-
आज आपण भेंडीच्या काही मुख्य प्रकारांबद्दल चर्चा करीत आहोत, त्या द्वारे शेतकऱ्यांना चांगले उत्पन्न मिळू शकते.
-
स्वर्ण | राधिका, महिको NO-10, नुनहेम्स सिंघम 7000 सीड्स वापरा.
-
या जातींची रोपे मध्यम आकाराची असतात आणि पाने छोटी असतात.
-
या वाणांना 2 ते 4 शाखा आहेत आणि फळांची पहिली तोडणी 45 ते 51 दिवसांत घेता येते.
-
त्यांचे फळ 12 ते 14 सेमी किंवा 12 ते 16 सेमी लांबीचे आणि 1.5 ते 1.8 सेमी व्यासाचे आहे.
-
या जातींमध्ये चांगले शेल्फ लाइफसह गडद हिरवी मऊ फळे असतात ज्याचे वजन 12 ते 15 ग्रॅम असते.
बेमिसाल मजबूती वाले HyTarp तिरपाल की विशेषताएं
-
यह तिरपाल पूरी तरह से वर्जिन प्लास्टिक से बनी है और इसमें मिट्टी या फिलर का कंटेंट नहीं है।
-
इस तिरपाल की मोटाई 200 GSM होने के साथ ये 3 लेयर बनी की है जिसकी वजह से तिरपाल काफी मजबूत और टिकाऊ है।
-
ये तिरपाल UV ट्रीटेड भी है जीसकी वजह से कड़ी धूप, ठंढ और बारीश में भी ये तिरपाल लंबे समय तक चलती है।
-
ये तिरपाल एक साईड से आर्मी ग्रीन और दूसरे साईड से ब्लैक कलर की है।
-
इस तिरपाल मे चारों बाजू में विशिष्ट अंतर छोड के अल्युमिनियम के आय लेट्स दिये गए हैं जो तिरपाल को रस्सी से बाँधने मे काम आयेंगे।
-
यह तिरपाल सभी रेग्युलर साईज 11×15, 15×18, 21×30, 24×36, 30×30 में उपलब्ध है।
Shareकृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।
लसूण पिकाच्या लागवडीसाठी शेताची तयारी?
लसूण पिकाच्या लागवडीसाठी पाण्याचा योग्य निचरा होणारी चिकणमाती माती चांगली असते. जड जमिनीमध्ये त्याचे कंद हे विकसित होत नाहीत. पहिली नांगरणी ही माती पलटणाऱ्या नांगराने करावी, त्यानंतर शेणखत 5 टन + स्पीड कंपोस्ट 4 किलो प्रति एकर शेतात समप्रमाणात शिंपडा आणि हैरो च्या सहाय्याने 2 ते 3 वेळा नांगरणी करा. शेतातील इतर अवांछित पिकांचे अवशेष काढून टाका, जर जमिनीत ओलावा कमी असेल तर प्रथम नांगरट करा, नंतर शेत तयार करा आणि शेवटी पॅट चालवून शेताची पातळी करा.
पोषक तत्वांचे व्यवस्थापन – पीक पेरणीच्या वेळी एसएसपी 50 किलोग्रॅम + डीएपी 30 किलोग्रॅम + यूरिया 20 किलोग्रॅम + पोटाश 40 किलोग्रॅम + राइजोकेयर (ट्राइकोडर्मा विराइड1.0% डब्ल्यूपी) 500 ग्रॅम + टीबी 3 (नाइट्रोजन स्थिरीकरण, फास्फेट घुलनशील आणि पोटेशियम गतिशील जैव उर्वरक संघ) 3 किलोग्रॅम +
ताबा जी (जिंक घोलक बैक्टीरिया) 4 किलोग्रॅम + मैक्स रूट (ह्यूमिक एसिड + पोटेशियम + फुलविक एसिड) 500 ग्रॅम + ट्राई-कॉट मैक्स (जैविक कार्बन 3%, हुमिक, फुलविक, जैविक पोषक तत्वांचे एक मिश्रण) 4 किलोग्रॅम + बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना) 500 ग्रॅम एकत्र मिसळून शेतात प्रति एकर या प्रमाणे समप्रमाणात शिंपडावे.
Shareकांद्याच्या रोपवाटिकेत बुरशीजन्य आजाराचे नियंत्रण
-
खरीप हंगामात पावसामुळे जास्त आर्द्रता आणि मध्यम तापमान हे बुरशीजन्य आजाराच्या विकासाचे मुख्य घटक आहेत.
-
कांद्याची रोपवाटिकेत मर रोग, मूळकूज, स्टेम रॉट, पाने पिवळी पडणे इत्यादी रोगांचा प्रादुर्भाव दिसून येतो.
-
या रोगांमध्ये रोगजनक प्रथम वनस्पतीच्या कॉलर भागांंवर हल्ला करतो.
-
शेवटी, कॉलर भाग आणि मुळे कलंकित होतात, ज्यामुळे झाडे कोसळतात आणि मरतात.
-
बुरशीजन्य रोग रोखण्यासाठी पेरणीच्या वेळी निरोगी बियाणे निवडावे.
-
कार्बेन्डाझिम 12% + मॅन्कोझेब 63% 30 ग्रॅम / पंप किंवा थायोफिनेट मेथाईल 70% डब्ल्यू / डब्ल्यू, 50 ग्रॅम / पंप किंवा मॅन्कोझेब 64% + मेटॅलॅक्साइल 8% डब्ल्यू.पी. 60 ग्रॅम / पंप दराने फवारणी करावी.
जाणून घ्या, प्राकृतिक (नैसर्गिक) शेतीचे महत्वपूर्ण सिद्धांत
-
-
प्राकृतिक (नैसर्गिक) शेती काय आहे? : नैसर्गिक शेती ही देशी गाईवर आधारित शेतीची प्राचीन पद्धत आहे. ज्यामध्ये देशी गाईचे गोमूत्र आणि शेणाचा वापर पीक उत्पादनात रासायनिक खते आणि इतर रसायनांच्या उत्पादनांना पर्याय म्हणून केला जातो, त्यामुळे जमिनीचे नैसर्गिक स्वरूप कायम राहते. नैसर्गिक शेतीमध्ये रासायनिक कीटकनाशकांचा वापर केला जात नाही. या प्रकारच्या शेतीमध्ये निसर्गात आढळणारे घटक कीटकनाशक म्हणून वापरले जातात.
-
प्राकृतिक (नैसर्गिक) शेतीमध्ये शेणखत, शेणखत, गोमूत्र, जिवाणू खत, पिकांचे अवशेष यातून वनस्पतींना पोषक तत्वे दिली जातात. प्राकृतिक (नैसर्गिक) शेतीमध्ये, पिकाचे जीवाणू, अनुकूल कीटक आणि निसर्गात उपलब्ध सेंद्रिय कीटकनाशकांद्वारे हानिकारक सूक्ष्मजीव आणि कीटकांपासून संरक्षण केले जाते.
-
-
चला जाणून घेऊयात प्राकृतिक (नैसर्गिक) चे महत्त्व :
-
शेतात नांगरणी नाही, म्हणजे त्यात नांगरणी करायची नाही, माती फिरवायची नाही. वनस्पतींची मुळे आणि गांडुळे आणि लहान प्राणी आणि सूक्ष्म जीव यांच्या प्रवेशाद्वारे पृथ्वी नैसर्गिकरित्या स्वतःची नांगरणी करते.
-
कोणतेही तयार कंपोस्ट किंवा रासायनिक खत वापरू नका. या पद्धतीत फक्त हिरवे खत आणि शेणखत वापरतात.
-
खुरपणी करू नये. नांगराने किंवा तणनाशकांचा वापर करूनही. माती सुपीक बनवण्यात आणि जैव-बंधुत्व संतुलित करण्यात तणांचा मोठा वाटा आहे. मूळ तत्व हे आहे की तण पूर्णपणे नष्ट करण्याऐवजी नियंत्रित केले पाहिजे.
-
रसायनांवर अजिबात अवलंबून राहू नका. मशागत आणि खतांचा वापर यासारख्या चुकीच्या पद्धतींमुळे कमकुवत झाडे वाढू लागली. तेव्हापासून शेतात रोग व कीड-असंतुलनाचे प्रश्न निर्माण होऊ लागले. छेडछाड न केल्यास निसर्गाचा समतोल पूर्णपणे बरोबर राहतो.
ऐसी फसल ग्रोथ और कहाँ, आ गया थर्ड जेनरेशन ग्रोथ बूस्टर जीवा मैक्स
-
जीवा मैक्स थर्ड जेनरेशन यानी तीसरी पीढ़ी का फसलों का ग्रोथ बूस्टर (पौध वृद्धि कारक) है। यह हाइड्रोलाइज्ड प्रोटीन कॉम्प्लेक्स का एक अच्छी तरह से संतुलित उत्तेजित क्लोरोफिल उत्पाद है।
-
जीवा मैक्स का उपयोग फसलों के वानस्पतिक विकास, सफेद जड़ विकास, उपज की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसकी मदद से फसल अच्छी उपज की भी प्राप्ति होती है।
-
यह फसलों में पोषक तत्वों की मात्रा और चयापचय गतिविधि को बढ़ाने के लिए भी काम करता है।
-
फसलों में इसका उपयोग 2 मिली प्रति लीटर पानी के साथ छिड़काव के रूप में करें। अगर फसल में ड्रिप सिंचाई सिस्टम हो तो ड्रिप के माध्यम से 500 मिली प्रति एकड़ का उपयोग करें।
-
आप जीवा मैक्स का उपयोग बीज उपचार के रूप में भी कर सकते हैं इसके लिए आप 2 मिली प्रति किग्रा बीज का उपयोग करें।
Shareकृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।
रबी धान के लिए मुख्य खेत की तैयारी एवं पोषण प्रबंधन
-
रबी धान की रोपाई के लिए, मुख्य खेत की तैयारी करते समय, जुताई से 1 या 2 दिन पूर्व गोबर की खाद @ 4 टन + स्पीड कम्पोस्ट @ 4 किग्रा + + कॉम्बैट – ट्राईकोडर्मा विरिडी 1.0% डब्ल्यूपी @ 2 किग्रा, प्रति एकड़ के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें, एवं खेत में पानी भर दें और मिट्टी को पानी सोखने दें।
-
जुताई के समय पानी की गहराई 2.5 सेमी रखें। धान की फसल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें तथा 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करें। इसके बाद, खेत को मचाकर एक समान कर ले, इससे समान खेत में पानी की सामान्य गहराई बनी रहती है।
-
पोषण प्रबंधन: रोपाई के दिन कीचड़ में, यूरिया- 20 किग्रा + एसएसपी- 50 किग्रा + डीएपी- 25 किग्रा + एमओपी- 20 किलो + धान समृद्धि किट – 11 किग्रा, किट में शामिल तत्व (ट्राई-कोट मैक्स @ 4 किलोग्राम + टीबी 3 – @ 3 किलोग्राम + ताबा जी, @ 4 किलोग्राम) इन सभी को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें। पौध रोपण के लिए कतार से कतार एवं पौध से पौध की दूरी 20×15 सेमी रखें।
Shareकृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।
जान लें रबी धान की खेती के लिए खेत की तैयारी एवं पोषण प्रबंधन!
वैसे तो ज्यादातर किसान धान की खेती खरीफ मौसम में हीं करते हैं जब पूरे देश में मानसून की बारिश होती है। पर आजकल बहुत सारे किसान रबी सीजन में भी धन की खेती करते हैं और अच्छा मुनाफा कमाते हैं। इस सीजन में अगर आप भी धान की खेती करने की प्लानिंग कर रहे हैं तो आपको इसके लिए खेत की तैयारी से लेकर पोषण प्रबंधन आधी का ख़ास ख्याल रखने की जरूरत है। इस लेख में आइये विस्तार से जानते हैं इन्हीं विषयों की जानकारी।
खेत की तैयारी: ऐसे खेत का चयन करें जिसकी मिट्टी अच्छी तरह से तैयार खरपतवार रहित हो तथा जल धारण क्षमता भी अधिक हो। मिट्टी में में पाए जाने वाले जैविक तत्व एवं जीव अच्छी तरह से काम करते हों। इससे पौध का जड़ विकास सही से होता है। खेत में चारों तरफ से मजबूत मेढ़ बंदी कर दें। इससे पानी खेत में लंबे समय तक संचित रखा जाता है। एक अच्छी जुताई से खेती योग्य भूमि में ऑक्सीजन की उपलब्धता बनी रहती है। एवं खरपतवार भी कम उगते हैं। धान की रोपण के लिए, मुख्य खेत की तैयारी के समय, जुताई से 1 या 2 दिन पूर्व गोबर की खाद @ 4 टन + स्पीड कम्पोस्ट @ 4 किग्रा + कॉम्बैट – ट्राईकोडर्मा विरिडी 1.0% डब्ल्यूपी @ 2 किग्रा, प्रति एकड़ के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें एवं खेत में सिंचाई कर दें और पानी को सोखने दें। जुताई के समय पानी की गहराई 2.5 सेमी रखें। धान की फसल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें तथा 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करें, इसके बाद खेत को मचाकर समतल कर ले। समतल खेत में पानी की सामान्य गहराई बनी रहती है।
पोषण प्रबंधन: रोपाई के दिन कीचड़ में यूरिया- 20 किग्रा + एसएसपी- 50 किग्रा + डीएपी- 25 किग्रा + एमओपी- 20 किलो + धान समृद्धि किट – 11 किग्रा, समृद्धि किट में शामिल उत्पाद (ट्राई कोट मैक्स – जैविक कार्बन 3%, ह्यूमिक, फुल्विक, जैविक पोषक तत्वों का एक मिश्रण, @ 4 किलोग्राम + टीबी 3 – नाइट्रोजन स्थिरीकरण बैक्टीरिया, फास्फेट घुलनशील बैक्टीरिया और पोटेशियम गतिशील बैक्टीरिया, @ 3 किलोग्राम + ताबा जी – जिंक घुलनशील बैक्टीरिया, @ 4 किलोग्राम) को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें। पौध रोपण के लिए कतार से कतार एवं पौध से पौध की दूरी 20×15 सेमी रखें।
किसान भाई रबी मौसम में भी काफी जगहों पर धान की कीचड़ मचाकर सीधी बुवाई करते हैं। तो आइये जानते है, बुवाई से पूर्व खेत की तैयारी एवं बीज को अंकुरित व उपचारित कैसे करें!
धान की कीचड़ मचाकर सीधी बुवाई विधि
सबसे पहले जिस किस्म का चुनाव किया गया है बुवाई के लिए, उसे किसी पात्र में पानी में डुबा दें और इसे डुबो कर अच्छी तरह से हिलाएं जिससे ख़राब बीज ऊपर तैरने लगेगा। ख़राब बीज को पात्र से निकाल कर बाहर कर दें, एवं शुद्ध बीज को 18 से 20 घंटे के लिए पानी में डूबा कर छाया में रखें। 18 से 20 घंटे पूरा हो जाने के बाद, धान को बोरे में या साफ सूती कपड़े में पानी से बाहर निकाल लें और बीज उपचार के रूप में, स्प्रिंट (कार्बेन्डाजिम 25%+ मैंकोजेब 50% डब्ल्यूएस) @ 35 ग्राम, प्रति 10 किग्रा के हिसाब से समान रूप से भुरकाव कर बीजों को अच्छी तरह से मिला लें। इसके बाद इसे पुवाल या बोरे के माध्यम से ढक कर रख दें। उचित नमी बनाए रखने के लिए, समय समय पर ऊपर से पानी का हल्का छिड़काव करते रहें। इससे अंकुरण अच्छा होता है। पर्याप्त नमी एवं तापमान मिलने पर 24 घंटे में अच्छा अंकुरण हो जायगा। फिर इसे मचाकर तैयार किये गए, भूमि में समान रूप से बुवाई कर दें एवं खेत में अधिक पानी हो तो उसे खेत से बाहर निकाल दें।
धान की गीली सीधी बुवाई के लिए, खेत की तैयारी के समय जुताई के 2 दिन पूर्व गोबर की खाद @ 4 टन + स्पीड कम्पोस्ट @ 4 किग्रा + कॉम्बैट – ट्राईकोडर्मा विरिडी 1.0% डब्ल्यूपी @ 2 किग्रा, प्रति एकड़ के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें एवं खेत में पानी भर दें और पानी को सोखने दें। जुताई के समय पानी की गहराई 2.5 सेमी रखें। धान की फसल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें तथा 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करें एवं पाटा चलाकर खेत को अच्छी तरह से मचाकर समतल कर ले। बुवाई के दिन कीचड़ में, एसएसपी- 50 किग्रा + डीएपी- 25 किग्रा + एमओपी- 20 किलो + धान समृद्धि किट – 11 किग्रा, किट में शामिल तत्व (ट्राई कोट मैक्स – जैविक कार्बन 3%, ह्यूमिक, फुल्विक, जैविक पोषक तत्वों का एक मिश्रण, @ 4 किलोग्राम + टीबी 3 – नाइट्रोजन स्थिरीकरण बैक्टीरिया, फास्फेट घुलनशील बैक्टीरिया और पोटेशियम गतिशील बैक्टीरिया, @ 3 किलोग्राम + ताबा जी – जिंक घुलनशील बैक्टीरिया, @ 4 किलोग्राम) को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र के हिसाब से समान रूप से भुरकाव कर, एक पाटा चलाकर खाद को कीचड़ में अच्छी तरह से मिला दें एवं बीज की बुवाई करें साथ ही अतिरिक्त पानी को बाहर निकाल दे।
कीचड़ मचाकर सीधी बुवाई विधि से 25% तक श्रम की बचत होती है। रोपण पद्धति की अपेक्षा 7 से 10 दिन पहले इसकी फसल पक कर तैयार हो जाती है। वहीं सीधी बुवाई में नर्सरी उगाने एवं रोपाई करने की जरुरत नहीं होती है।
Shareकृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो लाइक और शेयर करना ना भूलें।
तरबूज एवं खरबूज़ की बुवाई से पहले खेत की तैयारी में इन बातों का रखें ध्यान!
तरबूज़ एवं खरबूज़ की बुवाई के लिए रेतीली तथा रेतीली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। पौधों की अच्छी बढ़वार एवं जड़ विकास के लिए, मिट्टी का भुरभुरा होना आवश्यक है। सामान्यतः पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें एवं इसके बाद, गोबर की खाद @ 4 टन + स्पीड कम्पोस्ट @ 4 किग्रा + नीम की खली/केक @ 100 किग्रा, प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में समान रूप से भुरकाव करें। इसके बाद 2-3 जुताई हैरो की सहायता से करें। खेत में मौजूद, अन्य अवांछित सामग्री को हटा दें, अगर मिट्टी में नमी कम हो तो पहले पलेवा करें, फिर खेत की तैयारी करें, और आखिर में पाटा चलाकर खेत समतल बना लें।
पोषक तत्व प्रबंधन
फसल रोपाई/बुवाई के समय, डीएपी 50 किग्रा + बोरोनेटेड एसएसपी दानेदार 75 किग्रा + एमओपी 75 किग्रा + मल्टीज़िंक (जिंक सल्फेट 10 किग्रा) + मैग्नीशियम सल्फेट 10 किग्रा + तरबूज़/खरबूज़ समृद्धि किट – टीबी 3 (एनपीके कंसोर्टिया) @ 3 किलोग्राम + ताबा जी (जिंक सोल्यूब्लाज़िंग बैक्टेरिया) @ 4 किलोग्राम + ट्राई-कोट मैक्स (समुद्री शैवाल, अमीनो, ह्यूमिक) @ 4 किलोग्राम + कॉम्बैट (ट्राईकोडर्मा विरिडी 1.0 % डब्ल्यूपी) @ 2 किलोग्राम, इन सभी को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र के हिसाब से, समान रूप से भुरकाव करें।
Shareकृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो मित्रों के साथ शेयर करना ना भूलें।
लहसुन की फसल में सफेद सड़न के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय!
-
-
लहसुन की फसल में सफेद सड़न के प्रकोप के कारण पत्तियों के आधार भाग सड़ कर पीले पड़ जाते हैं, एवं मुरझाकर पत्तीयाँ गिरने लगती हैं।
-
इसकी वजह से जड़ें और कली पर एक रोएँदार सफेद कवकजाल से ढक जाते हैं।
-
प्रभावित कली पानीदार हो जाता है, और कली के सूखने और सिकुड़ने से बाहरी परत फट जाती है।
-
अंत में छोटे भूरे एवं काले स्क्लेरोटिया/कवक कली के प्रभावित हिस्सों पर या ऊतक के भीतर विकसित होता है।
नियंत्रण के उपाय
-
इसकी रोकथाम के लिए, फसल चक्र अपनाना चाहिए।
-
संक्रमित पौधे को नष्ट कर देना चाहिए।
पौधों के आसपास की मिट्टी का उपचार के रूप में, प्याज एवं लहसुन अनुसंधान निदेशालय के अनुसार धानुस्टिन (कार्बेन्डाजिम 50 % डब्ल्यूपी) @ 15 ग्राम या भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान के अनुसार कर्मानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यूपी) @ 30 ग्राम + मैक्सरुट @10 ग्राम, प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से पौधों के जड़ क्षेत्र के पास ड्रेंचिंग करें या गहरा छिड़काव करें जिससे की पानी पौधों के जड़ तक पहुँच जाए।
कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।
-