टमाटर में जीवाणु पत्ती धब्बा रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of bacterial leaf spot disease in tomato

इस रोग का जीवाणु ज्यादातर वातावरण में नमी और हलकी-हलकी बारिश होने पर या उच्च आद्रता के कारण सक्रिय होता है। प्रभावित पौधों की पत्तियों पर पीले घेरे वाले छोटे, भूरे, पानी से भरे, गोलाकार धब्बे दिखाई देते हैं। पुरानी पत्तियां झड़ने लगती हैं साथ हीं हरे फलों पर छोटे, पानी से भरे धब्बे बन जाते हैं और इन धब्बों का केंद्र अनियमित, हलके भूरे रंग का और पपड़ीदार सतह वाला हो जाता है।

नियंत्रण: इस रोग के नियंत्रण के लिए जैसे हीं रोग का प्रकोप दिखाई दे तब, स्ट्रेप्टोसाइक्लिन (स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90% + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10% एसपी) @ 20-24 ग्राम प्रति एकड़ के दर से 150-200 लीटर पानी में  मिलाकर छिड़काव करें।

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गोभी वर्गीय फसल में डायमंड बैक मोथ के लक्षण एवं नियंत्रण

Symptoms and control of Diamond back moth in cabbage crop

डायमंड मोथ नाम का यह कीट गोभी वर्गीय सब्जियों को सबसे अधिक नुकसान होता है, ख़ासकर फ़रवरी माह में देर से बुआई की जाने वाली फसल में यह अत्याधिक नुकसान पहुंचाता है।  

लक्षण: इस कीट के पतंगे रात के समय ज्यादा सक्रिय होते हैं और पत्तियों के निचली सतह पर मध्य नस के पास पीले रंग के अंडे देते हैं। इस कीट की सूंडी हानिकारक होती है जो शुरूआती अवस्था में हरे-पीले रंग की होती है और बाद में पत्तों के रंग जैसी हो जाती है। ये इल्लिया प्रारंभिक अवस्था में पत्तियों की निचली सतह को खुरचती हैं जिससे पत्तियों पर सफेद धब्बे बन जाते हैं। बाद की अवस्था में यही इल्लिया पत्तों में छेद कर नुकसान पहुंचाती हैं। 

नियंत्रण: डायमंड बैक मोथ के नियंत्रण एवं निगरानी के लिए, डीबीएम लूर @ 10 ट्रैप प्रति एकड़ के दर से खेत में लगाएं एवं प्रकोप दिखाई देने पर इमानोवा (इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एससी) @ 60-80 मिली प्रति एकड़ या कवर (क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.50% एससी) @ 20 मिली प्रति एकड़ के दर से 150-200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

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गोभी वर्गीय फसल में डाऊनी मिलड्यू रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of downy mildew disease in cabbage crop

डाऊनी मिलड्यू रोग के लक्षण: इस रोग के प्रकोप से पत्तियों की निचली सतह पर बैंगनी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, जबकि ऊपरी सतह पर पीले भूरे रंग के धब्बे एवं रोयेंदार कवक की वृद्धि पाई जाती है, साथ ही तनों में काले से भूरे रंग के धब्बे या लकीरें दिखाई देते हैं। फूलगोभी का फूल अंदर और बाहर दोनों तरफ से काला पड़ जाता है। इस रोग के गंभीर रूप में पूरा पौधा नष्ट हो जाता है।

नियंत्रण के उपाय: इस रोग के नियंत्रण के लिए नोवैक्सिल @ (मेटालैक्सिल 8% + मैनकोज़ेब 64% डब्ल्यूपी) @ 60 ग्राम + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 5 मिली + नोवामैक्स (जिबरेलिक ऍसिड 0.001% L) @ 30 मिली, प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।  

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जानिए कैसे स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस फसलों के लिए है एक लाभकारी जीवाणु

How Pseudomonas fluorescens is a beneficial bacteria

स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस एक मित्र जीवाणु है जो जीवाणु एवं फफूंद से होने वाले रोग को  मिट्टी और हवा में फैलाने से रोकने में मदद करते हैं। साथ ही यह पौध वृद्धि कारक तत्वों का निर्माण करता है जिससे उपज में भी वृद्धि होती है। यह अंतरदेहि जैव नियंत्रण के रूप में काम करता है।

जब स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस का छिड़काव करते है तब ये कुछ द्वितीयक मेटाबोलाइट्स (चयापचय तत्वों) जैसे जिब्रेलिक, ऑक्सिस का निर्माण करते हैं जिससे पौधे में हरापन रहने में मदद होती है। साथ हीं यह पौधे में तनाव, रोग आदि के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

इसका उपयोग हम ज़मीन से या छिड़काव से साथ ही बीज प्रक्रिया के लिए कर सकते है। यह विभिन्न प्रकार की फसलों, फलों और सब्जियों में जड़ सड़न, तना सड़न, डैम्पिंग ऑफ़, उकठा, लाल सड़न, जीवाणु झुलसा आदि रोगों के नियंत्रण के लिए प्रभावी है। 

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प्याज़ की फसल में सूक्ष्म पोषक तत्वों के कमी के लक्षणों को पहचानें

Symptoms of Micronutrient Deficiency in Onions

प्याज़ की फसल में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं पोटाश के अलावा सूक्ष्म पोषक तत्व भी बेहद आवश्यक होते हैं, और इनकी कमी होने पर उत्पादन एवं उत्पादकता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। प्याज़ में तीखापन, एलाइल प्रोपाइल डाईसल्फाइड नामक तत्व के कारण होता है इस तीखेपन को बढ़ाने व उत्पादन में वृद्धि के लिए, सल्फर की आवश्यकता होती है।

सल्फर: सभी पत्तियां नई तथा पुरानी एक समान पीली दिखाई देती है, साथ ही सल्फर (गंधक) की कमी वाले पौधे में पत्तियों का हरा रंग समाप्त हो जाता है।

मैंगनीज: पत्तियों की शिराएँ पीली पड़के जलने लगती हैं, पत्तियों का रंग फीका पड़ता है साथ ही वे ऊपर की ओर मुड़ने लगती है। फसल की वृद्धि रुक जाती है, प्याज़ के कंद देर से बनते हैं और कंद का ऊपरी भाग (गर्दन) मोटी हो जाती है।

कॉपर: प्याज की फसल में कंद के ऊपरी आवरण विकास के लिए फसल में कॉपर की उचित मात्रा होना आवश्यक है। कॉपर के कमी से नई पत्तियां नोक से सफ़ेद होती है और सर्पिले आकार में मुड़ जाती हैं, या पौधे के दाये भाग में मुड़ते है, साथ ही कंद का आवरण नरम होके हल्का पीला और पतला हो जाता है।

कैल्शियम: फसल में वृद्धि एवं भंडारण गुणवत्ता के लिए कैल्शियम एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है। इसके कमी से नई पत्तिया बिना पीली पड़े अचानक से सुखने लगती है साथ ही पत्तियाँ बहुत संकरी हो जाती है।

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स्टोअरमध्ये साठवलेल्या गहू पिकपासून उंदरांचे संरक्षण कसे करावे?

How to protect wheat crops from mice in the store
  • आता शेतातून लागोपाठ गहू पिकाची कापणी केली जात आहे.

  • याच कारणामुळे शेतकरी आपले गहू पीक बाजाराऐवजी स्टोअर मध्ये साठवणूक करत आहेत.

  • गहू पिकाच्या साठवणूकीमध्ये सर्वात मोठी समस्या उंदीरांची आहे.

  • हे टाळण्यासाठी, साठवण्यापूर्वी खालील गोष्टी लक्षात ठेवणे फार महत्वाचे आहे.

  • गहू पीक साठवून ठेवण्यापूर्वी स्टोअर स्वच्छ करावे.

  • जर स्टोअरमध्ये उंदरांचा आधीच उद्रेक झाला असेल तर त्यांना आधीच प्रतिबंध करण्यासाठी उपाययोजना करणे आवश्यक आहे.

  • गव्हाच्या साठवणुकीनंतर उंदरांचा उद्रेक झाल्यास, पीठ किंवा बेसन पिठामद्धे औषध मिसळून उंदीर नियंत्रित करता येतात.

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धनिया की फसल में लौंगिया रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control measure of stem gall disease in coriander

धनिया एक बहु उपयोगी मसाले वाली फसल है। धनिया के पत्ते एवं बीज दोनों उपयोगी होते हैं। इसकी फसल में लौंगिया रोग बहुत ही हानिकारक होता है, यह रोग प्रोटोमाइसीज मैक्रोस्पोरस नामक फफूंद से होता है।  

लौंगिया रोग के लक्षण: इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों और तनों पर फोड़े दिखाई देते हैं। फूल लगने के पहले ही इसके रोग-जनक फफूंद नरम एवं मुलायम शाखाओं पर आक्रमण कर उनका शीर्ष भाग मोड़ देते हैं और संक्रमित भाग सूज जाता है। साथ ही जमीन के निकट तने पर छोटी-छोटी ट्यूमर जैसी सूजन दिखने लगती है। शुरुआत में यह चमकदार दिखती है लेकिन बाद में फूटती है और कठोर हो जाती है। इसके बढ़ते संक्रमण में ये पिटिकाएँ (सूजन) तने के ऊपरी भाग पर भी बनती है। जब आक्रमण पुष्पक्रम में होता हैं तो बीज निर्माण काफी कम हो जाता है। 

नियंत्रण: लौंगिया रोग को कम करने के लिए इष्टतम नमी बनाए रखें, रोग ग्रस्त फसल अवशेष को जलाकर नष्ट करें। बुवाई करने से पहले बीज बाविस्टिन (कार्बेंडाजिम 50% डब्लूपी) @ 2 ग्राम/किग्रा. बीज दर से उपचारित करके बुवाई करें। यदि इसके लक्षण खड़ी फसल में दिखाई दे तो नोवाकोन (हेक्सकोनाज़ोल 5% एससी)@ 400 मिली/एकड़ साथ ही मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस)@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से 150 से 200 लीटर पानी में छिड़काव करें।

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आलू की फसल में कटवर्म प्रकोप के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control measures of cutworm in potato crop

आलू का एक प्रमुख कीट है कटवर्म जिसे कर्तक कीट के नाम से भी जाना जाता है। यह कीट आलू की फसल को 12 से 40 प्रतिशत तक का नुकसान पहुंचा सकता है।  

लक्षण: इस कीट की इल्ली अवस्था ही नुकसान पहुंचाती है। फसल की शुरुआती अवस्था में इल्ली नए पौधे की डंठलो, तने और शाखाओं को खाते हैं। अक्सर ये इल्ली रात के समय निकलती है, और युवा पौधों को तने से काटकर खाते हैं साथ ही जमीन के नीचे दबे हुए कंदों को छेदकर भी खाते हैं और भारी नुकसान पहुंचाते हैं जिससे पैदावार तो घटती ही है, साथ ही साथ बाज़ार में इनका दाम भी काफी कम मिलता है।

नियंत्रण के उपाय: इस कीट के नियंत्रण के लिए प्रकोप दिखते ही ट्राइसेल (क्लोरपायरीफॉस 20 इसी) @ 1 लीटर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

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रबी धान में उगने से पहले हीं कर लें खरपतवारों का सटीक प्रबंधन!

Pre-emergence weed management in summer paddy!

धान की फसल में रोग और कीटों के अलावा खरपतवार भी काफी नुकसान पहुंचाते हैं इसलिए समय रहते खरपतवारों को नष्ट करना बहुत जरूरी होता है। ध्यान रखें की धान की फसल में हानिकारक खरपतवारों के कारण विभिन्न कीट भी इन खरपतवारों के कारण आकर्षित होते हैं इसलिए बचाव जल्द से जल्द करने की जरुरत होती है।  

धान की फसल में उगने के पूर्व खरपतवार प्रबंधन, रोपाई के बाद 0 से 3 दिन के बाद एवं खरपतवार अंकुरण से पहले करना चाहिए। धान की फसल में रोपाई के 0-3  दिन के बाद खरपतवारों के जमाव को रोकने के लिए रेसर (प्रेटिलाक्लोर 50% ईसी) @ 400 मिली, 40 किलो रेत के साथ मिलाकर खेत में समान रूप से भुरकाव करें, और भुरकाव के समय खेत में 4-5 सेंटीमीटर जल स्तर बनाए रखें। “प्रेटिलाक्लोर” यह रसायन एक व्यापक स्पेक्ट्रम, चयनात्मक और पूर्व उद्भव खरपतवारनाशक है, जो लगभग सभी खरपतवारों (घास और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार) को नियंत्रित करता है।

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तरबूज की फसल में क्या है बोरोन का महत्व, जानें इसके कमी के लक्षण

Importance of Boron in crops and deficiency symptoms in watermelon

बोरोन के महत्व: यह पौधे के ऊतकों का स्थिरीकरण करता है, और फसल की ताकत में सुधार करता है। यह कैल्शियम के साथ मिलकर काम करता है और फसल की गुणवत्ता में वृद्धि करने में भी मदद करता है। साथ ही बोरोन का फसलों में फूल व फल के निर्माण में मुख्य योगदान होता है। यह फूल व फलों को झड़ने से रोकने तथा फलों के आकार व गुणवत्ता को बढ़ाने में मुख्य भूमिका निभाता है।

बोरोन कमी के लक्षण: इसकी कमी से तरबूज में पौधे की नई पत्तियाँ सामान्य से छोटी रह जाती हैं, और मुड़ी हुई हो सकती हैं। पीलापन शिराओं के बीच सीमांत क्षेत्र से केंद्र की ओर बढ़ता है। सबसे छोटी पत्तियों के नोक सूख जाते हैं, और विकास बिंदु मर जाते हैं, फूल भी नहीं लगते हैं और फल खराब हो जाते हैं। फलों के आकार लेने पर फल के बाहर की त्वचा में लचीलापन जरूरी है, जिससे फल ठीक तरह से विकसित होता है, लेकिन बोरोन की कमी से फल की त्वचा में कठोरता आती है जिससे फल फट जाते हैं। 

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