जैविक खेती में ह्यूमिक एसिड होता है बेहद महत्वपूर्ण

Humic acid is very important in organic farming
  • ह्यूमिक एसिड खदान से उत्पन्न एक बहुपयोगी खनिज है। इसे सामान्य भाषा में मिट्टी का कंडीशनर भी कहा जा सकता है।

  • यह बंजर भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है तथा मिट्टी की संरचना को सुधार कर एक नया जीवनदान देता है।

  • इसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य मिट्टी को भुरभुरा बनाना है जिससे जड़ों का विकास अधिक हो सके।

  • ये प्रकाश संलेषण की क्रिया को तेज करता है जिससे पौधे में हरापन आता है और शाखाओं में वृद्धि होती है।

  • यह पौधों की तृतीयक जडों का विकास करता है जिससे की मिट्टी से पोषक तत्वों का अवशोषण अधिक होता है।

  • पौधों की चयापचयी क्रियाओं में वृद्धि कर मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी यह बढाता है।

  • पौधों में फलों और फूलों की वृद्धि कर फसल की उपज को बढ़ाने में भी यह सहायक होता है।

  • यह बीज की अंकुरण क्षमता बढाता है तथा पौधों को प्रतिकूल वातावरण से भी बचाता है।

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मिलेगी प्याज की उपज बेमिसाल, पंचरत्न के पुष्कर बीज हैं कमाल

Pushkar seeds of Pancharatna are amazing

प्याज की पावरफुल उपज पाने के लिए आप पंचरत्न के पुष्कर बीज का चुनाव कर सकते हैं। आइये जानते हैं इस बीज की क्या हैं खूबियां?

  • खरीफ और पछेती खरीफ किस्म

  • 2.5 से 3 किलोग्राम बीज दर

  • गहरे लाल अंडाकार कंद

  • 80 से 100 ग्राम वज़नदार कंद

  • 80 से 90 दिन की फसल अवधि

  • 2 महीने की भंडारण क्षमता

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मिर्च की 20 से 30 दिनों की फसल अवस्था में ऐसे करें उर्वरकों का प्रबंधन

Know how to manage fertilizers in 20 to 30 days crop stage of chilli
  • जिस प्रकार मिर्च की रोपाई के समय उर्वरक प्रबंधन आवश्यक होता है ठीक उसी प्रकार रोपाई के 20 से 30 दिनों के बाद भी उर्वरक प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।

  • यह प्रबंधन मिर्च की फसल की अच्छी बढ़वार एवं रोगों के विरुद्ध पौधों में  प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जाता है।

  • रोपाई के बाद इस समय में ही पौधे की जड़ ज़मीन में फैलती है और इसीलिए इस समय जड़ों की अच्छी बढ़वार सुनिश्चित करने के लिए उर्वरक प्रबंधन बहुत आवश्यक होता है।

  • इस समय उर्वरक प्रबंधन के लिए यूरिया @ 45 किलो/एकड़ DAP @ 50 किलो/एकड़, मैग्नेशियम सल्फेट @15 किलो/एकड़, सल्फर@ 5 किलो/एकड़, जिंक सल्फेट @ 5 किलो/एकड़ की दर से खेत में भुरकाव करें।

  • इस बात का भी ध्यान रखें की उर्वरकों के उपयोग के समय खेत में नमी जरूर हो।

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पर्ण कुंचन रोग से मिर्च की फसल को होगा नुकसान, जानें बचाव के उपाय

Chilli crop will be damaged due to leaf curl disease
  • मिर्च के पौधों में पर्ण कुंचन रोग के कारण पत्तियां ऊपर और नीचे की ओर मुड़ने लगती हैं। पत्ती के किनारे हल्के हरे से लेकर पीले रंग के हो जाते हैं, जो आखिर में शिराओं तक फैल जाते हैं। इसके कारण नोड्स और इंटरनोड्स आकार में छोटे हो जाते हैं। संक्रमित पौधे झाड़ीदार दिखाई देते हैं, विकास गंभीर रूप से अवरुद्ध हो जाता है, पीलेपन की समस्या भी दिखाई देती है और संक्रमित पौधों के फल भी छोटे रह जाते हैं।

  • इस रोग का फैलाव सफेद मक्खी की वजह से होता है। यह रोग तापमान और सापेक्ष आर्द्रता में तेजी के साथ बढ़ता है। इसके विषाणु मुख्य रूप से खरपतवारों पर रहते हैं। गर्म और शुष्क मौसम इस रोग-प्रसार का पक्षधर है।

  • इसके नियंत्रण हेतु नायलॉन-नेट कवर (50 मेश) के नीचे नर्सरी उगाएं, खेत से जल्दी संक्रमित पौधों और खरपतवारों को हटा लें, मक्का ज्वार या बाजरा के साथ फसल की दो पंक्तियाँ रोग-प्रसार को कम करती हैं।

  • इसके रासायनिक नियंत्रण के लिए आप  फिपनोवा (फिप्रोनिल 5% SC) 320-400 मिली/एकड़ का उपयोग करें।

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कपास की गुलाबी सुंडी है खतरनाक, कर देगी फसल को बर्बाद

Pink bollworm of cotton is dangerous
  • कपास की फसल में गुलाबी सुंडी के कारण कलियों का खुलना बंद हो जाता है, फल झड़ने लगते हैं, लिंट खराब हो जाते हैं और बीज नष्ट हो जाते हैं। ये सुंडी कपास में पाया जाने वाला विश्वव्यापी कीट है और दुनिया के कुछ क्षेत्रों में तो यह कपास का प्रमुख कीट है।

  • गुलाबी सुंडी के अंडे फूल आने के समय कपास के डोडे पर या उसके आस पास जमा हो जाते हैं।

  • युवा लार्वा 3-5 दिनों के बाद निकलते हैं, उभरने के तुरंत बाद कपास के डोडे में प्रवेश करते हैं जहां वे घेटे के भीतर आंतरिक रूप से भोजन करते हैं।

  • लार्वा आमतौर पर चार स्तर से गुजरते हैं। प्यूपेशन जमीन में होता है, सतह से लगभग 50 मिमी नीचे और वयस्क लगभग 9 दिनों के बाद निकलते हैं। वयस्क निशाचर होते हैं और मादाएं उभरने के एक या दो दिन बाद अंडे देना शुरू कर देती हैं, आमतौर पर मादा प्रत्येक 200-400 अंडे देती हैं।

  • इसके नियंत्रण के लिए प्रोफेनोवा सुपर (साइपरमैथिन 4% + प्रोफेनोफॉस 40% EC) @400-600 लीटर/एकर, डैनिटोल (फेनप्रोपेथ्रिन 10% EC) 300-400 लीटर/एकर।

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मिर्च की फसल में ना होने दें मकड़ी का प्रकोप, ऐसे करें बचाव

Don't let the Mites attack in the chilli crop
  • मकड़ी छोटे एवं लाल रंग के कीट होते हैं जो फसलों के कोमल भागों जैसे पत्तियां, कलिया, फूल एवं टहनियों पर भारी मात्रा में पाए जाते हैं।

  • जिन पौधों पर मकड़ी का प्रकोप होता है उनपर जाले दिखाई देते हैं। ये पौधे के कोमल भागों का रस चूसकर उनको कमज़ोर कर देते हैं एवं अंत में पौधा मर जाता है।

  • मिर्च की फसल में मकड़ी किट के नियंत्रण के लिए निम्र उत्पादों का उपयोग किया जाता है।

  • ओमाइट (प्रोपरगाइट 57% EC) @ 400 मिली/एकड़ या ओबेरोन (स्पिरोमिसिफेन 22.9% SC) @ 200 मिली/एकड़ या अबासीन (एबामेक्टिन 1.8% EC) @ 150 मिली/एकड़ का छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में कालीचक्र (मेथारिज़ियम एनिसपोली) 1 किग्रा/एकड़ की दर से उपयोग करें।

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स्प्रेडर के उपयोग से कृषि दवाओं का बढ़ता है असर और मिलते हैं कई फायदे

The use of spreader increases the effect of agricultural drugs and gives many benefits
  • स्प्रेडर का उपयोग करने से किसान जो भी दवाई फसलों में डालते हैं वह लंबे समय तक पौधों में ठहरती है।

  • इससे दवाई का असर ज्यादा दिनों तक फसलों में देखने को मिलता है। यह पौधों के हर हिस्से में दवा को अच्छे से फैलाता है।

  • इसके अलावा कई बार ओस की बूंद गिरने से या बारिश आ जाने के कारण जो भी दवाई का उपयोग हम फसलों में करते हैं वह धुल जाती है अगर हमारे द्वारा स्प्रेडर का उपयोग दवाओं के साथ करेंगे तो दवाई को पौधों से धुलने से बचाया जा सकता हैं।

  • स्प्रेडर की कीमत बहुत ज्यादा नहीं होती है और यह बाकी के महंगे दवाओं की उपयोग क्षमता को भी बढ़ता है इसलिए किसानों को इसे जरूर इस्तेमाल करना चाहिए।

  • आपके क्षेत्र के नजदीकी ग्रामोफ़ोन दुकान पर उपलब्ध सिलिकोमैक्स गोल्ड का उपयोग स्प्रेडर के रूप में कर सकते हैं।

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धान में बढ़ेगा तना छेदक का प्रकोप, जानें बचाव के सटीक उपाय

Outbreak of stem borer will increase in paddy

धान की फसल में तना छेदक का प्रकोप देखा जा सकता है। इससे बचाव के लिए आप कई तरीके व दवाइयों का इस्तेमाल कर सकते हैं। आइये बारी बारी से जानते हैं इन सभी तरीकों के बारे में।

  • जैविक नियंत्रण: शिकारियों, परजीवियों और रोगजनकों जैसे प्राकृतिक शत्रुओं का उपयोग करके तना छेदक की संकिया को  नियंत्रित किया जा सकता है।

  • खेती के तरीके: समय पर रोपण, उचित सिंचाई और मिट्टी की उर्वरता प्रबंधन जैसे उचित क्षेत्र प्रबंधन प्रथाओं से तना छेदक के संक्रमण को कम किया जा सकता है।

  • इंटरक्रॉपिंग: धान की फसल के साथ-साथ अन्य फसलें लगाने से तना छेदक कीट की संख्या को कम किया जा सकता है।

  • वानस्पतिक कीटनाशकों का उपयोग: नीम, तुलसी और लहसुन जैसे कुछ पौधों में तना छेदक के विकर्षक गुण पाए गए हैं और इन्हें वनस्पति कीटनाशकों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

  • रासायनिक नियंत्रण के उपाय: उपयोग करें प्रोफेनोवा सुपर (साइपरमैथिन 4% EC + प्रोफेनोफॉस 40% EC) @ 400-600 मिली/एकड़ या फिपनोवा (फिप्रोनिल 5% SC) 400-600 मिली/एकड़ की दर से।

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डैम्पिंग ऑफ से प्याज में होगी 60 से 75 प्रतिशत तक की हानि

Damping off will cause 60 to 75 percent loss in onion

यह रोग खरीफ मौसम/बरसात के मौसम में अधिक होता है और प्याज की फसल में लगभग 60-75% तक की हानि का कारण बनता है। मिट्टी की नमी और उच्च आर्द्रता के साथ मध्यम तापमान इस रोग को  विकास की ओर ले जाता है। इसके दो तरह के लक्षण देखे जाते हैं। 

  • डैम्पिंग-ऑफ अंकुरण से पहले: बीज और अंकुर मिट्टी से निकलने से पहले ही सड़ जाते हैं।

  • पोस्ट-अंकुरण डैम्पिंग-ऑफ: रोगज़नक़ मिट्टी की सतह पर अंकुरों के निचले  क्षेत्र पर हमला करता है। नीचे वाला हिस्सा सड़ जाता है और अंततः अंकुर गिर कर मर जाता है।

रोग नियंत्रण

अनाज की फसलों के साथ फसल चक्रीकरण और मिट्टी की धूमीकरण या सौरीकरण से खेतों में नमी कम करने में मदद मिल सकती है। उठी हुई क्यारियों का उपयोग करके मिट्टी की जल निकासी में सुधार, और अत्यधिक सिंचाई से बचकर मिट्टी की नमी को नियंत्रित करने से बीमारी को कम करने में मदद मिलती है। कुछ कवकनाशी बीज उपचार या मिट्टी की खाई गंभीर नमी को रोकने में मदद कर सकती है।

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जाणून घ्या,मका पिकामध्ये ट्राई डिसोल्व मैक्स वापरण्याचे फायदे आणि पद्धत

Tri Dissolve Max in maize crop

ट्राई डिसॉल्व मैक्समध्ये पोषक तत्वांची संघटना असते, यामध्ये कार्बनिक पदार्थ आणि सूक्ष्म पोषक तत्वे देखील वापरले जातात. जे की, पिकांच्या वाढीसाठी आवश्यक असते. यासोबतच डिसॉल्व मैक्स (ह्यूमिक एसिड, जैविक कार्बन, समुद्री शैवाल, कैल्शियम, मैग्नीशियम,बोरॉन, मॉलिब्डेनम) वापरले जातात.

मका पिकामध्ये ट्राई डिसोल्व मैक्स वापरण्याचे फायदे :

  • हे निरोगी आणि वनस्पतिजन्य पिकांच्या वाढीस प्रोत्साहन देते.

  • मुळांच्या विकासास मदत करते.

  • त्यामुळे जमिनीतील विविध पोषक घटकांचे प्रमाणही वाढते.

वापरण्याची पद्धत :

मातीचा वापर : ट्राई डिसॉल्व मैक्स 400 ग्रॅम प्रती एकर या दराने पसरवा. 

फवारणी : ट्राई डिसॉल्व मैक्स 200 ग्रॅम 150 ते 200 लिटर पाण्यात प्रति एकर दराने फवारणी करावी.

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