धनिया की फसल में लौंगिया रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control measure of stem gall disease in coriander

धनिया एक बहु उपयोगी मसाले वाली फसल है। धनिया के पत्ते एवं बीज दोनों उपयोगी होते हैं। इसकी फसल में लौंगिया रोग बहुत ही हानिकारक होता है, यह रोग प्रोटोमाइसीज मैक्रोस्पोरस नामक फफूंद से होता है।  

लौंगिया रोग के लक्षण: इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों और तनों पर फोड़े दिखाई देते हैं। फूल लगने के पहले ही इसके रोग-जनक फफूंद नरम एवं मुलायम शाखाओं पर आक्रमण कर उनका शीर्ष भाग मोड़ देते हैं और संक्रमित भाग सूज जाता है। साथ ही जमीन के निकट तने पर छोटी-छोटी ट्यूमर जैसी सूजन दिखने लगती है। शुरुआत में यह चमकदार दिखती है लेकिन बाद में फूटती है और कठोर हो जाती है। इसके बढ़ते संक्रमण में ये पिटिकाएँ (सूजन) तने के ऊपरी भाग पर भी बनती है। जब आक्रमण पुष्पक्रम में होता हैं तो बीज निर्माण काफी कम हो जाता है। 

नियंत्रण: लौंगिया रोग को कम करने के लिए इष्टतम नमी बनाए रखें, रोग ग्रस्त फसल अवशेष को जलाकर नष्ट करें। बुवाई करने से पहले बीज बाविस्टिन (कार्बेंडाजिम 50% डब्लूपी) @ 2 ग्राम/किग्रा. बीज दर से उपचारित करके बुवाई करें। यदि इसके लक्षण खड़ी फसल में दिखाई दे तो नोवाकोन (हेक्सकोनाज़ोल 5% एससी)@ 400 मिली/एकड़ साथ ही मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस)@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से 150 से 200 लीटर पानी में छिड़काव करें।

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आलू की फसल में कटवर्म प्रकोप के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control measures of cutworm in potato crop

आलू का एक प्रमुख कीट है कटवर्म जिसे कर्तक कीट के नाम से भी जाना जाता है। यह कीट आलू की फसल को 12 से 40 प्रतिशत तक का नुकसान पहुंचा सकता है।  

लक्षण: इस कीट की इल्ली अवस्था ही नुकसान पहुंचाती है। फसल की शुरुआती अवस्था में इल्ली नए पौधे की डंठलो, तने और शाखाओं को खाते हैं। अक्सर ये इल्ली रात के समय निकलती है, और युवा पौधों को तने से काटकर खाते हैं साथ ही जमीन के नीचे दबे हुए कंदों को छेदकर भी खाते हैं और भारी नुकसान पहुंचाते हैं जिससे पैदावार तो घटती ही है, साथ ही साथ बाज़ार में इनका दाम भी काफी कम मिलता है।

नियंत्रण के उपाय: इस कीट के नियंत्रण के लिए प्रकोप दिखते ही ट्राइसेल (क्लोरपायरीफॉस 20 इसी) @ 1 लीटर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

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रबी धान में उगने से पहले हीं कर लें खरपतवारों का सटीक प्रबंधन!

Pre-emergence weed management in summer paddy!

धान की फसल में रोग और कीटों के अलावा खरपतवार भी काफी नुकसान पहुंचाते हैं इसलिए समय रहते खरपतवारों को नष्ट करना बहुत जरूरी होता है। ध्यान रखें की धान की फसल में हानिकारक खरपतवारों के कारण विभिन्न कीट भी इन खरपतवारों के कारण आकर्षित होते हैं इसलिए बचाव जल्द से जल्द करने की जरुरत होती है।  

धान की फसल में उगने के पूर्व खरपतवार प्रबंधन, रोपाई के बाद 0 से 3 दिन के बाद एवं खरपतवार अंकुरण से पहले करना चाहिए। धान की फसल में रोपाई के 0-3  दिन के बाद खरपतवारों के जमाव को रोकने के लिए रेसर (प्रेटिलाक्लोर 50% ईसी) @ 400 मिली, 40 किलो रेत के साथ मिलाकर खेत में समान रूप से भुरकाव करें, और भुरकाव के समय खेत में 4-5 सेंटीमीटर जल स्तर बनाए रखें। “प्रेटिलाक्लोर” यह रसायन एक व्यापक स्पेक्ट्रम, चयनात्मक और पूर्व उद्भव खरपतवारनाशक है, जो लगभग सभी खरपतवारों (घास और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार) को नियंत्रित करता है।

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तरबूज की फसल में क्या है बोरोन का महत्व, जानें इसके कमी के लक्षण

Importance of Boron in crops and deficiency symptoms in watermelon

बोरोन के महत्व: यह पौधे के ऊतकों का स्थिरीकरण करता है, और फसल की ताकत में सुधार करता है। यह कैल्शियम के साथ मिलकर काम करता है और फसल की गुणवत्ता में वृद्धि करने में भी मदद करता है। साथ ही बोरोन का फसलों में फूल व फल के निर्माण में मुख्य योगदान होता है। यह फूल व फलों को झड़ने से रोकने तथा फलों के आकार व गुणवत्ता को बढ़ाने में मुख्य भूमिका निभाता है।

बोरोन कमी के लक्षण: इसकी कमी से तरबूज में पौधे की नई पत्तियाँ सामान्य से छोटी रह जाती हैं, और मुड़ी हुई हो सकती हैं। पीलापन शिराओं के बीच सीमांत क्षेत्र से केंद्र की ओर बढ़ता है। सबसे छोटी पत्तियों के नोक सूख जाते हैं, और विकास बिंदु मर जाते हैं, फूल भी नहीं लगते हैं और फल खराब हो जाते हैं। फलों के आकार लेने पर फल के बाहर की त्वचा में लचीलापन जरूरी है, जिससे फल ठीक तरह से विकसित होता है, लेकिन बोरोन की कमी से फल की त्वचा में कठोरता आती है जिससे फल फट जाते हैं। 

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तरबूज में फल मक्खी से होने वाले नुकसान एवं नियंत्रण के उपाय

Damage and control measure of fruit fly in watermelon

तरबूज की फसल में फल मक्खी का हमला बेहद गंभीर होता है। वयस्क मक्खी फूलों में या सीधे फलों में अंडे देती है और जब ये अंडे फूटते हैं तब इससे निकली इल्ली फल में छेद कर देती है और फलों को अंदर से खाती है। इससे फल के गूदे के भीतर भारी सड़न हो सकती है, साथ ही फल की त्वचा पर, जहां अंडे दिए जाते हैं, वहा छोटे-छोटे धब्बे पड़ते हैं। इससे हुए घाव से फल फफूंद एवं जीवाणु के संक्रमण के प्रति अतिसंवेदनशील हो जाते हैं। इसके कारण उपज में कमी आती है और फल की गुणवत्ता में भी प्रभाव पड़ता है। 

नियंत्रण: फल मक्खी के नियंत्रण एवं निगरानी के लिए, आईपीएम के अंतर्गत मेलन फ्लाय लूर @ 10 ट्रैप प्रति एकड़ के दर से खेत में लगाएं एवं नीमगोल्ड (अझाडिरॅक्टिन 0.3% EC) @ 1600 मिली प्रति एकड़ के दर से 150-200 लीटर पानी में छिड़काव करें।

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बटाटा पिकाच्या साठवणुकीच्या वेळी ही खबरदारी घ्यावी?

Keep these precautions at the time of storage in potato crop
  • बटाटे खोदल्यानंतर, त्याच्यासाठी सर्वात महत्वाचे काम म्हणजे त्याची साठवण. बटाटे व्यवस्थित साठवल्यास ते अनेक महिने खराब होण्यापासून वाचवता येतात. बटाटे साठवताना खालील गोष्टी लक्षात ठेवाव्यात. 

  • बटाटा पिकाला बराच काळ साठवणूक करून ठेवण्यासाठी 2 ते 4 अंश सेंटीग्रेड तापमान योग्य आहे.

  • बटाटे रेफ्रिजरेटरमध्ये ठेवू नयेत. याचा बटाट्याच्या चवीवर विपरीत परिणाम होतो.

  • बटाट्याची साठवणूक नेहमी हवेशीर ठिकाणी करावी. 

  • गोदाम पूर्णपणे कोरडे असावे त्यात ओलावा असल्यास बटाट्याच्या साठवणुकीवर आणि सुरक्षिततेवर विपरीत परिणाम होतो.

  • जर तुम्ही बॉक्समध्ये बटाटे साठवत असाल तर बटाट्याच्या प्रत्येक थरामध्ये एक वर्तमानपत्र ठेवा.

  •  वेळोवेळी गोदामाची तपासणी करत रहा.

  • साठवण्यापूर्वी बटाटे पाण्याने स्वच्छ करू नका. यामुळे बटाट्यातील आर्द्रता वाढते आणि साठवणूक कमी होते.

  • जर बटाटे हिरवे, तपकिरी, कुजलेले दिसू लागले आणि वास येत असेल तर असे बटाटे काढून टाका, तसेच अंकुरलेले बटाटे वेगळे करा.

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आइये जानते हैं साइलेज बनाने की आसान विधि

Know the method of making Silage
  • किसान भाइयों साल भर पशुओं को हरा चारा उपलब्ध कराने के लिए साइलेज एक बहुत अच्छा स्रोत है। इसके लिए दाने वाली फसलें जैसे मक्का, ज्वार, बाजरा, जई आदि को साइलेज बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। 

  • इन फसलों में जब दाने दूधिया अवस्था में हो तब 2-5 सेंटीमीटर के छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें। 

  • काटे गए हरे चारे के टुकड़ों को जमीन पर कुछ घंटे के लिए फैला दे ताकि पानी की कुछ मात्रा वाष्पीकृत हो जाए।

  • अब कटे हुए चारे को पहले से तैयार साइलो पिट या साइलेज गड्ढों में डाल दें। 

  • गड्ढे में चारे को पैरों या ट्रैक्टर से अच्छे से दबाकर भरे जिससे चारे के बीच की हवा निकल जाए।

  • गड्ढे को पूरी तरह भरने के बाद उसके ऊपर मोटी पॉलिथीन डालकर अच्छी तरह से सील कर दें। 

  • इसके बाद पॉलीथिन कवर के ऊपर से मिट्टी की लगभग एक फीट मोटी परत चढ़ा दें जिससे हवा अंदर ना जा सके।

  • साइलेज के गड्ढों में भंडारित किए गए हरे चारे के टुकड़ों से साइलेज बनने लगता है, क्योंकि हवा और पानी के न होने से दबाए गए चारे में लैक्टिक अम्ल बनता है, जिस से चारा लंबे समय तक खराब नहीं होता है।

  • चारे की आवश्यकतानुसार गड्ढों को कम से कम 45 दिनों के बाद पशुओं को खिलाने के लिए खोलें।

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भिंडी में पीला शिरा मोज़ेक वायरस प्रकोप के लक्षण व नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of yellow vein mosaic virus in okra crop

यह एक विषाणु जनित रोग है जो फसल में उपस्थित रसचूसक किट के कारण से और ज्यादा फैलता है। 

लक्षण: इस रोग के शुरुआती अवस्था में ग्रासित पौधे की पत्तियों की शिराएँ पीली पड़ जाती हैं और धीरे धीरे रोग बढ़ता जाता है एवं रोग की बाद की अवस्था में यह पीलापन पूरी पत्ती पर फैल जाता है। इसके परिणामस्वरूप पत्तियाँ मुड़ने एवं सिकुड़ने लगती है, पौधे की वृद्धि रुक जाती है। प्रभावित पौधे के फल हल्के पीले, विकृत और सख्त हो जाते हैं।

नियंत्रण: यह रोग मुख्यत सफेद मक्खी से फैलता है, इसके नियंत्रण के लिए नोवासेटा (एसिटामिप्रिड 20% SP) @ 30 ग्राम प्रति एकड़ या पेजर (डायफैनथीयुरॉन 50% WP) @ 240 ग्राम /एकड़ के दर से 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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लहसुन की फसल में थ्रिप्स कीट से होगा नुकसान, जानें प्रबंधन के उपाय

Thrips damage and management in Garlic Crop

लहसुन की फसल में कई बार थ्रिप्स कीट नुकसान पहुंचाते हैं। ये कीट काफी सूक्ष्म होते हैं। इसके नर व मादा दोनों स्वरुप फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। यह कीट पौधों के नाजुक हिस्से पर प्रहार करते हैं, और इसके परिणाम से पौधे विकास नहीं कर पाते हैं। यह कीट पत्तियों को खरोंच कर उनमें छेद कर देती है और पतियों से सारा रस चूस लेते हैं। इस वजह से पत्तियां मुड़ जाती हैं, पौधे सूखकर गिरने लगते हैं, साथ ही लहसुन की गांठें छोटी रह जाती हैं। 

प्रबंधन: इसके रोकथाम के लिए टैफगोर (डाइमिथोएट 30 ईसी) @ 264 मिली या फिपनोवा(फिप्रोनिल 5% एससी) @ 400 मिली प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

स्रोत: किसान समाधान

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प्याज़ की फसल में डाऊनी मिल्ड्यू रोग की पहचान एवं नियंत्रण

Identification and control of downy mildew disease in onion crop

डाऊनी मिल्ड्यू रोग की पहचान: यह एक फफूंद जनित रोग है, इसके लक्षण सुबह के समय जब पत्तियों पर ओस रहती है तब आसानी से देखे जा सकते हैं। पत्तियों, बीज, डंठलों की सतह पर हल्के पीले धब्बे विकसित होते हैं, और जैसे हीं यह धब्बे बड़े होते हैं इसकी  सतह पर धूसर बैंगनी रोएँदार फफूंद विकसित हो जाती है। संक्रमित पौधे बौने, विकृत और हल्के हरे रंग के हो सकते हैं, इस रोग में पौधे अक्सर मरते नहीं हैं, लेकिन कंद की गुणवत्ता खराब होती है। 

नियंत्रण: अच्छे कंद विकास एवं डाऊनी मिल्ड्यू रोग के नियंत्रण के लिए गोडीवा सुपर (एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% + डाइफ़ेनोकोनाज़ोल 11.4% एससी) @ 200 मिली या वोकोविट (सल्फर 80% डब्ल्यूडीजी) @ 125 ग्राम, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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