सोयाबीन की फसल के लिए तना मक्खी का प्रकोप होगा घातक

Stem fly infestation will be fatal for soybean crop
  • सोयाबीन की फसल में तना मक्खी/तना छेदक के प्रकोप का मुख्य कारण फसल का बहुत घना बोया जाना, कीटनाशकों का सही समय एवं सही मात्रा में उपयोग न होना और फसल चक्र ना अपनाना होता है।

  • सोयाबीन की फसल में तना मक्खी के इल्ली का प्रकोप की शुरूआती अवस्था में ही नियंत्रण करना बहुत जरूरी होता है।

  • तना मक्खी के नियंत्रण के लिए बवे कर्ब का छिड़काव समय समय पर करना बहुत आवश्यक होता है।

  • इसके नियंत्रण के लिए थियानोवा (थियामेंथोक्साम 25% WG) 100 ग्राम/एकड़ + डेनिटोल (फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% EC) @ 400 मिली/एकड़ या थियानोवा (थियामेंथोक्साम 25% WG) 100 ग्राम/एकड़ + बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना) 250 ग्राम/एकड़ या फिपनोवा (फिप्रोनिल 5% SC) @ 400 मिली/एकड़ या डेनिटोल (फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% EC) 400 मिली/एकड़ + बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना) 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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सोयाबीन को चने की इल्ली से होगा नुकसान, जल्द करें बचाव

Soybean will be harmed by Gram pod borer
  • इस इल्ली का लार्वा पौधे के सभी हिस्सों पर आक्रमण करता है, लेकिन ये फूल और फली को खाना सबसे ज्यादा पसंद करते हैं।

  • प्रभावित फली पर ब्लैक होल दिखाई देता है तथा लार्वा भोजन करते समय फली से बाहर लटका हुआ दिखाई देता है।

  • छोटा लार्वा पत्तियों के क्लोरोफिल को खुरच-खुरच कर खाता है, जिससे पत्तियाँ कंकाल में परिवर्तित हो जाती हैं।

  • गंभीर संक्रमण की अवस्था में पत्तियां टूट कर गिरने लगती हैं तथा पौधा मर जाता है।

कैसे करें सोयाबीन में चने की इल्ली का प्रबंधन:-

  • वयस्क कीट के नियंत्रण के लिए फेरोमोन ट्रैप @ 8-10 प्रति एकड़ का उपयोग करें।

  • पहला स्प्रे प्रोफेनोवा (प्रोफेनोफॉस 50% EC) @ 300 मिली/एकड़ + ट्राईसेल (क्लोरोपायरीफॉस 20% EC) @ 500 मिली/एकड़।

  • दूसरा स्प्रे प्रोफेनोवा सुपर (प्रोफेनोफोस 40% EC + साइपरमेथ्रिन 4% EC) @ 400 मिली/एकड़ + इमानोवा (इमामैटिन बेंजोएट 5% SG) @ 80-100 ग्राम/एकड़।

  • तीसरा स्प्रे एमप्लिगो (क्लोरेंट्रानिलिप्रोएल 9.3% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 4.6% JC) @ 100 मिली/एकड़ या लार्वीन (थायोडिकार्ब 75% WP) @ 250 ग्राम/एकड़।

  • जैविक उपचार के रूप में बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना) @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से स्प्रे करें।

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मिर्च की फसल में ना होने दें फल छेदक का प्रकोप, ऐसे करें बचाव

Management of Fruit borer in chilli
  • इस रोग में मिर्च के फल के आधार पर एक गोलाकार छेद पाया जाता है जिसकी वजह से फल और फूल परिपक्व होने से पहले ही गिर जाते हैं।

  • इस रोग में सामन्यतः इल्ली की लार्वा फलों के अंदर ही विकसित होती है। फिर इल्ली छोटी अवस्था में फलों पर एक छेद बनाकर नए विकसित फल को खाती हैं।

  • जब फल परिपक्व हो जाते हैं तब यह बीजों को खाना पसंद करती हैं। इस दौरान इल्ली अपने सिर फल के अंदर रख कर बीजों को खाती हैं। इस दौरान इल्ली का बाकी शरीर फल के बाहर रहता है।

  • इसके वयस्क कीट के नियंत्रण के लिए फेरोमोन ट्रैप @ 3-4 प्रति एकड़ का उपयोग करें।

  • इसकी रोकथाम हेतु पहले स्प्रे में प्रोफेनोवा (प्रोफेनोफॉस 50% EC) @ 300 मिली/एकड़ + ट्राईसेल (क्लोरोपायरीफॉस 20% EC) @ 500 मिली/एकड़ का उपयोग करें।

  • वहीं दूसरे स्प्रे में प्रोफेनोवा सुपर (प्रोफेनोफोस 40% EC + साइपरमेथ्रिन 4% EC) @ 400 मिली/एकड़ + इमानोवा (इमामैटिन बेंजोएट 5% SG) @ 80-100 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।

  • तीसरे स्प्रे में इमानोवा (इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG) @ 80-100 ग्राम/एकड़ + डेनिटोल (फेन्प्रोप्रेथ्रिन 10% EC) @ 250-300 मिली/एकड़ का उपयोग करें।

  • चौथे स्प्रे में एमप्लिगो (क्लोरेंट्रानिलिप्रोएल 9.3% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 4.6% JC) @ 100 मिली/एकड़ या लार्वीन (थायोडिकार्ब 75% WP) @ 250 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।

  • इसके जैविक उपचार के रूप में बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना) @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से स्प्रे करें।

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सोयाबीन की फसल को एन्थ्रेक्नोज या पॉड ब्लाइट से रखें सुरक्षित

Protect Soybean crop from Anthracnose or Pod Blight
  • यह बीज एवं मिट्टी जनित रोग है, इनसे संक्रमित बीज लगाने पर प्रारंभिक तौर पर डंपिंग ऑफ (बीज या अंकुर सड़ने से पौधे की मृत्यु) की समस्या आ सकती है।

  • सोयाबीन में फूल आने की अवस्था में तने, पर्णवृन्त व फली पर लाल से गहरे भूरे रंग के अनियमित आकार के धब्बे दिखाई देते हैं।

  • बाद में ये धब्बे फफूंद की काली सरंचनाओं व छोटे कांटे जैसी संरचनाओं से भर जाते हैं।

  • पत्तीयों पर शिराओं का पीला-भूरा होना, मुड़ना एवं झड़ना इस बीमारी के लक्षण है।

नियंत्रण के उपाय

  • रोग सहनशील बीज किस्में जैसे एनआरसी 7 व 12 का उपयोग करें।

  • बुआई पूर्व बीज को वीटावैक्स (थायरम + कार्बोक्सीन) 2 ग्राम/किलो बीज की दर से उपचारित करें।

  • रोग का लक्षण दिखाई देने पर करमानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैन्कोजेब 63% WP) 400 ग्राम/एकड़ के अनुसार छिड़काव करें।

  • अधिक प्रकोप होने पर टेबुकोनाज़ोल 25.9% EC @ 200 मिली प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें।

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फसल के अच्छे उत्पादन के लिए जिंक तत्व होता है बेहद महत्वपूर्ण

Importance of Zinc or good crop production
  • फसल से जबरदस्त उपज प्राप्त करने में जिन तत्वों की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है उनमे सबसे प्रमुख तत्व है जिंक।

  • भारत में उपज की कमी के लिए चौथा सबसे महत्वपूर्ण तत्व भी जिनक को हीं माना जाता हैं और इसकी कमी से उपज में भारी कमी आती है।

  • आपको बता दें की ज़िंक फसलों के लिए आठ आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों में से एक है।

  • इसकी कमी से फसल की पैदावार और गुणवत्ता बहुत हद तक प्रभावित होती है और फसल की उपज में 20% तक की कमी आ जाती है।

  • जिंक पौधे के विकास के लिए अहम होता है, यह पौधों में, कई एंजाइमों और प्रोटीनों के संश्लेण में प्रमुख भूमिका निभाता है।

  • इसके साथ साथ ज़िंक ग्रोथ हार्मोन के निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है जिसके परिणाम स्वरूप इंटरनोड का आकार बढ़ता है।

  • इसकी कमी प्रायः क्षारीय और पथरीली मिट्टी में उगाई गई फसलों में होती है।

  • इसकी कमी के कारण नई पत्तियाँ छोटे आकार की एवं शिराओं के मध्य का हिस्सा चितकबरे रंग का हो जाता है।

  • इसकी कमी को दूर करने के लिए भूमि में “जिंक सल्फेट” 20 किलो ग्राम प्रति एकड़ की दर से प्रयोग कर के इससे होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।

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एक ट्रायकोडर्मा के उपयोग से आपकी खेती में मिलेंगे कई लाभ

Trichoderma's importance in agriculture
  • मिट्टी में प्राकृतिक रूप से कई प्रकार के कवक पाए जाते हैं जिनमें से कुछ हानिकारक तो कुछ लाभकारी होते हैं और इन्ही लाभकारी कवकों में से एक ट्रायकोडर्मा भी होता है।

  • यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण एवं कृषि की दृष्टि से एक उपयोगी जैव कवकनाशी है।

  • ट्रायकोडर्मा विभिन्न प्रकार के मिट्टी जनित रोगों जैसे फ्यूजेरियम, पिथियम, फाइटोफ्थोरा, राइजोक्टोनिया, स्क्लैरोशियम आदि से बचाव करता है।

  • फ़सलों को प्रभावित करने वाले रोग जैसे आर्द्र गलन, जड़ गलन, उकठा, तना गलन, फल सड़न, तना झुलसा आदि की रोकथाम में भी ट्रायकोडर्मा सहायक होता है।

  • यह रोग उत्पन्न करने वाले कारकों को रोकता है एवं फसल के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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टोमॅटो पिकामध्ये सेप्टोरिया पानांवरील डागांची समस्या आणि नियंत्रण

Problem and control of Septoria leaf spot in tomato crop

प्रिय शेतकरी बांधवांनो, सेप्टोरिया  पानांवरील डाग या रोगाचा विकास 25 डिग्री सेल्सिअस तापमानात अधिक होतो. हा रोग पिकाच्या विकासाच्या कोणत्याही टप्प्यावर येऊ शकतो, परंतु झाडाला फळे येत असताना लक्षणे प्रथम जुन्या पानांवर आणि देठांवर दिसतात. अशावेळी फळांच्या देठावर, देठावर आणि फुलांवरही संसर्ग दिसून येतो. त्यामुळे पानांवर लहान गोल जलचर ठिपके तयार होतात ज्याच्या कडा या गडद तपकिरी रंगाच्या होतात.

निवारण करण्यासाठी उपाय –

👉🏻 जैविक नियंत्रणासाठी, मोनास-कर्ब 500 ग्रॅम + कॉम्बैट 500 ग्रॅम +  सिलिकोमैक्स 50 मिली प्रति एकर या दराने 150 ते 200 लिटर पाण्यात मिसळून फवारणी करावी.

 👉🏻 रासायनिक नियंत्रणासाठी, मेरिवॉन 80-100 मिली +  सिलिकोमैक्स 50 मिली प्रति एकर या दराने 150 ते 200 लिटर पाण्यात मिसळून फवारणी करावी.

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मिर्च की फसल पर होगा रस चूसक कीटों का हमला, कर लें तैयारी

Chilli crop will be attacked by sucking insects

मिर्ची की फसल में रस चूसने वाले कीट जैसे एफिड, जैसिड और थ्रिप्स का प्रकोप बहुत ज्यादा देखने को मिलता है। यह कीट मिर्च की फसल में पौधों के हरे हिस्से से रस चूस कर नुकसान पहुँचाते हैं, जिससे पत्तियां मुड़ जाती हैं और जल्दी गिर जाती हैं। रस चूसक कीटों के संक्रमण से फंगस और वायरस द्वारा फैलने वाली बीमारियों की संभावना बढ़ सकती हैं। अतः इन कीटों का समय पर नियंत्रण करना आवश्यक हैं।

नियंत्रण के उपाय

  • प्रोफेनोवा (प्रोफेनोफोस 50% EC) @ 400 मिली/एकड़ या

  • असताफ (एसीफेट 75% SP @ 250) ग्राम/एकड़ या

  • लैमनोवा (लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 4.9% CS) @ 200-250 मिली/एकड़ या

  • फिपनोवा (फिप्रोनिल 5% SC) @ 300-350 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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मिर्च में बढ़ रहा कॉलर सड़न रोग, लक्षणों को पहचान कर करें उपचार

Collar rot disease increasing in chilli crop

इस रोग का प्रकोप होने पर फंगस सबसे पहले तना एवं जड़ के बीच कॉलर को ग्रसित करता है, जिस कारण मिट्टी के आस पास कॉलर पर सफेद एवं काले फफूंद दिखने लगते हैं। इसके अलावा तने के उत्तक हल्के भूरे और नरम हो जाता है और धीरे-धीरे मुरझाने लगता है। प्रकोप की अनुकूल परिस्थिति में यह रोग अन्य भाग को भी प्रभावित कर सकता है। अंत में रोग के कारण पौधे मुरझाकर मर जाते हैं।

रोकथाम हेतु इन उपायों को अपनाएं

  • रोगग्रस्त पौधे के अवशेषों को नष्ट करें।

  • जल निकास की व्यवस्था करें व फसल चक्र अपनाएं।

  • नर्सरी का निर्माण ऊँची जगह पर करें।

  • बीजों का उपचार करमानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोजेब 64%) @ 3 ग्राम/किलो बीज की दर से करें।

  • बाविस्टिन (कार्बेन्डाजिम 50%) 300 ग्राम या नोवैक्सिल (मेटालेक्ज़िल 8% + मैनकोजेब 64%) @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से घोल बनाकर 10 दिन के अंतराल पर दो बार ड्रेंचिंग करें।

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भात पिकातील गॉल मिज किडीच्या नुकसानीची लक्षणे आणि नियंत्रण उपाय

Symptoms and control measures of Gall midge in paddy crop

प्रिय शेतकरी, या किडीमुळे भात पिकाच्या उत्पादनात 25 ते 30 टक्के किंवा त्याहून अधिक घट दिसून आली आहे. या किडीचे अळी नवीन गुच्छाचा वरचा भाग खाऊन आत प्रवेश करतात आणि गुठळ्याच्या पायथ्याशी एक ढेकूळ तयार होते जी नंतर गोल पाईपचे रूप धारण करते. त्याद्वारे “कांद्याचे पान” किंवा “सिल्व्हर-शूट” सारखा पोंगा तयार होतो. बाधित क्लस्टरमध्ये भात दिसत नाही.

नियंत्रणाचे उपाय –

या किडीच्या नियंत्रणासाठी थियानोवा 25 40 ग्रॅम + सिलीकोमॅक्स 50 मिली प्रति एकर 150 ते 200 लिटर पाण्यात मिसळून फवारणी करावी. किंवा जमिनीवर फुरी (कार्बोफुरन 3% सीजी) 10 किलो प्रति एकर दराने शिंपडा.

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