ्यांसाठी वरदान ठरला आहे.

  • या पद्धतीत, प्लास्टिक पाईपच्या स्त्रोतांमधून थेट रोपांच्या मुळांपर्यंत पोहोचते त्यास फ्रिटीगेशन म्हणतात.

  • इतर सिंचन प्रणालींच्या तुलनेत 60 ते 70% पाण्याची बचत होते.

  • ठिबक सिंचन वनस्पतींना अधिक कार्यक्षमतेसह पोषक पुरवण्यास मदत करते.

  • ठिबक सिंचनामुळे पाण्याचे नुकसान टाळता येते. (बाष्पीभवन आणि गळतीमुळे).

  • ठिबक सिंचनातील पाणी थेट पिकांंच्या मुळांत दिले जाते. ज्यामुळे सभोवतालची जमीन कोरडी होते आणि तण वाढू शकत नाही.

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सरसों में विरल अर्थात थिनिंग करना है बेहद जरूरी, जानें इसके फायदे!

Why thinning is necessary in mustard crops
  • सरसों की फसल की बुवाई के 3 से 4 सप्ताह बाद पौधे से पौधे के बीच की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर तक बनाए रखने के लिए अतिरिक्त जन्में पौधों को निकाल देने की प्रक्रिया विरल या थिनिंग कहलाती है।

  • यह प्रक्रिया फसलों में अधिक शाखा आने एवं स्वस्थ पौध विकास के लिए बहुत जरूरी होती है और सभी किसानों को यह जरूर करना चाहिए।

  • इससे प्रक्रिया के उपयोग से फसल में बीमारी एवं कीटों का प्रकोप कम होता है तथा फसल में फली एवं दाने का आकार बड़ा होता है।

  • जो फसलें एक दूसरे से सही दूरी पर नहीं बोई जाती हैं, उनमें पतला करने की यह प्रक्रिया बेहत आवश्यक होती है।

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