इन कारणों से फसलों में पत्तियां जलने व झुलसने लगती हैं

Due to these reasons leaves start burning and scorching in the crops
  • फसलों में पत्तियाँ जलने व झुलसने के बहुत प्रकार के कारण हो सकते हैं। 

  • कीट-रोग प्रकोप एवं पोषण की कमी के कारण कई बार पत्तियाँ जलने लगती हैं। 

  • निमेटोड, कटवर्म जैसे कीट फसलों की जड़ों को काट देते हैं इस कारण भी पत्तियाँ  झड़ने और झुलसने लगती हैं।

  • पत्तियों के जलने और झुलसने के सबसे आम  कारणों में से है एक है जड़ों का रोग ग्रस्त हो जाना।

  • यह जड़ों में कवक के आक्रमण के कारण भी होता है जिसके कारण जड़ क्षतिग्रस्त हो जाती है एवं पत्तियां जलने और झुलसने लगती हैं।  

  • पत्तियों के झुलसने का एक और सामान्य कारण मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी होती है और इसके कारण पत्तियों के किनारे सूखने लगते हैं।  

  • हवा में कुछ ऐसे प्रदूषक पाए जाते हैं जो पत्तियों की सतह पर चिपक जाते हैं और पत्ती के किनारों को जला सकते हैं।

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कपास में बढ़ेगा पत्ती धब्बा रोग का प्रकोप, जानें बचाव के उपाय

Outbreak of Cercospora Leaf Spot disease will increase in cotton

कपास की फसल में सर्कोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग मुख्य रूप से परिपक्व पौधों की पुरानी पत्तियों को ज्यादा प्रभावित करता है। इसके संक्रमण के शुरुआती चरण में पत्तियों पर लाल रंग के धब्बे दिखते हैं। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, धब्बे बढ़ते चले जाते हैं और गहरे भूरे या काले किनारों के साथ केंद्र में सफेद से हल्के भूरे या धूसर हो जाते हैं। संक्रमण के समय पर निर्भर करते हुए धब्बों की आकार अलग अलग होता है, यह कभी गोल तो कभी टेढ़ी-मेढ़ी नजर आता है। इन धब्बों के अंदर छल्ले बन जाते हैं जिनके किनारे क्रम से गहरे और हल्के भूरे या लाल होते हैं। प्रभावित पत्तियां अंत में पीली पड़ जाती हैं और फिर गिर जाती हैं।

कपास के पौधों पर हमला करने वाला सरकोस्पोरा परिवार का यह फफूंद माइकोस्फैरेला गॉसिपिना है। यह सोयाबीन या मिर्च पर हमला करने वाले फफूंद से अलग है। खेत में सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग और अन्य पत्ती रोगों में अंतर कर पाना अक्सर मुश्किल होता है। परंतु, इस रोग की विशेष बात है कि यह आम तौर पर सूखे या पोषक तत्वों (विशेषकर पोटैशियम) की कमी से जूझ रहे कपास के पौधों में पाया जाता है। उचित उर्वरक योजना से पौधे की शक्ति बनाए रखने और उचित सिंचाई से सूखे से जूझने की नौबत न आने देने से इसके प्राथमिक संक्रमणों को दूर करने में बहुत मदद मिलती है। इससे रोग की घातकता भी कम होती है। 20-30* सेल्सियस के बीच तापमान और उच्च सापेक्षिक आर्द्रता रोग बढ़ाते हैं। बीजाणु हवा और पानी की बौछारों से स्वस्थ पत्तियों पर फैलते हैं।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा एक समेकित दृष्टिकोण से रोकथाम उपायों के साथ उपलब्ध जैविक उपचारों का इस्तेमाल करें। रोग की शुरुआत में टिल्ट या ज़ेरॉक्स (प्रोपीकोनाज़ोल 25% EC) युक्त कवकनाशकों का इस्तेमाल करने से भी अच्छे नतीजे मिलते हैं।

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ऐसी फसल ग्रोथ और कहाँ, आ गया थर्ड जेनरेशन ग्रोथ बूस्टर जीवा मैक्स

Accelerate crop growth with the third generation growth booster Jiva Maxx
  • जीवा मैक्स थर्ड जेनरेशन यानी तीसरी पीढ़ी का फसलों का ग्रोथ बूस्टर (पौध वृद्धि कारक) है। यह हाइड्रोलाइज्ड प्रोटीन कॉम्प्लेक्स का एक अच्छी तरह से संतुलित उत्तेजित क्लोरोफिल उत्पाद है।

  • जीवा मैक्स का उपयोग फसलों के वानस्पतिक विकास, सफेद जड़ विकास, उपज की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसकी मदद से फसल अच्छी उपज की भी प्राप्ति होती है।

  • यह फसलों में पोषक तत्वों की मात्रा और चयापचय गतिविधि को बढ़ाने के लिए भी काम करता है।

  • फसलों में इसका उपयोग 2 मिली प्रति लीटर पानी के साथ छिड़काव के रूप में करें। अगर फसल में ड्रिप सिंचाई सिस्टम हो तो ड्रिप के माध्यम से 500 मिली प्रति एकड़ का उपयोग करें। 

  • आप जीवा मैक्स का उपयोग बीज उपचार के रूप में भी कर सकते हैं इसके लिए आप 2 मिली प्रति किग्रा बीज का उपयोग करें। 

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थ्रिप्स के प्रकोप से मिर्च के पौधों को ऐसे रखें सुरक्षित

Keep Chili plants safe from Thrips attack
  • थ्रिप्स कीट के वयस्क (एडल्ट) और शिशु (निम्फ) दोनों रूप मिर्च के पौधों को नुकसान पहुँचाती हैं।

  • इनके वयस्क रूप आकार में छोटे व पतले होते हैं और उनके पंख भूरे रंग के होते हैं, वही निम्फ रूप सूक्ष्म आकार के पीलापन लिए होते हैं।

  • थ्रिप्स से संक्रमित मिर्च की पत्तियों में झुर्रियां दिखाई देती हैं तथा ये पत्तियाँ ऊपर की ओर मुड़ जाती हैं।

  • प्रकोप की प्रारंभिक अवस्था में पौधों का विकास, फूल उत्पादन एवं फलों का निर्माण रुक जाता है।

  • इसे नियंत्रित करने के लिए फिपनोवा (फिप्रोनिल 05% SC) @ 400 मिली/एकड़ या मीडिया सुपर (इमिडाक्लोप्रिड 30.5% SC) @ 50-60 मिली/एकड़ का छिड़काव करें।

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फसलों का जबरदस्त टॉनिक है नोवामैक्स, पौधों के संपूर्ण ग्रोथ में लाता है तेजी

NovaMaxx is a great tonic for crops

नोवामैक्स एक जैविक रूप से उत्पादित पौध वृद्धि सहायक टॉनिक है। फसलों में इसका उपयोग करने से फसल में कई प्रकार के लाभ देखने को मिलेंगे। इससे पौधे स्वस्थ व हष्टपुष्ट रहेंगे, अनाज/फल निर्माण व परिपक्वता की दर बढ़ेगी, मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की क्रियाशीलता बढ़ेगी, फूल तथा फलों के झड़नें की समस्या कम होगी इसके अलावा अधिक प्रकाश संश्लेषण और पौधों के चयापचय जैसी प्रक्रियाओं में सुधार देखने को मिलेगा। पोषक तत्वों व विकास की कमियों से जूझ रहे पौधों को नोवामैक्स सहारा देने का काम भी करता है।

धान, गन्ना, कपास, मूंगफली, केला, टमाटर, आलू, पत्ता गोभी, फूलगोभी, अंगूर, बैंगन, भिंडी, चाय, मलबेरी में नोवामैक्स का उपयोग 180 से 200 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव के रूप में करना चाहिए। 

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कपास की फसल में सफेद मक्खी पहुंचाएगा भारी नुकसान

Management Of Whitefly In Cotton
  • सफ़ेद मक्खी को कपास के खेतों में फैलने से रोकने के लिए खेत की मेड़, बंजर भूमि, सड़क के किनारे और सिंचाई चैनलों/नहरों पर उगने वाले खरपतवारों को हटा दें।

  • सफेद मक्खी का आक्रमण बैंगन, खीरा, टमाटर, भिंडी आदि सब्जियों में भी होता है, इसलिए इन फसलों को कपास के साथ न उगाएं।

  • इन वैकल्पिक धारक फसलों पर फरवरी से और कपास, मूंग पर अप्रैल से नियमित निगरानी की जानी चाहिए ताकि इन फसलों पर सफेद मक्खी का समय पर प्रबंधन किया जा सके।

  • नाइट्रोजन युक्त उर्वरक के अत्यधिक प्रयोग से बचें क्योंकि यह रस चूसक कीड़ों के आक्रमण को बढ़ा देता है।

  • कपास के खेतों में प्रति एकड़ 40 पीले चिपचिपे ट्रैप लगाना सुनिश्चित करें, जिससे सफेद मक्खी के प्रकोप को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।

  • नोवासेटा (एसिटामिप्रिड 20% SP) @ 40 ग्राम प्रति एकड़ या नोवाफेन (पाइरीप्रोक्सीफेन 5% + डायफेनथियुरोन 25% SE) @ 400-500 मिली प्रति एकड़ के हिसाब से एक-दो स्प्रे करें।

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तिलहनी फसलों में सल्फर की कमी से होगा नुकसान, जानें इसके क्या हैं फायदे?

Why Sulphur is an important nutrient in oilseed crops

पौधों में प्रोटीन, अमीनो एसिड, कुछ विटामिन और एंजाइम, प्रकाश संश्लेषण, ऊर्जा चयापचय, कार्बोहाइड्रेट उत्पादन और प्रोटीन के संश्लेषण आदि में सल्फर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सल्फर अमीनो एसिड जैसे सिस्टीन, सिस्टीन और मेथियोनीन का एक अभिन्न अंग है जो प्रोटीन के आवश्यक घटक हैं। पौधों को पर्याप्त मात्रा में सल्फर देने से उपज और बीजों में तेल की मात्रा बढ़ जाती है।

तिलहनी फसलों में सल्फर की कमी के लक्षण क्या हैं?

सल्फर की कमी के कारण क्लोरोफिल उत्पादन कम होता है जिससे नई पत्तियों में  पीलापन की समस्या देखने को मिलती है। इसके कारण, पौधे की वृद्धि में कमी देखने को मिलती है। 

सल्फर की कमी को कैसे दूर करें?

सल्फर युक्त उर्वरकों की पूर्ति करके तिलहनी फसल में सल्फर की आवश्यकता को पूरा किया जा सकता है। सल्फर पोषक तत्वों को मिट्टी के अनुप्रयोगों जैसे बेसल, टॉप ड्रेसिंग, फर्टिगेशन और पर्ण आवेदन द्वारा पौधों में डाला जा सकता है।

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फर्टिगेशन विधि से उर्वरकों का उपयोग दिलाएगा फसलों को कई लाभ

Use of fertilizers through fertigation method will provide many benefits to the crops

फर्टिगेशन उर्वरक उपयोग करने की एक शानदार विधि है। इसमें ड्रिप सिस्टम द्वारा सिंचाई के पानी में उर्वरक को शामिल किया जाता है। इस प्रणाली में उर्वरक का घोल सिंचाई के माध्यम से फसल में समान रूप से वितरित किया जाता है। इसमें पोषक तत्वों की उपलब्धता बहुत अधिक होती है इसलिए दक्षता अधिक होती है। इस विधि में तरल उर्वरकों के साथ-साथ पानी में घुलनशील उर्वरकों का भी उपयोग किया जाता है। इस विधि से उर्वरक उपयोग दक्षता 80 से 90 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।

फर्टिगेशन के फायदे

  • फर्टिगेशन के माध्यम से सक्रिय रूट ज़ोन के पास पोषक तत्वों और पानी की आपूर्ति की जाती है जिसके परिणामस्वरूप फसलों द्वारा अधिक अवशोषण होता है।

  • चूंकि फर्टिगेशन के माध्यम से सभी फसलों को समान रूप से पानी और उर्वरक की आपूर्ति की जाती है, इसलिए 25-50 प्रतिशत अधिक उपज प्राप्त करने की संभावना रहती है।

  • फर्टिगेशन के माध्यम से उर्वरक उपयोग दक्षता 80-90 प्रतिशत के बीच होती है, जिससे न्यूनतम 25 प्रतिशत पोषक तत्वों को बचाने में मदद मिलती है।

  • इस तरह पानी की कम मात्रा और खाद की बचत के साथ-साथ समय, श्रम और ऊर्जा की खपत भी काफी कम हो जाती है।

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मृदा अपरदन से खेत की मिट्टी को पहुंचता है नुकसान!

Soil erosion causes damage to the soil of the farm

किसी भी कारण से जब मिट्टी का कटाव होता है तो उसे “मृदा अपरदन” कहा जाता है। मृदा अपरदन एक प्राकृतिक क्रिया होती है। भूगर्भीय क्रियाएं (जैसे पानी की धाराएँ या पिघलती बर्फ), जलवायु क्रियाएं (जैसे बारिश या तीव्र हवाएँ) या मानव गतिविधि (जैसे कृषि, वनों की कटाई, शहरों का विस्तार) ये सभी कारक मृदा अपरदन या भू-क्षरण के कारकों में से एक हैं।

मिट्टी के कटाव से कैसे बचें?

  • वृक्षारोपण- पेड़ पौधे लगाने से पारिस्थितिकी तंत्र और मिट्टी के रखरखाव में मदद मिलती है, और इससे मृदा अपरदन को भी रोका जा सकता है।

  • जल निकासी मार्गों का निर्माण- उन क्षेत्रों में जहां मिट्टी की अवशोषण क्षमता कम है, बाढ़ को रोकने के लिए नालियां और अन्य तरीके अपनाये जा सकते हैं जिससे हम मिट्टी के कटाव को रोक सकते हैं।

  • भूमि का सतत उपयोग- यह कृषि और पशुधन के प्रभावों को कम करने में मदद कर सकता है, और पोषक तत्वों के नुकसान के कारण मिट्टी के क्षरण को रोक सकता है।

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फसलों के लिए महत्वपूर्ण है जैविक उर्वरक माइकोराइजा, जानें इसके फायदे

Organic fertilizer mycorrhiza is important for crops
  • माइकोराइजा एक जैविक उर्वरक है जो कवक और पौधों की जड़ों के बीच का एक संबंध रखता है। इस प्रकार के संबंध में कवक पौधों की जड़ पर आश्रित हो जाता है और मृदा-जीवन का एक महत्वपूर्ण घटक बन जाता है। 

  • माइकोराइजा के उपयोग से जड़ों का बेहतर विकास होता है।

  • माइकोराइजा पौधों के लिए मिट्टी से फास्फोरस की उपलब्धता और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों को अवशोषित करने में मदद करता है। 

  • माइकोराइजा मिट्टी से फास्फोरस की उप्लब्धता को 60-80% तक बढ़ाता है।

  • माइकोराइजा पौधों के द्वारा जल के अवशोषण की क्रिया दर को बढ़ाकर पौधे को सूखे के प्रति सहनशीलता बढ़ाता है। जिससे पौधों को हरा भरा रखने में मदद मिलती है।

  • अतः यह फसलोें की पैदावार को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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