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शेतकरी बंधूंनो, सध्या मूग पिकावर शेंगा बोअर अळीचा प्रादुर्भाव दिसून येत आहे. हा सुरवंट प्रामुख्याने मूग पिकाचे नुकसान करतो. त्यामुळे उत्पादनात मोठे नुकसान होत आहे.
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पॉड बोअरर गडद हिरव्या रंगाचा असतो जो नंतर गडद तपकिरी होतो, हा किडा फुलोऱ्यापासून काढणीपर्यंत पिकाचे नुकसान करतो हा सुरवंट शेंगा छेदून आत प्रवेश करतो आणि धान्य खाऊन नुकसान करतो.
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ते नियंत्रित करण्यासाठी, इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी [एमानोवा] 100 ग्रॅम फ्लुबेंडियामाइड 39.35 % एससी [फेम] 50 मिली क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5 % एससी [कोस्को] 60 मिली प्रति एकर दराने फवारणी करावी.
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जैविक उपचार म्हणून, बवेरिया बेसियाना [बवे कर्ब] 250 ग्रॅम प्रती एकर दराने फवारणी करावी.
कद्दू वर्गीय फसलों में बोरोन है बेहद महत्वपूर्ण, जानें इसकी कमी के लक्षण
बोरोन का महत्व: यह पौधे के ऊतकों का स्थिरीकरण करता है, और फसल की ताकत में सुधार करता है। बोरोन कैल्शियम के साथ मिलकर काम करता है और फसल की गुणवत्ता में वृद्धि करने में भी मदद करता है। इसके अलावा बोरोन का फसलों में फूल, फल विकास में भी मुख्य योगदान होता है। यह फूल व फलों को झड़ने से रोकने तथा फलों के आकार व गुणवत्ता को बढ़ाने में मुख्य भूमिका निभाता है।
बोरोन कमी के लक्षण: इसकी कमी के कारण पौधों की नई पत्तियाँ सामान्य से छोटी होती हैं, और मुड़ी हुई हो सकती हैं। पीलापन शिराओं के बीच सीमांत क्षेत्र से केंद्र की ओर बढ़ता है। सबसे छोटी पत्तियों की नोक सूखी हुई होती है, और इसके विकास बिंदु मर जाते हैं, फूल भी नहीं लगते हैं और फल खराब हो जाते हैं। फलों के आकार लेने पर फल के बाहर की त्वचा में लचीलापन जरूरी है, जिससे फल ठीक तरह से विकसित होता है, लेकिन बोरोन की कमी से फल की त्वचा में कठोरता आती है जिससे फल फट जाते हैं।
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वेल असणाऱ्या पिकांसाठी सावलीच्या घराचे महत्त्व
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शेतकरी बंधूंनो, शेडनेट (सावली घर) ही जाळी किंवा इतर विणलेल्या साहित्यापासून बनलेली एक रचना आहे ज्यामध्ये सूर्यप्रकाश, ओलावा आणि हवा मोकळ्या जागेतून आवश्यकतेनुसार प्रवेश करू शकते. त्यामुळे झाडाच्या वाढीसाठी पोषक वातावरण तयार होते.
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ही वेल औषधी वनस्पती, भाजीपाला आणि वनस्पतींच्या लागवडीस मदत करते.
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शेडनेटमध्ये लागवड केल्यास किडींचा प्रादुर्भाव कमी होतो.
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गडगडाटी वादळ, पाऊस, गारपीट आणि दंव यांसारख्या हवामानातील नैसर्गिक नाशांपासून शेडनेट संरक्षण प्रदान करते.
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याचा उपयोग उन्हाळ्यात झाडांचा मृत्यू दर कमी करण्यासाठी केला जातो.
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हे टिशू कल्चर रोपांना मजबूत करण्यासाठी देखील वापरले जाते.
हा रोग मूगाचे उत्पादन कमी करतो?
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पानावरील ठिपके रोग : या रोगाची लक्षणे झाडाच्या सर्व भागात आढळून येतात व त्याचा परिणाम पानांवर मोठ्या प्रमाणात दिसून येतो.सुरुवातीला रोगाची लक्षणे लहान तपकिरी बोटीच्या आकाराचे ठिपके दिसतात, जी वाढतात. , पानांचा संपूर्ण भाग जळतो आणि ऊती मरतात ज्यामुळे झाडाचा हिरवा रंग नष्ट होतो.
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सरकोस्पोरा पानांवरील धब्बा रोग : या रोगाचा संसर्ग पहिल्या जुन्या पानांपासून सुरू होतो. पानांवर तपकिरी लाल कडा असलेले गडद तपकिरी ठिपके दिसतात, नंतर हे डाग अनियमित आकाराचे बनतात. पाने पिवळी पडतात व गळून पडतात.फुलांच्या वेळी जास्त प्रादुर्भावामुळे पाने गळून पडतात व दाणे कुरकुरीत होतात व रंगहीन होतात.
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तना झुलसा रोग : या रोगाचा प्रादुर्भाव पिकाच्या परिपक्वतेच्या वेळी दिसून येतो, या रोगामध्ये पानांवर अनियमित आकाराचे ठिपके देखील दिसतात
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अंगमारी/झुलसा रोग : या रोगात पानांवर गडद तपकिरी ठिपके दिसतात.दांड्यावर जांभळ्या-काळ्या रंगाचे अनियमित ठिपके दिसतात आणि शेंगांवर लाल किंवा तपकिरी रंग येतो. रोगाच्या गंभीर अवस्थेत, स्टेम कमकुवत होते.
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उपयुक्त रोगांसाठी योग्य व्यवस्थापन :
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रासायनिक व्यवस्थापन: थायोफिनेट मिथाइल 70% डब्ल्यूपी [मिल्ड्यू विप] 300 ग्रॅम कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% डब्ल्यूपी [कार्मानोवा] 300 ग्रॅम टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% डब्ल्यूजी [स्वाधीन ] 500 ग्रॅम क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यूपी [जटायु] 400 ग्रॅम/एकर या दराने फवारणी करा.
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जैविक व्यवस्थापन: या सर्व रोगांवर जैविक उपचारासाठी ट्रायकोडर्मा विरिडी 500 ग्रॅम स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 250 ग्रॅम/एकर या दराने फवारणी करू शकता.
शेतामध्ये ड्रोनचा वापर करताना या गोष्टी लक्षात ठेवा?
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शेतात फवारणीसाठी ड्रोन हा एक उत्तम पर्याय आहे. यामुळे कमी मनुष्यबळाची गरज असलेल्या पाण्याची आणि रसायनांची बचत होते. ड्रोनने फवारणी करताना खालील गोष्टी लक्षात ठेवा.
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ड्रोनने फवारणी करताना वेळीच पीपीई किट घातले आहे का याची खात्री करा जेणेकरुन रसायने नाकात आणि डोळ्यात जाऊ नयेत.
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फवारणी करताना धुम्रपान करू नका
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कमीत-कमी 5 मिनिटांसाठी फवारणी संचालनाचे परीक्षण करण्यासाठी शुद्ध पाण्याची (रसायनाशिवाय) फवारणी करा.
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पाण्यात कीटकनाशक पूर्णपणे विसर्जित करण्यासाठी दोन चरणांमध्ये पातळ करणे सुनिश्चित करा.
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वाऱ्याचा वेग, आर्द्रता आणि तापमानासाठी हवामानाची स्थिती तपासा. या परिस्थिती फवारणीच्या कार्यक्षमतेवर परिणाम करतात.
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मधमाशी परागण दरम्यान फवारणी करू नका.
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प्रभावी फवारणीसाठी टाकीतील पाण्याच्या प्रमाणासह ड्रोनची उड्डाणाची योग्य उंची आणि वेग याची खात्री करा.
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रसायनांचा जास्तीत-जास्त उपयोग करण्यासाठी एन्टी ड्रिफ्ट नोजल वापरणे आवश्यक आहे.
टरबूज मध्ये फळ माशीचे व्यवस्थापन
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भोपळा वर्गीय पिकांमध्ये, टरबूज पिकामध्ये फळमाशीचा हल्ला प्रामुख्याने दिसून येतो ज्यामुळे पिकाचे नुकसान होऊन उत्पादनावर परिणाम होतो.
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फळाची माशी फळांच्या आत अंडी घालते, सुरवंट अंड्यातून बाहेर पडतो आणि फळांचा लगदा खातो, ज्यामुळे फळे कुजतात.फळे वळतात आणि कमकुवत होतात आणि वेलीपासून वेगळी होतात.
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व्यवस्थापनाचे उपाय : फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% ईसी [डैनिटोल] 400 मिली प्रोफेनोफॉस 40 % + साइपरमेथ्रिन 4% ईसी [प्रोफेनोवा] 400 मिली स्पिनोसेड 45% एससी [ट्रेसर] 60 मिली/एकर या दराने फवारणी करावी.
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फळ माशीच्या चांगल्या व्यवस्थापनासाठी, 10 फ्रूट फ्लाई ट्रैपचा प्रती एकर दराने वापर करावा.
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जैविक व्यवस्थापनासाठी, बवेरिया बेसियाना [बवे कर्ब] 250 ग्रॅम/एकर या दराने उपयोग करू शकता.
तरबूज की फसल में गमी तना झुलसा के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय
तरबूज की खेती के दौरान इसके पूरे फसल चक्र में कई प्रकार के रोगों का प्रकोप देखने को मिलता है। इन रोगों की रोकथाम कर के तरबूज की अच्छी उपज की प्राप्ति की जा सकती है। तरबूज की फसल का एक प्रमुख रोग है गमी तना झुलसा और इस लेख में हम जानेंगे इसी रोग से संबंधित जानकारी एवं रोकथाम के उपाय।
लक्षण: तरबूज की फसल में गमी तना झुलसा गंभीर पर्णीय बीमारियों में से एक है। इस रोग में तने और पत्तियों पर भूरे धब्बे बन जाते हैं और यह धब्बे पीले ऊतकों से घेरे होते हैं। साथ ही तने में यह घाव बढ़कर गलन का निर्माण करता है और इससे चिपचिपे, भूरे रंग के द्रव का स्रावण होता है। इस रोग में फल शायद ही कभी प्रभावित होते हैं, लेकिन पर्णसमूह के नुकसान से उपज और फलों की गुणवत्ता भी प्रभावित हो सकती है।
नियंत्रण: गमी तना झुलसा से बचने के लिए रोग रहित बीज का उपयोग करें, साथ ही सभी कद्दू वर्गीय फसलों से 2 वर्ष का फसल चक्र रखें। इसके अलावा रोग के लक्षण दिखाई देने पर रासायनिक नियंत्रण के लिए, फफूंदनाशक जैसे जटायु (क्लोरोथॅलोनिल 75% डब्लूपी) 400 ग्राम प्रति एकड़ या एम 45 (मैंकोज़ेब 75% डब्लूपी) 600-800 ग्राम प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के दर से छिड़काव करें। इसके जैविक नियंत्रण के लिए, मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरोसेन्स) 500 ग्राम/एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।
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क्यों ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती किसानों के लिए है फायदेमंद?
रबी की फसलों की कटाई के बाद खरीफ सीजन आने तक खेत खाली रह जाता है। पर किसान भाई चाहें तो रबी तथा खरीफ के बीच वाले समय जिसे जायद कहते हैं, का सही इस्तेमाल कर के बढ़िया लाभ प्राप्त कर सकते हैं। जायद सीजन में खेती के लिए सबसे अच्छा चुनाव अगर कोई हो सकता है तो वो है मूंग की फसल का जो कम अवधि की फसल है और अच्छा मुनाफ़ा दे सकती है। इसकी खेती के फायदेमंद होने के मुख्य कारण निम्न हैं।
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इसकी खेती खरपतवारों को नियंत्रित करती है और गर्मियों में हवा के कटाव को रोकती है।
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फसल पर कीट एवं रोगों का आक्रमण बहुत कम होता है।
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फसल/किस्में परिपक्व होने में कम समय लेती हैं (60-65 दिन)
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इसकी खेती से राइजोबियम फिक्सेशन के माध्यम से कम से कम 30-50 किग्रा उपलब्ध नाइट्रोजन/हेक्टेयर जुड़ जाता है जिसे अगली खरीफ मौसम की फसल में उर्वरकों को देते समय समायोजित किया जा सकता है।
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इसकी खेती से फसल की सघनता बढ़ जाती है।
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आलू, गेहूँ और सर्दियों के मौसम की मक्का जैसी भारी उर्वरक माँग वाली फसलों के बाद उगाए जाने पर यह मिट्टी की अवशिष्ट उर्वरता का उपयोग करती है।
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धनिया की खेती से कम समय में मिल जायेगी जबरदस्त उपज और होगी खूब कमाई
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धनिया की फसल के लिए शुष्क व ठंडा मौसम अच्छा होता है। इसके बीजों के अंकुरण के लिए 25 से 26 से.ग्रे. तापमान अच्छा होता है।
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धनिया की सिंचित फसल के लिए अच्छी जल निकास वाली दोमट मिट्टी सबसे अधिक उपयुक्त होती है और असिंचित फसल के लिए काली भारी भूमि अच्छी होती है। धनिया क्षारीय एवं लवणीय भूमि को सहन नही करता है।
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सिंचित क्षेत्र में अगर, जुताई के समय भूमि में पर्याप्त नमी न हो तो भूमि की तैयारी सिंचाई करने के उपरांत करनी चाहिए। इससे जमीन में जुताई के समय ढेले भी नही बनेंगे तथा खरपतवार के बीज अंकुरित होने के बाद जुताई के समय नष्ट हो जाएंगे।
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धनिया की उन्नत किस्में जैसे फाऊजा, सुरभी, रौनक-31 की खेती कर सकते हैं। बोने के समय की बात करें तो हरे पत्तों की उपज के लिये अप्रैल – मई माह में इसकी बिजाई कर सकते हैं।
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सिंचित फसल में 15-20 किग्रा/हे तथा असिंचित फसल में 25-30 किग्रा/हे बीज की आवश्यकता होती है।
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भूमि एवं बीज जनित रोगों से बचाव के लिए बीज को करमानोवा (कार्बेंन्डाजिम + मेंकोजेब) 2.5 ग्रा./कि.ग्रा. से उपचारित करें। धनिया की अच्छी पैदावार लेने के लिए गोबर खाद 20 टन/हे का भुरकाव करें। सिंचित फसल 60 किग्रा नत्रजन, 40 किग्रा फॉस्फोरस, 20 किग्रा पोटाश तथा 20 किग्रा सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से उर्वरक का उपयोग करें।
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कद्दूवर्गीय सब्जियों की फसल के प्रमुख कीट एवं नियंत्रण के उपाय
लालभृंग: यह चमकीले लाल रंग का कीट है जो पत्तियों को विशेषकर शुरूआती अवस्था में खा कर छलनी जैसा बना देता है। ग्रसित पत्तियाँ फट जाती हैं तथा पौधों की बढ़वार रूक जाती हैं।
नियंत्रण: रासायनिक नियंत्रण के लिए मारक्विट (बायफैनथ्रिन 10% EC) 2 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड 0.5 मिली मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। जैविक नियंत्रण के लिए बवेरिया वेसियाना 2 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
लीफ माइनर: इस कीट की इल्ली पत्तियों के अंदर सुरंग बना कर हरितलवक को खाती हैं। इसके प्रभाव से पत्तियों पर सफ़ेद धारियां बन जाती हैं। यह मुख्य रूप से टमाटर, गिलकी, ककड़ी एवं समस्त कद्दू वर्गीय फसलों को नुकसान पहुँचाती है।
नियंत्रण: इसके नियंत्रण के लिए नीमगोल्ड (एजाडिरेक्टिन 0.3%) 3000 पीपीएम 150 मिली, या बेनेविया (सायट्रानिलिप्रोएल 10.26% ओडी ) 20-25 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड 5 मिली प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
फलमक्खी: इस कीट के मैगट छोटे फलों को अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। इसकी इल्ली फल को अंदर से नुकसान पहुंचती है। इससे फल पकने से पहले ही गिर जाते हैं। इल्ली का आक्रमण होने से फलों में से भूरे रंग का चिपचिपा द्रव बहता है और फल का आकार बिगड़ जाता है। फल मक्खी अंडे देने के लिए फलों में छेद करती हैं। जिससे फलों में छेद नजर आने लगते हैं। प्रभावित फलों का आकार टेढ़ा हो जाता है। कीट का प्रकोप बढ़ने पर फल सड़ने लगते हैं।
नियंत्रण: इसके मैगट पर सीधा नियंत्रण संभव नहीं है परंतु वयस्क नर मक्खियों की संख्या पर नियंत्रण करके इनके प्रकोप को कम किया जा सकता है। खेत में पौधों की रोपाई से पहले खेत की गहरी जुताई करें। इससे मिट्टी में पहले से मौजूद प्यूपा नष्ट हो जाएंगे। कीट को आकर्षित करने के लिए प्रति एकड़ खेत में 10 से 12 फेरोमोन ट्रैप लगाएं और इसके ल्यूर को 15 -20 दिन के अंतराल से बदलें। ल्यूर से नर कीट आकर्षित हो कर फंस जाते हैं। इससे फल मक्खियों की वृद्धि को नियंत्रित किया जा सकता है। प्रभावित फलों को तोड़ कर नष्ट कर दें। साथ ही रासायनिक नियंत्रण के लिए डेसिस (डेल्टामैथ्रिन 100 EC) 1 मिली प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें या सेलक्विन (क्विनलफॉस 25% EC) 2 मिली प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
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