प्याज़ की फसल में डाऊनी मिल्ड्यू रोग की पहचान एवं नियंत्रण
डाऊनी मिल्ड्यू रोग की पहचान: यह एक फफूंद जनित रोग है, इसके लक्षण सुबह के समय जब पत्तियों पर ओस रहती है तब आसानी से देखे जा सकते हैं। पत्तियों, बीज, डंठलों की सतह पर हल्के पीले धब्बे विकसित होते हैं, और जैसे हीं यह धब्बे बड़े होते हैं इसकी सतह पर धूसर बैंगनी रोएँदार फफूंद विकसित हो जाती है। संक्रमित पौधे बौने, विकृत और हल्के हरे रंग के हो सकते हैं, इस रोग में पौधे अक्सर मरते नहीं हैं, लेकिन कंद की गुणवत्ता खराब होती है।
नियंत्रण: अच्छे कंद विकास एवं डाऊनी मिल्ड्यू रोग के नियंत्रण के लिए गोडीवा सुपर (एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% + डाइफ़ेनोकोनाज़ोल 11.4% एससी) @ 200 मिली या वोकोविट (सल्फर 80% डब्ल्यूडीजी) @ 125 ग्राम, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
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कैसे उगाएं लहसुन के अच्छे कंद, जानें विशेषज्ञ द्वारा सुझाए गए उपाय
लहसुन की फसल किसानों के लिए आर्थिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण होती है। इसी कारण इन फसलों का फसल प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है। लहसुन की फसल में विभिन्न प्रकार के कवक जनित रोगों एवं कीटों का प्रकोप भी बहुत अधिक मात्रा में होता है। साथ ही लहसुन की फसल में कंद के निर्माण के समय भी पोषक तत्वों की बहुत आवश्यकता होती है, क्योंकि पोषक तत्वों की कमी के कारण लहसुन की फसल में कंद फटने एवं लहसुन की गाँठ छोटी रहने की समस्या पैदा हो जाती है।
अभी की अवस्था में लहसुन में अच्छे कंद एवं बेहतर कलियों के निर्माण के लिए पोषण प्रबंधन के तौर पर ग्रोमोर (कैल्शियम नाइट्रेट) @ 10 किलो और पोटाश @ 20 किलो/एकड़ की दर से भुरकाव करें। लहसुन की फसल में भुरकाव करते समय, एक बात का विशेष ध्यान रखें की उत्पाद का एक समान रूप से भुरकाव हो जिससे जड़ आसानी से इन्हे अवशोषित कर सके।
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तरबूज की फसल में गमी तना झुलसा के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय
तरबूज की फसल में गमी तना झुलसा रोग गंभीर पर्णीय रोगों में से एक है। इस रोग में तने एवं पत्तियों पर भूरे धब्बे हो जाते हैं और यह धब्बे पीले ऊतकों से घिरे होते हैं। साथ ही तने में यह घाव बढ़कर गलन की समस्या बढ़ा देती है और इससे चिपचिपे, भूरे रंग के द्रव का बहाव होता है। इस रोग में फल शायद ही कभी प्रभावित होते हैं, लेकिन पर्णसमूह के नुकसान से उपज और फलों की गुणवत्ता भी प्रभावित हो सकती है।
नियंत्रण: गमी तना झुलसा से बचने के लिए रोग रहित बीज का उपयोग करें साथ ही सभी कद्दू वर्गीय फसलों में 2 वर्ष के फसल चक्र अंतर रखें। साथ ही रोग के लक्षण दिखाई देने पर रासायनिक नियंत्रण के लिए संपर्क फफूंदनाशक जैसे जटायु (क्लोरोथॅलोनिल 75% डब्लूपी) @ 200 ग्राम प्रति एकड़ या एम 45 (मॅन्कोझेब 75% डब्लूपी)@ 600-800 ग्राम प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के दर से छिड़काव करें।
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वांगी पिकामध्ये कोळी व्यवस्थापन
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कोळीची लक्षणे :- हे किडे लहान आणि लाल रंगाचे असतात. जे पाने, फुलांच्या कळ्या आणि डहाळ्यांसारख्या पिकांच्या मऊ भागांवर मोठ्या प्रमाणात आढळतात.
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ज्या झाडांवर कोळ्याच्या जाळ्यांचा प्रादुर्भाव झालेला असतो त्या झाडावर दिसतात हे कीटक वनस्पतीच्या मऊ भागांचा रस शोषून त्यांना कमकुवत करतात आणि शेवटी वनस्पती मरतात.
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वांगी पिकावरील कोळी किडीच्या व्यवस्थापनासाठी खालील उत्पादने वापरली जातात.
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प्रोपरजाइट 57% ईसी 400 मिली स्पाइरोमैसीफेन 22.9% एससी 200 मिली ऐबामेक्टिन 1.8% ईसी 150 मिली/एकर या दराने फवारणी करा.
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जैविक उपचार म्हणून मेट्राजियम 1 किलो/एकर या दराने वापरले जाऊ शकते.
गेहूँ की फसल में फॉल आर्मी वर्म के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय!
मौसम में आए परिवर्तन के चलते गेहूँ की फसल पर इल्लियों का प्रकोप बढ़ गया है। हैरानी की बात तो यह है कि गेहूँ की फसल में पहले कभी भी यह इल्ली नहीं देखी गई थी। लेकिन पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी गेहूँ की फसल पर इल्ली का प्रकोप दिखाई दे रहा है। इस कीट का नाम फॉल आर्मी वर्म है। यह बहुभक्षी कीट है। यह मुख्य रूप से मक्का की फसल को नुकसान पहुंचाता है। लेकिन आज कल यह कीट गेहूँ की फसल को भी नुकसान पहुंचा रहा है। इसका प्रकोप बादलों वाले मौसम में अधिक बढ़ता है। साथ ही ऐसे वक़्त में यह फसलों को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। ज्यादा ठंड पड़ने पर कीट प्रकोप कम हो जाता है।
कीट की पहचान: नव निषेचित इल्ली सामान्य रूप हल्के पीले हरे रंग की होती है जिसका सिर काला होता है। द्वितीय अवस्था के पश्चात सिर का रंग लाल भूरा हो जाता है। इस लाल रंग के सिर पर उल्टे वाई आकार की काली संरचना इस कीट की प्रमुख पहचान है। वयस्क इल्ली तम्बाकू की इल्ली से काफी समानता लिए हुए धब्बेदार धूसर से गहरे-भूरे रंग की होती है। मादा कीट अंडों को धूसर रंग की पपड़ी से ढक देती है जो सामान्यतः: फफूंद होने का आभास देती है।
नियंत्रण के उपाय: इस कीट के नियंत्रण के लिए, इमानोवा (इमामेक्टिन बेंजोएट 5 % एसजी) @ 80 ग्राम + बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना 5% डब्ल्यूपी) 250 ग्राम + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 50 मिली, प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
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भिंडी की फसल में 15 दिन की अवस्था में पोषक तत्व प्रबंधन!
भिंडी की फसल में बुवाई के 15 से 20 दिन की अवस्था में, यूरिया @ 50 किग्रा + कोसावेट (सल्फर 90% डब्ल्यूजी) @ 5 किग्रा + जिंक सल्फेट @ 5 किग्रा + कैल्बोर 5 किग्रा, को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र के हिसाब से भुरकाव करें एवं हल्की सिंचाई करें।
उपयोग के फायदे
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यूरिया: फसल में यूरिया नाइट्रोज़न की पूर्ति का सबसे बड़ा स्रोत है। इसके उपयोग से, पत्तियों में पीलापन एवं सूखने की समस्या नहीं आती है। यूरिया प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को भी तेज़ करता है।
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ज़िंक: जिंक भिंडी के पौधों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और क्लोरोफिल निर्माण में मदद करता है। जो चयापचय प्रतिक्रियाओं को चलाने के लिए जिम्मेदार होता है। इससे उत्पादन के साथ-साथ फसल की गुणवत्ता में भी वृद्धि होती है। जिंक के अलावा, इससे फसलों को सल्फर की उपलब्धता भी होती है एवं सल्फ़र फल निर्माण में भी सहायक होता है। साथ ही सल्फर प्रोटीन निर्माण में भी मदद करता है।
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कैलबोर: कैलबोर में कैल्शियम + बोरोन होते हैं जो पोषण, विकास, प्रकाश संश्लेषण, शर्करा के परिवहन और कोशिका भित्ति निर्माण के लिए आवश्यक होते हैं।
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तरबूज़ की फसल में पोषक तत्व प्रबंधन!
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तरबूज़ की फसल में बुवाई के बाद, 40 दिन तक वानस्पतिक अवस्था चलती है, इसके बाद फूल आना शुरू हो जाता है।
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जब फसल 25 से 30 दिन की हो रही हो, तब इस अवस्था में 10:26:26 @ 75 किग्रा + पोटाश @ 25 किग्रा + बोरान 800 ग्राम + कैल्शियम नाइट्रेट @10 किग्रा, को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र के हिसाब से भुरकाव करें एवं हल्की सिंचाई करें।
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जंहा पर फसल 45 से 50 दिन की हो रही है, 19:19:19 @ 50 किग्रा या 20:20:20 @ 50 किग्रा + एमओपी @ 50 किग्रा, इन सभी को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र के हिसाब से भुरकाव करें एवं हल्की सिंचाई करें।
ड्रिप के लिए पोषक तत्व प्रबंधन
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जंहा पर फसल की अवधि 11 से 25 दिन की अवस्था की हो रही है वहां अभी – 19:19:19 @ 3 किग्रा + यूरिया @ 1 किग्रा + 00:52:34 @ 1 किग्रा + 13:00:45, @ 2 किग्रा + मैग्नीशियम सल्फेट @ 350 ग्राम प्रति दिन, प्रति 15 दिन तक ड्रिप के माध्यम से चलाएं।
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वहीं जंहा पर फसल की अवधि, 26 से 75 दिन की हो रही है, वहां 19:19:19 @ 1 किग्रा + 00:52:34 @ 500 ग्राम + 00:00:50 @ 1 किग्रा + 13:00:45, @ 1 किग्रा प्रति दिन, प्रति 50 दिन तक ड्रिप के माध्यम से चलाएं।
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रबी धान की नर्सरी में पीलापन नियंत्रण एवं तेज बढ़वार हेतु आवश्यक छिड़काव
किसान गर्मी के धान की नर्सरी के लिए बीजों की बुआई काफी जगहों पर कर चुके हैं। परंतु मौसम के बदलाव की वजह से फसलों पर विपरीत प्रभाव हो रहा है, जिस कारण से धान की नर्सरी पीली पड़ रही है एवं पौधों की वानस्पतिक विकास भी सही से नहीं हो पा रही है। ऐसे स्थिति में आइये जानते है की नर्सरी को कैसे बचाएं।
बचाव के उपाय
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नर्सरी में शाम के समय सिंचाई जरूर करें।
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हो सके तो नर्सरी के चारों ओर शाम के समय धुआँ कर दें।
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पाला पड़ने की सम्भावना होने पर, मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 1.0% डब्ल्यूपी) @ 500 ग्राम + नोवामैक्स (जिब्रेलिक एसिड 0.001 % एल) @ 300 मिली, प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
या
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वोकोविट (सल्फर 80% डब्ल्यूडीजी) @ 35 ग्राम + नोवामैक्स (जिब्रेलिक एसिड 0.001% एल) @ 30 मिली, प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से फसलों के ऊपर छिडक़ाव करें। इससे दो से ढाई डिग्री सेंटीग्रेड तक तापमान बढ सकता है।
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प्याज की फसल में बैंगनी धब्बा रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय!
क्षति के लक्षण: इस रोग के प्रकोप से पत्तियों के ऊपरी भाग पर अनियमित हरिमाहीन क्षेत्र के साथ छोटे-छोटे सफेद बिंदु होते है। हरिमाहीन क्षेत्र में गोलाकार से आयताकार गाढ़े काले मखमली छल्ले या बैंगनी धब्बे दिखाई देते हैं। पत्तियों के आधार की ओर घाव विकसित होते हैं। संक्रमित पत्तियां नीचे की ओर लटक जाती हैं और मर जाती हैं। इस रोग से, संक्रमित पौधे के कंद भी संक्रमित हो जाते हैं।
नियंत्रण के उपाय: इस रोग के नियंत्रण के लिए, नोवाक्रस्ट (एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एससी) @ 300 मिली या स्कोर (डाइफेनोकोनाजोल 25% ईसी) @ 200 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 50 मिली + नोवामैक्स (जिब्रेलिक एसिड 0.001% एल) @ 300 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
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