भिंडी की फसल में पीला शिरा मोज़ेक वायरस प्रकोप के लक्षण एवं नियंत्रण

Symptoms and control of yellow vein mosaic virus in okra crop

पीला शिरा मोज़ेक दरअसल एक वायरस यानी विषाणु जनित रोग है जो फसल में उपस्थित रसचूसक कीट के कारण से और ज्यादा फैलता है। यह भिंडी की फसल के लिए वर्तमान समय में बेहद घातक हो सकता है।  

लक्षण: इस रोग के शुरुआती अवस्था में ग्रासित पौधे की पत्तियों की शिराएँ पीली पड़ने लगती हैं और जैसे ही रोग बढ़ता जाता है वैसे वैसे पीलापन पूरी पत्ती पर फैलता जाता है और इसके परिणाम से पत्तियाँ मुड़ने एवं सिकुड़ने लगती है, पौधे की वृद्धि रुक जाती है। प्रभावित पौधे के फल हल्के पीले, विकृत और सख्त हो जाते हैं।

नियंत्रण: यह रोग मुख्यत सफेद मक्खी से फैलता है, इसके नियंत्रण के लिए नोवासेटा (एसिटामिप्रिड 20% SP) @ 30 ग्राम प्रती एकड़ या पेजर (डायफैनथीयुरॉन 50% WP) 240 ग्राम/एकड़ के दर से 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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आलू की फसल में मिट्टी उपचार से मिलते हैं कई फायदे

There are many benefits of soil treatment in potato crop
  • आलू की फसल में बुवाई के पहले मिट्टी उपचार बहुत आवश्यक हैं।

  • मिट्टी की उर्वरता और पोषक तत्व प्रबंधन रोग मुक्त फसल एवं अच्छी उपज के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। ये फसल की गुणवत्ता पर सीधा प्रभाव डालते हैं।

  • रबी सीजन में आलू की बुवाई के पूर्व मिट्टी में बहुत अधिक नमी होने के कारण कवक जनित रोगों एवं कीटों का बहुत अधिक प्रकोप होता है।

  • कवक जनित रोगों एवं कीटों के निवारण के लिए मिट्टी उपचार कवकनाशी एवं कीटनाशी से किया जाता है।

  • मिट्टी उपचार कवकनाशी एवं कीटनाशी से करने से आलू की फसल में कंद गलन जैसे रोग नहीं लगते है।

  • मिट्टी उपचार के द्वारा आलू में लगने वाले उकठा रोग से भी बचाव हो जाती है।

  • मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए भी मिट्टी उपचार बहुत आवश्यक है। इसके मुख्य पोषक तत्वों का उपयोग किया जाता है।

  • मिट्टी उपचार करने से मिट्टी की सरचना में सुधार होता है एवं उत्पादन भी काफी हद तक बढ़ जाता है।

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कन्सोर्टिया पीके बॅक्टेरियांचे महत्त्व

Importance of consortia PK bacteria
  • यात दोन प्रकारच्या बॅक्टेरियाचे मिश्रण आहे. फॉस्फरस सोल्युबिलीझिंग (पी.एस.बी.) आणि पोटॅश मोबिलिझिंग बॅक्टेरिया (के.एम.बी).

  • माती आणि पिकांचे दोन प्रमुख घटक असलेल्या पोटॅश आणि फॉस्फरसच्या पुरवठ्यात मदत करते, डाळींमध्ये त्याचा जास्त  वापर केला जातो.

  • हे जीवाणू जमिनीत विरघळणारे पोटॅश आणि फॉस्फरस रूपांतरित करते जे वनस्पती प्रदान करतात.

  • यामुळे वेळेवर झाडाला आवश्यक घटक मिळतात आणि पीक चांगले वाढते.

  • पिकांचे उत्पादन वाढते तसेच मातीत पोषक तत्त्वांची उपलब्धता देखील होते.

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पेरणीच्या 1 ते 5 दिवसांत बटाटा पिकांमध्ये तण व्यवस्थापन

Weed Management in Potato Crop 1-5 Days of Sowing
  • बटाट्याचे पीक हे मुख्य रब्बी पीक आहे, पावसाळ्यानंतर उर्वरित जमिनीत जास्त ओलावा असल्याने बटाटा पिकांची पेरणी झाल्यावर तण मोठ्या प्रमाणात वाढू लागते.

  • वेळेवर आणि योग्य तणनाशकाचा वापर करून सर्व प्रकारच्या तणांवर नियंत्रण ठेवता येते.

  • रासायनिक पध्दत: – या पद्धतीत रसायनांचा वापर करून तणनियंत्रण केले जाते. वेळोवेळी या रसायनांचा वापर करून तण खूप चांगल्या प्रकारे नियंत्रित केले जाऊ शकते.

  • पेरणीनंतर 1 ते 3 दिवसानंतर: – तणनियंत्रणाच्या रासायनिक नियंत्रणासाठी पेरणीच्या 1 ते 3 दिवसानंतर पेंडमीथेलिन 38.7% सी.एस. 700 मिली / एकरी दराने फवारणी करावी.

  • अशा प्रकारे फवारणीमुळे पेरणीच्या सुरुवातीच्या काळात उगवलेल्या तणांवर नियंत्रण ठेवता येते.

  • पेरणीनंतर दुसरी फवारणी: – मेट्रीबुझिन 70 % डब्ल्यू.पी. 100 ग्रॅम प्रति एकरी 3 ते 4 दिवसानंतर किंवा बटाटा रोप 5 सें.मी.तयार होण्यापूर्वी फवारणी करावी.

  • तणनाशकांची फवारणी करताना पुरेसा ओलावा असणे फार महत्वाचे आहे.

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शेतीत घरगुती शेण खतांंचे महत्त्व काय आहे?

Importance of cow dung in agriculture
  • शेणखतामुळे जमिनीची भौतिक रचना सुधारते आणि जमिनीत हवेची हालचाल वाढते.

  • जमिनीची पाणी धारण क्षमता वाढवून जमिनीतील पाण्याची पातळी सुधारते.

  • त्याच्या वापराने झाडांच्या मुळांचा विकास चांगला होतो आणि झाडे जास्त प्रमाणात पोषकद्रव्ये शोषून घेतात.

  • हे जमिनीतील सेंद्रिय पदार्थ वाढवण्यास मदत करते. त्याचा वापर जमिनीत सेंद्रिय कार्बनचे प्रमाण सुधारतो.

  • जमिनीची क्षार विनिमय क्षमता वाढते.

  • जमिनीत फायदेशीर जीवाणूंची संख्या वाढते, ज्यामुळे पिकाचे उत्पादन खूप चांगले होते.

  • गाईचे शेण जटिल संयुगांचे साध्या संयुगांमध्ये रूपांतर करण्यास मदत करते.

  • मातीचे कण एकत्र चिकटवून जमिनीची धूप रोखते.

  • यामध्ये नाइट्रोजन 0.5 %, फास्फोरस 0.25 % आणि पोटाश 0.5 % वापरले जाते.

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मातीचे उपचार आणि त्याचे फायदे जैविक कीटकनाशक मेटारिझियम अ‍ॅनिसॉप्लियाइ

Soil treatment and its benefits with the biological insecticide METARHIZIUM ANISOPLIAE
  • मेट्राझियम अनीसोप्लिया एक अतिशय उपयुक्त जैविक नियंत्रण आहे.

  • हुमणी, वाळवी, नाकतोडे, हॉपर्स, लोकरी मावा, भुंगे आणि बीटल इत्यादीं सुमारे 300 प्रजाती विरूद्ध कीटकनाशक म्हणून याचा वापर केला जातो.

  • 1 किलो मेटारिझियम निसोप्लिआ / एकरी घ्या आणि हे 50 ते 100 किलो चांगले विघटित करुन एफवायएममध्ये मिसळा आणि ते एका मोकळ्या शेतात प्रसारित करा.

  • या बुरशीचे काही बीज पुरेसा ओलावा असलेल्या किडीच्या शरीरावर अंकुरतात.

  • ही बुरशी यजमान कीटकांचे (होस्ट सेलचे) शरीर खातो.

  • हे उभ्या पिकांमध्ये फवारणी म्हणूनदेखील वापरले जाऊ शकते.

  • त्याचा वापर करण्यापूर्वी शेतात आवश्यक आर्द्रता असणे फार महत्वाचे आहे.

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टमाटर के खेत में कैल्शियम की कमी दूर करने के लिए मिट्टी उपचार

Soil treatment to overcome calcium deficiency in tomato field
  • कैल्शियम की कमी के कारण टमाटर की फसल को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए बुआई के पहले ही प्रबंधन के उपाय किये जाने चाहिए। 

  • इसके लिए रोपाई के 15 दिन पहले मुख्य खेत में अच्छे से पकी हुई या सड़ी हुई गोबर की खाद का उपयोग करें।

  • इसके पश्चात रोपाई के पहले कैल्शियम नाइट्रेट @ 10 किलो/एकड़ की दर से खेत में मिलाएँ।

  • कैल्शियम की कमी के लक्षण दिखाई देने पर कैल्शियम EDTA @ 150 ग्राम/एकड़ की दर से दो बार छिड़काव करें।

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बेमिसाल मजबूती वाले HyTarp तिरपाल की विशेषताएं

Features of Gramophone HyTarp Tarpaulin
  • यह तिरपाल पूरी तरह से वर्जिन प्लास्टिक से बनी है और इसमें मिट्टी या फिलर का कंटेंट नहीं है।

  • इस तिरपाल की मोटाई 200 GSM होने के साथ ये 3 लेयर बनी की है जिसकी वजह से तिरपाल काफी मजबूत और टिकाऊ है।

  • ये तिरपाल UV ट्रीटेड भी है जीसकी वजह से कड़ी धूप, ठंढ और बारीश में भी ये तिरपाल लंबे समय तक चलती है।

  • ये तिरपाल एक साईड से आर्मी ग्रीन और दूसरे साईड से ब्लैक कलर की है।

  • इस तिरपाल मे चारों बाजू में विशिष्ट अंतर छोड के अल्युमिनियम के आय लेट्स दिये गए हैं जो तिरपाल को रस्सी से बाँधने मे काम आयेंगे।

  • यह तिरपाल सभी रेग्युलर साईज 11×15, 15×18, 21×30, 24×36, 30×30 में उपलब्ध है।

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कांद्याच्या रोपवाटिकेत बुरशीजन्य आजाराचे नियंत्रण

Fungus-borne disease control in onion nursery
  • खरीप हंगामात पावसामुळे जास्त आर्द्रता आणि मध्यम तापमान हे बुरशीजन्य आजाराच्या विकासाचे मुख्य घटक आहेत.

  • कांद्याची रोपवाटिकेत मर रोग, मूळकूज, स्टेम रॉट, पाने पिवळी पडणे इत्यादी रोगांचा प्रादुर्भाव दिसून येतो.

  • या रोगांमध्ये रोगजनक प्रथम वनस्पतीच्या कॉलर भागांंवर हल्ला करतो.

  • शेवटी, कॉलर भाग आणि मुळे कलंकित होतात, ज्यामुळे झाडे कोसळतात आणि मरतात.

  • बुरशीजन्य रोग रोखण्यासाठी पेरणीच्या वेळी निरोगी बियाणे निवडावे.

  • कार्बेन्डाझिम 12% + मॅन्कोझेब 63% 30 ग्रॅम / पंप किंवा थायोफिनेट मेथाईल 70% डब्ल्यू / डब्ल्यू, 50 ग्रॅम / पंप किंवा मॅन्कोझेब 64% + मेटॅलॅक्साइल 8% डब्ल्यू.पी. 60 ग्रॅम / पंप दराने फवारणी करावी.

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सरसों की बुआई करते समय इन बातों का रखें ध्यान

Keep these things in mind while sowing mustard
  • सरसों की बुआई का सबसे अच्छा समय 5 से 25 अक्टूबर के बीच होता है।

  • इस समय सरसों की बुआई करने से अच्छा उत्पादन मिलता है, इसलिए किसानों को 25 अक्टूबर तक सरसों की बुआई कर देनी चाहिए।

  • सरसों की बुआई के लिए किसानों को एक एकड़ खेत में 1 किलो बीज का प्रयोग करना चाहिए।

  • सरसों को कतारों में बोना चाहिए ताकि निराई करने में आसानी हो।

  • सरसों की बुआई देसी हल या सीड ड्रिल से करनी चाहिए।

  • इसमें पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-12 सेमी रखा जाना चाहिए।

  • सरसों की बुआई करते समय इस बात का ध्यान रखें कि बीज 2-3 सेमी की गहराई में लगाई गई हो।

  • 100 सेमी से अधिक गहराई पर बीज नहीं बोना चाहिए क्योंकि अधिक गहराई पर बीज बोने से बीज के अंकुरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

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