मूंग की फसल में खरपतवारों का बढ़ेगा प्रकोप, जानें बचाव के उपाय

Weed Management in Moong Crop

मूंग की फसल में खरपतवार नियंत्रण सही समय पर नही करने से फसल की उपज में 40-60 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है। फसल की शुरूआती अवस्था में बुआई के 15 से 45 दिन के मध्य फ़सलों को खरपतवारों से मुक्त रखना जरूरी है। सामान्यत: दो निराई-गुड़ाई, पहली 15-20 दिन के भीतर व दूसरी 30-35 दिनों के भीतर करनी चाहिए ताकि खरपतवारों का नियंत्रण हो सके। 

खरपतवार के रासायनिक प्रबंधन के लिए दोस्त सुपर (पेंडीमेथालिन 38.7%.सीएस) 700 मिली प्रति एकड़ के दर से बुआई के 72 घंटों के भीतर 150-200 लीटर साफ पानी में मिलाकर छिड़काव  करें। 

मूंग की खड़ी फसल में जंगली चौलाई, दूधी, जैसे खरपतवार जब 2-3 पत्ती अवस्था में होते है, तब वीडब्लॉक (इमाज़ेथापायर 10% एस एल+ सर्फेक्टेंट)@ 300 मिली प्रति एकड़  के दर से बुआई के 10-15 दिन बाद छिड़काव करें। 

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लहसुन की फसल को भंडारण के समय ब्लैक मोल्ड से कैसे बचाएं?

Know how to protect garlic crop from black mold during storage

लहसुन की फसल कटाई के बाद भंडारण के समय ब्लैक मोल्ड रोग का खतरा बढ़ जाता है। जहां भी प्याज और लहसुन का भंडारण किया जाता है वहा ये रोग लगना सामान्य होता है। 

लक्षण: लहसुन के पकने की अवस्था में ब्लैक मोल्ड आमतौर पर देखा जाता है। इस रोग के लक्षण लहसुन की कलियों के बीच और गांठों पर काले पाउडर के रूप में दिखाई देते हैं। इससे बाजार में लहसुन की कीमत कम होने लगती है, साथ ही प्रभवित गांठों का भंडारण ज्यादा समय तक नहीं रख जा सकता है। 

रोकथाम के उपाय:

  • लहसुन के भंडारण से पहले कंदों को अच्छी तरह सूखाकर साफ करें।

  • भंडारण में अच्छी तरह से पके, ठोस और स्वस्थ कंदों को ही रखें। 

  • भंडारण की जगह को नमी रहित और हवादार होना जरूरी होता है। 

  • भंडारण करने वाली जगह में कंदों का ढेर नहीं लगाना चाहिए।

  • कंदों को पत्तियों से गुच्छों में बांध कर रस्सियों पर लटका दें या फिर बांस की टोकरियों में भरकर रखें।

  • समय-समय पर सड़े-गले कंदों को निकालते रहना चाहिए।

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फसल की कटाई के बाद ऐसे करें फसल अवशेष का प्रबंधन

How to manage crop residue after harvest

फसलों की कटाई के बाद खेत में बचे फसल अवशेषों को जलाने की जगह रोटावेटर की सहायता से जुताई करें और एक पानी लगाए। इससे फसल अवशेष मिट्टी में मिल जाते हैं। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति बढऩे के साथ ही अनेक लाभ मिलते है। 

फसल अवशेषों को खेत में मिला देने से होने वाले लाभ

  • किसान फसल अवशेषों को रोटावेटर की सहायता से खेत में मिला कर जैविक खेती का लाभ ले सकते हैं।

  • फसल अवशेषों को खेत में ही मिला देने से जैव विविधता बनी रहती है। जमीन में मौजूद मित्र कीट शत्रु  कीटों को खा कर नष्ट कर देते हैं।

  • इससे जमीन में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है, फलस्वरूप फसल उत्पादन ज्यादा होता है।

  • दलहनी फसलों के अवशेषों को जमीन में मिलाने से मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे अगली फसल का भी उत्पादन भी बढ़ता है।

  • किसानों द्वारा फसल अवशेष जलाने के बजाय भूसा बना कर रखने पर जहां एक ओर उनके पशुओं के लिए चारा मौजूद होगा, वहीं अतिरिक्त भूसे को बेच कर वे आमदनी भी बढ़ा सकते हैं।

फसल अवशेषों का कैसे करें प्रबंधन

  • फसल अवशेषों को पशु चारा अथवा औद्योगिक प्रबंधन के लिए एकत्रित किया जा सकता है।

  • धान की पराली को यूरिया/कैल्शियम हाइड्रोक्सॉइड से उपचार करके इसका उपयोग पशु चारे के लिए किया जा सकता है।

  • खेत में स्ट्रा बेलन मशीन की मदद से फसल अवशेषों के ब्लॉक बनाकर कम जगह में भंडारित करके, पशु चारा के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

  • गेहूँ के फनो पर रीपर मशीन को चलाकर भूसा बनाया जा सकता है।

  • फसल अवशेषों का उपयोग मशरूम की खेती करने में भी मदतगार होता है। 

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नींबू वर्गीय फसलों के प्रमुख कीट व नियंत्रण के उपाय

Symptoms of major pests in citrus crop

साइट्रस सिल्ला: इस कीट के वयस्क और निम्फ दोनों ही अवस्था कलियों, पत्तियों, शाखाओं के कोमल भागों से रस चूसते हैं और उनमें विषैला पदार्थ को इंजेक्ट करते हैं। निम्फ सफ़ेद क्रिस्टलीय पदार्थ उत्सर्जित करते हैं, जिस पर काला धब्बेदार सांचा विकसित हो सकता है, जो पौधों के प्रकाश संश्लेषक क्षेत्र को कम करता है। अधिक संक्रमण में पत्तियां विकृत हो जाती हैं और ऊपर की ओर सिकुड़ जाती हैं। साथ ही यह कीट साइट्रस ग्रीनिंग रोग फ़ैलाने के लिए वेक्टर बनता है। 

प्रबंधन: इसके नियंत्रण के लिए संक्रमण दिखाई देते ही, थियानोवा 25 (थायोमिथाक्साम 25% डब्लू जी) @ 40 ग्राम प्रति एकड़ या मिडिया ( इमिडाक्लोप्रिड 17.80% एस एल) 20 मिली प्रति एकड़ के दर से छिड़काव करें।

साइट्रस लीफ माइनर: यह कीट नर्सरी और बगीचा दोनों में नुकसान पहुंचाता है। इसकी इल्लियां कोमल पत्तियों पर हमला करती हैं और पत्तियों पर सर्पीली रेखाएं बनाकर पत्तियों को खाती हैं। प्रभावित पत्तियां हलके पीले रंग की हो जाती हैं और विकृत होकर नीचे गिर जाती हैं। इस कीट के संक्रमण से साइट्रस कैंकर रोग के विकास को बढ़ावा मिलता है। 

प्रबंधन: इस कीट के नियंत्रण के लिए, पौधों की सभी प्रभावित भागों की छटाई की जानी चाहिए। संक्रमण बढ़ने पर मिडिया ( इमिडाक्लोप्रिड  17.80% एस एल) 20 मिली या प्रोफेनोवा सुपर (प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% इसी) 2 मिली प्रति लीटर पानी के दर से छिड़काव करें।  

माहु: इस कीट के निम्फ और वयस्क स्वरूप कोमल पत्तियों एवं शखाओं से रस चूसते हैं। प्रभावित पत्ते पीले, रूखे और विकृत होकर सूख जाते हैं। पौधों की वृद्धि रुक जाती है और इसके मावा द्वारा उत्सर्जित हनीड्यू पर सूटी मोल्ड का उत्पादन हो जाता है। यदि संक्रमण फूल अवस्था के दौरान होता है, तो इसके परिणाम से फल कम बनते हैं।  

प्रबंधन: इसके नियंत्रण के लिए प्रकोप दिखाई देते ही, टफगोर (डायमेथोएट 30% इसी) @ 594 मिली प्रति एकड़ या मिडिया ( इमिडाक्लोप्रिड 17.80 % एस एल) @ 20 मिली प्रति एकड़ के दर से छिड़काव करें। 

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ऐसे तैयार करें कई पोषक तत्वों से भरपूर संपूर्ण पशु आहार साइलेज

Know the method of making silage for animals

साइलेज बनाने के लिए गड्ढा बनाएं जो 6 फुट गहरा तथा 5 फुट चौड़ा हो। गौरतलब है की एक साइलेज का गड्ढा जिसकी लम्बाई 10 फुट, चौड़ाई 5 फुट एवं गहराई 6 फुट हो, उसमें करीब 45 क्विंटल हरा चारा तैयार किया जा सकता है। ध्यान रखें की यह गड्ढा जहां बनाएं वह जगह ऊंची तथा ढालू हो जिससे की बारिश का पानी उसके अंदर न जा पाए। गड्ढे की दिवारें बिल्कुल सीधी, समतल व इसके कोने गोल होने चाहिए। कच्चे गड्ढे की दीवारें तथा फर्श को चारा भरने से पहले अच्छी तरह से मिट्टी से लिपाई कर देनी चाहिए जिससे उसमें हवा अंदर जाने के लिए रास्ता न रहे। हवा अंदर जाने पर साइलेज में फफूंद लग सकती है। हरा चारा भरने से पहले गड्ढे में भूसा, फूस या पुआल बिछा दें। दीवार व चारे के बीच में भी भूसा या पुआल डालें जिससे चारे व दीवार सीधे संपर्क में न रहे। गड्ढे में चारा थोड़ा-थोड़ा भरकर उसे पैरों से दबा-दबा कर भरें जिससे चारे के बीच हवा न रह पाए। गड्ढे को जमीन से 2-3 फुट ऊंचा बनाएं। गड्ढे के मुंह को बंद करने के लिए प्लास्टिक की चादर से ढककर उसके किनारों को अच्छी तरह से मिट्टी से दबा दें ताकि हवा चादर के अंदर न घुस सके। साइलेज तकरीबन दो महीने में तैयार हो जाता है।

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लहसुन की खुदाई के समय नहीं बरती सावधानी तो होगा नुकसान

Precautions to be taken while digging in garlic crop

लहसून की फसल 130 से 180 दिन में पूरी तरह पक कर तैयार हो जाती है। पूरी तरह तैयार होने पर फसल की पत्तियां पीली होने लगती है और सूख कर गिरने लगती है। साथ ही कंद के आस-पास पौधों की पकड़ कमजोर पड़ने से भी फसल के पकने का अनुमान लगाया जा सकता है। 

लहसुन की खुदाई के समय रखें इन बातों का ध्यान

  • फसल परिपक्व होने की अवस्था में सिंचाई पूरी तरह से रोक देनी चाहिए और कुछ दिनों बाद फसल की खुदाई शुरू कर देनी चाहिए।

  • लहसुन की मिट्टी पर पकड़ कमजोर होने पर हाथ से या कुदाल के प्रयोग से भी इसकी खुदाई की जा सकती है।

  • कुदाल से खुदाई करते समय कुदाल के नोक को जड़ पर न लगने दें।

  • खुदाई के बाद खेत में ही पत्तियों सहित लहसुन के पौधों को सूखने दें।

  • लहसुन में उपस्थित नमी को देखते हुए हीं इसे धूप में रखें। अधिक नमी या अधिक धूप फसल को खराब कर सकती है।

  • अधिक समय तक भंडारण के लिए लहसुन को 2 से 3 सेंटीमीटर डंठल सहित काटें।

  • पर्याप्त भंडारण व्यवस्था उपलब्ध होने पर लहसुन को पत्तियों सहित बंडल बना कर रखें।

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मूंग की फसल में ऐसे करें तिहरा बीज उपचार और पाएं तेज शुरुआती बढ़वार

Method of seed treatment in moong crop

मूंग की फसल में बीज उपचार करने से बीज जनित तथा मिट्टी जनित बीमारियों का आसानी से नियंत्रण कर फसल के अंकुरण को भी बढ़ाया जा सकता है। बीज उपचार आमतौर पर 3 प्रकार से किया जाता है, जिसे हम ‘फकीरा’ (FIR) पद्धति कहते है। फकीरा पद्धति में हम बारी बारी से फफूंदनाशक, कीटनाशक और राइज़ोबियम से बीज उपचार करते हैं। 

फफूंदनाशक: इस बीज उपचार पद्धति में सबसे पहला फफूंदनाशक का प्रयोग करते हैं। इसका उपयोग जमीन में या बीज अंकुरण के समय लगने वाले फफूंद जानित रोग के रोकथाम के लिए करते हैं। फफूंदनाशक से बीज उपचार के लिए करमानोवा (कार्बेन्डाझिम 12% + मैंकोज़ेब 63% डब्लू पी) @ 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज के दर से उपयोग करें।

कीटनाशक: इसका प्रयोग फफूंदनाशक के बाद करना चाहिए। कीटनाशक से बीज उपचार करने से जमीन के अंदर पाए जाने वाले कीट अथवा फसल के शुरूआती अवस्था में लगने वाले रस चूसक कीट जैसे माहू या सफ़ेद मक्खी के रोकथाम में मदद मिलती है। कीटनाशक से बीज उपचार करने के लिए थियानोवा सुपर (थायोमिथाक्साम 30% एफएस) @ 4-5 मिली प्रति किलो बीज के दर से उपयोग करें।

 राइज़ोबियम: इसका प्रयोग कीटनाशक के बाद करना चाहिए। राइज़ोबियम एक जीवाणु है, जो मूंग के पौधों की जड़ों में सहजीवी के रूप में रहता है, और पौधों की जड़ों में गठानें बनाता है, जिससे वायुमंडलीय नाइट्रोजन सरल रूप में जमीन में उपलब्ध होता है, जो पौधे द्वारा किसी भी अवस्था में इस्तेमाल किया जा सकता है।

राइज़ोबियम से बीज उपचार करने के लिए जैव वाटिका (राइज़ोबियम) @ 5 ग्राम प्रति किलो बीज के दर से उपयोग करें। 

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टरबूज आणि खरबूज पिकांमध्ये पिंचिंग काय आहे?

Pinching in watermelon and muskmelon crop
  • शेतकरी बंधूंनो, टरबूज आणि खरबूज पिकांमध्ये चांगल्या दर्जाचे उत्पादन मिळविण्यासाठी पिंचिंग ही एक महत्त्वाची प्रक्रिया आहे.

  • वेलींची अतिवृद्धी रोखण्यासाठी आणि फळांच्या चांगल्या विकासासाठी वेलींमध्ये चिमटे काढण्याची प्रक्रिया केली जाते.

  • या प्रक्रियेमध्ये जेव्हा वेलीला पुरेशी फळे येतात तेव्हा वेलींचा शेंडा उपटला जातो त्यामुळे वेलांची वाढ थांबते.

  • वेलीच्या वाढीस प्रतिबंध केल्याने फळांचा आकार आणि गुणवत्ता सुधारते.

  • एका वेलीवर जास्त फळ असल्यास लहान व कमकुवत फळे काढून टाकावी म्हणजे मुख्य फळ चांगली वाढू शकेल.

  • अनावश्यक फांद्या काढून टाकल्याने टरबूज आणि खरबूज फळांना पूर्ण पोषण मिळते आणि ते लवकर वाढतात.

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टमाटर की फसल में लीफ माइनर के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of leaf miner in tomato crop

वयस्क कीट हलके पीले रंग का एवं मैगट बहुत छोटी पैरविहीन व पीले रंग की होती है वहीं सुरंग में प्युपा बनता है। 

लक्षण: इस कीट के शिशु पत्तियों के हरे भाग को खाकर इनमें टेढ़ी मेढ़ी सफ़ेद सुरंग बना देते हैं और प्रभावित पत्तियों पर सफ़ेद सर्पिलाकार धारियां दिखाई देती हैं। इससे पौधों में प्रकाश संश्लेषण कम हो जाता है। अधिक प्रकोप पर पत्तियां सूखकर गिर जाती हैं। 

नियंत्रण: ग्रसित पत्तियों को निकालकर नष्ट करे दें तथा नियंत्रण के लिए टफगोर (डायमिथोएट 30 ईसी)@ 396 मिली/एकड़ या मीडिया (इमिडाक्लोप्रिड 17.80% एस एल) @ 60 मिली /एकड़, इसके 2 दिन बाद, नोवामैक्स  (जिबरेलिक ऍसिड 0.001% एल) @ 30 मिली प्रति एकड़ के दर से छिड़काव करें।

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भिंडी की फसल में हरा तेला कीट के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of jassids in okra crop

यह कीट हरे पीले रंग के होते हैं। इसके शिशु व प्रौढ़ पत्तियों की निचली सतह पर रहकर रस चूसते हैं। इसका प्रकोप मार्च से सितंबर माह तक होता है। रस चूसने की वजह से पत्तियां पीली पड़ जाती हैं, और किनारों के ऊपर की ओर मुड़ कर कप का आकार बना लेती हैं। अधिक संक्रमण पर पत्तियां जल जाती हैं एवं मुरझा कर सूख जाती हैं।

ऐसे करें नियंत्रण: 

  • बीज की बुआई के पूर्व, थियानोवा सुपर (थियामेथॉक्सम 30% एफएस) @ 5 मिली, प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें।

  • खड़ी फसल में समस्या दिखाई देने पर, थियानोवा -25 ( थियामेथोक्सम 25% डब्ल्यूजी) @ 80 ग्राम, 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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