जैविक कीटनाशक मेटाराइजियम एनिसोप्ली के उपयोग से मिलेंगे कई फायदा

Uses of the biological insecticide Metarhizium anisopliae

मेटाराइजियम एनिसोप्ली एक फफूंद पर आधारित जैविक कीटनाशक है। यह मिट्टी में स्वतंत्र रूप से पाया जाता है एवं सामान्यतयः कीटों में परजीवी के रूप में पाया जाता है।

जब मेटाराइजियम एनीसोप्ली के बीजाणु लक्ष्य कीट के संपर्क में आते हैं, तो उनके आवरण से चिपक जाते हैं एवं उचित तापमान और आर्द्रता होने पर बीजाणु अंकुरित हो जाते हैं। इनकी अंकुरण नलिका कीटों के श्वसन छिद्रों (स्पायरेक्लिस), संवेदी अंगों और अन्य कोमल भागों से कीटों के शरीर में प्रवेश कर जाती है।

यह कवक कीटों के संपूर्ण शरीर में कवक जाल बनाकर कीट के शारीरिक भोजन पदार्थों को अवशोषित करके खुद की वृद्धि कर लेता है। मेटाराइजियम एनीसोप्ली 50 प्रतिशत से कम नमी पर भी बीजाणु उत्पन्न कर लेते हैं। इसके कारण यह सभी परिस्थितियों में काम करता है।

मेटाराइजियम एनीसोप्ली का प्रयोग सफेद लट (बीटल), ग्रब्स, दीमक, सुन्डियों, सेमीलूपर, कटवर्म, मिलीबग और माहू आदि के रोकथाम के लिए किया जाता है।

प्रयोग की विधि:

  • मिट्टी से प्रयोग के लिए मेटाराइजियम एनिसोप्ली की 1 किलो प्रति एकड़ के दर से लगभग 75 किलो गोबर की खाद में मिलाकर अंतिम जुताई के समय प्रयोग करना चाहिए।

  • खड़ी फसल में कीट के नियंत्रण के लिए 1 किलो प्रति एकड़ की दर से 400-500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। 

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टमाटर के फसल में फल फटने के कारण एवं बचाव के उपाय

Causes and diagnosis of fruit cracking in tomato crop

टमाटर की फसल में फलों का फटना एक भौतिक विकार होता है, और यह अक्सर परिपक्वता के समय दिखाई देता है। इस विकार में फल दो प्रकार से फटते हैं, एक लंबवत और दूसरा गोलाकार। 

टमाटर की फसल में फल का फटना मुख्यतः दो कारण से होता है, पहला कारण फसल में अनियमित सिंचाई करना जैसे जमीन ज्यादा समय तक सूखी है और अचानक से भारी सिंचाई कर दिया जाए और दूसरा कारण भूमि में बोरोन नामक तत्व की कमी होना है।

फल फटने की रोकथाम: इस समस्या के बचने के लिए फसल में समय समय पर संतुलित प्रमाण में सिंचाई करें, तथा बोरोन पोषक तत्व की पूर्ति के लिए रिच बोर (बोरोन 20%) @ 1-1.5 ग्राम प्रति लीटर पानी के दर से छिड़काव करें या रिच बोरामिन-सीए (अमीनो एसिड, बोरान, कैल्शियम) @ 2-3 मिली प्रति लीटर पानी के दर से छिड़काव करें। 

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तरबूज की फसल में माहू कीट के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of aphids in watermelon crop

यह कीट पत्तियों को एवं कोमल टहनियों को प्रभावित करते हैं, जिसके कारण पत्तियां मुड़कर मुरझाने लगती है। पौधों का विकास रुक जाता है साथ ही कीट से मधुरस उत्सर्जन के कारण पत्तियों पर काली फफूंद का विकास होता है।

नियंत्रण: इस कीट के नियंत्रण के लिए प्रकोप दिखाई देते ही नोवासेटा (एसिटामिप्रिड 20% एसपी) @ 30 ग्राम प्रति एकड़ या मीडिया (इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस एल) @ 40-50 मिली प्रति एकड़ + नोवामैक्स (जिबरेलिक ऍसिड 0.001%) @ 300 मिली के दर से 150-200 लीटर पानी में छिड़काव करें। 

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जानिए लौकी की फसल में छोटे फल गिरने के कारण एवं बचाव के उपाय

Know the reasons and prevention measure for small fruits dropping in gourd crop

लौकी की खेती करने वाले किसानों के सामने अक्सर लौकी की फसल छोटे फल पीले होने की एवं सूख कर गिरने की समस्या आती है, और इससे उपज में भारी नुकसान होता है। 

क्यों गिरते हैं लौकी के छोटे फल?

  • पौधों में फफूंद जनित रोग होने पर फल गिरने लगते हैं।

  • फसल में कीटों का प्रकोप होने पर भी यह समस्या हो सकती है।

  • फसल में अनियमित सिंचाई या सिंचाई की कमी होने पर भी लौकी के छोटे फल गिरने लगते हैं।

  • असंतुलित मात्रा में, उर्वरकों का प्रयोग होने के कारण से भी फल गिरते हैं।

  • परागण सही नहीं होने की वजह से भी छोटे फल गिरने लगते हैं।

छोटे फलों के गिरने के शुरूआती लक्षण:

शुरूआती अवस्था में छोटे फलों के साथ लगे फूल सूखने लगते हैं और धीरे-धीरे छोटे फल पीले एवं भूरे रंग के होने लगते हैं। बाद में फल पूरी तरह सूख कर गिरने लगते हैं।

रोकथाम:

  • समय-समय पर फसल का निरीक्षण करें।

  • खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।

  • आवश्यकता से अधिक सिंचाई एवं उर्वरकों का प्रयोग न करें।

  • यदि फफूंद जनित रोग या फल मक्खी एवं रस चूसक कीटों के लक्षण दिखाई दे तो नियंत्रण के लिए उचित छिड़काव करें।

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बैंगन की फसल में रस चूसक कीटों के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control measures of sucking pests in brinjal crop
  • रस चूसक कीट ‘मकड़ी’ बैंगन की फसल में पत्तों के नीचे जाल फ़ैलाते हैं और पत्तों का रस चूसते हैं। इससे पत्ते लाल रंग के दिखने लगते हैं। 

  • इससे बचाव के लिए तुस्क (मॅलॅथिऑन 50.00% ईसी) @ 600 मिली/एकड़ या मेओथ्रिन  (फेनप्रोपॅथ्रीन 30 % ईसी) @ 100 – 136 मिली प्रति एकड़ के दर से 150 -200 लीटर पानी में मिलकर छिड़काव करें। 

  • रस चूसक कीट जैसिड’ पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं, जिसके प्रभाव से पत्तियां पीली होकर कमजोर पड़ जाती हैं।  

  • सोलोमन (बीटा-सायफ्लुथ्रिन 08.49% + इमिडाक्लोप्रिड 19.81 % w/w ओडी) @ 70 -80 मिली प्रति एकड़ या टफगोर (डायमेथोएट 30% ईसी) @ 792 मिली प्रति एकड़ के दर के 150 – 200 लीटर पानी में छिड़काव करें।  

  • रस चूसक कीट सफ़ेद मक्खी’ पत्तियों से रस चूसती हैं, जिससे पत्तियां सिकुड़ जाती हैं। इसके अलावा यह कीट विषाणु जन्य रोगों को एक पौधे से दूसरे पौधों में फैलाने का काम भी करते हैं।

  • पेजर (डायफेंथियूरॉन 50% डब्लूपी) @ 240 ग्राम/एकड़ और अरेवा (थायोमिथाक्साम 25% डब्लूजी) @ 80 ग्राम प्रति एकड़ के दर से 150 – 200 लीटर पानी में छिड़काव करें। 

  • रस चूसक कीट माहू’ छोटे एवं हरे रंग के होते हैं, ये पत्तियों की निचली सतह पर रहते हैं और रस चूसते हैं  जिसके कारण पत्तिया पीली पड़ती है| 

  • सोलोमन (बीटा-सायफ्लुथ्रिन 08.49% + इमिडाक्लोप्रिड 19.81% w/w ओडी) @ 70 -80 मिली प्रति एकड़ के दर से 150 से 200 लीटर पानी में मिलकर छिड़काव करें। 

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तरबूज में पाउडरी मिल्ड्यू रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of powdery mildew disease in watermelon

इस रोग से पौधों के ऊपरी पत्ते, तने और नए बढ़ते भागों पर सफेद चूर्ण का विकास होता है, और जैसे ही संक्रमण बढ़ता है संपूर्ण पत्ते कवक के ढक जाते हैं। ग्रासित पौधों की पत्तियां समय से पहले झड़ने लगती हैं। अगर संक्रमण फल अवस्था के समय हो तो फल अविकसित रह जाते हैं एवं विकृत हो जाते हैं।

नियंत्रण: इस रोग के नियंत्रण के लिए रोग के लक्षण दिखाई देते ही नोवाकोन (हेक्साकोनाज़ोल 5% एससी) @ 400 मिली प्रति एकड़ के दर से 150-200 लीटर पानी में छिड़काव करें। साथ हीं अच्छे फूल एवं फल विकास के लिए न्युट्रीफुल मैक्स (फुलविक एसिड + एमिनो एसिड+ ट्रेस घटक) @ 250 मिली प्रति एकड़ से छिड़काव करें।

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प्याज़ में बेसल रॉट की समस्या के लक्षण एवं निवारण के उपाय

Symptoms and prevention of basal rot problem in onions

इस रोग के प्रारंभिक लक्षण में पीली पड़ती पत्तियां नजर आती हैं एवं पौधों की वृद्धि रुक जाती है, और बाद में पत्तियां सिरे से नीचे की ओर सूख जाती हैं। संक्रमण की शुरूआती अवस्था में पौधों की जड़ गुलाबी रंग की हो जाती है और बाद में सड़ने लगती है। जैसे ही संक्रमण बढ़ता है, कंद निचले सिरे से सड़ने लगता है और अंत में पूरा पौधा मर जाता है।

निवारण: इसके नियंत्रण के लिए, रोग के लक्षण दिखाई देते ही धानुकॉप (कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्ल्यूपी) @ 500 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के दर से ड्रेंचिंग करें।

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टमाटर की फसल में फल छेदक से होने वाले नुकसान एवं नियंत्रण के उपाय

Damage and control of fruit borer in tomato crop

फल छेदक कीट की इल्ली या सुंडी सबसे ज्यादा हानिकारक होती है। शुरुआई अवस्था में यह इल्ली पत्तियों को खाती है, और बाद में फल में छेद करके फलों को नुकसान भी पहुँचाती है। इल्ली द्वारा किए गए छेद गोलाकार होते हैं। इस कीट की एक इल्ली 2-8 फल को नुकसान पहुंचा सकती है, और इसके कारण फसल की गुणवत्ता तथा उपज भी घटती है।

नियंत्रण: फली छेदक के नियंत्रण एवं निगरानी के लिए, हेलिको-ओ-लूर @ 10 फनेल ट्रैप प्रति एकड़ के दर से खेत में लगाएं। प्रकोप दिखाई देने पर कोस्को (क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.50% एससी) @ 60 मिली प्रति एकड़ या लैमनोवा (लैम्ब्डा सायहॅलोथ्रिन 04.90% सी एस) @ 120 मिली प्रति एकड़ 150 -200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 

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फूलगोभी की फसल में तंबाकू इल्ली की पहचान एवं नियंत्रण के उपाय

Identification and control of tobacco caterpillar in cauliflower

इस कीट के वयस्क गहरे भूरे रंग के होते हैं, और इनके आगे के पंख पर सफ़ेद धारियां बनी होती हैं जिसके बीच में काले धब्बे होते हैं। इस कीट के वयस्क समूह में अंडे देते हैं जो एक सफ़ेद परत से ढके रहते हैं और एक समूह में 40 से 200 तक अंडे हो सकते हैं। अंडे से निकली इल्ली प्रारंभिक अवस्था में हरे रंग की होती है जो की पत्तियों को खुरच कर खाती है, और बाद में यह इल्ली गहरे हरे या भूरे रंग की हो जाती है। बड़ी अवस्था की इल्लियां, पत्तियों में गोल छेद बना कर खाती हैं, साथ हीं यह गोभी के फूल में ऊपर से घुसकर नुकसान पहुंचाती हैं। 

नियंत्रण: इसके नियंत्रण के लिए इल्लियों का प्रकोप दिखाई देते ही, इमानोवा (इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी) @ 100 ग्राम प्रति एकड़ या कोस्को (क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.50% एससी) @ 20 मिली प्रति एकड़ के दर से छिड़काव करें।

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रबी सीजन की धान में उगने के बाद ऐसे करें खरपतवारों का खात्मा

Pre-emergence weed management in summer paddy!

धान की फसल में रोग और कीटों के अलावा खरपतवार भी काफी नुकसान पहुंचाते हैं। साथ ही धान की फसल में हानिकारक खरपतवारों के कारण विभिन्न कीट भी आकर्षित होते हैं। इसलिए समय रहते खरपतवारों को नष्ट करना बहुत जरूरी होता है। 

उगने के बाद खरपतवार प्रबंधन:

उगने के बाद खरपतवार प्रबंधन रोपाई के 10 से 12 दिनों के बाद और खरपतवारों के अंकुरण के बाद करना चाहिए। धान की फसल में खरपतवार निकलने के बाद नॉमिनी गोल्ड (बिसपायरीबैक-सोडियम 10% एससी) @ 80-100 मिली प्रति एकड़ 150-200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। बिस्पायरीबैक-सोडियम एक चयनात्मक, उगने के बाद का शाकनाशी है, जो धान में घास और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों जैसे साँवा, मोथा, भांगरा/भृंगराज को नियंत्रित करता है

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