पॉलीहाउस में खेती करने से मिलेंगे कई फायदे, हैं ज्यादा लाभ

Farming in polyhouse will get many benefits
  • पॉली हाउस में पौधों को कम पानी, सीमित सूरज की किरणें, कम कीटकनाशक के साथ नियंत्रित वातावरण में उगाया जा सकता है।

  • अगर किसी क्षेत्र में जलवायु खेती के अनुरूप नहीं है और खेती लगभग असंभव है वहां भी पॉलीहाउस के माध्यम से खेती की जा सकती है और पौधे उगाए जा सकते हैं।

  • जैसे के लिए भारत के मैदानी इलाकों में स्ट्रॉबेरी उगाना मुश्किल है पर पॉलीहाउस में यह संभव है।

  • बाहरी जलवायु पॉलीहाउस में फसलों की वृद्धि को प्रभावित नहीं करती है।

  • पॉलीहाउस में खेती करने से उपज की गुणवत्ता में सुधार होता है। 

  • यह सब्जियों, फलों और फूलों में 90% पानी का संरक्षण करता है, जिससे उपज की शेल्फ लाइफ बढ़ता है।

  • पॉलीहाउस उत्पादन को अधिकतम स्तर तक बढ़ाने के लिए Co2 की उच्च सांद्रता भी प्रदान करता है, जिसके कारण पॉलीहाउस की पैदावार खुले खेत की खेती से कहीं अधिक होती है।

  • पॉली हाउस में टपक सिंचाई का इस्तेमाल होता है जिसके कारण पानी की बचत होती है। 

  • किसी भी मौसम में पौधों के लिए सही वातावरण निर्माण कर सकते हैं।

  • पॉलीहाउस से फसलों को हवा, बारिश, वर्षा और अन्य जलवायु के कारकों से बचाया जा सकता है।

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खीरे की फसल में डाउनी मिल्डू रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of downy mildew in cucumber crop

यह खीरे का सबसे महत्वपूर्ण रोग है, और यह रोग कवक के कारण होता है। आमतौर पर  इसके लक्षण पत्तियों की ऊपरी सतह पर दिखाई देते हैं। शुरूआती अवस्था में पत्तियों पर छोटे पीले अथवा नारंगी रंग के धब्बे होते हैं, और जैसे ही धब्बे बड़े होते हैं, वे अनियमित मार्जिन के साथ भूरे रंग के हो जाते हैं। संक्रमित पौधों की निचली पत्तियों की सतह पर सफेद या हलके बैंगनी रंग का पाउडर दिखाई देता हैं। इस रोग में फल प्रभावित नहीं होता है, लेकिन स्वाद में यह कम मीठा होता है। 

नियंत्रण: इसके नियंत्रण के लिए प्रतिरोधी/सहिष्णु किस्में उगाएं साथ ही अधिक ऊपरी सिंचाई से बचें और पत्तियों को तेजी से सुखाने के लिए सुबह देर से सिंचाई करें। प्रकोप दिखाई देने पर मिरडोर (एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 23% एस सी) @ 200 मिली प्रति एकड़ या क्लच ( मेटीराम 55% + पायराक्लोस्ट्रोबिन 5 % डब्लूजी)@ 600 -700 ग्राम प्रति एकड़ के दर से छिड़काव करें। 

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रबी धान के लिए मुख्य खेत की तैयारी एवं पोषण प्रबंधन

Main field preparation and nutrition management for rabi paddy crop
  • रबी धान की रोपाई के लिए, मुख्य खेत की तैयारी करते समय, जुताई से 1 या 2 दिन पूर्व गोबर की खाद @ 4 टन + स्पीड कम्पोस्ट @ 4 किग्रा + + कॉम्बैट – ट्राईकोडर्मा विरिडी 1.0% डब्ल्यूपी @ 2 किग्रा, प्रति एकड़ के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें, एवं खेत में पानी भर दें और मिट्टी को पानी सोखने दें। 

  • जुताई के समय पानी की गहराई 2.5 सेमी रखें। धान की फसल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें तथा 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करें। इसके बाद, खेत को मचाकर एक समान कर ले, इससे समान खेत में पानी की सामान्य गहराई बनी रहती है।

  • पोषण प्रबंधन: रोपाई के दिन कीचड़ में, यूरिया- 20 किग्रा + एसएसपी- 50 किग्रा + डीएपी- 25 किग्रा + एमओपी- 20 किलो + धान समृद्धि किट – 11 किग्रा, किट में शामिल तत्व (ट्राई-कोट मैक्स @ 4 किलोग्राम + टीबी 3 @ 3 किलोग्राम + ताबा जी, @ 4 किलोग्राम) इन सभी को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें। पौध रोपण के लिए कतार से कतार एवं पौध से पौध की दूरी 20×15 सेमी रखें।  

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जान लें रबी धान की खेती के लिए खेत की तैयारी एवं पोषण प्रबंधन!

Know about field preparation and nutrition management for rabi paddy cultivation

वैसे तो ज्यादातर किसान धान की खेती खरीफ मौसम में हीं करते हैं जब पूरे देश में मानसून की बारिश होती है। पर आजकल बहुत सारे किसान रबी सीजन में भी धन की खेती करते हैं और अच्छा मुनाफा कमाते हैं। इस सीजन में अगर आप भी धान की खेती करने की प्लानिंग कर रहे हैं तो आपको इसके लिए खेत की तैयारी से लेकर पोषण प्रबंधन आधी का ख़ास ख्याल रखने की जरूरत है। इस लेख में आइये विस्तार से जानते हैं इन्हीं विषयों की जानकारी। 

खेत की तैयारी: ऐसे खेत का चयन करें जिसकी मिट्टी अच्छी तरह से तैयार खरपतवार रहित हो तथा जल धारण क्षमता भी अधिक हो। मिट्टी में में पाए जाने वाले जैविक तत्व एवं जीव अच्छी तरह से काम करते हों। इससे पौध का जड़ विकास सही से होता है। खेत में चारों तरफ से मजबूत मेढ़ बंदी कर दें। इससे पानी खेत में लंबे समय तक संचित रखा जाता है। एक अच्छी जुताई से खेती योग्य भूमि में ऑक्सीजन की उपलब्धता बनी रहती है। एवं खरपतवार भी कम उगते हैं। धान की रोपण के लिए, मुख्य खेत की तैयारी के समय, जुताई से 1 या 2 दिन पूर्व गोबर की खाद @ 4 टन + स्पीड कम्पोस्ट @ 4 किग्रा + कॉम्बैट – ट्राईकोडर्मा विरिडी 1.0% डब्ल्यूपी @ 2 किग्रा, प्रति एकड़ के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें एवं खेत में सिंचाई कर दें और पानी को सोखने दें। जुताई के समय पानी की गहराई 2.5 सेमी रखें। धान की फसल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें तथा 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करें, इसके बाद खेत को मचाकर समतल कर ले। समतल खेत में पानी की सामान्य गहराई बनी रहती है।

पोषण प्रबंधन: रोपाई के दिन कीचड़ में यूरिया- 20 किग्रा + एसएसपी- 50 किग्रा + डीएपी- 25 किग्रा + एमओपी- 20 किलो + धान समृद्धि किट – 11 किग्रा, समृद्धि किट में शामिल उत्पाद (ट्राई कोट मैक्स – जैविक कार्बन 3%, ह्यूमिक, फुल्विक, जैविक पोषक तत्वों का एक मिश्रण, @ 4 किलोग्राम + टीबी 3 – नाइट्रोजन स्थिरीकरण बैक्टीरिया, फास्फेट घुलनशील बैक्टीरिया और पोटेशियम गतिशील बैक्टीरिया, @ 3 किलोग्राम + ताबा जी – जिंक घुलनशील बैक्टीरिया, @ 4 किलोग्राम) को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें। पौध रोपण के लिए कतार से कतार एवं पौध से पौध की दूरी 20×15 सेमी रखें।  

किसान भाई रबी मौसम में भी काफी जगहों पर धान की कीचड़ मचाकर सीधी बुवाई करते हैं। तो आइये जानते है, बुवाई से पूर्व खेत की तैयारी एवं बीज को अंकुरित व उपचारित कैसे करें!

धान की कीचड़ मचाकर सीधी बुवाई विधि 

सबसे पहले जिस किस्म का चुनाव किया गया है बुवाई के लिए, उसे किसी पात्र में पानी में डुबा दें और इसे डुबो कर अच्छी तरह से हिलाएं जिससे ख़राब बीज ऊपर तैरने लगेगा। ख़राब बीज को पात्र से निकाल कर बाहर कर दें, एवं शुद्ध बीज को 18 से 20 घंटे के लिए पानी में डूबा कर छाया में रखें। 18 से 20 घंटे पूरा हो जाने के बाद, धान को बोरे में या साफ सूती कपड़े में पानी से बाहर निकाल लें और बीज उपचार के रूप में, स्प्रिंट (कार्बेन्डाजिम 25%+ मैंकोजेब 50% डब्ल्यूएस) @ 35 ग्राम, प्रति 10 किग्रा के हिसाब से समान रूप से भुरकाव कर बीजों को अच्छी तरह से मिला लें। इसके बाद इसे पुवाल या बोरे के माध्यम से ढक कर रख दें। उचित नमी बनाए रखने के लिए, समय समय पर ऊपर से पानी का हल्का छिड़काव करते रहें। इससे अंकुरण अच्छा होता है। पर्याप्त नमी एवं तापमान मिलने पर 24 घंटे में अच्छा अंकुरण हो जायगा। फिर इसे मचाकर तैयार किये गए, भूमि में समान रूप से बुवाई कर दें एवं खेत में अधिक पानी हो तो उसे खेत से बाहर निकाल दें। 

धान की गीली सीधी बुवाई के लिए, खेत की तैयारी के समय जुताई के 2 दिन पूर्व गोबर की खाद @ 4 टन + स्पीड कम्पोस्ट @ 4 किग्रा + कॉम्बैट – ट्राईकोडर्मा विरिडी 1.0% डब्ल्यूपी @ 2 किग्रा, प्रति एकड़ के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें एवं खेत में पानी भर दें और पानी को सोखने दें। जुताई के समय पानी की गहराई 2.5 सेमी रखें। धान की फसल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें तथा 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करें एवं पाटा चलाकर खेत को अच्छी तरह से मचाकर समतल कर ले। बुवाई के दिन कीचड़ में, एसएसपी- 50 किग्रा + डीएपी- 25 किग्रा + एमओपी- 20 किलो + धान समृद्धि किट – 11 किग्रा, किट में शामिल तत्व (ट्राई कोट मैक्स – जैविक कार्बन 3%, ह्यूमिक, फुल्विक, जैविक पोषक तत्वों का एक मिश्रण, @ 4 किलोग्राम + टीबी 3 – नाइट्रोजन स्थिरीकरण बैक्टीरिया, फास्फेट घुलनशील बैक्टीरिया और पोटेशियम गतिशील बैक्टीरिया, @ 3 किलोग्राम + ताबा जी – जिंक घुलनशील बैक्टीरिया, @ 4 किलोग्राम) को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र के हिसाब से समान रूप से भुरकाव कर,  एक पाटा चलाकर खाद को कीचड़ में अच्छी तरह से मिला दें एवं बीज की बुवाई करें साथ ही अतिरिक्त पानी को बाहर निकाल दे। 

कीचड़ मचाकर सीधी बुवाई विधि से 25% तक श्रम की बचत होती है। रोपण पद्धति की अपेक्षा 7 से 10 दिन पहले इसकी फसल पक कर तैयार हो जाती है। वहीं सीधी बुवाई में नर्सरी उगाने एवं रोपाई करने की जरुरत नहीं होती है।

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तरबूज एवं खरबूज़ की बुवाई से पहले खेत की तैयारी में इन बातों का रखें ध्यान!

Watermelon and Muskmelon field preparation

तरबूज़ एवं खरबूज़ की बुवाई के लिए रेतीली तथा रेतीली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। पौधों की अच्छी बढ़वार एवं जड़ विकास के लिए, मिट्टी का भुरभुरा होना आवश्यक है। सामान्यतः पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें एवं इसके बाद, गोबर की खाद @ 4 टन + स्पीड कम्पोस्ट @ 4 किग्रा + नीम की खली/केक @ 100 किग्रा, प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में समान रूप से भुरकाव करें। इसके बाद 2-3 जुताई हैरो की सहायता से करें। खेत में मौजूद, अन्य अवांछित सामग्री को हटा दें, अगर मिट्टी में नमी कम हो तो पहले पलेवा करें, फिर खेत की तैयारी करें, और आखिर में पाटा चलाकर खेत समतल बना लें। 

पोषक तत्व प्रबंधन 

फसल रोपाई/बुवाई के समय, डीएपी 50 किग्रा + बोरोनेटेड एसएसपी दानेदार 75 किग्रा + एमओपी 75 किग्रा +  मल्टीज़िंक (जिंक सल्फेट 10 किग्रा) + मैग्नीशियम सल्फेट 10 किग्रा + तरबूज़/खरबूज़ समृद्धि किट – टीबी 3 (एनपीके कंसोर्टिया) @ 3 किलोग्राम +  ताबा जी (जिंक सोल्यूब्लाज़िंग बैक्टेरिया) @ 4 किलोग्राम + ट्राई-कोट मैक्स (समुद्री शैवाल, अमीनो, ह्यूमिक) @ 4 किलोग्राम + कॉम्बैट (ट्राईकोडर्मा विरिडी 1.0 % डब्ल्यूपी) @ 2 किलोग्राम, इन सभी को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र के हिसाब से, समान रूप से भुरकाव करें।

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लहसुन की फसल में सफेद सड़न के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय!

Symptoms and control measures of white rot in garlic crops
    • लहसुन की फसल में सफेद सड़न के प्रकोप के कारण पत्तियों के आधार भाग सड़ कर पीले पड़ जाते हैं, एवं मुरझाकर पत्तीयाँ गिरने लगती हैं। 

    • इसकी वजह से जड़ें और कली पर एक रोएँदार सफेद कवकजाल से ढक जाते हैं।

    • प्रभावित कली पानीदार हो जाता है, और कली के सूखने और सिकुड़ने से बाहरी परत फट जाती है। 

    • अंत में छोटे भूरे एवं काले स्क्लेरोटिया/कवक कली के प्रभावित हिस्सों पर या ऊतक के भीतर विकसित होता है।

    नियंत्रण के उपाय 

    • इसकी रोकथाम के लिए, फसल चक्र अपनाना चाहिए। 

    • संक्रमित पौधे को नष्ट कर देना चाहिए।

    पौधों के आसपास की मिट्टी का उपचार के रूप में, प्याज एवं लहसुन अनुसंधान निदेशालय के अनुसार  धानुस्टिन (कार्बेन्डाजिम 50 % डब्ल्यूपी) @ 15 ग्राम या भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान के अनुसार कर्मानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यूपी) @ 30 ग्राम + मैक्सरुट @10 ग्राम, प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से पौधों के जड़ क्षेत्र के पास ड्रेंचिंग करें या गहरा छिड़काव करें जिससे की पानी पौधों के जड़ तक पहुँच जाए।

    कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

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बेस्ट सरसों बीज के साथ पाएं शानदार उपज व ज्यादा तेल उत्पादन

Get great yield and more oil production with the best mustard seeds

सरसों एक प्रमुख तिलहनी फसल है, यदि प्रमाणित किस्मों का चयन बुआई के लिए किया जाए तो इसका उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। आइये जानते हैं इस बार सरसों की प्रमाणित बीज किस्में कौन सी हैं।

पायनियर 45S46: यह मोटे दाने और बेहतर तेल उत्पादन के साथ उच्च उपज देने वाली किस्म है। यह मध्यम परिपक्वता वाली संकर प्रजाति के रूप में किसानों के बीच प्रसिद्ध है। यह एक काले बीज वाली संकर किस्म है। इसकी परिपक्वता अवधि 125-130 दिन है।

ADV 414: यह एक उच्च उपज देने वाली एवं मध्यम परिपक्वता वाली संकर किस्म है जिसमें मोटा दाना, उच्च तेल उत्पादन प्राप्त होता है। अन्य किस्मों की तुलना में 20% तक अधिक उपज देती है। इस किस्म की परिपक्वता अवधि 120 से 125 दिन की होती है।

श्रीराम 1666: सरसों की इस किस्म कि परिपक्वता अवधि लगभग 120 से 130 दिन होती है। इस किस्म का उपयोग सिंचित एवं असिंचित दोनों क्षेत्रों में किया जाता है। असिंचित क्षेत्रों में इसकी उपज कम रहती है। इस किस्म को 1 से 2 पानी में आसानी से उगाया जा सकता है। या किस्म सिंचित क्षेत्रों में 10 से 12 क्विंटल प्रति एकड़ और असिंचित क्षेत्रों में 8 से 10 क्विंटल प्रति एकड़ की उपज आसानी से दे सकती है। लेकिन इस किस्म से 12 क्विंटल से भी ज्यादा पैदावार मिल सकती है।

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बटाटा सुधारित वाणांचे गुणधर्म आणि वैशिष्ट्ये

properties and characteristics of improved varieties of potato

कुफरी ज्योती: ही वाण मध्यम पिकते, उच्च तापमानास संवेदनशील, अत्यंत दुष्काळी परिस्थितीतही मध्यम प्रमाणात उत्पन्न देणारी वाण आणि एकर उशिरा अनिष्ट परिणाम प्रति एकरी 10 ते 12 टन उत्पन्न मिळते.

कुफरी चिप्सोना:  ही वाण मुदतीमध्ये मध्यम असते, जास्त तापमानापेक्षा अत्यंत संवेदनशील असते, दुष्काळ परिस्थितीत अगदीच संवेदनशील असते, चांगले उत्पादन देते आणि उशिरा होण्यास त्रासदायक नसते, दर एकरी 12 ते 14 टन उत्पादन मिळते.

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सोया समृद्धि किट में शामिल जैविक उत्पादों की खूबियां और उपयोग का तरीका

Soybean Samriddhi kit,

सोयाबीन की उपज बढ़ाने में सोया समृद्धि किट का उपयोग महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इस किट में ट्राइकोडर्मा विरिडी, पोटाश एवं फास्फोरस के जीवाणु, राइज़ोबियम बैक्टीरिया, ह्यूमिक एसिड, फुलविक एसिड, ऑर्गेनिक कार्बन, ऑर्गेनिक न्यूट्रिएंट्स जैसे बेहतरीन जैविक उत्पाद मौजूद हैं। आइये बारी बारी से जानते हैं इस किट में शामिल उत्पादों के बारे में मुख्य जानकारियां। 

कॉम्बैट:  इस उत्पाद में ट्राइकोडर्मा विरिडी है, जो मिट्टी में पाए जाने वाले अधिकांश हानिकारक कवकों एवं फफूंद जनित रोगों की रोकथाम में सहायक होता है। 

प्रो-कॉम्बीमैक्स: किट का यह दूसरा उत्पाद दो अलग अलग सूक्ष्म-जीवाणुओं का मिश्रण है, जो सोयाबीन की फसल में पोटाश एवं फास्फोरस की उपलब्धता बढ़ाता है एवं उत्पादन वृद्धि में भी सहायक होता है।

जैव वाटिका आर: किट के तीसरे उत्पाद में राइज़ोबियम बैक्टीरिया होते हैं जो सोयाबीन की फसल की जड़ों में गांठे बनाते हैं, जिससे वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन स्थिर हो कर फसल को उपलब्ध होते हैं।

ट्राई-कोट मैक्स: इस किट का यह अंतिम उत्पाद है जिसमें ह्यूमिक एसिड, फुलविक एसिड, ऑर्गेनिक कार्बन, ऑर्गेनिक न्यूट्रिएंट्स आदि तत्व पाए जाते हैं, जो उर्वरकों की कार्य क्षमता को बढ़ाते हैं,और पोषक तत्वों को एकत्रित करके पौधों की जड़ तक पहुंचने में मदद करते हैं। साथ हीं मिट्टी में लंबे समय तक नमी बनाए रखते हैं। इससे पौधा शुरुआती अवस्था से ही मजबूत और स्वस्थ्य रहता है।

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कपास के बेस्ट कृषि उत्पादों का समृद्धि किट, जानें फसल में उपयोग का सही तरीका

How to use the Cotton Samridhi Kit
  • कपास समृद्धि किट का उपयोग करने के लिए, खेत की अंतिम जुताई के समय या बुवाई से पहले इन उत्पादों को गोबर की सड़ी हुई खाद में उपयुक्त मात्रा के अनुसार मिला देना चाहिए।

  • कपास समृद्धि किट में, ट्राई-कोट मैक्स – 4 किलोग्राम, टीबी-3 – 3 किलोग्राम, कॉम्बैट – 2 किलोग्राम और ताबा-जी – 4 किलोग्राम जैसे उत्पाद शामिल हैं और इसकी कुल मात्रा 13 किलो/एकड़ होती है। 

  • अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में बुवाई से पहले अच्छी तरह से मिला कर, एक एकड़ खेत में एक सामान रूप से इसे बिखेर दें।  

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