भिंडी की फसल में तना एवं फल छेदक कीट की पहचान और नियंत्रण के उपाय

Identification and control of stem and fruit borer in okra crop

लक्षण: इस कीट का प्रकोप सबसे अधिक होता है। प्रारंभिक अवस्था में इसकी इल्ली कोमल तने में छेद करती है जिससे पौधे का तना एवं शीर्ष भाग सूख जाता है। इसके आक्रमण से फूल लगने के पूर्व हीं गिर जाते है। इसके बाद फल में छेद बनाकर अंदर घुसकर गूदे को खाते हैं जिससे ग्रसित फल मुड़ जाते हैं और फल खाने योग्य नहीं रहते हैं। इससे बाजार भाव में काफी गिरावट देखने को मिलती है। 

नियंत्रण: इस कीट के नियंत्रण के लिए लैमनोवा(लैम्ब्डा-साइहलोथ्रिन 04.90% सीएस) 120 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करे या  कवर (क्लोरेंट्रानिलिप्रोएल 18.50% एस.सी) 50 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें। 

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टमाटर के फलों के फटने का कारण एवं नियंत्रण के उपाय

Causes and control of tomato fruit cracking

टमाटर की खेती में फलों के फटने की समस्या बढ़ती जा रही है। फलों के पकने के समय यह समस्या अधिक होती है। फलों के फटने का कारण एवं इस पर नियंत्रण की उचित जानकारी नहीं होने के कारण इस समस्या से निजात पाना किसानों के लिए कठिन होता जा रहा है। फटे हुए फलों की बाजार में बिक्री भी नहीं होती है जिससे किसानों को भारी नुकसान होता है। 

टमाटर के फलों के फटने का कारण

  • सही समय पर सिंचाई नहीं करना 

  • बोरोन की कमी होने पर

  • तापमान में बदलाव के कारण 

  • फूल अवस्था में अत्यधिक नाइट्रोजन का प्रयोग

  • पोटाश की कमी से भी यह समस्या होती है

टमाटर के फलों को फटने से बचाने के तरीके

  • मिट्टी में नमी बनाये रखें और इसके लिए एक निश्चित अंतराल पर सिंचाई करें।

  • बोरोन की कमी की पूर्ति के लिए, खेत में प्रति एकड़ 3 से 4 किलोग्राम बोरेक्स का प्रयोग करें।

  • पौधों में फूल आने के बाद यूरिया का प्रयोग कम करें। यूरिया की जगह पानी में घुलनशील एनपीके 19:19:19 उर्वरक का प्रयोग करें।

  • पौधों की रोपाई से पहले, मुख्य खेत में पोटाश मिलाएं। इससे पौधों में पोटाश की कमी पूरी होगी और यह रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाएगा।

  • 2 ग्राम बोरोन 20% प्रति लीटर पानी में स्टीकर के साथ मिला कर प्रयोग करें।

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आइये जानते है मिट्टी परीक्षण से मिलने वाले लाभ

Sample Collection Method for Soil Testing
  • मिट्टी परीक्षण कराने से, मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों के साथ, लवणों की मात्रा की भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

  • परीक्षण के बाद मिट्टी में जिन पोषक तत्वों की कमी हो उनकी पूर्ति की जा सकती है।

  • मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों के अनुसार फसलों का चयन कर अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।

  • मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ाई जा सकती है।

  • मिट्टी जांच से मिट्टी के पी.एच स्तर की जानकारी मिलती है।

  • मिट्टी जांच से मिट्टी में पाए जाने बाले 12 प्रकार के पोषक तत्व की जानकारी मिलती है और खेती में लगने वाले खर्च को कम किया जा सकता है। 

  • मिट्टी परीक्षण, हर 3 साल में एक बार अवश्य करवाना चाहिए। 

  • इससे फसल में लगने वाले उर्वरक या खाद की सही मात्रा तय हो जाती है। किसान अपनी फसल में उर्वरकों का अच्छा प्रबंधन करके अतिरिक्त लागत को कम कर सकते हैं।

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मिट्टी परीक्षण के लिए नमूना निकालते समय जरूर बरतें ये सावधानियां

Precautions while taking sample for soil test
  • मिट्टी परीक्षण के लिए मिट्टी का नमूना इस तरह से लेना चाहिए जिससे वह पूरे खेत की मिट्टी का प्रतिनिधित्व करें। 500 ग्राम नमूना मिट्टी परिक्षण के लिए पर्याप्त होता है।

  • मिट्टी के नमूने को दूषित होने से बचाने के लिए साफ औजारों का उपयोग करें और साफ थैली में डालें। ऐसी थैली काम में न लाएं जो खाद एवं अन्य रसायनों के लिए प्रयोग में लाई गई हो।

  • मिट्टी का नमूना बुआई से लगभग एक माह पूर्व ग्रामोफ़ोन की प्रयोगशाला में भेज दें जिससे समय पर मिट्टी की जांच रिर्पोट मिल जाएं एवं उसके अनुसार उर्वरक एवं भूमि सुधारकों का उपयोग किया जा सके।

  • जिस खेत मे कम्पोस्ट, खाद, चूना, जिप्सम तथा अन्य कोई भूमि सुधारक तत्काल डाला गया हो तो उस खेत से नमूना न लें।

  • धातु से बने औजारों या बर्तनों को काम में नहीं लाएं क्योंकि इनमें लौह, जस्ता व तांबा होता है। जहां तक संभव हो, प्लास्टिक या लकड़ी के औजार काम में लें।

  • खेत में, जिस जगह ज्यादा समय तक पानी भरा रहता है वहां से नमूना न लें। सिंचाई की नाली मेड़, पेड़ के नीचे से या खाद के ढेर के आसपास से नमूना नहीं लेना चाहिए। 

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कारल्याच्या पिकामध्ये पानांवरील बोगदा किटकाचे नियंत्रणाचे उपाय

Control of leaf minor pest in bitter gourd crop
  • शेतकरी बंधूंनो, कारल्याच्या पिकामध्ये लीफ माइनर कीटकांच्या अर्भकांमुळे बरेच नुकसान होते, हे लहान, पाय नसलेले, पिवळ्या रंगाचे आणि प्रौढ कीटक हलक्या पिवळ्या रंगाचे असतात आणि त्याच्या नुकसानीची लक्षणे प्रथम पानांवर दिसतात.

  • मादी पतंग पानांच्या आतल्या पेशींमध्ये अंडी घालते त्यामुळे अळ्या बाहेर येतात आणि पानांमधील हिरवे पदार्थ खातात आणि बोगदे तयार करतात त्या कारणांमुळे पानांवर पांढऱ्या रेषा दिसतात.

  • प्रभावित झाडावर फळे कमी पडतात आणि पाने अकाली पडतात. झाडांची वाढ थांबते आणि झाडे लहान राहतात. या किडीच्या हल्ल्यामुळे वनस्पतींच्या प्रकाश संश्लेषणावरही परिणाम होतो.

  • या किडीच्या नियंत्रणासाठी उपाययोजना, एबामेक्टिन 1.9 % ईसी [अबासीन] 150 मिली स्पिनोसैड 45% एससी [ट्रेसर] 60 मिली सायनट्रानिलीप्रोल 10.26% ओडी [बेनेविया] 250 मिली प्रति एकर दराने फवारणी करावी.

  • जैविक उपचारांसाठी, बवेरिया बेसियाना [बवे कर्ब] 500 ग्रॅम प्रति एकर दराने फवारणी करावी.

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जायद मूंग की फसल को खरपतवारों के प्रकोप से ऐसे बचाएं

Weed management in summer moong

मूंग की फसल में खरपतवारों का नियंत्रण सही समय पर नहीं करने से फसल की उपज में 40-60 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है। खरीफ मौसम में फसलों में संकरी पत्ती वाले खरपतवार जैसे – सँवा (इकैनोक्लोआ कोलोनम/क्रस्गली),दूब घास (साइनेडान डेकटीलॉन) एवं चौड़ी पत्ती वाले   पत्थरचटा ( ट्राएंथमा मोनोगायना), कनकवा (कोमेलिना बेंघालेंसिस), मह्कुवा (अजिरेटम कोनोजाइड), सफ़ेद मुर्ग (सिलोसिया अरजेन्शिया), हजारदाना (फाएलेंथस निरुरी), लह्सुआ (डाइजेरा अरवेंसिस) तथा मोथा (साइप्रस रोटनडस, साइप्रस इरिया) आदि वर्ग के खरपतवार बहुतायत से निकलते हैं। फसल व खरपतवार के प्रतिस्पर्धा की क्रांतिक अवस्था मूंग में प्रथम 30 से 35 दिनों तक रहती है, इसलिए प्रथम निदाई गुड़ाई 15-20 दिनों पर तथा द्वितीय 35-40 दिनों पर करनी चाहिए। कतार में बोई गई फसल में व्हील हो नामक यंत्र द्वारा यह कार्य आसानी से किया जा सकता है। इसके अलावा किसान भाई खरपतवारनाशक का छिड़काव करके भी  प्रभावी नियंत्रण पा सकते हैं। खरपतवारनाशक दवाओं के छिड़काव हेतु हमेशा फ्लैट फेन नोजेल का प्रयोग करें और प्रति एकड़ छिड़काव के लिए 200 लीटर पानी का उपयोग करें। 

उपयोग हेतु कुछ प्रमुख खरपतवारनाशक: 

  •  दोस्त सुपर @ 700 मिली/एकड़ (बुवाई के तीन दिन के अंदर करें छिड़काव)

  • वीड ब्लॉक @ 300 मिली/एकड़ (बुवाई के15-20 दिन बाद)

  • रगा सुपर @ 400 मिली/एकड़ (बुवाई के 15-20 दिन बाद – सकरी पत्ती खरतवार हेतु)

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उन्हाळ्यात रिकाम्या शेतात हे काम करा?

Do these agricultural work in empty fields in summer
  • शेतकरी बंधूंनो, रब्बी पिके घेतल्यानंतर, शेत रिकामे राहिल्यास उन्हाळी हंगामात खोल नांगरणी करा, मृदा सौरीकरण, माती परीक्षण इत्यादी अतिशय फायदेशीर आहेत.

  • खोल नांगरणी – उन्हाळी हंगामात रब्बी पिकाची काढणी झाल्यानंतर लगेचच खोल नांगरणी करून पुढील पिकापासून अधिक उत्पादन मिळविण्यासाठी शेत रिकामे ठेवणे फायदेशीर ठरते. उन्हाळी नांगरणी एप्रिल ते जून या कालावधीत केली जाते, शक्यतो शेतकऱ्यांनी रब्बी पीक काढणीनंतर लगेचच माती फिरवणाऱ्या नांगराने उन्हाळी नांगरणी करावी.

  • मृदा सौरीकरण-  यासाठी मातीच्या पृष्ठभागावर पॉलिथिनची शीट पसरवा, त्यामुळे जमिनीच्या उष्णतेमुळे थराखालील तापमान मोठ्या प्रमाणात वाढते, त्यामुळे रोगजंतू, अनावश्यक बिया, कीटकांची अंडी, पतंग इत्यादी सर्व नष्ट होतात. 15 एप्रिल ते 15 मे हा माती सोलारीकरणासाठी उत्तम काळ आहे.

  • माती परीक्षण- काढणीनंतर माती परीक्षण करणे आवश्यक आहे. माती परीक्षणामुळे मातीचे पीएच, विद्युत चालकता, सेंद्रिय कार्बन तसेच प्रमुख आणि सूक्ष्म पोषक घटकांची कमतरता निश्चित केली जाते, जी कालांतराने दुरुस्त केली जाऊ शकते.

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उन्हाळ्यात पांढऱ्या वेणीची अंडी अशा प्रकारे नष्ट करा?

Destroy the eggs of white grub in the summer season like this
  • शेतकरी बंधूंनो, पांढरा ग्रब हा पांढर्‍या रंगाचा कीटक आहे जो मातीत राहतो.

  • ही अळी प्रामुख्याने मुळांना हानी पोहोचवते.

  • पिकांवर पांढऱ्या करपा प्रादुर्भावाची लक्षणे दिसून येतात त्याचे मुख्य लक्षण म्हणजे झाड कोमेजणे, झाडाची वाढ थांबणे आणि नंतर झाडाचा मृत्यू होणे.

  • तसे, या किडीचे नियंत्रण जून-जुलैच्या पहिल्या आठवड्यात करावे.

  • यासाठी उन्हाळ्यात शेताची खोल नांगरणी करून मेटाराइजियम अनिसोप्लिया [कालीचक्र] 2 किलो + 50-75 किलो शेणखत/कंपोस्ट खतामध्ये मिसळून रिकाम्या शेतात प्रति एकर या प्रमाणात शिंपडा.

  • पिकाच्या अपरिपक्व अवस्थेतही या किडीचा प्रादुर्भाव दिसून येत असेल, तर पांढऱ्या किडीच्या नियंत्रणासाठी रासायनिक प्रक्रियाही करता येते.

  • यासाठी फेनप्रोपेथ्रिन 10% ईसी [डेनिटोल] 500 मिली क्लोथियानिडिन 50.00% डब्ल्यूजी [डेनटोटसू] 100 ग्रॅम क्लोरपायरीफोस 20% ईसी [ट्राइसेल] 1 लीटर/एकर दराने मातीमध्ये मिसळून वापर करावा. 

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भोपळा वर्गीय पिकांमध्ये कोळी नियंत्रणाचे उपाय

Mites infestation in cucurbitaceous crops
  • शेतकरी बंधूंनो, भोपळा वर्गीय पिकांमध्ये कोळी प्रामुख्याने नुकसान करतात. कोळी हे लहान आणि लहान लाल रंगाचे कीटक आहेत जे भोपळा श्रेणीतील पिकांच्या मऊ भागांवर मोठ्या प्रमाणात आढळतात जसे की पाने, फुले, कळ्या आणि डहाळे यावर आढळतात. 

  • ज्या झाडांवर कोळीच्या जाळ्यांचा प्रादुर्भाव असतो, त्या झाडावर दिसतात.

  • हे कीटक रस शोषून झाडाचे मऊ भाग कमकुवत करतात आणि शेवटी वनस्पती मरते.

  • रासायनिक नियंत्रण:- प्रोपरजाइट 57% ईसी [ओमाईट] 200 मिली स्पाइरोमैसीफेन 22.9% एससी [ओबेरोन] 200 मिली ऐबामेक्टिन 1.8% ईसी [अबासीन] 150 मिली/एकर या दराने फवारणी करावी. 

  • जैव-व्यवस्थापन:- जैविक उपचार म्हणून तुम्ही मेट्राजियम 1 किलो/एकर या दराने वापरू शकता.

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पॉलीहाऊस पिकांसाठी मृदा आरोग्य व्यवस्थापनही आवश्यक

Soil health management is also necessary for polyhouse crops
  • पॉलिहाऊस/ग्रीनहाऊसमध्ये, वर्षभर पिकांच्या चांगल्या उत्पादनासाठी वेगवेगळ्या प्रकारची खते सतत वापरली जातात.

  • या कारणास्तव, पॉलीहाऊसच्या मातीचे आरोग्य 3-4 वर्षातच बिघडू लागते. चांगले बियाणे, योग्य पोषक तत्वे आणि सर्व खबरदारी असूनही, पिकाचे उत्पादन आणि गुणवत्ता मोठ्या प्रमाणात घटू लागली आहे.

  • त्यामुळे वैज्ञानिकपद्धतीने शेती करणे आवश्यक आहे. शेतकऱ्यांनी जमिनीचे आरोग्य नियमितपणे तपासावे व त्याची संपूर्ण माहिती ठेवावी.

  • माती परीक्षणासाठी योग्य नमुने घेणे फार महत्वाचे आहे.

  • पॉलीहाऊस/ग्रीनहाऊसच्या आतील वेगवेगळ्या ठिकाणांहून नमुना घेतला जातो, नंतर तो चांगला मिसळला जातो आणि चार भागांमध्ये विभागला जातो.

  • अर्धा किलोग्राम नमुना शिल्लक होईपर्यंत ही प्रक्रिया पुनरावृत्ती होते.

  • अशा प्रकारे प्राप्त केलेला नमुना चाचणी केंद्रावर पाठविला जातो आणि अहवालानुसार शेतातील खताचा वापर केला जातो.

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