बुआई से पहले जरूर करें गेहूँ के बीजों का उपचार

seed treatment in wheat
  • गेहूँ के बीजों का उपचार करके बुआई करने पर यह पौधों को मिट्टी और बीज जनित रोग जैसे स्मट, बंट रोग से बचाता है।

  • यह उपचार जड़ माहु के आक्रमण से भी बचाव करता है और फसल को स्वस्थ रखता है। 

  • इस प्रक्रिया को करने से बीज ख़राब नहीं होते हैं, जिससे अधिक बीज का अंकुरण होता है और स्वस्थ पौधों का विकास होता है। 

  • बीज उपचार करने से कृषि लागत कम आती है एवं उत्पादन में वृद्धि होती है। 

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भिंडी के लिए खेत की तैयारी एवं पोषक तत्व प्रबंधन

Nutrient management for okra

पौधो की अच्छी अंकुरण एवं जड़ विकास के लिए, मिट्टी का भुरभुरा होना आवश्यक है। पिछली फसल की कटाई के बाद एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें एवं इसके बाद गोबर की खाद 4 टन + स्पीड कम्पोस्ट 4 किग्रा प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में समान रूप से भुरकाव करें तथा 2-3 जुताई हैरो की सहायता से करें। अगर मिट्टी में नमी कम हो तो पहले पलेवा करें फिर खेत की तैयारी करें और आखिरी में पाटा चलाकर खेत समतल बना लें। 

पोषक तत्व प्रबंधन 

फसल बुवाई के समय या बुवाई के 25 दिन के अंदर, डीएपी 75 किलोग्राम + एमओपी 30 किलोग्राम + ट्राई कोट मैक्स (जैविक कार्बन 3%, ह्यूमिक, फुल्विक, जैविक पोषक तत्वों का एक मिश्रण) @ 4 किलोग्राम + टीबी 3 (नाइट्रोजन स्थिरीकरण बैक्टीरिया, फास्फेट घुलनशील बैक्टीरिया, और पोटेशियम गतिशील बैक्टीरिया) @ 3 किलोग्राम + ताबा जी (जिंक घुलनशील बैक्टीरिया) @ 4 किलोग्राम + नीम केक 50 किलोग्राम + एग्रोमीन ((जिंक, आयरन, मैग्नीज, कॉपर, बोरॉन और मोलिब्डेनम) @ 5 किलोग्राम + मैग्नीशियम सल्फेट @ 5 किलोग्राम इन सभी को आपस में मिलाकर एक एकड़ के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें।

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चने की फसल में उकठा रोग की पहचान व बचाव के उपाय

Fusarium wilt in gram crops

रोग की पहचान:- चने की फसल में यह फफूंद जनित रोग सबसे विनाशकारी साबित होता है। यह रोग किसी भी अवस्था में फसल को प्रभावित कर सकता है। इस रोग के चलते पत्तियां नीचे से ऊपर की ओर पीली और भूरी पड़ जाती हैं। अंत में पौधा मुरझाकर सूख जाता है।

तने को चीर कर देखने से आंतरिक उत्तक भूरे रंग का दिखाई देता है, जिस कारण से पोषक तत्व एवं पानी पौधों के सभी भाग तक नहीं पहुँच पाता है और पौधे मरने लगते हैं। पौधों को उखाड़ कर देखने पर कॉलर एवं जड़ क्षेत्र गहरा भूरा या काला रंग का दिखाई देता है। 

रोकथाम के उपाय:- इस रोग से बचने के लिए बुवाई के समय कॉम्बैट (ट्राइकोडर्मा विरिडी 1.0% डब्ल्यू.पी.) @ 10 ग्राम प्रति किग्रा बीज के हिसाब से उपचारित करके बोना चाहिए एवं अभी इसकी रोकथाम के लिए कॉम्बैट (ट्राइकोडर्मा विरिडी 1.0% डब्ल्यू.पी.) @ 1 किग्रा प्रति एकड़ के हिसाब से मिट्टी में समान रूप से भुरकाव कर हल्की सिंचाई करें।

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बटाटा पिकातील सिंचन व्यवस्थापन आणि गंभीर टप्पे जाणून घ्या

Know irrigation management and critical stages in potato crop
  • बटाटा पिकामध्ये एकावेळी कमी अंतराने थोडे पाणी दिल्यास उत्पादनासाठी अधिक फायदा होतो.

  • पहिले पाणी लागवडीनंतर 10 दिवसांनी पण 20 दिवसांच्या आत द्यावे असे केल्याने, उगवण जलद होते आणि प्रति झाड कंदांची संख्या वाढते, ज्यामुळे उत्पादनात दुप्पट वाढ होते.

  • पहिले पाणी वेळेवर देऊन, शेतात टाकलेले खत पिकांना सुरुवातीपासून आवश्यकतेनुसार वापरले जाते.

  • जमिनीची स्थिती आणि शेतातील अनुभवानुसार दोन सिंचन बियाण्याची वेळ वाढवता किंवा कमी करता येते तथापि, दोन सिंचनांमधील अंतर 20 दिवसांपेक्षा जास्त नसावे.

  • खोदण्याच्या 10 दिवस आधी सिंचन थांबवा. असे केल्याने, खोदताना कंद स्वच्छ बाहेर येतील. लक्षात ठेवा, प्रत्येक सिंचनामध्ये अर्ध्या नाल्यापर्यंतच पाणी द्यावे.

  • वाढीच्या काही टप्प्यांमध्ये (गंभीर टप्पे) पाणी व्यवस्थापन अत्यंत महत्त्वाचे असते.

1) उगवण अवस्था

2) कंद स्थापित अवस्था

3) कंद वाढीची अवस्था

4) कापणीचा अंतिम टप्पा

5) उत्खननापूर्वी.

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खेत में भूल कर भी न जलाएं पराली, मिट्टी को होंगे कई नुकसान

Damage to soil due to burning in stubble field

  • पराली जलाने से पर्यावरण को बहुत नुकसान होता है और प्रदूषण बढ़ता है।

  • फसल का कचरा जलाने के कारण खेत में पाए जाने वाले लाभकारी सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं।

  • इससे फसलों की पैदावार कम हो जाती है और मिट्टी की उर्वरता में कमी आती है।

  • पराली जलाने कारण वातावरण में मीथेन, कार्बन मोनो ऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड आदि जैसे गैसों का काफी उत्सर्ज़न होता है जिसके कारण वायुमंडल में कोहरा सा छा जाता है।

  • पराली जलाने के कारण मिट्टी में कार्बनिक पदार्थो की सरचना गड़बड़ा जाती है।

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भात पिकातील भुरा माहू चे नियंत्रण

Brown plant hopper will cause heavy loss in paddy crop
  • तपकिरी ते पांढऱ्या रंगाच्या या किडीची अप्सरा आणि प्रौढ झाडाच्या देठाच्या पायथ्याजवळ राहतात आणि तेथून झाडाचे नुकसान करतात.

  • प्रौढ व्यक्ती पानांच्या मुख्य शिराजवळ अंडी घालतात.

  • अंड्यांचा आकार चंद्रकोर असतो आणि अप्सरांचा रंग पांढरा ते हलका तपकिरी असतो.

  • तपकिरी अहूमुळे होणारे नुकसान रोपामध्ये पिवळ्या पडण्याच्या स्वरूपात दिसून येते.

  • तपकिरी महू वनस्पतीचा रस शोषून घेते. त्यामुळे वर्तुळात पीक सुकते ज्याला हॉपर बर्न म्हणतात.

  • याच्या नियंत्रणासाठी थियामेंथोक्साम 75% एसजी 60 ग्रॅम/एकर बुप्रोफिज़िन 15 % + एसीफेट 35 % डब्ल्यूपी500 ग्रॅम/एकर या दराने फवारणी करावी. 

  • जैविक उपचार म्हणून, बवेरिया बेसियाना 50 ग्रॅम/एकर दराने फवारणी करावी.

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शेतात माइकोराइजा का, केव्हा आणि कसा ठेवावा?

Mycorrhiza effect on chilli plant
  • माइकोराइजा वनस्पतीच्या मुळांच्या वाढीस आणि विकासास मदत करते.

  • हे फॉस्फेट जमिनीतून पिकांपर्यंत पोहोचण्यास मदत करते.

  • याशिवाय, नायट्रोजन, पोटॅशियम, लोह, मॅंगनीज, मॅग्नेशियम, तांबे, जस्त, बोरॉन, सल्फर आणि मोलिब्डेनम यांसारखे पोषक घटक जमिनीतून मुळांपर्यंत पोहोचवण्याचे काम करते, ज्यामुळे झाडांना अधिक पोषक तत्वे मिळतात.

  • हे झाडांना बळकट करते, त्यांना अनेक रोग, पाण्याची कमतरता इत्यादींना थोडीशी सहनशील बनवते.

  • पिकाची रोगप्रतिकारक शक्ती वाढते, परिणामी उत्पादनाचा दर्जा वाढतो.

  • मायकोरिझा मूळ क्षेत्र वाढवते, त्यामुळे पीक अधिक जागेतून पाणी घेण्यास सक्षम आहे.

  • माती प्रक्रिया – 50 किलो शेणखत/कंपोस्ट/गांडूळ/शेणखत 2 किलो मायकोरायझा मिसळा आणि नंतर हे प्रमाण पेरणी/लागवड करण्यापूर्वी जमिनीत मिसळा.

  • पेरणीनंतर 25-30 दिवसांनी उभ्या पिकावर वरील मिश्रणाची फवारणी करावी.

  • ठिबक सिंचनाद्वारे – पेरणीनंतर 25-30 दिवसांनी उभ्या पिकात 100 ग्रॅम प्रति एकर या दराने माइकोराइजा हे ठिबक सिंचन म्हणून वापरा.

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जौ की खेती करने से पहले जान लें बेहद जरूरी जानकारियां

Know very important information before cultivating barley
  • जौ की खेती में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए इसके बीजों की बुआई का सबसे उपयुक्त समय 15 अक्टूबर से 15 नवंबर है। हालांकि परिस्थिति एवं चारे की आपूर्ति के अनुसार इसकी बुआई दिसंबर के प्रथम सप्ताह तक भी की जा सकती है।

  • कम तापमान के कारण बुआई में देरी से अंकुरण देर से होता है। इसे हल या सीड ड्रिल से 25 सेमी की दूरी पर पंक्तियों में बोना चाहिए।

  • बीज को 4 से 5 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए। कतारों में बोई गई फसल में खरपतवारों पर आसानी से नियंत्रण किया जा सकता है। बुआई से पहले बीजों को कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% (करमानोवा) @ 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करने से अंकुरण अच्छा होता है और फसल बीज जनित रोगों से मुक्त रहती है।

  • चारे के लिए बोई जाने वाली फसल के लिए 100 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर बोना चाहिए। लेकिन अनाज के लिए प्रति हेक्टेयर 80 किलोग्राम बीज की ही आवश्यकता होती है।

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मेथी की खेती करने से पहले जान लें बेहद जरूरी जानकारियां

Know essential information before cultivating fenugreek
  • मेथी की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है बशर्ते मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ उच्च मात्रा में जरूर हो। हालाँकि यह अच्छे निकास वाली बालुई और रेतली बालुई मिट्टी में अच्छे परिणाम देती है। यह मिट्टी की 5.3 से 8.2 पी एच मान को सहन कर सकती है।

  • बात इसके बीज दर की मात्रा की करें तो एक एकड़ खेत में बिजाई के लिए 12 किलोग्राम प्रति एकड़ बीजों का प्रयोग करना चाहिए।

  • इसके खेत की तैयारी के लिए मिट्टी के भुरभुरा होने तक खेत की दो से तीन बार जुताई करें और फिर ज़मीन को समतल कर लें। आखिरी जुताई के समय 10 से 15 टन प्रति एकड़ अच्छी तरह से गली हुई गोबर की खाद डालें। बिजाई के लिए 3×2 मीटर समतल बीज बैड तैयार करें।

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मटरमध्ये माहूचा प्रादुर्भाव

Pea aphid outbreak can cause huge losses
  • माहूची लक्षणे:- महू (एफिड) हा एक लहान कीटक आहे जो पानांचा रस शोषतो परिणामी पाने आकुंचन पावतात आणि पानांचा रंग पिवळा होतो.

  • नंतर पाने कडक होतात आणि काही काळानंतर ती सुकतात आणि पडतात. मटार वनस्पती ज्यावर एफिडचा प्रादुर्भाव होतो, ती वनस्पती योग्यरित्या विकसित होत नाही आणि वनस्पती रोगग्रस्त असल्याचे दिसून येते.

  • त्याच्या व्यवस्थापनासाठी इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एसएल 100 मिली/एकर थियामेंथोक्साम  25% डब्ल्यूजी 100 ग्रॅम/एकर ऐसीफेट 75% एसपी 300 ग्रॅम/एकर एसिटामिप्रीड 20% एसपी 100 ग्रॅम/एकर या दराने फवारणी करावी. 

  • जैविक उपचार: – जैविक उपचार म्हणून, बवेरिया बेसियाना 500 ग्रॅम / एकरी दराने फवारणी करावी. 

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