बैंगन की फसल में एफिड कीट की पहचान एवं निवारण के उपाय

Identification and prevention of Aphid pests in brinjal crops

एफिड एक सूक्ष्म कीट होता है जो देखने में पीला, भूरा या काले रंग का होता है। आमतौर पर यह कीट बैंगन की पत्तियों की निचली सतह पर पाई जाती है जो समूह बनाकर पत्तियों से रस चूसते हैं। इससे पत्तियों का आकार बिगड़ जाता है। यह कीट पत्तियों पर चिपचिपा मधुरस (हनीड्यू) छोड़ते हैं जिससे फफूंदजनित रोगों की संभावनाएं बढ़ जाती है। गंभीर संक्रमण के कारण पत्तियां मुरझा जाती हैं और पौधे का विकास रुक जाता है। 

निवारण: कीट का प्रकोप दिखने पर सोलोमोन (बीटा-सायफ्लुथ्रिन 08.49% + इमिडाक्लोप्रिड 19.81% OD) 80 मिली/एकड़ या टाफगोर (डाइमेथोएट 30% EC) 300 मिली/एकड़ 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

अच्छी उपज प्राप्ति के लिए कपास की फसल में ऐसे करें खाद का प्रबंधन

How to manage fertilizer in a cotton crop

ज्यादातर किसान बुआई के समय खाद का प्रयोग नहीं करते हैं, वे अक्सर ये धारणा रखते हैं कि अभी गर्मी ज्यादा है तो खाद देना उचित नहीं होगा, और बारिश होने पर खाद देंगे, लेकिन यह सोच गलत है। जड़ और शाखाओं के शुरूआती विकास के लिए प्रारंभिक अवस्था में आधार खाद डालना अतिआवश्यक होता है अन्यथा उत्पादन में भारी कमी होती है। इसलिए उपलब्ध होने पर, अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद/कम्पोस्ट को 4 से 5 टन प्रति एकड़ की दर से, अवश्य देना चाहिए।

कपास की अच्छी वृद्धि विकास के लिए (यूरिया -30 किलो) (डीएपी-50 किलो) (म्यूरेट ऑफ पोटाश-30 किलो) ट्राई-कोट मैक्स 4 किलो प्रति एकड़ की दर से आखरी जुताई या खेत की तैयारी करते समय दें। 

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

कपास की फसल को व्हाइट ग्रब प्रकोप से दें सुरक्षा, ऐसे करें बचाव

Measures for the prevention of white grub in cotton

व्हाइट ग्रब को सफेद गिडार कीट के नाम से भी जाना जाता। दिन के समय मिट्टी में रहने वाले यह कीट रात के समय अधिक सक्रिय होते हैं। इस कीट का लार्वा जड़ों को खा कर के पौधों को क्षति पहुंचाते हैं। जड़ों के क्षतिग्रस्त होने के कारण पौधों को उचित मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिल पाता है। जिससे पौधे सूखने लगते हैं और कुछ समय बाद नष्ट हो जाते हैं। 

नियंत्रण के उपाय:

  • यदि ये कीट दिखाई दें तो पर्याप्त मात्रा में सिंचाई करें। ऐसा करने से खेत में नमी रहती है और कीट मिट्टी से बाहर निकल आते हैं। 

  • कटाई के तुरंत बाद गहरी जुताई करें इससे जमीन के अंदर छिपे रहने वाले ये कीट सूर्य की गर्मी से नष्ट हो जाते हैं और फसलों पर इनका प्रकोप कम हो जाता है साथ ही खेतों में वर्षा के जल को धारण करने की क्षमता भी बढ़ती है, जो फसलों को सूखे की समस्या से बचाती है।

  • इस कीट से बचाव के लिए फ्युरी (कार्बोफ्यूरान 3% सीजी) 4 किलो/एकड़ की दर से प्रयोग करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

सब्जी वर्गीय फसलों में निमेटोड की समस्या एवं रोकथाम के उपाय

Problem of Nematode in vegetable crops and their prevention

निमेटोड सूक्ष्म कृमि जैसे कीट होते हैं जो मुख्य रूप से सब्जी वर्गीय फसलों जैसे – टमाटर, बैगन, मिर्च, भिंडी, खीरा आदि की जड़ों पर आक्रमण करते हैं। पौधों के जड़ों पर गांठें बनना ही इस सूक्ष्म कृमि का मुख्य लक्षण है। रोगग्रसित पौधों की जड़ों पर छोटी-छोटी गांठें बन जाती हैं, जिसके कारण पौधे में पोषक तत्व और पानी सोखने की क्षमता कम हो जाती है, जिससे पौधे पीले और छोटे रह जाते हैं। पौधे की वृद्धि रुक जाती है और अंत में सम्पूर्ण फसल सूख जाती है।

नियंत्रण के उपाय:

गर्मियों में खेत की हल्की सिंचाई के बाद 2-3 गहरी जुताई 10-12 दिन के अन्तर पर करें। इससे सूत्रकृमि ऊपरी सतह पर आकर अधिक तापमान से मर जायेगें।

इसके नियंत्रण के लिए निमेटो फ्री प्लस (वर्टिसिलियम क्लैमाइडोस्पोरियम) 2-4 किलो/एकड़ में खेत की तैयारी, बुवाई या रोपाई के समय खेत में डालें। वेलम प्राइम (फ्लुओपिरम 34.48% एससी) 250 मिली/एकड़ से ड्रिप या ड्रेंचिंग से भूमि को उपचारित करें। 

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

मूंग की फसल में एन्थ्रेक्नोज रोग की पहचान एवं निवारण के उपाय

Identification and prevention of anthracnose disease in moong crops

इस रोग के कारण फसल की उत्पादकता व गुणवत्ता दोनों प्रभावित होती है। रोग ग्रसित फलियों पर धब्बे दिखाई देते हैं, ये धब्बे हल्के भूरे एवं लाल रंग के होते हैं। ऐसे हीं धब्बे पत्ती एवं तने पर भी बनते हैं। जब आद्रता अधिक हो तब ये फसल में तेजी से फैलते हैं। फलियों पर इसके धब्बे गोलाकार हंसिये के आकार के दिखाई देते हैं तथा रोग ग्रस्त भाग झड़ जाता है। इस रोग से, ग्रसित बीज की गुणवत्ता को भी नुकसान पहुँचता है।

नियंत्रण के उपाय:

  • बुवाई से पहले धानुस्टीन (कार्बेन्डाजिम 50% डब्ल्यूपी) 2 ग्राम/किग्रा बीज की दर से बीजोपचार करना चाहिए।

  • फसल में रोग के लक्षण दिखते ही धानुस्टीन (कार्बेन्डाजिम 50% डब्ल्यूपी)  100 ग्राम/एकड़ या एम-45 (मेन्कोजेब 70% डब्ल्यूपी) 400 ग्राम/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिला कर छिडकाव करें, आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के अंतराल पर दोहराना चाहिए।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

फूलगोभी की फसल में बोरोन तत्व की कमी की पहचान एवं निवारण के उपाय

Identification and prevention of Boron element deficiency in Cauliflower

सब्जी वाली फसलों में बोरोन तत्व की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। फूलगोभी में बोरोन की कमी से फूल की ऊपरी सतह पर भूरापन आ जाता है। सामान्य तौर पर फूल बनने के बाद बोरोन की कमी के लक्षण दिखाई देते हैं। शुरुआत में तने और फूल पर पानी से लथपथ भाग दिखाई देते हैं। ब्राउनिंग रोग बोरोन की कमी के कारण हीं उत्पन्न होता है। इसमें तना खोखला हो जाता है तथा फूल भूरे रंग का हो जाता है। 

इससे बचाव के लिए कैलबोर 5 किग्रा प्रति एकड़ के हिसाब से मिट्टी में मिलाएं एवं बोरोन 15 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। 

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

बैंगन की फसल में फल छेदक व तना छेदक का ऐसे करें नियंत्रण

Measures to control fruit borer and stem borer in Brinjal crop

इस कीट का प्रकोप बैंगन में सबसे अधिक होता है। प्रारंभिक अवस्था में इसकी इल्ली कोमल तने में छेद करती है जिससे पौधे का तना एवं शीर्ष भाग सूख जाता है। इसके आक्रमण से फूल लगने के पहले हीं गिर जाते हैं। इसके बाद ये कीट फल में छेद बनाकर अंदर घुस जाते हैं और गूदे को खाते हैं। इससे ग्रसित फल सड़ जाते हैं और फल खाने योग्य भी नहीं रहते हैं। 

नियंत्रण के उपाय: इसके नियंत्रण के लिए स्पिनटोर (स्पिनोसैड 45%एससी) 75 मिली/एकड़ या फ़ेम (फ्लुबेंडियामाइड 39.35% एससी) 50 मिली/एकड़ या कवर (क्लोरेंट्रानिलिप्रोएल 18.5%एससी) 60मिली/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिला का छिड़काव करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

मिर्च की नर्सरी में आद्र गलन रोग की पहचान और नियंत्रण के उपाय

Damping Off Disease in Chilli Nursery

आद्र गलन रोग फफूंद के माध्यम से फैलता है और मिर्च की नर्सरी में इस रोग का प्रकोप बहुत ज्यादा देखने को मिलता है। वहीं इस रोग का प्रभाव 10 से 15 दिन के पौधों में ज्यादा देखने को मिलता है। इस रोग के लगने से पौधे की जड़ व तने में गलने की समस्या शुरू हो जाती है। इससे पौधों के तने पतले होने लगते हैं और पत्ते मुरझाने लगते हैं। इस रोग की समस्या बढ़ने पर, पत्तियां पीली होकर सूखने लगती हैं और पौधे जमीन पर गिर जाते हैं। रोपाई के समय जब पौधे ज्यादा मात्रा में निकाले जाते हैं तो यह बीमारी अधिक तीव्रता से फैलती है।

नियंत्रण के उपाय:

  • इस रोग से बचाव के लिए फसल चक्र अपनाएं, आद्र गलन रोग से प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें। बुवाई से पूर्व बीजोपचार करना अति आवश्यक है। 

  • जैविक नियंत्रण के लिए कोमबेट (ट्राइकोडर्मा विर्डी) को 8 ग्राम/किलो बीज को उपचारित करें। या 

  • विटावेक्स (कार्बोक्सिन37.5%+ थिरम37.5%डब्ल्यू एस) 3 ग्राम/किलो या धनुस्टिन (कार्बेन्डाजिम 50% डब्ल्यूपी) को 3 ग्राम/किलो बीज को उपचारित करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

मूंग की फसल में रस्ट रोग की समस्या एवं निवारण के उपाय

Problem and solution of Rust in Moong Crop
  • इस रोग के लक्षण पत्तियों की निचली सतह पर लाल भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।

  • यह धब्बे फलियों और तने पर बहुत कम लेकिन पत्तियों पर अधिक दिखाई देते हैं।

  • इस रोग से ग्रसित फलियां जल्दी परिपक्व हो जाती हैं, दाने सिकुड़े हुए बनते हैं और उपज में भारी कमी आती है।

  • इसके नियंत्रण के लिए एम -45 (मैनकोजेब 75% डब्ल्यूपी) 600-800 ग्राम/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें। 

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे  शेयर करना ना भूलें।

Share

जाणून घ्या, मशरुमच्या शेतीचे फायदे

Medicinal Properties of Mushroom
  • शेतकरी बंधूंनो, मशरूम ही बुरशी वर्गाची वनस्पती आहे, त्याचे बुरशीचे जाळे हे त्याचे फळ भाग आहे ज्याला मशरूम म्हणतात. मशरूम लागवडीचे खालील फायदे आहेत. 

  • मशरूम वाढताना खताची कोणतीही आवश्यकता भासत नाही. 

  • याची शेती शेतकरी, मध्यमवर्गीय आणि कामगार वर्ग आपली आर्थिक स्थिती मजबूत करू शकतो.

  • ज्यांना जमिनीची कमतरता किंवा उपलब्धता नाही त्यांच्यासाठी मशरूमची लागवड सर्वोत्तम आहे.

  • मशरूमची लागवड करताना खर्च कमी आणि उत्पादन जास्त.

  • मशरूमच्या शेतीमध्ये इतर शेतीच्या तुलनेत धोका नगण्य आहे.

  • मशरूमची लागवड कोणत्याही हंगामात नियंत्रित वातावरणात आणि तापमान आणि आर्द्रतेमध्ये करता येते.

  • मशरूम अशा ठिकाणी पिकवता येते जिथे सूर्यप्रकाश पोहोचत नाही.

  • पिकांचे अवशेष मशरूम लागवडीमध्ये वापरले जातात जे सहज उपलब्ध असतात.

  • मशरूममध्ये उपयुक्त आणि पौष्टिक पदार्थ असतात आणि त्यात भरपूर प्रथिने असतात.

Share