जैसिड: इसके प्रकोप से कोमल पत्तियाँ पीली हो जाती हैं, एवं पत्तियों के किनारे नीचे की ओर मुड़कर लाल होने लगते हैं। गंभीर संक्रमण के मामले में पत्तियों के किनारे कांसे की तरह हो जाते हैं, जिसे “हॉपर बर्न” कहा जाता है। इससे पत्ती के किनारे टूट जाते हैं और कुचले जाने पर टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं। इस कारण फसल विकास धीमी हो जाती है।
सफेद मक्खी: पत्तियों पर क्लोरोटिक धब्बे बनाते हैं, जो बाद में आपस में मिलकर पत्ती के ऊतकों पर पीलेपन का निर्माण करते हैं। ये कीट मधुरस (हनीड्यू) का स्राव करते हैं, जिससे काली फफूंदी का विकास होता है। साथ ही पीला शिरा मोज़ेक वायरस के रोगवाहक भी है। यह भिंडी का सबसे विनाशकारी रोग है। सफ़ेद मक्खी के गंभीर संक्रमण के कारण समय से पहले पत्ते झड़ जाते हैं।
नियंत्रण के उपाय: इन कीटों के नियंत्रण एवं अधिक फूल धारण के लिए, थियानोवा 25 (थियामेथोक्सम 25% डब्ल्यूजी) @ 40 ग्राम या पेजर (डाइफेंथियूरॉन 50 % डब्ल्यूपी) @ 240 ग्राम + न्यूट्रीफुल मैक्स @ 250 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
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