कपास की फसल में बुवाई के बाद ऐसे करें खरपतवारों का प्रबंधन

How to manage weed in cotton
  • कपास की फसल में खरपतवार के कारण पैदावार में बहुत ज्यादा कमी आती है। बुवाई से 50-60 दिनों तक कपास का खेत खरपतवार मुक्त होना चाहिए। यह अच्छी उपज के लिए आवश्यक है।

  • बुवाई के बाद पहली सिंचाई से पहले हाथ से खरपतवार हटाएं। साथ ही हर सिंचाई के बाद इस प्रक्रिया को दोहराएं। 

  • शाकनाशी का प्रयोग बुवाई के तीन दिन के अंदर करें, इसके लिए दोस्त (पेंडीमेथलीन 30% ईसी) 1000 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

  • शाकनाशी के प्रयोग के समय मिट्टी में पर्याप्त नमी मौजूद होनी चाहिए। इसके प्रयोग से फसल  20-30 दिनों तक खरपतवार मुक्त बनी रहती है। 

  • यदि बुआई के समय शाकनाशी का प्रयोग नहीं किया गया हो तो बुवाई के 18 से 20  दिन के बीच निराई-गुड़ाई जरूर करें।

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कपास की फसल में आद्र गलन की समस्या एवं निवारण के उपाय

Problem and solution of Damping Off in Cotton Crop

आद्र गलन रोग के लक्षण:

  • आद्र गलन रोग कपास की फसल में लगने वाले कुछ घातक रोगों में से एक है। इस रोग के कारण 5 से 20% तक फसल नष्ट हो जाते हैं। 

  • आद्र गलन रोग का प्रभाव 10-15 दिन के पौधों में ज्यादा देखने को मिलता है। इस रोग से पौधों के जड़ और तना गलने लगते हैं।

  • इससे तने पतले होने लगते हैं और पत्ते मुरझाने लगते हैं। इस रोग की समस्या बढ़ने पर, पौधों की पत्ती पीली होकर, सूखने लगती है एवं पौधे जमीन पर गिर जाते हैं।

आद्र गलन रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • इस रोग से बचाव के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिए और आद्र गलन रोग के प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए।

  • बीजों की बुवाई से पूर्व बीजोपचार करना अति आवश्यक है। 

  • जैविक नियंत्रण के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 8 ग्राम ट्राइकोडर्मा से उपचारित करें।

  • विटावेक्स (कार्बोक्सिन37.5%+ थिरम37.5%डब्ल्यू एस) 3 ग्राम/किलो बीज से उपचारित करें।

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मूंग में सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग की पहचान व नियंत्रण के उपाय

Identification and control of Cercospora leaf spot Disease in moong crop

सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग के कारण मूंग की पत्तियों पर भूरे गहरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं जिनका बाहरी किनारा गहरे से भूरे लाल रंग का होता है। यह धब्बे पत्ती के ऊपरी सतह पर अधिक स्पष्ट दिखाई देते हैं। रोग का संक्रमण पुरानी पत्तियों से प्रारम्भ होता है। अनुकूल परिस्थतियों में यह धब्बे बड़े आकार के हो जाते हैं और अंत में रोगग्रस्त पत्तियाँ गिर जाती हैं।

रोकथाम: इसके नियंत्रण के लिए बुवाई से पहले बीज को कैप्टान या थीरम नामक कवकनाशी से (2.5 ग्रा./कि.ग्रा. की दर से) शोधित करें या बुबाई के 10-15 दिन बाद यह रोग दिखाई दे तो  धानुस्टिंन (कार्बेन्डाजिम 50% डब्लू.पी) 200 ग्राम/एकड़ या एम-45 (मैनकोजेब 75% डब्लू.पी) 400 ग्राम/एकड़ रोग की शुरुआत में और 10 दिन बाद 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

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खीरे की फसल में फल मक्खी का प्रकोप एवं निवारण के उपाय

Identification and control of fruit fly in cucumber crop

यह खीरे की फसल में पाए जाने वाला एक प्रमुख कीट है, इसकी मादा मक्खियां नए फल के छिलके के अंदर की ओर अंडे देती हैं और फिर इसके मेगट फल के गुद्दे को खाती है। इसी वजह से फल गलना शुरू हो जाता है। मक्खी फल में छेद कर देती है जिससे फल का आकार बिगड़ जाता है और फल धीरे धीरे सड़ जाता है। 

रोकथाम:  इसकी रोकथाम के लिए नीमगोल्ड नीम तेल 1000 मीली/एकड़ या फेरोमोन – फ्रूट फ्लाई ट्रैप 10/एकड़ की दर से लगाएं या बवे कर्व (बवेरिया बेसियाना 5% डब्ल्यूपी) 500 ग्राम/एकड़ की दर 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

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खीरे की फसल में पाउडरी मिल्ड्यू की पहचान एवं निवारण के उपाय

Identification and Prevention of Downy Mildew in Cucumber

पाउडरी मिल्ड्यू रोग खीरे की फसल में लगने वाला एक प्रमुख रोग है जो फंगस के माध्यम से फैलता है। यह पत्तों और तने पर सफ़ेद रंग के पाउडर के रूप में दिखाई देता है। पाउडरी मिल्ड्यू से प्रभावित हिस्सों पर हाथ लगाने पर, उंगलियों में पाउडर लग जाता है। इस रोग के कारण प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बाधित होती है एवं फसल में फूल और फल नहीं बन पाते हैं। पाउडरी मिल्ड्यू रोग की समस्या ज्यादा होने पर, उत्पादन में कमी भी आ जाती है। 

नियंत्रण: यदि इसका संक्रमण फसलों में दिखे तो एम -45 (मैनकोजेब 75% डब्ल्यूपी) 400 ग्राम/एकड़ या जटायु क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यू पी 400 ग्राम/एकड़ 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें। 10 दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव करके डाउनी मिल्ड्यू को नियंत्रित किया जा सकता है।

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मूग पिकामध्ये 40 दिवसांच्या अवस्थेत केली जाणारी आवश्यक फवारणी

Know the benefits of growing summer moong
  • शेतकरी बंधूंनो, सध्या बहुतांश शेतात मुगाचे पीक घेतले जाते. ज्या भागात मुगाची पेरणी लवकर झाली तेथे पिके आता 40 ते 50 दिवसांची झाली आहेत.

  • पिकाचा हा टप्पा हा एक प्रमुख टप्पा आहे ज्यामध्ये सोयाबीनातील धान्याचा दर्जा वाढवण्यासाठी आणि कीड आणि बुरशी रोगांचे नियंत्रण करण्यासाठी विशेष काळजी घेणे आवश्यक आहे.

  • यावेळी खालील शिफारशींचा अवलंब करून पिकापासून योग्य फायदा मिळवता येतो.

  • नोवालूरान 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% एससी [बाराज़ाइड] 600 मिली + प्रोपिकोनाज़ोल [जेरॉक्स] 200 मिली + 0:00:50 [ग्रोमोर] 1 किग्रॅ/एकर या दराने फवारणी करावी. 

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खीरे की फसल में डाउनी मिल्ड्यू रोग की पहचान और निवारण के उपाय

Identification and Prevention of Downy Mildew in Cucumber

डाउनी मिल्ड्यू को हिंदी भाषा में मृदुरोमिल आसिता कहते हैं। यह खीरे के पौधों को बहुत अधिक प्रभावित करने वाला एक फंगस जनित रोग है, जो पौधे को सभी अवस्था में प्रभावित कर सकता है। इस रोग के कारण पौधे की पत्तियों की शिराओं के बीच की सतह पर धब्बे दिखाई देने लगते हैं और पत्तियां पीली होकर गिर जाती हैं। डाउनी मिल्ड्यू से प्रभावित पौधे ठीक तरह से वृद्धि नहीं कर पाते और पौधों में अच्छे फल नहीं लग पाते हैं।

नियंत्रण: यदि इसका हमला देखा जाये तो एम -45 (मैनकोजेब 75% डब्ल्यूपी) 400 ग्राम/एकड़ या जटायु (क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यू पी) 400 ग्राम/एकड़ 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें। 

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टमाटर में पछेती झुलसा रोग की पहचान और निवारण के उपाय

Identification and prevention of Late Blight disease in Tomato

इस रोग के कारण पत्तियों और तने पर पानी से लथपथ काले धब्बे बन जाते है। घाव तेजी से फैलते हैं और पूरी पत्ती सूख जाती है। पत्तियों पर किनारे से धब्बे बनना शुरू होते हैं और धीरे-धीरे ये धब्बे तने और फल पर भी दखाई देते हैं। फल पर गहरे भूरे रंग के घाव बन जाते हैं। मौसम में बार-बार बदलाव होना, खेतों में ज्यादा नमी, से इस रोग का फैलाव तीव्रता से होता है। 

नियंत्रण: यदि इसका हमला देखा जाए तो ब्लू कॉपर (कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्ल्यूपी) 300 ग्राम/एकड़ या नोवाक्रस्ट (एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एससी) 300 मिली/एकड़ या  ताक़त कैप्टान 70% + हेक्साकोनाज़ोल 5% डब्ल्यू पी 370 ग्राम/एकड़, 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें। 

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टमाटर में अगेती झुलसा रोग की पहचान और निवारण के उपाय

Identification and prevention of early Blight disease in Tomato

यह टमाटर की खेती में पाई जाने वाली प्रमुख बीमारी है। इसके कारण शुरू में पत्तों पर छोटे भूरे धब्बे बनते हैं पर बाद में ये धब्बे तने और फल के ऊपर भी दिखाई देने लगते हैं। पूरी तरह से विकसित धब्बे अनियमित, गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं जिनमें धब्बों के अंदर संकेंद्रित छल्ले होते हैं। ज्यादा हमला होने पर इसके पत्ते झड़ जाते हैं और पौधा सूख जाता है। 

नियंत्रण: यदि इसका हमला देखा जाए तो नोवाक्रस्ट (एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एससी) 300 मिली/एकड़ या ताक़त (कैप्टान 70% + हेक्साकोनाज़ोल 5% डब्ल्यू पी) 370 ग्राम/एकड़, 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

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टमाटर की फसल में एन्थ्रेक्नोज की समस्या और निवारण के उपाय

Anthracnose disease increasing in tomato

गर्म तापमान और ज्यादा नमी वाली स्थिति में यह एन्थ्रेक्नोज की बीमारी फसलों में सबसे ज्यादा फैलती है। इस बीमारी से टमाटर के पौधे के प्रभावित हिस्सों पर काले धब्बे पड़ जाते हैं। यह धब्बे आमतौर पर गोलाकार, पानी के साथ भीगे हुए और काली धारियों वाले होते हैं। जिन फलों पर ज्यादा धब्बे हों वे पकने से पहले ही झड़ जाते हैं, जिससे फसल की पैदावार में भारी गिरावट आ जाती है।

नियंत्रण: इसके निवारण के लिए ताक़त (कैप्टान 70% + हेक्साकोनाज़ोल 5% डब्ल्यू पी), 370 ग्राम/एकड़ 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

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