माहू, थ्रिप्स, जैसिड सबको ख़त्म करेगा ये जैविक कीटनाशक

This organic insecticide will kill aphids thrips jassids

वर्टिसिलियम लेकानी फफूंद पर आधारित जैविक कीटनाशक है। यह 1 प्रतिशत डब्लू पी, एवं 1.15 प्रतिशत डब्लू पी के फार्मुलेशन में उपलब्ध है। इस फफूंद का उपयोग विभिन्न प्रकार के फसलों में रस चूसने वाले कीट जैसे माहू, थ्रिप्स, जैसिड, मिलीबग इत्यादि के रोकथाम के लिए लाभकारी होता है। वर्टिसिलियम लेकानी सफेद रुई के समान दिखने वाली फफूद है। इससे संक्रमित कीटों के किनारों पर सफेद फफूंद की वृद्धि दिखाई देती है। इस फफूंद के बीजाणु (स्पोर्स) कुछ चिपचिपे प्रवृत्ति के होते हैं जिससे ये कीटों के ऊपरी आवरण पर चिपक जाते हैं। इसके प्रयोग से 15 दिन पहले एवं बाद में रासायनिक फफूंदनाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। वर्टिसिलियम लेकानी की सेल्फ लाइफ एक वर्ष है। 

उपयोग की विधी

इसके छिड़काव की मात्रा फसल घनत्व और पेड़ पर निर्भर करती है। यदि किसी भी फसल में चूसक कीटों का प्रकोप बार-बार हो रहा हो तो वर्टिसिलियम लेकानी का प्रयोग 15 से 20 दिनों के अन्तराल से करते रहना चाहिए, और ग्रीन हाउस फसलों में इसका प्रयोग 10 से 15 दिनों के अन्तराल से करने की सिफारिश की जाती है।

वर्टिसिलियम लेकानी को नीम और अन्य जैविक कीट और फफूंदनाशकों के साथ मिलाकर प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन इसको किसी रासायनिक फफूंदनाशक के साथ मिलाकर प्रयोग न करें।

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कद्दुवर्गीय फसलों में लाल मकड़ी के प्रकोप की ऐसे करें पहचान

Identification of red spider mites in cucurbit crops

लाल मकड़ी दरअसल आंखों से दिखाई न देने वाली यह एक सूक्ष्म जीव है। यह पौधों की पत्तियों की निचली सतह पर चिपक कर पत्तियों से रस चूसते हैं। यह कीट कपास, बैंगन, टमाटर, भिंडी तथा कद्दूवर्गीय फसलों पर आक्रमण करती है। इस कीट का वयस्क लाल रंग का होता है जो अंडाकार होता है तथा इसके शरीर के ऊपरी भाग में दो धब्बे पाए जाते हैं। इनकी शिशु एवं वयस्क दोनों ही अवस्था हानिकारक होती है। पत्तियों की निचली सतह पर इनके द्वारा बनाई गई जाली से इनकी उपस्थिति पता चलती है। मार्च-अप्रैल का गरम मौसम इनके अधिक प्रकोप के लिए अनुकूल समय है। अपने सूक्ष्म आकार के कारण ये हवा के सहारे एक स्थान से दूसरे स्थान तक विचरण कर सकती है। अधिक प्रकोप होने पर पत्तियां सूखकर गिरने लगती हैं।

नियंत्रण: ग्रसित पत्तियों को तथा खरपतवारों को नष्ट करें। अधिक प्रकोप होने पर टफगोर (डायमिथोएट 30 ईसी) की 300 मिली प्रति एकड़ या ओमाइट (प्रोपेरगाईट 57 ईसी) @ 200 मिली प्रति एकड़ 150-200 लीटर पानी में घोलकर प्रकोपित पौधें पर छिड़काव करें।

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तरबूज की तुड़ाई के समय बरतें सावधानी, रखें उचित समय का ध्यान

Best time to harvest fruit in watermelon crop
  • तरबूज के फलों को बुआई के 75 से 80 दिन बाद तोड़ना आरम्भ कर देना चाहिए। फलों को यदि दूर के मार्केट में भेजना हो तो तुड़ाई जल्दी करना चाहिए।

  • तुड़ाई का समय हर किस्म के हिसाब से फलों के आकार एवं रंग पर निर्भर करता है। सामान्यता जब परिपक्व फलों पर अंगुलियों से बजाते है तब धप- धप की आवाज आती है साथ ही जब डंडरेल सूखने लगे तभी फल तुड़ाई के लिए योग्य हो जाते हैं।

  • फल का पेंदा जो भूमि में रहता है, यदि यह सफ़ेद से पीला हो जाये तो फल पका हुआ समझा जाता है। फल दबाने पर यदि आसानी से दब जाए, एवं हाथों को दबाते समय ज्यादा ताकत नहीं लगानी पड़े तो फल पका हुआ समझें। 

  • फल की तुड़ाई करते समय ध्यान दें कि फलों को डंठल से अलग करने के लिए तेज चाकू का उपयोग करें। इसके अलावा फलों को ठंडे स्थान पर एकत्रित करके रखना चाहिए।

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कटाई के बाद फसल अवशेष जलाने से होंगे गंभीर नुकसान

Disadvantages of burning crop residue after harvesting

अधिकतर किसान दूसरी फसल की जल्दी बुआई के करने लिए गेहूँ की कटाई के पश्चात बची हुई पराली को खेत में हीं जलाकर नष्ट कर देते हैं, इसके कारण खेतों में जीवाष्म पदार्थ की मात्रा में सतत कमी आती है, एवं मृदा की ऊपरी सतह कठोर हो जाती है। इससे मृदा की उर्वरा शक्ति नष्ट होने के साथ साथ कार्बन की मात्रा में भी कमी आती है। मृदा की भौतिक संरचना भी प्रभावित होती है, एवं जल धारण क्षमता कम होती है। इससे मृदा की जैव विविधता लगभग समाप्त हो जाती है, और मृदा में जैविक क्रियाओं में कमी आती है। 

फसल अवशेषों को जलाने से केचुओं की संख्या में भी भारी गिरावट देखी जाती है। फसल अवशेषों को जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड एवं नाइट्रसऑक्साइड का उत्सर्जन होता है जो वातावरण को प्रदूषित करता है, तथा भूमि में नाइट्रोजन एवं कार्बन का अनुपात प्रभावित होता है।

फसल अवशेषों में आग लगाने से मेड़ों पर लगे पौधे जल जाते हैं, तथा कभी कभी गावों में भी आग लगने की संभावना बढ़ जाती है।

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जानें मूंग की फसल में क्या है राइज़ोबियम कल्चर का महत्व

Importance of rhizobium culture in moong crop

राइजोबियम एक सहजीवी जीवाणु है। जो विशेष कर दलहनी फसलों के जड़ों में पाया जाता है। यह एक विशिष्ट प्रजाति का जीवाणु है जो विशिष्ट पौधे के साथ रहता है जैसे सोयाबीन, मूंगफली, चना, मूंग, उड़द, मटर आदि। विभिन्न फसलों के राइजोबियम जीवाणु भी अलग होते हैं। राइजोबियम जीवाणु मुख्य रूप से सभी तिलहनी और दलहनी फसलों में सहजीवी के रूप में रहकर वायुमंडलीय नाइट्रोज़न को नाइट्रेट में परिवर्तित करके फसलों में नाइट्रोजन की पूर्ति करता है। राइजोबियम जीवाणु मिट्टी में जाने के बाद फसलों की जड़ों में प्रवेश करके छोटी छोटी छोटी गाठें बना लेते हैं। इन गाठों में जीवाणु बहुत अधिक मात्रा में रहता है। यह जीवाणु प्राकृतिक नाइट्रोजन को वायुमंडल से ग्रहण करके पोषक तत्वों में परिवर्तित कर के पौधों को उपलब्ध करवाते हैं। पौधे की जड़ों में अधिक गाठों का होना पौधे को स्वस्थ रखता है। राइजोबियम द्वारा नाइट्रोजन के स्थिरीकरण की प्रक्रिया में, एक अन्य उत्पाद और बनता हैं वह है हाइड्रोजन। राइजोबियम की कुछ विशेष किस्मे इस हाइड्रोज़न का उपयोग नाइट्रोज़न स्थिरीकरण की प्रक्रिया में ही कर लेती हैं। 

राइजोबियम जीवाणु का उपयोग फसलों के लिए दो प्रकार से किया जा सकता है, बीज़ उपचार और मिट्टी उपचार के तौर पर। 

बीज़ उपचार: नाइट्रोज़न स्थिरीकरण जीवाणु की 5 ग्राम मात्रा/किलो बीज़ के हिसाब से लेकर बीजों के ऊपर लेप बनाकर बीज़ उपचार करें एवं बीज़ उपचार किये गये बीजों को तुरंत बुवाई के लिए उपयोग करें। 

मिट्टी उपचार: नाइट्रोज़न स्थिरीकरण जीवाणु की 1 किलो/एकड़ मात्रा लेकर पकी हुई गोबर की खाद या खेत की मिट्टी में मिलाकर बुवाई से पहले खाली खेत में भुरकाव करें। 

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जानिए फसल उत्पादन बढ़ाने में मधुमक्खी कैसे होती है मददगार?

Know how bees are helpful in increasing crop production

मधुमक्खियां मनुष्य को ना केवल शहद देती हैं, बल्कि यह फसलों व वृक्षों में परागण कर उनका उत्पादन बढ़ाने में भी सहायक होती हैं। फल सब्जियों व फसलों से मधुमक्खियां पराग और मकरंद जमा करती हैं। इससे मधुमक्खियां अनजाने में ही परागण क्रिया कर इनकी उपज में बढ़ोतरी कर देती हैं। पालतू व जंगली मधुमक्खियां परागण क्रिया में 80 प्रतिशत तक का योगदान करती हैं। 

मधुमक्खियों द्वारा पैदावार में बढ़ोतरी से होने वाली आय इससे प्राप्त शहद व मोम से कई गुना ज्यादा होती है। एक मधुमक्खी एक बार में लगभग 100 फूलों पर जाती हैं। इस प्रकार वे एक फूल से दूसरे फूल पर पराग ले जाकर परागण करती रहती हैं। इससे बीज व दाने बनने की क्रिया तेज हो जाती है। मधुमक्खी फसलों को कोई हानि नहीं पहुंचाते तथा इन्हें हम अपनी इच्छा से जरूरत के अनुसार परागण के लिए फसलों में रख सकते हैं। मधुमक्खियां अपने निवास स्थान से लगभग एक किलोमीटर क्षेत्र में आने वाली फसलों में परागण करती हैं।

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कद्दूवर्गीय फसल में एन्थ्रक्नोस के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of anthracnose in cucurbit crops

यह रोग कोलीटोट्राइम लेजीनेरियम नामक फफूँद से फैलता है। यह रोग अधिकतर खरबूजे, लौकी व खीरे में अधिक हानि पहुंचता है। इस रोग में पत्तियों के शिराओं पर धब्बे दिखाई देते है, जो बाद में 1 सेंटीमीटर व्यास के हो जाते है। इनका रंग भूरा तथा आकार कोणीय होता है। ग्रासित पौधों की पत्तियों में धब्बे बढ़ते हैं पर आपस में मिल जाते है, परिणामस्वरूप पत्तियां सूखने लगती हैं। अनुकूल वातावरण में यह धब्बे पौधों व अन्य भागों व फलों पर भी पाए जाते हैं।

नियंत्रण: इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही बाविस्टिन (कार्बेन्डाझिम 50% डब्लू पी) @ 120 ग्राम /एकड़ या इंडोफिल जेड 78 (झायनेब 75% डब्लू पी) @ 600- 800 ग्राम प्रति एकड़ के दर से 150-200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 

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भिंडी की फसल में फल छेदक के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of fruit borer in okra crop

इस कीट के शरीर पर हलके पीले संतरी, भूरे रंग के धब्बे होते हैं। आरंभिक अवस्था में ये सूंडियां कोपलों में छेद करके अंदर पनपती हैं, जिसकी वजह से कोपलें मुरझा जाती हैं और सूख जाती हैं। बाद में ये सुंडियां कलियों और फूलों को नुकसान पहुंचाती हैं। ये फल में छेद बनाकर अंदर घुसकर फल का गूदा खाती हैं, इसके कारण ग्रासित फल यानी भिंडी खाने योग्य नहीं रहती है।  

नियंत्रण के उपाय

  • क्षतिग्रस्त पौधों के तने तथा फलों को एकत्रित करके नष्ट कर दें।

  • फल छेदक कीट की निगरानी एवं नियंत्रण के लिए 5 -10 फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर लगाएं।

  • लक्षण दिखाई देने पर, फेम (फ्लुबेंडियामाइड 39.35% डब्ल्यू/डब्ल्यू एस सी) @ 60 – 70 मिली प्रति एकड़ के दर से 150 से 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। 

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जानिए कैसे बचाएं मकड़ी के प्रकोप से मिर्च की फसल!

Know how to save chilli crop from mite attack

इस कीट के नवजात और वयस्क दोनों अवस्थाएं नई पत्तियों को निचली सतह से और पौधों के बढ़ते सिरों से रस चूसते हैं। इसके कारण, पत्तियां नीचे की ओर मुड़कर सिकुड़ जाती हैं, एवं उलटे नाव के आकार का रूप ले लेती हैं। संक्रमित पौधे के फल छोटे रह जाते हैं। 

रोकथाम- इन कीटों का प्रकोप दिखाई देते ही बचाव के लिए, ओमाइट (प्रोपरजाइट 57% ईसी)  @ 600 मिली प्रति एकड़ या पेजर (डायफेंथियूरॉन 50% डब्लूपी) @ 240 ग्राम प्रति एकड़ या इमानोवा (इमामेक्टिन बेंजोएट 05 % एसजी) @ 80 ग्राम प्रति एकड़ के दर से 150 -200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 

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सब्जियों वाली फसल में ऐसे करे खरपतवार प्रबंधन

How to do weed management in vegetable crop

सब्जियों वाली फसलों में खरपतवारों को यदि उचित समय पर नियंत्रित नहीं किया जाए तो यह सब्जियों की उपज एवं गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। खरपतवार न केवल उपज कम करते हैं बल्कि सब्जियों के बीजों के साथ अगर खरपतवारों के बीज मिल गए तो बीज की गुणवत्ता को भी खराब कर देते हैं, जिससे उनका मूल्य प्रभावित होता है। ज्यादातर सब्जी वाली फसलों में शुरूआती अवस्था में खरपतवारों के प्रकोप से बचाना अति आवश्यक होता है, क्योंकि इस समय हुआ नुकसान फसल की बढ़वार एवं उत्पादन दोनों को प्रभावित करता है।

खरपतवार प्रबंधन: 

  • फसल की बुआई करते समय खरपतवार मुक्त शुद्ध एवं प्रमाणित बीज/पौध का प्रयोग करें।

  • पूर्ण रूप से सड़ी गोबर व कम्पोस्ट खाद का ही प्रयोग करें अन्यथा सबसे ज्यादा मात्रा में खरपतवार के बीज खेत में आने की संभावना इसी से ही रहती है।

  • कृषि यंत्रों को लगी मिट्टी एक खेत से दूसरे खेत में प्रयोग करने से पहले साफ़ जरूर कर लें।

  • नर्सरी के स्थान को खरपतवार मुक्त रखें।

  • खेत के आस-पास की मेड़, पानी के स्त्रोत व नालियों को खरपतवार मुक्त रखें।

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