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चांगल्या पिकांच्या यशस्वी उत्पादनासाठी पाण्याची उपलब्धता हा एक महत्त्वाचा घटक आहे. सतत वाढणारी लोकसंख्या आणि हवामान बदलांमुळे भूगर्भात उपलब्ध पाण्याचे प्रमाण कमी होत आहे.
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त्यामुळे पिकांचे उत्पादन सतत कमी होत आहे. या समस्येचे निराकरण करण्यासाठी ठिबक सिंचनचा शोध लावला गेला. जो शेतकऱ्यांसाठी वरदान ठरला आहे.
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या पद्धतीत, प्लास्टिक पाईपच्या स्त्रोतांमधून थेट रोपांच्या मुळांपर्यंत पोहोचते त्यास फ्रिटीगेशन म्हणतात.
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इतर सिंचन प्रणालींच्या तुलनेत 60 ते 70% पाण्याची बचत होते.
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ठिबक सिंचन वनस्पतींना अधिक कार्यक्षमतेसह पोषक पुरवण्यास मदत करते.
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ठिबक सिंचनामुळे पाण्याचे नुकसान टाळता येते. (बाष्पीभवन आणि गळतीमुळे).
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ठिबक सिंचनातील पाणी थेट पिकांंच्या मुळांत दिले जाते. ज्यामुळे सभोवतालची जमीन कोरडी होते आणि तण वाढू शकत नाही.
सरसों में विरल अर्थात थिनिंग करना है बेहद जरूरी, जानें इसके फायदे!
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सरसों की फसल की बुवाई के 3 से 4 सप्ताह बाद पौधे से पौधे के बीच की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर तक बनाए रखने के लिए अतिरिक्त जन्में पौधों को निकाल देने की प्रक्रिया विरल या थिनिंग कहलाती है।
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यह प्रक्रिया फसलों में अधिक शाखा आने एवं स्वस्थ पौध विकास के लिए बहुत जरूरी होती है और सभी किसानों को यह जरूर करना चाहिए।
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इससे प्रक्रिया के उपयोग से फसल में बीमारी एवं कीटों का प्रकोप कम होता है तथा फसल में फली एवं दाने का आकार बड़ा होता है।
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जो फसलें एक दूसरे से सही दूरी पर नहीं बोई जाती हैं, उनमें पतला करने की यह प्रक्रिया बेहत आवश्यक होती है।
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मटर में पाउडरी मिल्ड्यू की समस्या एवं नियंत्रण के उपाय!
क्षति के लक्षण: पाउडरी मिल्ड्यू रोग के लक्षण पत्तियों, कलियों, टहनियों व फूलों पर सफेद पाऊडर के रूप में दिखाई देता हैं। पत्तियों की दोनों सतह पर सफेद रंग के छोटे-छोटे धब्बे नजर आते हैं जो धीरे-धीरे फैलकर पत्ती की दोनों सतह पर फैल जाते है। रोगी पत्तियां सख्त होकर मुड़ जाती हैं। अधिक संक्रमण होने पर पत्तियां सूख कर झड़ जाती हैं।
नियंत्रण के उपाय: इस रोग के नियंत्रण के लिए, धानुस्टीन (कार्बेन्डाजिम 50% डब्ल्यूपी) @ 100 ग्राम या वोकोविट (सल्फर 80% डब्ल्यूडीजी) @ 1 किलो + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 50 मिली प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
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मुख्य खेत में रोपाई के पहले जरूर करें प्याज के पौध का उपचार
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प्याज की पौध की मुख्य खेत में रोपाई के लिए सबसे पहले स्वस्थ पौध का चयन करें एवं 12 से 14 सेमी लंबी या नर्सरी में बुवाई के 5-6 सप्ताह पुरानी पौध की हीं रोपाई करें।
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कभी कभी प्याज के पौध.. मिट्टी, जलवायु और सिंचाई के आधार पर 6-7 सप्ताह में भी रोपाई के योग्य हो जाते हैं।
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बहरहाल रोपाई के पूर्व प्याज की पौध की जड़ों को राइजोकेअर (ट्राइकोडर्मा विरिडी 1.0 % डब्ल्यूपी) @ 2.5 ग्राम या स्प्रिंट (कार्बेन्डाजिम 25%+ मैनकोजेब 50% डब्ल्यूएस) @ 3 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से तैयार घोल में 10 मिनट तक डूबा कर रखें।
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इससे प्रारंभिक अवस्था में आने वाले रोग जैसे- आद्र गलन, जड़ गलन से फसल को बचाया जा सकता है।
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मिरची पिकामध्ये चिनोफोरा ब्लाइट रोगाची ओळख आणि प्रतिबंधात्मक उपाय योजना
मिरची पिकामध्ये या रोगाचे मुख्य कारण चिनोफोरा कुकुर्बिटारम हे आहे. या रोगाची बुरशी साधारणपणे झाडाच्या वरच्या भागातील फुले, पाने, नवीन फांद्या आणि फळांना संक्रमित करते. सुरुवातीच्या अवस्थेत, पानावर पाण्याने भिजलेले भाग विकसित होतात. प्रभावित फांदी सुकते आणि लटकते आणि अधिक संसर्गामध्ये फळे ही तपकिरी ते काळ्या रंगाची होतात आणि संक्रमित भागावर बुरशीचा थर दिसून येतो.
जैविक व्यवस्थापन – कॉम्बैट (ट्रायकोडर्मा विरिडी 500 ग्रॅम किंवा मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 1% डब्ल्यूपी) 500 ग्रॅम प्रती एकर या दराने वापर करावा.
Shareमिरची पिकामध्ये फ्यूजेरियम विल्टची लक्षणे आणि प्रतिबंधात्मक उपाय
मिरची पिकामध्ये फ्यूजेरियम विल्ट हा एक सामान्य रोग आहे. या प्रकारचे बियाणे हे मातीजन्य रोग आहे, प्रभावित झाडे अचानक कोमेजून जातात आणि हळूहळू सुकतात. अशी झाडे हाताने ओढल्यावर सहज उपटतात. फ्यूजेरियम विल्टमुळे रोगट झाडांची मुळे आतून तपकिरी व काळी पडतात. रोगग्रस्त झाडे कापली असता ऊती काळी दिसतात. झाडांची पाने कोमेजून खाली पडतात. हा रोग हवा व जमिनीतील अति आर्द्रता व उष्णतेमुळे व सिंचनाद्वारे ओलावा उपलब्ध न झाल्याने वाढतो.
जैविक व्यवस्थापन –
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कॉम्बैट (ट्रायकोडर्मा विरिडी 500 ग्रॅम किंवा मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 1% डब्ल्यूपी) 500 ग्रॅम प्रती एकर या दराने वापर करावा.
उत्पादन संदर्भ- तमिळनाडू कृषी विद्यापीठानुसार –
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2 किलो कॉम्बैट (ट्राइकोडर्मा विरिडी) फॉर्म्युलेशनला 50 किलो शेणखतामध्ये चांगले मिसळा त्यानंतर त्यावर पाणी शिंपडा आणि एका पातळ पॉलिथीन शीटने झाकून ठेवा. 15 दिवसांनंतर जेव्हा ढेरवरती माय सेलियाची वाढ दिसून आली की, त्या मिश्रणाचे एक एकर या क्षेत्रामध्ये वापर करावा.
बुआई से पहले जरूर करें गेहूँ के बीजों का उपचार
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गेहूँ के बीजों का उपचार करके बुआई करने पर यह पौधों को मिट्टी और बीज जनित रोग जैसे स्मट, बंट रोग से बचाता है।
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यह उपचार जड़ माहु के आक्रमण से भी बचाव करता है और फसल को स्वस्थ रखता है।
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इस प्रक्रिया को करने से बीज ख़राब नहीं होते हैं, जिससे अधिक बीज का अंकुरण होता है और स्वस्थ पौधों का विकास होता है।
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बीज उपचार करने से कृषि लागत कम आती है एवं उत्पादन में वृद्धि होती है।
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भिंडी के लिए खेत की तैयारी एवं पोषक तत्व प्रबंधन
पौधो की अच्छी अंकुरण एवं जड़ विकास के लिए, मिट्टी का भुरभुरा होना आवश्यक है। पिछली फसल की कटाई के बाद एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें एवं इसके बाद गोबर की खाद 4 टन + स्पीड कम्पोस्ट 4 किग्रा प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में समान रूप से भुरकाव करें तथा 2-3 जुताई हैरो की सहायता से करें। अगर मिट्टी में नमी कम हो तो पहले पलेवा करें फिर खेत की तैयारी करें और आखिरी में पाटा चलाकर खेत समतल बना लें।
पोषक तत्व प्रबंधन
फसल बुवाई के समय या बुवाई के 25 दिन के अंदर, डीएपी 75 किलोग्राम + एमओपी 30 किलोग्राम + ट्राई कोट मैक्स (जैविक कार्बन 3%, ह्यूमिक, फुल्विक, जैविक पोषक तत्वों का एक मिश्रण) @ 4 किलोग्राम + टीबी 3 (नाइट्रोजन स्थिरीकरण बैक्टीरिया, फास्फेट घुलनशील बैक्टीरिया, और पोटेशियम गतिशील बैक्टीरिया) @ 3 किलोग्राम + ताबा जी (जिंक घुलनशील बैक्टीरिया) @ 4 किलोग्राम + नीम केक 50 किलोग्राम + एग्रोमीन ((जिंक, आयरन, मैग्नीज, कॉपर, बोरॉन और मोलिब्डेनम) @ 5 किलोग्राम + मैग्नीशियम सल्फेट @ 5 किलोग्राम इन सभी को आपस में मिलाकर एक एकड़ के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें।
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चने की फसल में उकठा रोग की पहचान व बचाव के उपाय
रोग की पहचान:- चने की फसल में यह फफूंद जनित रोग सबसे विनाशकारी साबित होता है। यह रोग किसी भी अवस्था में फसल को प्रभावित कर सकता है। इस रोग के चलते पत्तियां नीचे से ऊपर की ओर पीली और भूरी पड़ जाती हैं। अंत में पौधा मुरझाकर सूख जाता है।
तने को चीर कर देखने से आंतरिक उत्तक भूरे रंग का दिखाई देता है, जिस कारण से पोषक तत्व एवं पानी पौधों के सभी भाग तक नहीं पहुँच पाता है और पौधे मरने लगते हैं। पौधों को उखाड़ कर देखने पर कॉलर एवं जड़ क्षेत्र गहरा भूरा या काला रंग का दिखाई देता है।
रोकथाम के उपाय:- इस रोग से बचने के लिए बुवाई के समय कॉम्बैट (ट्राइकोडर्मा विरिडी 1.0% डब्ल्यू.पी.) @ 10 ग्राम प्रति किग्रा बीज के हिसाब से उपचारित करके बोना चाहिए एवं अभी इसकी रोकथाम के लिए कॉम्बैट (ट्राइकोडर्मा विरिडी 1.0% डब्ल्यू.पी.) @ 1 किग्रा प्रति एकड़ के हिसाब से मिट्टी में समान रूप से भुरकाव कर हल्की सिंचाई करें।
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बटाटा पिकातील सिंचन व्यवस्थापन आणि गंभीर टप्पे जाणून घ्या
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बटाटा पिकामध्ये एकावेळी कमी अंतराने थोडे पाणी दिल्यास उत्पादनासाठी अधिक फायदा होतो.
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पहिले पाणी लागवडीनंतर 10 दिवसांनी पण 20 दिवसांच्या आत द्यावे असे केल्याने, उगवण जलद होते आणि प्रति झाड कंदांची संख्या वाढते, ज्यामुळे उत्पादनात दुप्पट वाढ होते.
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पहिले पाणी वेळेवर देऊन, शेतात टाकलेले खत पिकांना सुरुवातीपासून आवश्यकतेनुसार वापरले जाते.
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जमिनीची स्थिती आणि शेतातील अनुभवानुसार दोन सिंचन बियाण्याची वेळ वाढवता किंवा कमी करता येते तथापि, दोन सिंचनांमधील अंतर 20 दिवसांपेक्षा जास्त नसावे.
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खोदण्याच्या 10 दिवस आधी सिंचन थांबवा. असे केल्याने, खोदताना कंद स्वच्छ बाहेर येतील. लक्षात ठेवा, प्रत्येक सिंचनामध्ये अर्ध्या नाल्यापर्यंतच पाणी द्यावे.
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वाढीच्या काही टप्प्यांमध्ये (गंभीर टप्पे) पाणी व्यवस्थापन अत्यंत महत्त्वाचे असते.