ऐसे तैयार करें फूलगोभी की नर्सरी, इन बातों का रखें ध्यान

Method of nursery preparation for Cauliflower
  • फूलगोभी की नर्सरी में बीजो की बुआई क्यारियों में की जाती है और इन क्यारियों की ऊचाई 10 से 15 सेंटीमीटर तथा आकार 3*6 मीटर होना चाहिए। 

  • दो क्यारियों के बीच की दूरी 70 सेंटीमीटर होनी चाहिए, जिससे अंतरासस्य क्रियाएं आसानी से की जा सके।

  • नर्सरी की क्यारियों की सतह भुरभुरी एवं समतल होनी चाहिए ताकि जल का भराव न हो सके। 

  • क्यारियों को बनाते समय गोबर की खाद 8-10 किलो/वर्ग मीटर की दर से मिलाना चाहिए।

  • भारी भूमि में ऊंची क्यारियों का निर्माण करके जलभराव की समस्या को दूर किया जा सकता है। 

  • पौध को आद्रगलन जैसी घातक बीमारी से बचाने के लिए धानुस्टीन (कार्बेन्डाजिम 50% WP) को 15-20 ग्राम/10 लीटर पानी में घोल बनाकर अच्छी तरह से भूमि में मिलाना चाहिए। पौधों को कीटों के आक्रमण से बचाने के लिए थियानोवा-25 (थायोमेथोक्सम 25% WG) का 0.3 ग्राम/वर्ग मीटर की दर से नर्सरी की तैयारी करते समय डालें। 

  • फूलगोभी की नर्सरी तैयार होने में 25 से 30 दिन का समय लगता है इसके बाद मुख्य खेत में पौधों की रोपाई कर देनी चाहिए।

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करेले की फसल में पाउडरी मिल्ड्यू रोग की पहचान व निवारण के उपाय

Identification and prevention of powdery mildew disease in bitter gourd

इस रोग के शुरुआत में ऊपरी पत्तियों की सतह पर सफेद धब्बे दिखाई देते हैं। इन धब्बों को हाथ लगाने से सफ़ेद पाउडर हाथ पर दिखाई देता है। पत्तियों की निचली सतह पर गोलाकार धब्बे दिखाई देते हैं। गंभीर मामलों में, ये फैलते हैं और आपस में मिलकर पत्तियों की दोनों सतहों को ढक लेते हैं और तने तक भी फैल जाते हैं। गंभीर रूप से प्रभावित पत्तियाँ भूरी और सिकुड़ी हुई नजर आती हैं और पत्ते झड़ने भी लगते हैं। प्रभावित पौधों के फल पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाते और छोटे रह जाते हैं।

नियंत्रण: इससे बचाव के लिए एम -45 (मैनकोजेब 75% WP) 400 ग्राम/एकड़ या जटायु क्लोरोथालोनिल 75% WP 400 ग्राम/एकड़ 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें। दस से पंद्रह दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव करके पाउडरी मिल्ड्यू  को नियंत्रित किया जा सकता है।

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तोरई में बढ़ रहा पीला मोजेक रोग, जल्द करें पहचान व अपनाएं बचाव के उपाय

Identification and prevention of yellow mosaic disease in ridge gourd

पीला मोजेक रोग तोरई की फसल के लिए एक गंभीर समस्या है। यह एक विषाणुजनित रोग है और इसके लक्षण पौधों की नई पत्तियों पर पीले धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं। इसका प्रकोप अधिक होने के कारण पौधों की पत्तियां छोटी व विकृत हो जाती हैं। यह रोग सफेद मक्खी के द्वारा फैलता है, इस कीट के निम्फ व वयस्क दोनों हीं पौधों का रस चूसते हैं। 

नियंत्रण: इसकी रोकथाम के लिए नीमगोल्ड नीम तेल 1000 मीली/एकड़ या ब्लू स्टिकी ट्रैप 10 प्रति एकड़ 10 की दर से लगाएं या बवे कर्व (बवेरिया बेसियाना 5% WP) 500 ग्राम/एकड़ की दर 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

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बैंगन की फसल में लाल मकड़ी कीट का ऐसे करें नियंत्रण

Control of Red Mites in Brinjal Crop

लाल मकड़ी छोटे-छोटे कीट होते हैं जो पत्तियों की निचली सतह पर समूह बना कर रहते हैं और पत्तियों से रस चूसते हैं। इससे पौधों में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है और पत्तियां मुरझा कर नीचे की ओर मुड़ जाती हैं जिससे पौधों का विकास रुक जाता है। इसके प्रकोप से फल कम पकते हैं या अधपकी अवस्था में ही गिर जाते हैं। अधिक संक्रमण होने पर पौधों में जाले दिखाई देते हैं।

नियंत्रण: इसकी रोकथाम के लिए फसल चक्र अपनाएं या प्रभावित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें। इसके अलावा ओमाइट (प्रोपार्जाइट 57% EC) 400 मिली/एकड़ या ओबेरोन (स्पाइरोमेसिफेन 22.90% EC) 160 मिली की दर से 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

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बैंगन की फसल में एफिड कीट की पहचान एवं निवारण के उपाय

Identification and prevention of Aphid pests in brinjal crops

एफिड एक सूक्ष्म कीट होता है जो देखने में पीला, भूरा या काले रंग का होता है। आमतौर पर यह कीट बैंगन की पत्तियों की निचली सतह पर पाई जाती है जो समूह बनाकर पत्तियों से रस चूसते हैं। इससे पत्तियों का आकार बिगड़ जाता है। यह कीट पत्तियों पर चिपचिपा मधुरस (हनीड्यू) छोड़ते हैं जिससे फफूंदजनित रोगों की संभावनाएं बढ़ जाती है। गंभीर संक्रमण के कारण पत्तियां मुरझा जाती हैं और पौधे का विकास रुक जाता है। 

निवारण: कीट का प्रकोप दिखने पर सोलोमोन (बीटा-सायफ्लुथ्रिन 08.49% + इमिडाक्लोप्रिड 19.81% OD) 80 मिली/एकड़ या टाफगोर (डाइमेथोएट 30% EC) 300 मिली/एकड़ 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

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अच्छी उपज प्राप्ति के लिए कपास की फसल में ऐसे करें खाद का प्रबंधन

How to manage fertilizer in a cotton crop

ज्यादातर किसान बुआई के समय खाद का प्रयोग नहीं करते हैं, वे अक्सर ये धारणा रखते हैं कि अभी गर्मी ज्यादा है तो खाद देना उचित नहीं होगा, और बारिश होने पर खाद देंगे, लेकिन यह सोच गलत है। जड़ और शाखाओं के शुरूआती विकास के लिए प्रारंभिक अवस्था में आधार खाद डालना अतिआवश्यक होता है अन्यथा उत्पादन में भारी कमी होती है। इसलिए उपलब्ध होने पर, अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद/कम्पोस्ट को 4 से 5 टन प्रति एकड़ की दर से, अवश्य देना चाहिए।

कपास की अच्छी वृद्धि विकास के लिए (यूरिया -30 किलो) (डीएपी-50 किलो) (म्यूरेट ऑफ पोटाश-30 किलो) ट्राई-कोट मैक्स 4 किलो प्रति एकड़ की दर से आखरी जुताई या खेत की तैयारी करते समय दें। 

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कपास की फसल को व्हाइट ग्रब प्रकोप से दें सुरक्षा, ऐसे करें बचाव

Measures for the prevention of white grub in cotton

व्हाइट ग्रब को सफेद गिडार कीट के नाम से भी जाना जाता। दिन के समय मिट्टी में रहने वाले यह कीट रात के समय अधिक सक्रिय होते हैं। इस कीट का लार्वा जड़ों को खा कर के पौधों को क्षति पहुंचाते हैं। जड़ों के क्षतिग्रस्त होने के कारण पौधों को उचित मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिल पाता है। जिससे पौधे सूखने लगते हैं और कुछ समय बाद नष्ट हो जाते हैं। 

नियंत्रण के उपाय:

  • यदि ये कीट दिखाई दें तो पर्याप्त मात्रा में सिंचाई करें। ऐसा करने से खेत में नमी रहती है और कीट मिट्टी से बाहर निकल आते हैं। 

  • कटाई के तुरंत बाद गहरी जुताई करें इससे जमीन के अंदर छिपे रहने वाले ये कीट सूर्य की गर्मी से नष्ट हो जाते हैं और फसलों पर इनका प्रकोप कम हो जाता है साथ ही खेतों में वर्षा के जल को धारण करने की क्षमता भी बढ़ती है, जो फसलों को सूखे की समस्या से बचाती है।

  • इस कीट से बचाव के लिए फ्युरी (कार्बोफ्यूरान 3% सीजी) 4 किलो/एकड़ की दर से प्रयोग करें।

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सब्जी वर्गीय फसलों में निमेटोड की समस्या एवं रोकथाम के उपाय

Problem of Nematode in vegetable crops and their prevention

निमेटोड सूक्ष्म कृमि जैसे कीट होते हैं जो मुख्य रूप से सब्जी वर्गीय फसलों जैसे – टमाटर, बैगन, मिर्च, भिंडी, खीरा आदि की जड़ों पर आक्रमण करते हैं। पौधों के जड़ों पर गांठें बनना ही इस सूक्ष्म कृमि का मुख्य लक्षण है। रोगग्रसित पौधों की जड़ों पर छोटी-छोटी गांठें बन जाती हैं, जिसके कारण पौधे में पोषक तत्व और पानी सोखने की क्षमता कम हो जाती है, जिससे पौधे पीले और छोटे रह जाते हैं। पौधे की वृद्धि रुक जाती है और अंत में सम्पूर्ण फसल सूख जाती है।

नियंत्रण के उपाय:

गर्मियों में खेत की हल्की सिंचाई के बाद 2-3 गहरी जुताई 10-12 दिन के अन्तर पर करें। इससे सूत्रकृमि ऊपरी सतह पर आकर अधिक तापमान से मर जायेगें।

इसके नियंत्रण के लिए निमेटो फ्री प्लस (वर्टिसिलियम क्लैमाइडोस्पोरियम) 2-4 किलो/एकड़ में खेत की तैयारी, बुवाई या रोपाई के समय खेत में डालें। वेलम प्राइम (फ्लुओपिरम 34.48% एससी) 250 मिली/एकड़ से ड्रिप या ड्रेंचिंग से भूमि को उपचारित करें। 

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मूंग की फसल में एन्थ्रेक्नोज रोग की पहचान एवं निवारण के उपाय

Identification and prevention of anthracnose disease in moong crops

इस रोग के कारण फसल की उत्पादकता व गुणवत्ता दोनों प्रभावित होती है। रोग ग्रसित फलियों पर धब्बे दिखाई देते हैं, ये धब्बे हल्के भूरे एवं लाल रंग के होते हैं। ऐसे हीं धब्बे पत्ती एवं तने पर भी बनते हैं। जब आद्रता अधिक हो तब ये फसल में तेजी से फैलते हैं। फलियों पर इसके धब्बे गोलाकार हंसिये के आकार के दिखाई देते हैं तथा रोग ग्रस्त भाग झड़ जाता है। इस रोग से, ग्रसित बीज की गुणवत्ता को भी नुकसान पहुँचता है।

नियंत्रण के उपाय:

  • बुवाई से पहले धानुस्टीन (कार्बेन्डाजिम 50% डब्ल्यूपी) 2 ग्राम/किग्रा बीज की दर से बीजोपचार करना चाहिए।

  • फसल में रोग के लक्षण दिखते ही धानुस्टीन (कार्बेन्डाजिम 50% डब्ल्यूपी)  100 ग्राम/एकड़ या एम-45 (मेन्कोजेब 70% डब्ल्यूपी) 400 ग्राम/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिला कर छिडकाव करें, आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के अंतराल पर दोहराना चाहिए।

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फूलगोभी की फसल में बोरोन तत्व की कमी की पहचान एवं निवारण के उपाय

Identification and prevention of Boron element deficiency in Cauliflower

सब्जी वाली फसलों में बोरोन तत्व की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। फूलगोभी में बोरोन की कमी से फूल की ऊपरी सतह पर भूरापन आ जाता है। सामान्य तौर पर फूल बनने के बाद बोरोन की कमी के लक्षण दिखाई देते हैं। शुरुआत में तने और फूल पर पानी से लथपथ भाग दिखाई देते हैं। ब्राउनिंग रोग बोरोन की कमी के कारण हीं उत्पन्न होता है। इसमें तना खोखला हो जाता है तथा फूल भूरे रंग का हो जाता है। 

इससे बचाव के लिए कैलबोर 5 किग्रा प्रति एकड़ के हिसाब से मिट्टी में मिलाएं एवं बोरोन 15 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। 

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