भिंडी की फसल में सर्कोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग के लक्षण व नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control measures of Cercospora leaf spot disease in okra crop

यह रोग सर्कोस्पोरा मालाएंसिस नामक फफूंद के कारण होता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर कोणीय से लेकर अनियमित भूरे धब्बे बनते हैं। अधिक संक्रमण की स्थिति में यह धब्बे पूरी पत्तियों पर फ़ैल जाते हैं, और पत्तियां मुरझाने लगती है जिसके कारण प्रभावित पत्तियाँ जल्दी ही झड़ने लगती हैं।

नियंत्रण के उपाय: ब्लू कॉपर (कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्लूपी) @ 1 किलो प्रति एकड़ या इंडोफिल जेड 78 (झायनेब 75% डब्लूपी) @ 600-800 ग्राम प्रति एकड़ + सिलिकोमैक्स @ 50 मिली + नोवामैक्स (जिबरेलिक एसिड 0. 001%) @ 300 मिली प्रति एकड़ के दर से 150 से 200 लीटर पानी में मिलकर छिड़काव करें।

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लौकी की फसल में डाउनी मिल्ड्यू रोग की पहचान एवं नियंत्रण के उपाय

Identification and control of downy mildew disease in bottle gourd crop

लौकी के पौधे में डाउनी मिल्ड्यू की समस्या पानी की अनियमितता और जमीन में नमी की मात्रा के कारण होता है। डाउनी मिल्ड्यू लौकी के पौधे में होने वाला एक गंभीर रोग है, जो स्यूडो पेरोनोस्पोरा क्यूबेंसिस नामक कवक के कारण होता है। यह रोग पौधों को किसी भी अवस्था में प्रभावित कर सकता है। इस रोग में पत्तियों पर भूरे व पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं जो बाद में पत्तियों की शिराओं तक फैल जाते हैं जिससे पत्तियां पीली होकर गिर जाती हैं।

नियंत्रण: इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे को अधिक पानी देने से बचाएं। पौधे में पानी देते समय पत्तियों को गीला करने से बचें एवं लक्षण दिखाई देने पर जटायु (क्लोरोथॅलोनिल 75% डब्लूपी) @ 200 ग्राम प्रति एकड़ या नोवाक्सील  (मेटालैक्सिल 8% + मैंकोजेब 64% डब्लूपी) @ 800 – 1000 ग्राम प्रति एकड़ के दर से 150 से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

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गेहूँ की फसल में कटाई का उचित समय एवं सावधानियां

Appropriate time and precautions for harvesting wheat crop

गेहूँ की फसल में साधारणत: फसल पकने पर पत्तियां सूखने लगती हैं, कभी-कभी एक-दो पत्तियां हरी भी रह सकती हैं एवं बाली के नीचे का भाग सुनहरा हो जाता है। साथ ही यदि दाने को अंगूठे से दबाया जाए तो दूध नहीं निकलता तथा दानों में कड़ापन आ जाता है। इसके अतिरिक्त जब दानों में 25-30 प्रतिशत तक नमी होती है, तब फसल की कटाई की जा सकती है। 

फसल पकने के तुरंत बाद काट लेना चाहिए, क्योंकि कटाई देर से करने पर कुछ किस्मों में दाने झडने लगते है, एवं चूहों तथा चिडियों से भी नुकसान हो सकता है। कभी-कभी फसल काटने में देर करने से गेहूँ के दाने की गुणवत्ता पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। अगर कटाई समय से न करें तो उपज में भी कमी आ सकती है, क्योंकि 5-10 प्रतिशत दानों की हानि झड़ने से, चिडियों और चूहों के खाने से तथा मौसम की खराबी से होती है।  

गेहूँ की फसल में कटाई से पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए, साथ ही फसल को गिरने से बचाना भी अति आवश्यक होता है। कटाई के बाद 4-5 दिन गठ्ठर को धूप में सुखना चाहिए, क्योंकि अगर कटाई के समय दानों में मिट्टी मिल जाए तो गुणवत्ता पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

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मूग आणि उडीद पिकात मॉलीब्लेडिनम तत्व आवश्यक आहे

Molybdenum element is essential in the crop of green and black gram
  • मोलिब्डेनम डाळीं पिकांच्या मुळांच्या गाठीमध्ये जिवाणूंद्वारे सहजीवन नायट्रोजन निर्धारण प्रक्रियेसाठी राइजोबियम बैक्टीरिया आवश्यक आहे.

  • मॉलीब्लेडिनम हे सूक्ष्म अन्नद्रव्य आहे जे मूग आणि उडीद पिकांना फार कमी प्रमाणात लागते.

  • परंतु खूप कमी प्रमाणात मूग आणि उडीद पिकांच्या चांगल्या वाढीसाठी हे अत्यंत आवश्यक आहे.

  • मूग आणि उडीद पिकांमध्ये नायट्रोजनच्या रासायनिक परिवर्तनामध्ये मॉलीब्लेडिनम अत्यंत महत्त्वाची भूमिका बजावते.

  • हे वनस्पतींची प्रतिकारशक्ती वाढवते, तसेच वनस्पतींमध्ये व्हिटॅमिन-सी आणि साखरेचे संश्लेषण करण्यास मदत करते.

  • मॉलीब्लेडिनमच्या कमतरतेमुळे पिकाचा विकास योग्य प्रकारे होत नाही.

  • पानांच्या कडांवर पिवळे पडणे, नवीन पाने सुकणे.सर्वसाधारणपणे मॉलिब्लाडीनमच्या कमतरतेची लक्षणे नायट्रोजनच्या कमतरतेसारखीच असतात.

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सावधान, नरवाई जाळणे घातक आहे?

Burning crop residue is dangerous
  • शेतकरी बंधूंनो, नरवाई जाळून जमिनीत असलेले सूक्ष्म जीव व गांडुळे जाळून नष्ट होतात त्यामुळे शेताची सुपीकता आणि जमिनीची भौतिक स्थिती आणि रासायनिक अभिक्रियांवर विपरीत परिणाम होतो. जमीन कणखर बनते, त्यामुळे जमिनीची पाणी धरून ठेवण्याची क्षमताही कमी होते.

  • नरवाई जाळणे घातक आहे हे टाळण्यासाठी शेतकरी बांधव खालील कृषी यंत्रांचा वापर करू शकतात. 

  • कम्बाईन हार्वेस्टरसह स्ट्रा रीपरचा वापर करा यामुळे कापणी तसेच पेंढा गोळा करण्यात मदत होते.

  • रीपर कम बाइंडरसह पिकाचे अवशेष मुळापासून काढून टाकते.

  • सुपर सीडर आणि हैप्पी सीडर या यंत्राने काढणी केल्यानंतर ओलावा असल्यास पेरणीही करता येते.

  • पेरणी रोपांच्या टप्प्यावर शून्य मशागत बियाणे सह खत ड्रिलने देखील करता येते.

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जैविक कीटनाशक मेटाराइजियम एनिसोप्ली के उपयोग से मिलेंगे कई फायदा

Uses of the biological insecticide Metarhizium anisopliae

मेटाराइजियम एनिसोप्ली एक फफूंद पर आधारित जैविक कीटनाशक है। यह मिट्टी में स्वतंत्र रूप से पाया जाता है एवं सामान्यतयः कीटों में परजीवी के रूप में पाया जाता है।

जब मेटाराइजियम एनीसोप्ली के बीजाणु लक्ष्य कीट के संपर्क में आते हैं, तो उनके आवरण से चिपक जाते हैं एवं उचित तापमान और आर्द्रता होने पर बीजाणु अंकुरित हो जाते हैं। इनकी अंकुरण नलिका कीटों के श्वसन छिद्रों (स्पायरेक्लिस), संवेदी अंगों और अन्य कोमल भागों से कीटों के शरीर में प्रवेश कर जाती है।

यह कवक कीटों के संपूर्ण शरीर में कवक जाल बनाकर कीट के शारीरिक भोजन पदार्थों को अवशोषित करके खुद की वृद्धि कर लेता है। मेटाराइजियम एनीसोप्ली 50 प्रतिशत से कम नमी पर भी बीजाणु उत्पन्न कर लेते हैं। इसके कारण यह सभी परिस्थितियों में काम करता है।

मेटाराइजियम एनीसोप्ली का प्रयोग सफेद लट (बीटल), ग्रब्स, दीमक, सुन्डियों, सेमीलूपर, कटवर्म, मिलीबग और माहू आदि के रोकथाम के लिए किया जाता है।

प्रयोग की विधि:

  • मिट्टी से प्रयोग के लिए मेटाराइजियम एनिसोप्ली की 1 किलो प्रति एकड़ के दर से लगभग 75 किलो गोबर की खाद में मिलाकर अंतिम जुताई के समय प्रयोग करना चाहिए।

  • खड़ी फसल में कीट के नियंत्रण के लिए 1 किलो प्रति एकड़ की दर से 400-500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। 

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टमाटर के फसल में फल फटने के कारण एवं बचाव के उपाय

Causes and diagnosis of fruit cracking in tomato crop

टमाटर की फसल में फलों का फटना एक भौतिक विकार होता है, और यह अक्सर परिपक्वता के समय दिखाई देता है। इस विकार में फल दो प्रकार से फटते हैं, एक लंबवत और दूसरा गोलाकार। 

टमाटर की फसल में फल का फटना मुख्यतः दो कारण से होता है, पहला कारण फसल में अनियमित सिंचाई करना जैसे जमीन ज्यादा समय तक सूखी है और अचानक से भारी सिंचाई कर दिया जाए और दूसरा कारण भूमि में बोरोन नामक तत्व की कमी होना है।

फल फटने की रोकथाम: इस समस्या के बचने के लिए फसल में समय समय पर संतुलित प्रमाण में सिंचाई करें, तथा बोरोन पोषक तत्व की पूर्ति के लिए रिच बोर (बोरोन 20%) @ 1-1.5 ग्राम प्रति लीटर पानी के दर से छिड़काव करें या रिच बोरामिन-सीए (अमीनो एसिड, बोरान, कैल्शियम) @ 2-3 मिली प्रति लीटर पानी के दर से छिड़काव करें। 

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तरबूज की फसल में माहू कीट के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of aphids in watermelon crop

यह कीट पत्तियों को एवं कोमल टहनियों को प्रभावित करते हैं, जिसके कारण पत्तियां मुड़कर मुरझाने लगती है। पौधों का विकास रुक जाता है साथ ही कीट से मधुरस उत्सर्जन के कारण पत्तियों पर काली फफूंद का विकास होता है।

नियंत्रण: इस कीट के नियंत्रण के लिए प्रकोप दिखाई देते ही नोवासेटा (एसिटामिप्रिड 20% एसपी) @ 30 ग्राम प्रति एकड़ या मीडिया (इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस एल) @ 40-50 मिली प्रति एकड़ + नोवामैक्स (जिबरेलिक ऍसिड 0.001%) @ 300 मिली के दर से 150-200 लीटर पानी में छिड़काव करें। 

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जानिए लौकी की फसल में छोटे फल गिरने के कारण एवं बचाव के उपाय

Know the reasons and prevention measure for small fruits dropping in gourd crop

लौकी की खेती करने वाले किसानों के सामने अक्सर लौकी की फसल छोटे फल पीले होने की एवं सूख कर गिरने की समस्या आती है, और इससे उपज में भारी नुकसान होता है। 

क्यों गिरते हैं लौकी के छोटे फल?

  • पौधों में फफूंद जनित रोग होने पर फल गिरने लगते हैं।

  • फसल में कीटों का प्रकोप होने पर भी यह समस्या हो सकती है।

  • फसल में अनियमित सिंचाई या सिंचाई की कमी होने पर भी लौकी के छोटे फल गिरने लगते हैं।

  • असंतुलित मात्रा में, उर्वरकों का प्रयोग होने के कारण से भी फल गिरते हैं।

  • परागण सही नहीं होने की वजह से भी छोटे फल गिरने लगते हैं।

छोटे फलों के गिरने के शुरूआती लक्षण:

शुरूआती अवस्था में छोटे फलों के साथ लगे फूल सूखने लगते हैं और धीरे-धीरे छोटे फल पीले एवं भूरे रंग के होने लगते हैं। बाद में फल पूरी तरह सूख कर गिरने लगते हैं।

रोकथाम:

  • समय-समय पर फसल का निरीक्षण करें।

  • खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।

  • आवश्यकता से अधिक सिंचाई एवं उर्वरकों का प्रयोग न करें।

  • यदि फफूंद जनित रोग या फल मक्खी एवं रस चूसक कीटों के लक्षण दिखाई दे तो नियंत्रण के लिए उचित छिड़काव करें।

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बैंगन की फसल में रस चूसक कीटों के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control measures of sucking pests in brinjal crop
  • रस चूसक कीट ‘मकड़ी’ बैंगन की फसल में पत्तों के नीचे जाल फ़ैलाते हैं और पत्तों का रस चूसते हैं। इससे पत्ते लाल रंग के दिखने लगते हैं। 

  • इससे बचाव के लिए तुस्क (मॅलॅथिऑन 50.00% ईसी) @ 600 मिली/एकड़ या मेओथ्रिन  (फेनप्रोपॅथ्रीन 30 % ईसी) @ 100 – 136 मिली प्रति एकड़ के दर से 150 -200 लीटर पानी में मिलकर छिड़काव करें। 

  • रस चूसक कीट जैसिड’ पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं, जिसके प्रभाव से पत्तियां पीली होकर कमजोर पड़ जाती हैं।  

  • सोलोमन (बीटा-सायफ्लुथ्रिन 08.49% + इमिडाक्लोप्रिड 19.81 % w/w ओडी) @ 70 -80 मिली प्रति एकड़ या टफगोर (डायमेथोएट 30% ईसी) @ 792 मिली प्रति एकड़ के दर के 150 – 200 लीटर पानी में छिड़काव करें।  

  • रस चूसक कीट सफ़ेद मक्खी’ पत्तियों से रस चूसती हैं, जिससे पत्तियां सिकुड़ जाती हैं। इसके अलावा यह कीट विषाणु जन्य रोगों को एक पौधे से दूसरे पौधों में फैलाने का काम भी करते हैं।

  • पेजर (डायफेंथियूरॉन 50% डब्लूपी) @ 240 ग्राम/एकड़ और अरेवा (थायोमिथाक्साम 25% डब्लूजी) @ 80 ग्राम प्रति एकड़ के दर से 150 – 200 लीटर पानी में छिड़काव करें। 

  • रस चूसक कीट माहू’ छोटे एवं हरे रंग के होते हैं, ये पत्तियों की निचली सतह पर रहते हैं और रस चूसते हैं  जिसके कारण पत्तिया पीली पड़ती है| 

  • सोलोमन (बीटा-सायफ्लुथ्रिन 08.49% + इमिडाक्लोप्रिड19.81% w/w ओडी) @ 70 -80 मिली प्रति एकड़ के दर से 150 से 200 लीटर पानी में मिलकर छिड़काव करें। 

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