धान की फसल में कीचड़ मचाने से मिलते हैं कई फायदे

There are many benefits of Puddling in paddy crop

धान की फसल में कीचड़ मचाने की प्रक्रिया में पानी की मदद से खेत की मिट्टी को मथा जाता है। यह धान के खेतों में देशी हल से प्रारंभिक जुताई के बाद 5-10 सेंटीमीटर गहरे पानी के साथ किया जाता है। इससे खेत की मिट्टी से बने ढेले टूटते हैं और मिट्टी को पूरी तरह से मथ दिया जाता है।

क्या कीचड़ मचाने का उद्देश्य?

धान की खेती में कीचड़ मचाने से होने वाले फायदों में खरपतवार नियंत्रण, पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि और आसान रोपाई शामिल हैं। चावल में खरपतवार नियंत्रण और जल संरक्षण इसके सबसे महत्वपूर्ण लाभ हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से खरपतवारों को नरम मिट्टी में दबा दिया जाता है। साथ हीं यह रिसने से होने वाली पानी की हानि काफी हद तक कम हो जाती है।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें। 

Share

सोयाबीन में उगने से पहले ही कर लें खरपतवारों का नियंत्रण

Pre-emergence weed control in soybean crop

सोयाबीन की फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए खरपतवारों का नियंत्रण अत्यंत आवश्यक होता है। सोयाबीन को नुकसान पहुंचाने वाले कुछ मुख्य कारक जैसे- खरपतवार, कीट एवं रोगों में से सबसे अधिक हानि खरपतवारों के प्रकोप से होती है। खरपतवारों के प्रकोप से सोयाबीन की फसल में 20 से 50% तक नुकसान हो जाता है। सोयाबीन में खरपतवार से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए सोयाबीन की फसल को बुवाई के 45 से 50 दिन तक खरपतवारों से मुक्त रखना चाहिए।

सोयाबीन की फसल में निराई-गुड़ाई का कार्य समय-समय पर जरूर करें, पहली निराई-गुड़ाई 20-25 दिन पर तथा दूसरी 40-45 दिन की फसल होने पर करें। रासायनिक नियंत्रण के लिए, बुवाई के 72 घंटे के भीतर पेन्ज़ोला 32 (पेंडीमिथालिन 30% + इमाज़ेथापायर 2%) 1 लीटर/एकड़ 200 लीटर  मिला कर छिड़काव करें। 

नोट – बेहतर परिणाम के लिए, खरपतवारनाशक दवा का प्रयोग करते समय मिट्टी में नमी होना बेहद जरूरी है और फ्लैट फैन नोज़ल का उपयोग करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें। 

Share

मक्का की फसल को खरपतवारों के प्रकोप से बचाएं, ऐसे करें नियंत्रण

Save maize crop from the outbreak of weeds

मक्का की फसल में उगने वाले खरपतवारों के प्रकोप से फसल में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। अधिक खरपतवार उगाने के कारण मक्का के पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में बाधा पहुंचती है। इसके कारण पौधों की अच्छी वृद्धि नहीं हो पाती है। अधिक खरपतवार होने से कीट व रोग का प्रकोप होने लगता है। जहां तक संभव हो, निराई-गुड़ाई से खरपतवारों की रोकथाम करें, इससे खरपतवार तो कम होंगे, साथ ही साथ पौधों का विकास भी अच्छी तरह से होगा।

रासायनिक नियंत्रण लिए, बुवाई के तुरंत बाद धानुजीन (एट्राजिन 50% WP) 300-400 ग्राम/एकड़ या (बुवाई के 20 से 30 दिन बाद) लाउडिस (टेंबोट्रीयोन 42% SC) 115 मिली/एकड़ को 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें। 

Share

सोयाबीन में FIR का तिहरा बीज उपचार फसल को हर समस्या से बचाएगा

Benefits of seed treatment with fungicide, insecticide and rhizobium in soybean

सोयाबीन की फसल में बीज उपचार करने से बीज जनित तथा मिट्टी जनित बीमारियों का आसानी से नियंत्रण कर फसल के अंकुरण को भी बढ़ाया जा सकता है। बीज उपचार आमतौर पर 3 प्रकार से किया जाता है, जिसे हम ‘फकीरा’ (FIR) पद्धति कहते है। फकीरा पद्धति में हम बारी बारी से फफूंदनाशक, कीटनाशक और राइज़ोबियम से बीज उपचार करते हैं।

  • फफूंदनाशक से बीज़ उपचार करने से सोयाबीन की फसल उकठा व जड़ सड़न रोग से सुरक्षित रहती है। 

  • कीटनाशक से बीज़ उपचार करने से मिट्टी के कीटों जैसे सफ़ेद ग्रब, चींटी, दीमक आदि से सोयाबीन की फसल की रक्षा होती है। बीज का अंकुरण सही ढंग से होता है अंकुरण प्रतिशत बढ़ता है। 

  • राइज़ोबियम से बीज़ उपचार सोयाबीन की फसल की जड़ों में गाठो (नॉड्यूलेशन) को बढ़ाता है एवं अधिक नाइट्रोज़न का स्थिरीकरण करता है। 

सोयाबीन बीज उपचार की  FIR विधि :- 

  • सबसे पहले क्षेत्र के अनुसार आवश्यक बीज की मात्रा तिरपाल/प्लास्टिक शीट पर फैला दें। 

  • इसके बाद  बीज के ऊपर हल्की पानी की फुहार दें और इसके बाद, फफूंदनाशक के रूप में करमानोवा (कार्बेनडाज़िम 12% + मैनकोज़ेब 63% WP) 2.5 ग्राम/किलोग्राम बीज के हिसाब से बीज को उपचारित करें और 10 मिनट के लिए छायादार स्थान पर सुखाएं। 

  • फफूंदनाशक से उपचारित करने के बाद, कीटनाशक के रूप में थियानोवा सुपर (थियामेथोक्सम 25% WG) 5 मिली/किलोग्राम बीज के हिसाब से बीज को उपचारित करें।  

  • और अंत में, जैव वाटिका (राइजोबियम कल्चर) 5 ग्राम/किलोग्राम बीज के  हिसाब से बीज को उपचारित करने के उपरांत, बीज की बुआई खेत में करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।

Share

सोयाबीन की बुवाई के लिए ऐसे करें खेत को तैयार की मिले बंपर पैदावार

How to prepare the field for soybean sowing

सोयाबीन की फसल के लिए खेत की तैयारी गहरी जुताई से शुरू करनी चाहिए। इसके बाद 2-3 जुताई हैरो या मिट्टी पलटने वाले हल की सहायता से करें और मिट्टी को भुरभुरी बना लें, ताकि मिट्टी की जलधारण क्षमता बढ़ जाए और बीज अंकुरण भी अच्छे से हो सकें।

मई-जून के महीनों में सूरज की रोशनी ज़मीन पर सीधे पड़ती है और उच्च तापमान बहुत ज्यादा होता है। ऐसे में खेत की गहरी जुताई करने से मिट्टी में मौजूद खरपतवार, उनके बीज, हानिकारक कीट, उनके अंडे और प्युपा समाप्त हो जाते हैं। इसके साथ साथ मिट्टी में उपस्थित फफूंद जनित रोग के जनक भी खत्म हो जाते हैं।

खेत की तैयारी के वक़्त सोयाबीन समृद्धि किट के उन्नत उत्पादों का उपयोग बेहद फायदेमंद साबित होता है। ग्रामोफोन द्वारा तैयार की गई “सोया समृद्धि किट” की कुल मात्रा 8 किलो होती है जिसे प्रति एकड़ के हिसाब से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में मिला कर बीजों की बुवाई से पहले खेत में एक सामान रूप से बिखेर दें। इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल बना लें। इस बात का ध्यान रखें की किट का उपयोग करते समय मिट्टी में पर्याप्त नमी जरूर हो।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

कपास की फसल में सूत्रकृमि पहुंचाएगा नुकसान, जानें प्रबंधन के सही उपाय

Symptoms and Management of Root Knot in Cotton

पौधों के जड़ों पर गांठें बनना सूत्रकृमि के प्रकोप के मुख्य लक्षण हैं। इसके कारण रोग ग्रस्त पौधे की जड़ों पर छोटी-छोटी गांठें बन जाती हैं, जिसकी वजह से पौधे में पोषक तत्व व जल सुचारु रूप से नहीं पहुंच पाते। इससे पौधे का विकास रुक जाता है और पत्तियां पीली पड़ जाती हैं। फलस्वरूप पौधा सूख जाता है और पैदावार कम हो जाती है।

नियंत्रण के उपाय:

  • गर्मियों में खेत की हल्की सिंचाई के बाद 2-3 गहरी जुताई 10-12 दिन के अंतर पर करें। इससे सूत्रकृमि ऊपरी सतह पर आकर अधिक तापमान से नष्ट हो जाते हैं। 

  • इसके नियंत्रण के लिए, निमेटो फ्री प्लस (वर्टिसिलियम क्लैमाइडोस्पोरियम) 2-4 किलो/एकड़ में खेत की तैयारी व बुवाई के समय उपयोग करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

कपास में बढ़ रहा है जड़ गलन की रोग का प्रकोप, जानें नियंत्रण के उपाय

Measures to prevent Root rot disease in cotton

जड़ गलन रोग कपास की फसल में लगने वाले कुछ घातक रोगों में से एक है। इस रोग से प्रभावित पौधे अचानक सूखने लगते हैं। इसके कारण पत्तों का रंग पीला पड़ जाता है। प्रभावित पौधों को आसानी से उखाड़ा जा सकता है। पौधों की जड़ें सड़ने लगती हैं, एवं भूरे और काले रंग की हो जाती हैं। 

रोकथाम: सबसे पहले तो रोग से प्रभावित पौधों को नष्ट कर दें। इस रोग से फसल को बचाने के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिए, जड़ गलन रोग के प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए। बुवाई से पूर्व बीजोपचार करना भी इससे बचाव के लिए अति आवश्यक होता है। इसके अंतर्गत जैविक नियंत्रण के लिए, कॉम्बैट (ट्राइकोडर्मा विरडी) 8 ग्राम/किलो बीज या विटावैक्स पावर  (कार्बोक्सिन 37.5% + थिरम 37.5% WS) 3 ग्राम/किलो सीड से उपचारित करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

जिंक घुलनशील बैक्टीरिया खेती के लिए है वरदान, फसलों को मिलते हैं कई लाभ

Importance of zinc solubilizing bacteria in the soil
  • जिंक एक अनिवार्य सुक्ष्म पोषक तत्व है जो पौधों के विकास के लिए बेहद आवश्यक हैं। परन्तु यह मिट्टी में अनुपलब्ध रूप में रहता हैं जिसे पौधे आसानी से उपयोग नहीं कर पाते। धान में ‘खैरा रोग’ के नियंत्रण के लिए यह सूक्ष्म तत्व बेहद सहायक होता है।

  • जिंक घुलनशील बैक्टीरिया को मिट्टी में मिलाने से अनेक फायदे मिलते हैं। इससे उर्वरक उपयोग दक्षता में सुधार होता है साथ हीं फसल की उपज अच्छी होती है, फसल की गुणवत्ता भी बेहतर होती है। यह मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार और हार्मोन की सक्रियता को बढ़ाने का भी कार्य करता है।

  • जिंक घुलनशील बैक्टीरिया मिट्टी में कार्बनिक अम्ल उत्पन्न करते हैं, जिससे अनुपलब्ध अवस्था में पड़े जिंक के तत्व को पौधों के लिए उपलब्ध रूप में बदल जाते हैं, इसके अलावा ये मिट्टी के pH का संतुलन बनाए रखते हैं।

  • अंतिम जुताई या बुवाई के समय, “जिंक घुलनशील बैक्टीरिया” को 2-4 किलो अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से भुरकाव करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

धान की नर्सरी में पीलापन बढ़ने पर हो जाएँ सावधान, जल्द अपनाएँ उचित नियंत्रण उपाय

The problem and solution of yellowing in paddy nursery

आमतौर पर धान की नर्सरी में पीलापन बढ़ने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे-पानी की कमी, अधिक तापमान, पोषक तत्वों की कमी और कीट एवं रोगों का प्रकोप आदि। इन सभी कारणों से धान की नर्सरी में पीलेपन की समस्या देखने को मिलती है। बेहतर फसल विकास के लिए, पानी में घुलनशील उर्वरक एनपीके 19:19:19 @ 75 ग्राम प्रति पम्प की दर से छिड़काव करें या तलवार जिंक सुपर-14 (चेलेटेड जिंक 12%) 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।

सूक्ष्म पोषक तत्वों की पूर्ति हेतु, (ट्राई-डिजॉल्व पैडी मैक्स) को 20 ग्राम प्रति पम्प और रस चूसक कीट एवं फफूंद जनित रोगों के लिए, थियानोवा-25 (थियामेथोक्सम 25% डब्लू जी) 10 ग्राम/पंप और करमानोवा (कार्बेनडाज़िम 12% + मैनकोज़ेब 63% WP) 25 ग्राम/पंप में मिला कर छिड़काव करें। 

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

धान की फसल में खैरा रोग की पहचान एवं निवारण के उपाय

Identification and prevention of Khaira disease in paddy

खैरा रोग धान की फसल में लगने वाला एक प्रमुख रोग है। इस रोग में पत्तियों पर हल्के पीले रंग के धब्बे बनते हैं जो बाद में कत्थई रंग के हो जाते हैं। रोग की तीव्र अवस्था में रोग से ग्रसित पत्तियां सूखने लगती हैं। इसकी वजह से फसल में कल्ले भी कम निकलते हैं और पौधों की वृद्धि रुक जाती है। यह रोग मिट्टी में जस्ते (जिंक) की कमी के कारण होता है।

इसकी रोकथाम के लिए, ग्रोमोर (जिंक सल्फेट) 5 किग्रा प्रति एकड़ की दर से समान रूप से भुरकाव करें, या तलवार जिंक सुपर-14 (चिलेटेड जिंक 12%) को 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share