जाणून घ्या कोणत्या महिन्यात कोणती भाजी लावल्यास चांगला नफा मिळेल?

Which vegetable cultivation will give good profit in which month
  • प्रत्येक पिकाचे चांगले उत्पादन घेण्यासाठी शेतकऱ्यांसाठी वेळेवर पेरणी हा चांगला पर्याय आहे. याउलट वेळेची निवड करून कोणतेही पीक पेरले तर उत्पादन खूपच कमी होते त्यामुळे शेतकऱ्यांचे उत्पन्न घटते.

  • महिन्यानिहाय भाजीपाला लागवड हा शेतकऱ्यांसाठी नेहमीच फायदेशीर ठरला आहे. पुढील महिन्यात या भाज्यांची लागवड करून शेतकरी चांगला फायदा घेऊ शकतात. 

  • जानेवारी- गाजर, मुळा, पालक, वांगी, टरबूज इ.

  • फेब्रुवारी- भोपळा वर्ग, खरबूज, टरबूज, पालक, फ्लॉवर इ.

  • मार्च – गवार, कारला, भोपळा, पेठा फळे, टरबूज, भिंडी इ.

  • एप्रिल- मुळा, पालक, कोथिंबीर  इ.

  • मे- वांगी, कांदा, मुळा, मिरची, कोथिंबीर इ.

  • जून – काकडी, बीन्स, भेंडी, टोमॅटो, कांदा इ.

  • जुलै – चोलाई, चवळी, भिंडी, भोपळा वर्ग इ.

  • ऑगस्ट- टोमॅटो, फ्लॉवर, कोबी इ.

  • सप्टेंबर – सलगम, बटाटा, टोमॅटो, कोथिंबीर, बडीशेप इ.

  • ऑक्टोबर- राजमा, वाटाणे, हिरवे कांदे, लसूण, बटाटे इ.

  • नोव्हेंबर – बीट, सिमला मिरची, लसूण, मटार, भेंडी  इ.

  • डिसेंबर- मुळा, पालक, कोबी, वांगी, कांदा इ.

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बटाटा पिकाच्या साठवणुकीच्या वेळी ही खबरदारी घ्यावी?

Keep these precautions at the time of storage in potato crop
  • बटाटे खोदल्यानंतर, त्याच्यासाठी सर्वात महत्वाचे काम म्हणजे त्याची साठवण. बटाटे व्यवस्थित साठवल्यास ते अनेक महिने खराब होण्यापासून वाचवता येतात. बटाटे साठवताना खालील गोष्टी लक्षात ठेवाव्यात. 

  • बटाटा पिकाला बराच काळ साठवणूक करून ठेवण्यासाठी 2 ते 4 अंश सेंटीग्रेड तापमान योग्य आहे.

  • बटाटे रेफ्रिजरेटरमध्ये ठेवू नयेत. याचा बटाट्याच्या चवीवर विपरीत परिणाम होतो.

  • बटाट्याची साठवणूक नेहमी हवेशीर ठिकाणी करावी. 

  • गोदाम पूर्णपणे कोरडे असावे त्यात ओलावा असल्यास बटाट्याच्या साठवणुकीवर आणि सुरक्षिततेवर विपरीत परिणाम होतो.

  • जर तुम्ही बॉक्समध्ये बटाटे साठवत असाल तर बटाट्याच्या प्रत्येक थरामध्ये एक वर्तमानपत्र ठेवा.

  •  वेळोवेळी गोदामाची तपासणी करत रहा.

  • साठवण्यापूर्वी बटाटे पाण्याने स्वच्छ करू नका. यामुळे बटाट्यातील आर्द्रता वाढते आणि साठवणूक कमी होते.

  • जर बटाटे हिरवे, तपकिरी, कुजलेले दिसू लागले आणि वास येत असेल तर असे बटाटे काढून टाका, तसेच अंकुरलेले बटाटे वेगळे करा.

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आइये जानते हैं साइलेज बनाने की आसान विधि

Know the method of making Silage
  • किसान भाइयों साल भर पशुओं को हरा चारा उपलब्ध कराने के लिए साइलेज एक बहुत अच्छा स्रोत है। इसके लिए दाने वाली फसलें जैसे मक्का, ज्वार, बाजरा, जई आदि को साइलेज बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। 

  • इन फसलों में जब दाने दूधिया अवस्था में हो तब 2-5 सेंटीमीटर के छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें। 

  • काटे गए हरे चारे के टुकड़ों को जमीन पर कुछ घंटे के लिए फैला दे ताकि पानी की कुछ मात्रा वाष्पीकृत हो जाए।

  • अब कटे हुए चारे को पहले से तैयार साइलो पिट या साइलेज गड्ढों में डाल दें। 

  • गड्ढे में चारे को पैरों या ट्रैक्टर से अच्छे से दबाकर भरे जिससे चारे के बीच की हवा निकल जाए।

  • गड्ढे को पूरी तरह भरने के बाद उसके ऊपर मोटी पॉलिथीन डालकर अच्छी तरह से सील कर दें। 

  • इसके बाद पॉलीथिन कवर के ऊपर से मिट्टी की लगभग एक फीट मोटी परत चढ़ा दें जिससे हवा अंदर ना जा सके।

  • साइलेज के गड्ढों में भंडारित किए गए हरे चारे के टुकड़ों से साइलेज बनने लगता है, क्योंकि हवा और पानी के न होने से दबाए गए चारे में लैक्टिक अम्ल बनता है, जिस से चारा लंबे समय तक खराब नहीं होता है।

  • चारे की आवश्यकतानुसार गड्ढों को कम से कम 45 दिनों के बाद पशुओं को खिलाने के लिए खोलें।

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भिंडी में पीला शिरा मोज़ेक वायरस प्रकोप के लक्षण व नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of yellow vein mosaic virus in okra crop

यह एक विषाणु जनित रोग है जो फसल में उपस्थित रसचूसक किट के कारण से और ज्यादा फैलता है। 

लक्षण: इस रोग के शुरुआती अवस्था में ग्रासित पौधे की पत्तियों की शिराएँ पीली पड़ जाती हैं और धीरे धीरे रोग बढ़ता जाता है एवं रोग की बाद की अवस्था में यह पीलापन पूरी पत्ती पर फैल जाता है। इसके परिणामस्वरूप पत्तियाँ मुड़ने एवं सिकुड़ने लगती है, पौधे की वृद्धि रुक जाती है। प्रभावित पौधे के फल हल्के पीले, विकृत और सख्त हो जाते हैं।

नियंत्रण: यह रोग मुख्यत सफेद मक्खी से फैलता है, इसके नियंत्रण के लिए नोवासेटा (एसिटामिप्रिड 20% SP) @ 30 ग्राम प्रति एकड़ या पेजर (डायफैनथीयुरॉन 50% WP) @ 240 ग्राम /एकड़ के दर से 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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लहसुन की फसल में थ्रिप्स कीट से होगा नुकसान, जानें प्रबंधन के उपाय

Thrips damage and management in Garlic Crop

लहसुन की फसल में कई बार थ्रिप्स कीट नुकसान पहुंचाते हैं। ये कीट काफी सूक्ष्म होते हैं। इसके नर व मादा दोनों स्वरुप फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। यह कीट पौधों के नाजुक हिस्से पर प्रहार करते हैं, और इसके परिणाम से पौधे विकास नहीं कर पाते हैं। यह कीट पत्तियों को खरोंच कर उनमें छेद कर देती है और पतियों से सारा रस चूस लेते हैं। इस वजह से पत्तियां मुड़ जाती हैं, पौधे सूखकर गिरने लगते हैं, साथ ही लहसुन की गांठें छोटी रह जाती हैं। 

प्रबंधन: इसके रोकथाम के लिए टैफगोर (डाइमिथोएट 30 ईसी) @ 264 मिली या फिपनोवा(फिप्रोनिल 5% एससी) @ 400 मिली प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

आपकी जरूरतों से जुड़ी ऐसी ही अन्य महत्वपूर्ण सूचनाओं के लिए प्रतिदिन पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख और अपनी कृषि समस्याओं की तस्वीरें समुदाय सेक्शन में पोस्ट कर प्राप्त करें कृषि विशेषज्ञों की सलाह।

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प्याज़ की फसल में डाऊनी मिल्ड्यू रोग की पहचान एवं नियंत्रण

Identification and control of downy mildew disease in onion crop

डाऊनी मिल्ड्यू रोग की पहचान: यह एक फफूंद जनित रोग है, इसके लक्षण सुबह के समय जब पत्तियों पर ओस रहती है तब आसानी से देखे जा सकते हैं। पत्तियों, बीज, डंठलों की सतह पर हल्के पीले धब्बे विकसित होते हैं, और जैसे हीं यह धब्बे बड़े होते हैं इसकी  सतह पर धूसर बैंगनी रोएँदार फफूंद विकसित हो जाती है। संक्रमित पौधे बौने, विकृत और हल्के हरे रंग के हो सकते हैं, इस रोग में पौधे अक्सर मरते नहीं हैं, लेकिन कंद की गुणवत्ता खराब होती है। 

नियंत्रण: अच्छे कंद विकास एवं डाऊनी मिल्ड्यू रोग के नियंत्रण के लिए गोडीवा सुपर (एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% + डाइफ़ेनोकोनाज़ोल 11.4% एससी) @ 200 मिली या वोकोविट (सल्फर 80% डब्ल्यूडीजी) @ 125 ग्राम, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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कैसे उगाएं लहसुन के अच्छे कंद, जानें विशेषज्ञ द्वारा सुझाए गए उपाय

How to grow good garlic bulbs

लहसुन की फसल किसानों के लिए आर्थिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण होती है। इसी कारण इन फसलों का फसल प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है। लहसुन की फसल में विभिन्न प्रकार के कवक जनित रोगों एवं कीटों का प्रकोप भी बहुत अधिक मात्रा में होता है। साथ ही लहसुन की फसल में कंद के निर्माण के समय भी पोषक तत्वों की बहुत आवश्यकता होती है, क्योंकि पोषक तत्वों की कमी के कारण लहसुन की फसल में कंद फटने एवं लहसुन की गाँठ छोटी रहने की समस्या पैदा हो जाती है। 

अभी की अवस्था में लहसुन में अच्छे कंद एवं बेहतर कलियों के निर्माण के लिए पोषण प्रबंधन के तौर पर ग्रोमोर (कैल्शियम नाइट्रेट) @ 10 किलो और पोटाश @ 20 किलो/एकड़ की दर से भुरकाव करें। लहसुन की फसल में भुरकाव करते समय, एक बात का विशेष ध्यान रखें की उत्पाद का एक समान रूप से भुरकाव हो जिससे जड़ आसानी से इन्हे अवशोषित कर सके। 

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तरबूज की फसल में गमी तना झुलसा के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Gummy stem blight symptoms and control in watermelon crop

तरबूज की फसल में गमी तना झुलसा रोग गंभीर पर्णीय रोगों में से एक है। इस रोग में तने एवं पत्तियों पर भूरे धब्बे हो जाते हैं और यह धब्बे पीले ऊतकों से घिरे होते हैं। साथ ही तने में यह घाव बढ़कर गलन की समस्या बढ़ा देती है और इससे चिपचिपे, भूरे रंग के द्रव का बहाव होता है। इस रोग में फल शायद ही कभी प्रभावित होते हैं, लेकिन पर्णसमूह के नुकसान से उपज और फलों की गुणवत्ता भी प्रभावित हो सकती है।

नियंत्रण: गमी तना झुलसा से बचने के लिए रोग रहित बीज का उपयोग करें साथ ही सभी कद्दू वर्गीय फसलों में 2 वर्ष के फसल चक्र  अंतर रखें। साथ ही रोग के लक्षण दिखाई देने पर रासायनिक नियंत्रण के लिए संपर्क फफूंदनाशक जैसे जटायु (क्लोरोथॅलोनिल 75% डब्लूपी) @ 200 ग्राम प्रति एकड़ या एम 45 (मॅन्कोझेब 75% डब्लूपी)@ 600-800 ग्राम प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के दर से छिड़काव करें।

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वांगी पिकामध्ये कोळी व्यवस्थापन

Mites management in brinjal crop
  • कोळीची लक्षणे :- हे किडे लहान आणि लाल रंगाचे असतात. जे पाने, फुलांच्या कळ्या आणि डहाळ्यांसारख्या पिकांच्या मऊ भागांवर मोठ्या प्रमाणात आढळतात.

  • ज्या झाडांवर कोळ्याच्या जाळ्यांचा प्रादुर्भाव झालेला असतो त्या झाडावर दिसतात हे कीटक वनस्पतीच्या मऊ भागांचा रस शोषून त्यांना कमकुवत करतात आणि शेवटी वनस्पती मरतात.

  • वांगी पिकावरील कोळी किडीच्या व्यवस्थापनासाठी खालील उत्पादने वापरली जातात. 

  • प्रोपरजाइट 57% ईसी 400 मिली स्पाइरोमैसीफेन 22.9% एससी 200 मिली ऐबामेक्टिन 1.8% ईसी 150 मिली/एकर या दराने फवारणी करा. 

  • जैविक उपचार म्हणून मेट्राजियम 1 किलो/एकर या दराने वापरले जाऊ शकते.

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गेहूँ की फसल में फॉल आर्मी वर्म के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय!

Symptoms and control of fall armyworm in wheat crop

मौसम में आए परिवर्तन के चलते गेहूँ की फसल पर इल्लियों का प्रकोप बढ़ गया है। हैरानी की बात तो यह है कि गेहूँ की फसल में पहले कभी भी यह इल्ली नहीं देखी गई थी। लेकिन पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी गेहूँ की फसल पर इल्ली का प्रकोप दिखाई दे रहा है। इस कीट का नाम फॉल आर्मी वर्म है। यह बहुभक्षी कीट है। यह मुख्य रूप से मक्का की फसल को नुकसान पहुंचाता है। लेकिन आज कल  यह कीट गेहूँ की फसल को भी नुकसान पहुंचा रहा है। इसका प्रकोप बादलों वाले मौसम में अधिक बढ़ता है। साथ ही ऐसे वक़्त में यह फसलों को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। ज्यादा ठंड पड़ने पर कीट प्रकोप कम हो जाता है।

कीट की पहचान: नव निषेचित इल्ली सामान्य रूप हल्के पीले हरे रंग की होती है जिसका सिर काला होता है। द्वितीय अवस्था के पश्चात सिर का रंग लाल भूरा हो जाता है। इस लाल रंग के सिर पर उल्टे वाई आकार की काली संरचना इस कीट की प्रमुख पहचान है। वयस्क इल्ली तम्बाकू की इल्ली से काफी समानता लिए हुए धब्बेदार धूसर से गहरे-भूरे रंग की होती है। मादा कीट अंडों को धूसर रंग की पपड़ी से ढक देती है जो सामान्यतः: फफूंद होने का आभास देती है। 

नियंत्रण के उपाय: इस कीट के नियंत्रण के लिए, इमानोवा (इमामेक्टिन बेंजोएट 5 % एसजी) @ 80 ग्राम + बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना 5% डब्ल्यूपी) 250 ग्राम + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 50 मिली, प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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