चने में फली छेदक प्रकोप की रोकथाम व अधिक फूल धारण हेतु आवश्यक छिड़काव

Necessary spraying for pod borer caterpillar and more flowers in gram crop

फली छेदक इल्ली की युवा लार्वा पत्तियों की शिराओं को छोड़ कर सभी भाग को खा लेती है साथ ही फूल एवं फली की अवस्था में फूल एवं फली को भी खाते है। हरी फली में – गोलाकार छेद करके दाने को खा कर फली को खाली कर देती हैं जिससे उत्पादन में भारी कमी आती है। 

नियंत्रण के उपाय: चने की फसल में अधिक फूल धारण एवं फली छेदक इल्ली नियंत्रण के लिए, कोस्को (क्लोरट्रानिलिप्रोल 18.5% एससी) @ 50 मिली या सेलक्विन (क्विनालफॉस 25% ईसी) @ 400 मिली + बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना 5% डब्ल्यूपी) @ 250 ग्राम +  न्यूट्रीफुल मैक्स (फुलविक एसिड का अर्क– 20% + कैल्शियम, मैग्नीशियम और पोटैशियम सूक्ष्म पोषक तत्व मात्रा में 5% + अमीनो एसिड) @ 250 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 50 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

न्यूट्रीफुल मैक्स:

  • इससे फूल अधिक लगते है, एवं फलों की रंग एवं गुणवत्ता बढ़ती है। 

  • सूखे, पाले आदि के खिलाफ पौधो की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

  • जड़ से पोषक तत्वों का परिवहन भी तेजी से होता है।

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भीषण ठंड से फसलों में पड़ सकता है पाला, समय रहते कर लें बचाव के उपाय!

Know how to save the crop from frost!
  • पाले की समस्या आमतौर पर दिसंबर से मध्य फरवरी तक होता है।

  • जब वातावरण का तापमान 8 डिग्री सेंटीग्रेड से कम होते हुए शून्य डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है तब पाला पड़ता है। 

  • पाला पड़ने से फसल की कोशिका में उपस्थित जल, बर्फ में परिवर्तित हो जाती है जिससे पौधों की कोशिकाएं फट जाती हैं। 

  • इसके कारण पत्तियां झुलस जाती हैं और प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित हो जाती है, जिससे फसल में बढ़वार नहीं हो पाती है। 

  • फूल फली एवं बाली की अवस्था में पाला के प्रकोप से फूल फल गिर जाते हैं एवं दानों का रंग काला हो जाता है।  इससे उपज बुरी तरह प्रभावित होती है।  

  • पाला की यह अवस्था देर तक बनी रहे तो पौधे मर भी सकते हैं। 

बचाव के उपाय 

  • खेतों की सिंचाई जरूरी – सुबह के समय फसल में हल्की सिंचाई करें। सिंचाई करने से 0.5 – 2 डिग्री सेल्सियस तक तापमान में बढ़ोतरी हो जाती है।

  • वायु अवरोधक ये अवरोधक शीतलहर की तीव्रता को कम करके फसल को होने वाले नुकसान से बचाते हैं। इसके लिए खेत के चारों ओर ऐसी फसलों की बुवाई करनी चाहिए जिनसे की हवा कुछ हद तक रोका जा सके जैसे चने के खेत में मक्का की बुवाई करनी चाहिए। 

  • खेत के पास धुंआ करें – शाम के समय, सूखी घास फूस एवं उपलों को जलाकर धुआं करें। हालांकि यह प्रक्रिया पर्यावरणीय दृष्टि से उचित नहीं है, पर इससे भी पाला से बचाव में सहायता मिलती है।

  • हो सके तो फसल की पत्तियों पर पानी का छिड़काव करें।

  • पौधे को ढकें – तापमान कम होने का  सबसे अधिक नुकसान नर्सरी में होता है। नर्सरी में पौधों को रात में प्लास्टिक की चादर से ढकने की सलाह दी जाती है। ऐसा करने से प्लास्टिक के अन्दर का तापमान 2-3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है।

जैविक विधि से बचाव के उपाय 

  • पाले पड़ने की सम्भावना होने पर, मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 1.0% डब्ल्यूपी) @ 500 ग्राम, प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। 

रासायनिक विधि से बचाव के उपाय 

वोकोविट (सल्फर 80% डब्ल्यूडीजी) @ 35 ग्राम, प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से फसलों के ऊपर छिडक़ाव करें। इससे दो से ढाई डिग्री सेंटीग्रेड तक तापमान बढ सकता है।

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गेहूँ की फसल में फफूंद जनित रोगों से बचाव के उपाय!

Measures to prevent fungal diseases in wheat crops

गेहूँ की फसल की वर्तमान अवस्था में फफूंद जनित रोग जैसे रस्ट की समस्या आती है। गेहूँ में रस्ट मुख्यतः 3 प्रकार के होते हैं। इनकी क्षति के लक्षणों में भी थोड़ा बहुत अंतर देखने को मिलता है।  

भूरा रतुआ/ लीफ रस्ट: इसे ब्राउन रस्ट के रूप में भी जाना जाता है। यह केवल पर्णसमूह पर हमला करता है। पत्तियों की सतह पर लाल-नारंगी से लाल-भूरे रंग के फफूंद के फलने वाले रोगाणु होते है जो लगभग पूरी ऊपरी पत्ती की सतह को कवर कर लेते हैं। यह रस्ट स्टेम रस्ट की तुलना में छोटे, वृत्ताकार या थोड़े अण्डाकार होते हैं एवं फलने वाले रोगाणु आपस में नहीं जुड़ते हैं। 

धारी रतुआ/पीला रस्ट : यह मौसम की शुरुआत में दिखाई देता है क्योंकि यह ठंडा, नम मौसम पसंद करता है। इससे आमतौर पर पत्तियों के ऊपर धारियां बन जाती है जिनमे पीले से नारंगी-पीले फफूंद के फलने वाले रोगाणु होते हैं, जो पत्तियों के आवरण, गर्दन, बाली के आवरण को भी प्रभावित करते हैं।

तना रतुआ / काला रतुआ: पीले और भूरे रस्ट की तुलना में स्टेम रस्ट के धब्बे अधिक लंबे होते हैं। पत्तियों के दोनों किनारों पर, तनों पर और बाली पर गहरे लाल भूरे रंग के फफूंद के फैलने वाले शरीर होते हैं। जो आमतौर पर अलग और बिखरे हुए खुरदरे होते हैं। इसे काला रतुआ भी कहा जाता है क्योंकि इसके बीजाणु बाद में काले हो जाते हैं।

नियंत्रण के उपाय: इन सभी प्रकार के रस्ट/रतुआ को नियंत्रण करने के लिए, जेरोक्स (प्रोपिकोनाज़ोल 25% ईसी) @ 200 ग्राम या गोडीवा सुपर (एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% + डाइफ़ेनोकोनाज़ोल 11.4%  एससी) @ 200 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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गेहूँ में पीलेपन के होते हैं कई कारण, जानें नियंत्रण के उपाय

Know what is the reason for the yellowing of the wheat crop

किसान भाइयों गेहूँ की फसल में पीलेपन की समस्या 3-4 कारणों से हो सकती हैं। शुरूआती अवस्था में गेहूँ की निचली पत्तियों में जो पीलापन आता है, वह नाइट्रोज़न के कमी से होता है। वहीं फफूंद जनित रोगों जिसमे मिट्टी एवं बीज जनित रोग शामिल होते हैं के कारण भी पीलापन बढ़ता है। कभी कभी अधिक जल भराव के कारण या पानी के लंबे समय तक रुके होने के कारण पौधों की जड़े सड़ जाती हैं और इसके कारण भी पौधा पीला पड़ जाता है। अभी सबसे ज्यादा फसल में जड़ माहु, दीमक एवं तना बेधक कीट देखने को मिल रहा है। यह भी गेहूँ की फसल में पीलापन का मुख्य कारण है। 

  • जड़ माहु: यह कीट नवंबर से फरवरी माह तक अधिक मिलता है। ये पारदर्शी कीट है जो बहुत छोटे और कोमल शरीर वाले पीले भूरे रंग के होते हैं। यह पौधों के आधार के पास या पौधों की जड़ों पर मौजूद होते हैं एवं पौधों का रस चूसते हैं। रस चूसने के कारण पत्तियां पीली हो जाती हैं या समय से पहले परिपक्व हो जाती हैं और इसके कारण पौधे मर जाते हैं।

  • दीमक: यह सफ़ेद मटमैले रंग का कीट है, जो कॉलोनी बनाकर रहता है। दीमक का प्रकोप बुवाई के तुरंत बाद से लेकर परिपक्वता की अवस्था तक होता है। ये कीट पौधों के जड़, तना यहाँ तक कि पौधों के मृत ऊतकों के सेल्युलोज को भी खाते हैं। इससे क्षतिग्रस्त पौधा पीला पड़कर पूरी तरह से सूख जाता है। फुल अवस्था में क्षतिग्रस्त पौधों से सफेद बालियां निकलती हैं। 

  • तना बेधक: इस कीट की गुलाबी सूंडी तने में प्रवेश करती है और डेड हार्ट के लक्षण पैदा करती है।

नियंत्रण के उपाय 

यूरिया: फसल में यूरिया नाइट्रोज़न की पूर्ति का सबसे बड़ा स्रोत है। इसके उपयोग से, पत्तियों में पीलापन एवं सूखने की समस्या नहीं आती है। यूरिया प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को तेज़ करता है। 40 किग्रा यूरिया प्रति एकड़ के हिसाब से अवश्य प्रयोग करें। 

फफूंद जनित रोग: इसके नियंत्रण के लिए, कॉम्बैट @ 2 किग्रा + मोनास कर्ब @ 500 ग्राम, प्रति एकड़ के हिसाब से समान रूप से भुरकाव कर हल्की सिंचाई करें। 

दीमक: इस कीट के नियंत्रण के लिए आप अभी धनवान 20 (क्लोरपाइरीफोस 20% इसी) @ 1400 मिली प्रति एकड़ के हिसाब से सिंचाई पानी के साथ दें।

गुलाबी तना बेधक: इस कीट के नियंत्रण के लिए सेलक्विन (क्विनालफॉस 25% ईसी) @320 मिली, प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। 

जड़ माहु: इस कीट के नियंत्रण के लिए, थियानोवा 25 (थियामेथोक्सम 25 % डब्ल्यूजी) @ 100 ग्राम (बारीक़ कर के) + बवे र्ब @ 500 ग्राम, प्रति एकड़ यूरिया के साथ मिलाकर समान रूप से भुरकाव कर हल्की सिंचाई करें।

या 

सिंचाई कर चुके हैं तो मीडिया (इमिडाक्लोप्रिड 17.80% एसएल) @ 60 से 70 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड @50 मिली + नोवामैक्स @300 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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आलू की फसल में अगेती झुलसा रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय!

Symptoms and control measures of early blight in potato crops

क्षति के लक्षण

  • अगेती झुलसा रोग के लक्षण आलू के तने, पत्ते और कंदों पर दिखाई देते हैं। 

  • पत्तियों पर प्रारंभिक लक्षण के तौर पर छोटे 1-2 मिमी काले या भूरे घाव दिखाई देते हैं। 

  • अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों में घाव बड़े हो जाते हैं। 10 मिमी से अधिक व्यास वाले घावों में अक्सर गहरे छल्ले होते हैं। जैसे-जैसे घाव बढ़ते हैं, पूरी पत्तियां हरिमाहीन हो जाती हैं। 

  • तनों पर होने वाले घाव अक्सर धंसे हुए होते हैं। इसमें पौधे की मृत्यु हो सकती है।

  • गंभीर रूप से संक्रमित पत्तियाँ पीली होकर गिर जाती हैं। संक्रमित कंदों में भूरी, कार्क जैसी सूखी सड़न दिखाई देती है।

नियंत्रण के उपाय 

  • इस रोग के नियंत्रण के लिए, नोवाक्रस्ट (एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकनाज़ोल 18.3% एससी) @ 300 मिली या करमानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यूपी) @ 700 ग्राम + नोवामैक्स (जिब्रेलिक एसिड 0.001% एल) 300 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड 50 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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मिर्च की बढ़िया उपज के लिए जानें नर्सरी तैयार करने का सही तरीका

Know the right way to prepare nursery for good yield of chilli
  • मिर्च की नर्सरी डालने का सही समय दिसंबर माह के अंतिम सप्ताह से फरवरी माह तक होता है।

  • एक एकड़ क्षेत्र में रोपण के लिए, 40 वर्ग मीटर के नर्सरी क्षेत्र की आवश्कता होती है।  

  • बीज के अच्छे अंकुरण एवं पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए, मिट्टी का भुरभुरा होना आवश्यक है।

  • दोमट मिट्टी वाली कार्बनिक पदार्थ से भरपूर क्षेत्र जिसका पीएच रेंज 6.5-7.5 हो और वहां अच्छी जल निकासी की व्यवस्था हो तो यह सबसे अच्छा होगा। 

  • तैयारी के लिए एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें तथा 2-3 जुताई हैरो की सहायता से करें। खेत में मौजूद अन्य अवांछित सामग्री को हटा दें। 

  • अगर मिट्टी में नमी कम हो तो पहले हल्की सिंचाई करें, फिर खेत की तैयारी करें और आखिर में पाटा चला कर खेत को समतल कर लें।

  • बीज एवं मिट्टी जनित रोग जैसे आद्र गलन, से बचाने के लिए बीज को,  कॉम्बैट (ट्राइकोडर्मा विरिडी 1.00% डब्ल्यूपी) @ 4 ग्राम या मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 1.00% डब्ल्यूपी) @ 10 ग्राम, प्रति किग्रा बीज के हिसाब से उपचारित कर बुवाई करें। 

  • खेत की तैयारी होने के बाद, गोबर की खाद – 10 किग्रा + स्पीड कम्पोस्ट 200 ग्राम  + मैक्सरूट – 50 ग्राम  + डीएपी – 1 किग्रा, को आपस में मिलाकर 40 वर्ग मीटर नर्सरी क्षेत्र के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें। 

  • बीज दर – 80 से 100 ग्राम बीज प्रति एकड़ के लिए पर्याप्त है। 

  • तैयार किये गए बेड में बीज की बुवाई करें एवं झारे की सहायता से हल्की सिंचाई करें। 

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बटाटा पिकामध्ये पछेती झुलसा रोगाचे निवारण

Prevention of late blight disease in potato crop

  • यह रोग आलू के पौधों की पत्तियों, तने और कंदों को प्रभावित करता है l 

  • इस रोग में पत्तियों पर अनियमित आकार के पानी से भीगे धब्बे बन जाते हैं जो पत्तियों के शीघ्र पतन का कारण बनते हैं।

  • इन धब्बों के कारण पत्तियों पर भूरे रंग की परत बन जाती है जो कि पौधे के भोजन निर्माण की प्रक्रिया को बाधित कर देती है l 

  • प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बाधित होने के कारण पौधे भोजन का निर्माण नहीं कर पाते हैं, जिसके कारण पौधे का विकास भी सही से नहीं हो पाता है एवं पौधा समय से पहले ही सूख जाता है l 

  • सफेद वृद्धि पत्तियों की सतह के नीचे, तने एवं नोड्स पर विकसित होती है इन बिंदुओं पर से तना टूट जाता है और पौधा ऊपर गिर जाता है। कंदों में, बैंगनी भूरे रंग के धब्बे जिन्हें काटने पर पूरी सतह पर फैल जाते हैं, प्रभावित कंद सतह से केंद्र तक जंग लगे भूरे रंग के परिगलन हुए दिखाई देते है।

  • रासायनिक उपचार: एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% SC @ 300 मिली या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम या टेबुकोनाजोल 10% + सल्फर 65% WG @ 500 ग्राम या मेटालैक्सिल 4 % + मैनकोज़ेब 64%WP@ 600 ग्राम या टेबुकोनाजोल 50% + ट्राइफ्लॉक्सीस्ट्रोबिन 25% WG 150 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करे l 

  • जैविक उपचार: स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करे l

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भेंडीच्या या सुधारित वाणांची लागवड करुन शेतकऱ्यांना चांगला नफा मिळू शकेल.

Advanced varieties of Okra whose cultivation will give good yield
  • आज आपण भेंडीच्या काही मुख्य प्रकारांबद्दल चर्चा करीत आहोत, त्या द्वारे शेतकऱ्यांना चांगले उत्पन्न मिळू शकते.

  • स्वर्ण |  राधिका, महिको NO-10, नुनहेम्स सिंघम 7000 सीड्स वापरा.

  • या जातींची रोपे मध्यम आकाराची असतात आणि पाने छोटी असतात. 

  • या वाणांना 2 ते 4 शाखा आहेत आणि फळांची पहिली तोडणी 45 ते 51 दिवसांत घेता येते.

  • त्यांचे फळ 12 ते 14 सेमी किंवा 12 ते 16 सेमी लांबीचे आणि 1.5 ते 1.8 सेमी व्यासाचे आहे.

  • या जातींमध्ये चांगले शेल्फ लाइफसह गडद हिरवी मऊ फळे असतात ज्याचे वजन 12 ते 15 ग्रॅम असते.

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ऐसी फसल ग्रोथ और कहाँ, आ गया थर्ड जेनरेशन ग्रोथ बूस्टर जीवा मैक्स

Accelerate crop growth with the third generation growth booster Jiva Maxx
  • जीवा मैक्स थर्ड जेनरेशन यानी तीसरी पीढ़ी का फसलों का ग्रोथ बूस्टर (पौध वृद्धि कारक) है। यह हाइड्रोलाइज्ड प्रोटीन कॉम्प्लेक्स का एक अच्छी तरह से संतुलित उत्तेजित क्लोरोफिल उत्पाद है।

  • जीवा मैक्स का उपयोग फसलों के वानस्पतिक विकास, सफेद जड़ विकास, उपज की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसकी मदद से फसल अच्छी उपज की भी प्राप्ति होती है।

  • यह फसलों में पोषक तत्वों की मात्रा और चयापचय गतिविधि को बढ़ाने के लिए भी काम करता है।

  • फसलों में इसका उपयोग 2 मिली प्रति लीटर पानी के साथ छिड़काव के रूप में करें। अगर फसल में ड्रिप सिंचाई सिस्टम हो तो ड्रिप के माध्यम से 500 मिली प्रति एकड़ का उपयोग करें। 

  • आप जीवा मैक्स का उपयोग बीज उपचार के रूप में भी कर सकते हैं इसके लिए आप 2 मिली प्रति किग्रा बीज का उपयोग करें। 

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रबी धान के लिए मुख्य खेत की तैयारी एवं पोषण प्रबंधन

Main field preparation and nutrition management for rabi paddy crop
  • रबी धान की रोपाई के लिए, मुख्य खेत की तैयारी करते समय, जुताई से 1 या 2 दिन पूर्व गोबर की खाद @ 4 टन + स्पीड कम्पोस्ट @ 4 किग्रा + + कॉम्बैट – ट्राईकोडर्मा विरिडी 1.0% डब्ल्यूपी @ 2 किग्रा, प्रति एकड़ के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें, एवं खेत में पानी भर दें और मिट्टी को पानी सोखने दें। 

  • जुताई के समय पानी की गहराई 2.5 सेमी रखें। धान की फसल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें तथा 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करें। इसके बाद, खेत को मचाकर एक समान कर ले, इससे समान खेत में पानी की सामान्य गहराई बनी रहती है।

  • पोषण प्रबंधन: रोपाई के दिन कीचड़ में, यूरिया- 20 किग्रा + एसएसपी- 50 किग्रा + डीएपी- 25 किग्रा + एमओपी- 20 किलो + धान समृद्धि किट – 11 किग्रा, किट में शामिल तत्व (ट्राई-कोट मैक्स @ 4 किलोग्राम + टीबी 3 @ 3 किलोग्राम + ताबा जी, @ 4 किलोग्राम) इन सभी को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें। पौध रोपण के लिए कतार से कतार एवं पौध से पौध की दूरी 20×15 सेमी रखें।  

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