टमाटर के खेत में कैल्शियम की कमी दूर करने के लिए मिट्टी उपचार

Soil treatment to overcome calcium deficiency in tomato field
  • कैल्शियम की कमी के कारण टमाटर की फसल को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए बुआई के पहले ही प्रबंधन के उपाय किये जाने चाहिए। 

  • इसके लिए रोपाई के 15 दिन पहले मुख्य खेत में अच्छे से पकी हुई या सड़ी हुई गोबर की खाद का उपयोग करें।

  • इसके पश्चात रोपाई के पहले कैल्शियम नाइट्रेट @ 10 किलो/एकड़ की दर से खेत में मिलाएँ।

  • कैल्शियम की कमी के लक्षण दिखाई देने पर कैल्शियम EDTA @ 150 ग्राम/एकड़ की दर से दो बार छिड़काव करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।

Share

भेंडीच्या या सुधारित वाणांची लागवड करुन शेतकऱ्यांना चांगला नफा मिळू शकेल.

Advanced varieties of Okra whose cultivation will give good yield
  • आज आपण भेंडीच्या काही मुख्य प्रकारांबद्दल चर्चा करीत आहोत, त्या द्वारे शेतकऱ्यांना चांगले उत्पन्न मिळू शकते.

  • स्वर्ण |  राधिका, महिको NO-10, नुनहेम्स सिंघम 7000 सीड्स वापरा.

  • या जातींची रोपे मध्यम आकाराची असतात आणि पाने छोटी असतात. 

  • या वाणांना 2 ते 4 शाखा आहेत आणि फळांची पहिली तोडणी 45 ते 51 दिवसांत घेता येते.

  • त्यांचे फळ 12 ते 14 सेमी किंवा 12 ते 16 सेमी लांबीचे आणि 1.5 ते 1.8 सेमी व्यासाचे आहे.

  • या जातींमध्ये चांगले शेल्फ लाइफसह गडद हिरवी मऊ फळे असतात ज्याचे वजन 12 ते 15 ग्रॅम असते.

Share

बेमिसाल मजबूती वाले HyTarp तिरपाल की विशेषताएं

Features of Gramophone HyTarp Tarpaulin
  • यह तिरपाल पूरी तरह से वर्जिन प्लास्टिक से बनी है और इसमें मिट्टी या फिलर का कंटेंट नहीं है।

  • इस तिरपाल की मोटाई 200 GSM होने के साथ ये 3 लेयर बनी की है जिसकी वजह से तिरपाल काफी मजबूत और टिकाऊ है।

  • ये तिरपाल UV ट्रीटेड भी है जीसकी वजह से कड़ी धूप, ठंढ और बारीश में भी ये तिरपाल लंबे समय तक चलती है।

  • ये तिरपाल एक साईड से आर्मी ग्रीन और दूसरे साईड से ब्लैक कलर की है।

  • इस तिरपाल मे चारों बाजू में विशिष्ट अंतर छोड के अल्युमिनियम के आय लेट्स दिये गए हैं जो तिरपाल को रस्सी से बाँधने मे काम आयेंगे।

  • यह तिरपाल सभी रेग्युलर साईज 11×15, 15×18, 21×30, 24×36, 30×30 में उपलब्ध है।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।

Share

लसूण पिकाच्या लागवडीसाठी शेताची तयारी?

Field preparation for garlic cultivation

लसूण पिकाच्या लागवडीसाठी पाण्याचा योग्य निचरा होणारी चिकणमाती माती चांगली असते. जड जमिनीमध्ये त्याचे कंद हे विकसित होत नाहीत. पहिली नांगरणी ही माती पलटणाऱ्या नांगराने करावी, त्यानंतर शेणखत 5 टन + स्पीड कंपोस्ट 4 किलो प्रति एकर शेतात समप्रमाणात शिंपडा आणि हैरो च्या सहाय्याने 2 ते 3 वेळा नांगरणी करा. शेतातील इतर अवांछित पिकांचे अवशेष काढून टाका, जर जमिनीत ओलावा कमी असेल तर प्रथम नांगरट करा, नंतर शेत तयार करा आणि शेवटी पॅट चालवून शेताची पातळी करा.

पोषक तत्वांचे व्यवस्थापन – पीक पेरणीच्या वेळी  एसएसपी 50 किलोग्रॅम + डीएपी 30 किलोग्रॅम + यूरिया 20 किलोग्रॅम + पोटाश 40 किलोग्रॅम  + राइजोकेयर (ट्राइकोडर्मा विराइड1.0% डब्ल्यूपी) 500 ग्रॅम +  टीबी 3 (नाइट्रोजन स्थिरीकरण, फास्फेट घुलनशील आणि पोटेशियम गतिशील जैव उर्वरक संघ) 3 किलोग्रॅम +   

 ताबा जी (जिंक घोलक बैक्टीरिया) 4 किलोग्रॅम +  मैक्स रूट (ह्यूमिक एसिड + पोटेशियम + फुलविक एसिड) 500 ग्रॅम + ट्राई-कॉट मैक्स (जैविक कार्बन 3%, हुमिक, फुलविक, जैविक पोषक तत्वांचे एक मिश्रण) 4 किलोग्रॅम + बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना) 500 ग्रॅम एकत्र मिसळून शेतात प्रति एकर या प्रमाणे समप्रमाणात शिंपडावे.

Share

कांद्याच्या रोपवाटिकेत बुरशीजन्य आजाराचे नियंत्रण

Fungus-borne disease control in onion nursery
  • खरीप हंगामात पावसामुळे जास्त आर्द्रता आणि मध्यम तापमान हे बुरशीजन्य आजाराच्या विकासाचे मुख्य घटक आहेत.

  • कांद्याची रोपवाटिकेत मर रोग, मूळकूज, स्टेम रॉट, पाने पिवळी पडणे इत्यादी रोगांचा प्रादुर्भाव दिसून येतो.

  • या रोगांमध्ये रोगजनक प्रथम वनस्पतीच्या कॉलर भागांंवर हल्ला करतो.

  • शेवटी, कॉलर भाग आणि मुळे कलंकित होतात, ज्यामुळे झाडे कोसळतात आणि मरतात.

  • बुरशीजन्य रोग रोखण्यासाठी पेरणीच्या वेळी निरोगी बियाणे निवडावे.

  • कार्बेन्डाझिम 12% + मॅन्कोझेब 63% 30 ग्रॅम / पंप किंवा थायोफिनेट मेथाईल 70% डब्ल्यू / डब्ल्यू, 50 ग्रॅम / पंप किंवा मॅन्कोझेब 64% + मेटॅलॅक्साइल 8% डब्ल्यू.पी. 60 ग्रॅम / पंप दराने फवारणी करावी.

Share

जाणून घ्या, प्राकृतिक (नैसर्गिक) शेतीचे महत्वपूर्ण सिद्धांत

Natural farming
    • प्राकृतिक (नैसर्गिक) शेती काय आहे? : नैसर्गिक शेती ही देशी गाईवर आधारित शेतीची प्राचीन पद्धत आहे. ज्यामध्ये देशी गाईचे गोमूत्र आणि शेणाचा वापर पीक उत्पादनात रासायनिक खते आणि इतर रसायनांच्या उत्पादनांना पर्याय म्हणून केला जातो, त्यामुळे जमिनीचे नैसर्गिक स्वरूप कायम राहते. नैसर्गिक शेतीमध्ये रासायनिक कीटकनाशकांचा वापर केला जात नाही. या प्रकारच्या शेतीमध्ये निसर्गात आढळणारे घटक कीटकनाशक म्हणून वापरले जातात.

    • प्राकृतिक (नैसर्गिक) शेतीमध्ये शेणखत, शेणखत, गोमूत्र, जिवाणू खत, पिकांचे अवशेष यातून वनस्पतींना पोषक तत्वे दिली जातात. प्राकृतिक (नैसर्गिक) शेतीमध्ये, पिकाचे जीवाणू, अनुकूल कीटक आणि निसर्गात उपलब्ध सेंद्रिय कीटकनाशकांद्वारे हानिकारक सूक्ष्मजीव आणि कीटकांपासून संरक्षण केले जाते.

  • चला जाणून घेऊयात प्राकृतिक (नैसर्गिक) चे महत्त्व :

  • शेतात नांगरणी नाही, म्हणजे त्यात नांगरणी करायची नाही, माती फिरवायची नाही. वनस्पतींची मुळे आणि गांडुळे आणि लहान प्राणी आणि सूक्ष्म जीव यांच्या प्रवेशाद्वारे पृथ्वी नैसर्गिकरित्या स्वतःची नांगरणी करते.

  • कोणतेही तयार कंपोस्ट किंवा रासायनिक खत वापरू नका. या पद्धतीत फक्त हिरवे खत आणि शेणखत वापरतात.

  • खुरपणी करू नये. नांगराने किंवा तणनाशकांचा वापर करूनही. माती सुपीक बनवण्यात आणि जैव-बंधुत्व संतुलित करण्यात तणांचा मोठा वाटा आहे. मूळ तत्व हे आहे की तण पूर्णपणे नष्ट करण्याऐवजी नियंत्रित केले पाहिजे.

  • रसायनांवर अजिबात अवलंबून राहू नका. मशागत आणि खतांचा वापर यासारख्या चुकीच्या पद्धतींमुळे कमकुवत झाडे वाढू लागली. तेव्हापासून शेतात रोग व कीड-असंतुलनाचे प्रश्न निर्माण होऊ लागले. छेडछाड न केल्यास निसर्गाचा समतोल पूर्णपणे बरोबर राहतो.

Share

सरसों की बुआई करते समय इन बातों का रखें ध्यान

Keep these things in mind while sowing mustard
  • सरसों की बुआई का सबसे अच्छा समय 5 से 25 अक्टूबर के बीच होता है।

  • इस समय सरसों की बुआई करने से अच्छा उत्पादन मिलता है, इसलिए किसानों को 25 अक्टूबर तक सरसों की बुआई कर देनी चाहिए।

  • सरसों की बुआई के लिए किसानों को एक एकड़ खेत में 1 किलो बीज का प्रयोग करना चाहिए।

  • सरसों को कतारों में बोना चाहिए ताकि निराई करने में आसानी हो।

  • सरसों की बुआई देसी हल या सीड ड्रिल से करनी चाहिए।

  • इसमें पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-12 सेमी रखा जाना चाहिए।

  • सरसों की बुआई करते समय इस बात का ध्यान रखें कि बीज 2-3 सेमी की गहराई में लगाई गई हो।

  • 100 सेमी से अधिक गहराई पर बीज नहीं बोना चाहिए क्योंकि अधिक गहराई पर बीज बोने से बीज के अंकुरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।

Share

मटर की बुवाई के 15 दिनों में जरूर करें ये पोषण प्रबंधन

How to manage nutrition in 15 days of sowing in Peas
  • जिस प्रकार मटर की बुआई के समय पोषण प्रबंधन किया जाता है ठीक उसी प्रकार बुआई के 15 दिनों में भी पोषण प्रबंधन किया जाना बहुत आवश्यक होता है।

  • बुआई के 15 दिनों में पोषण प्रबंधन करने से मटर की फसल को बहुत अच्छी शुरुआत मिलती है।

  • यह पोषण प्रबंधन मटर की फसल को कवक व कीट जनित रोगों एवं पोषण की कमी के प्रति प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करने में सहायता प्रदान करता है।

  • इस समय पोषण प्रबंधन करने के लिए सल्फर 90% @ 5 किलो/एकड़ + जिंक सल्फ़ेट @ 5 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें।

  • यह भी ध्यान रखें की पोषण प्रबंधन के समय खेत में पर्याप्त नमी जरूर होनी चाहिए।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।

Share

प्याज की नर्सरी के लिए जरूरी छिड़काव प्रबंधन

This spraying management is necessary for onion nursery
  • प्याज़ की नर्सरी की बुआई के सात दिनों के अंदर छिड़काव प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।

  • यह छिड़काव कवक जनित बीमारियों एवं कीटों के नियंत्रण एवं पोषण प्रबंधन लिए किया जाता है।

  • इस समय छिड़काव करने से प्याज़ की नर्सरी को अच्छी शुरुआत मिलती है।

  • कवक जनित रोगो लिए करमानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैन्कोजेब 63% WP) @ 30 ग्राम/पंप की दर से छिड़काव करें।

  • कीट प्रबंधन के लिए थियानोवा (थियामेथोक्साम 25% WG) @10 ग्राम/पंप की दर से छिड़काव करें।

  • पोषण प्रबंधन के लिए (मैक्सरूट) ह्यूमिक एसिड @ 10 ग्राम/पंप की दर से छिड़काव करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।

Share

प्याज की नर्सरी के लिए ऐसे करें बेड की तैयारी

Prepare beds for onion nursery like this
  • नर्सरी बेड के लिए खेत को तैयार करने में मोल्डबोर्ड हल से गहरी जुताई करनी चाहिए और मिट्टी के ढेलों को कल्टीवेटर से 2-3 बार तोड़ना चाहिए।

  • नर्सरी बेड तैयार करने से पहले पिछली फसल के अवशेष, खरपतवार और पत्थरों को हटा देना चाहिए।

  • आसान सिंचाई के लिए नर्सरी क्षेत्र को जल स्रोत के नजदीक तैयार करना चाहिए।

  • एक हेक्टेयर खेत में रोपाई के लिए लगभग 0.05 हेक्टेयर नर्सरी क्षेत्र की आवश्यकता होती है।

  • अंतिम जुताई के समय 500 किलोग्राम अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद (FYM) और 1.25 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी मिलाकर मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएं।

  • बेड पूर्व एवं पश्चिम दिशा में तैयार करना चाहिए तथा बेड पर लाइन उत्तर से दक्षिण की ओर बनानी चाहिए।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।

Share