जानिए कैसे स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस फसलों के लिए है एक लाभकारी जीवाणु

How Pseudomonas fluorescens is a beneficial bacteria

स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस एक मित्र जीवाणु है जो जीवाणु एवं फफूंद से होने वाले रोग को  मिट्टी और हवा में फैलाने से रोकने में मदद करते हैं। साथ ही यह पौध वृद्धि कारक तत्वों का निर्माण करता है जिससे उपज में भी वृद्धि होती है। यह अंतरदेहि जैव नियंत्रण के रूप में काम करता है।

जब स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस का छिड़काव करते है तब ये कुछ द्वितीयक मेटाबोलाइट्स (चयापचय तत्वों) जैसे जिब्रेलिक, ऑक्सिस का निर्माण करते हैं जिससे पौधे में हरापन रहने में मदद होती है। साथ हीं यह पौधे में तनाव, रोग आदि के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

इसका उपयोग हम ज़मीन से या छिड़काव से साथ ही बीज प्रक्रिया के लिए कर सकते है। यह विभिन्न प्रकार की फसलों, फलों और सब्जियों में जड़ सड़न, तना सड़न, डैम्पिंग ऑफ़, उकठा, लाल सड़न, जीवाणु झुलसा आदि रोगों के नियंत्रण के लिए प्रभावी है। 

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प्याज़ की फसल में सूक्ष्म पोषक तत्वों के कमी के लक्षणों को पहचानें

Symptoms of Micronutrient Deficiency in Onions

प्याज़ की फसल में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं पोटाश के अलावा सूक्ष्म पोषक तत्व भी बेहद आवश्यक होते हैं, और इनकी कमी होने पर उत्पादन एवं उत्पादकता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। प्याज़ में तीखापन, एलाइल प्रोपाइल डाईसल्फाइड नामक तत्व के कारण होता है इस तीखेपन को बढ़ाने व उत्पादन में वृद्धि के लिए, सल्फर की आवश्यकता होती है।

सल्फर: सभी पत्तियां नई तथा पुरानी एक समान पीली दिखाई देती है, साथ ही सल्फर (गंधक) की कमी वाले पौधे में पत्तियों का हरा रंग समाप्त हो जाता है।

मैंगनीज: पत्तियों की शिराएँ पीली पड़के जलने लगती हैं, पत्तियों का रंग फीका पड़ता है साथ ही वे ऊपर की ओर मुड़ने लगती है। फसल की वृद्धि रुक जाती है, प्याज़ के कंद देर से बनते हैं और कंद का ऊपरी भाग (गर्दन) मोटी हो जाती है।

कॉपर: प्याज की फसल में कंद के ऊपरी आवरण विकास के लिए फसल में कॉपर की उचित मात्रा होना आवश्यक है। कॉपर के कमी से नई पत्तियां नोक से सफ़ेद होती है और सर्पिले आकार में मुड़ जाती हैं, या पौधे के दाये भाग में मुड़ते है, साथ ही कंद का आवरण नरम होके हल्का पीला और पतला हो जाता है।

कैल्शियम: फसल में वृद्धि एवं भंडारण गुणवत्ता के लिए कैल्शियम एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है। इसके कमी से नई पत्तिया बिना पीली पड़े अचानक से सुखने लगती है साथ ही पत्तियाँ बहुत संकरी हो जाती है।

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स्टोअरमध्ये साठवलेल्या गहू पिकपासून उंदरांचे संरक्षण कसे करावे?

How to protect wheat crops from mice in the store
  • आता शेतातून लागोपाठ गहू पिकाची कापणी केली जात आहे.

  • याच कारणामुळे शेतकरी आपले गहू पीक बाजाराऐवजी स्टोअर मध्ये साठवणूक करत आहेत.

  • गहू पिकाच्या साठवणूकीमध्ये सर्वात मोठी समस्या उंदीरांची आहे.

  • हे टाळण्यासाठी, साठवण्यापूर्वी खालील गोष्टी लक्षात ठेवणे फार महत्वाचे आहे.

  • गहू पीक साठवून ठेवण्यापूर्वी स्टोअर स्वच्छ करावे.

  • जर स्टोअरमध्ये उंदरांचा आधीच उद्रेक झाला असेल तर त्यांना आधीच प्रतिबंध करण्यासाठी उपाययोजना करणे आवश्यक आहे.

  • गव्हाच्या साठवणुकीनंतर उंदरांचा उद्रेक झाल्यास, पीठ किंवा बेसन पिठामद्धे औषध मिसळून उंदीर नियंत्रित करता येतात.

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धनिया की फसल में लौंगिया रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control measure of stem gall disease in coriander

धनिया एक बहु उपयोगी मसाले वाली फसल है। धनिया के पत्ते एवं बीज दोनों उपयोगी होते हैं। इसकी फसल में लौंगिया रोग बहुत ही हानिकारक होता है, यह रोग प्रोटोमाइसीज मैक्रोस्पोरस नामक फफूंद से होता है।  

लौंगिया रोग के लक्षण: इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों और तनों पर फोड़े दिखाई देते हैं। फूल लगने के पहले ही इसके रोग-जनक फफूंद नरम एवं मुलायम शाखाओं पर आक्रमण कर उनका शीर्ष भाग मोड़ देते हैं और संक्रमित भाग सूज जाता है। साथ ही जमीन के निकट तने पर छोटी-छोटी ट्यूमर जैसी सूजन दिखने लगती है। शुरुआत में यह चमकदार दिखती है लेकिन बाद में फूटती है और कठोर हो जाती है। इसके बढ़ते संक्रमण में ये पिटिकाएँ (सूजन) तने के ऊपरी भाग पर भी बनती है। जब आक्रमण पुष्पक्रम में होता हैं तो बीज निर्माण काफी कम हो जाता है। 

नियंत्रण: लौंगिया रोग को कम करने के लिए इष्टतम नमी बनाए रखें, रोग ग्रस्त फसल अवशेष को जलाकर नष्ट करें। बुवाई करने से पहले बीज बाविस्टिन (कार्बेंडाजिम 50% डब्लूपी) @ 2 ग्राम/किग्रा. बीज दर से उपचारित करके बुवाई करें। यदि इसके लक्षण खड़ी फसल में दिखाई दे तो नोवाकोन (हेक्सकोनाज़ोल 5% एससी)@ 400 मिली/एकड़ साथ ही मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस)@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से 150 से 200 लीटर पानी में छिड़काव करें।

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आलू की फसल में कटवर्म प्रकोप के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control measures of cutworm in potato crop

आलू का एक प्रमुख कीट है कटवर्म जिसे कर्तक कीट के नाम से भी जाना जाता है। यह कीट आलू की फसल को 12 से 40 प्रतिशत तक का नुकसान पहुंचा सकता है।  

लक्षण: इस कीट की इल्ली अवस्था ही नुकसान पहुंचाती है। फसल की शुरुआती अवस्था में इल्ली नए पौधे की डंठलो, तने और शाखाओं को खाते हैं। अक्सर ये इल्ली रात के समय निकलती है, और युवा पौधों को तने से काटकर खाते हैं साथ ही जमीन के नीचे दबे हुए कंदों को छेदकर भी खाते हैं और भारी नुकसान पहुंचाते हैं जिससे पैदावार तो घटती ही है, साथ ही साथ बाज़ार में इनका दाम भी काफी कम मिलता है।

नियंत्रण के उपाय: इस कीट के नियंत्रण के लिए प्रकोप दिखते ही ट्राइसेल (क्लोरपायरीफॉस 20 इसी) @ 1 लीटर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

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रबी धान में उगने से पहले हीं कर लें खरपतवारों का सटीक प्रबंधन!

Pre-emergence weed management in summer paddy!

धान की फसल में रोग और कीटों के अलावा खरपतवार भी काफी नुकसान पहुंचाते हैं इसलिए समय रहते खरपतवारों को नष्ट करना बहुत जरूरी होता है। ध्यान रखें की धान की फसल में हानिकारक खरपतवारों के कारण विभिन्न कीट भी इन खरपतवारों के कारण आकर्षित होते हैं इसलिए बचाव जल्द से जल्द करने की जरुरत होती है।  

धान की फसल में उगने के पूर्व खरपतवार प्रबंधन, रोपाई के बाद 0 से 3 दिन के बाद एवं खरपतवार अंकुरण से पहले करना चाहिए। धान की फसल में रोपाई के 0-3  दिन के बाद खरपतवारों के जमाव को रोकने के लिए रेसर (प्रेटिलाक्लोर 50% ईसी) @ 400 मिली, 40 किलो रेत के साथ मिलाकर खेत में समान रूप से भुरकाव करें, और भुरकाव के समय खेत में 4-5 सेंटीमीटर जल स्तर बनाए रखें। “प्रेटिलाक्लोर” यह रसायन एक व्यापक स्पेक्ट्रम, चयनात्मक और पूर्व उद्भव खरपतवारनाशक है, जो लगभग सभी खरपतवारों (घास और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार) को नियंत्रित करता है।

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तरबूज की फसल में क्या है बोरोन का महत्व, जानें इसके कमी के लक्षण

Importance of Boron in crops and deficiency symptoms in watermelon

बोरोन के महत्व: यह पौधे के ऊतकों का स्थिरीकरण करता है, और फसल की ताकत में सुधार करता है। यह कैल्शियम के साथ मिलकर काम करता है और फसल की गुणवत्ता में वृद्धि करने में भी मदद करता है। साथ ही बोरोन का फसलों में फूल व फल के निर्माण में मुख्य योगदान होता है। यह फूल व फलों को झड़ने से रोकने तथा फलों के आकार व गुणवत्ता को बढ़ाने में मुख्य भूमिका निभाता है।

बोरोन कमी के लक्षण: इसकी कमी से तरबूज में पौधे की नई पत्तियाँ सामान्य से छोटी रह जाती हैं, और मुड़ी हुई हो सकती हैं। पीलापन शिराओं के बीच सीमांत क्षेत्र से केंद्र की ओर बढ़ता है। सबसे छोटी पत्तियों के नोक सूख जाते हैं, और विकास बिंदु मर जाते हैं, फूल भी नहीं लगते हैं और फल खराब हो जाते हैं। फलों के आकार लेने पर फल के बाहर की त्वचा में लचीलापन जरूरी है, जिससे फल ठीक तरह से विकसित होता है, लेकिन बोरोन की कमी से फल की त्वचा में कठोरता आती है जिससे फल फट जाते हैं। 

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तरबूज में फल मक्खी से होने वाले नुकसान एवं नियंत्रण के उपाय

Damage and control measure of fruit fly in watermelon

तरबूज की फसल में फल मक्खी का हमला बेहद गंभीर होता है। वयस्क मक्खी फूलों में या सीधे फलों में अंडे देती है और जब ये अंडे फूटते हैं तब इससे निकली इल्ली फल में छेद कर देती है और फलों को अंदर से खाती है। इससे फल के गूदे के भीतर भारी सड़न हो सकती है, साथ ही फल की त्वचा पर, जहां अंडे दिए जाते हैं, वहा छोटे-छोटे धब्बे पड़ते हैं। इससे हुए घाव से फल फफूंद एवं जीवाणु के संक्रमण के प्रति अतिसंवेदनशील हो जाते हैं। इसके कारण उपज में कमी आती है और फल की गुणवत्ता में भी प्रभाव पड़ता है। 

नियंत्रण: फल मक्खी के नियंत्रण एवं निगरानी के लिए, आईपीएम के अंतर्गत मेलन फ्लाय लूर @ 10 ट्रैप प्रति एकड़ के दर से खेत में लगाएं एवं नीमगोल्ड (अझाडिरॅक्टिन 0.3% EC) @ 1600 मिली प्रति एकड़ के दर से 150-200 लीटर पानी में छिड़काव करें।

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जाणून घ्या कोणत्या महिन्यात कोणती भाजी लावल्यास चांगला नफा मिळेल?

Which vegetable cultivation will give good profit in which month
  • प्रत्येक पिकाचे चांगले उत्पादन घेण्यासाठी शेतकऱ्यांसाठी वेळेवर पेरणी हा चांगला पर्याय आहे. याउलट वेळेची निवड करून कोणतेही पीक पेरले तर उत्पादन खूपच कमी होते त्यामुळे शेतकऱ्यांचे उत्पन्न घटते.

  • महिन्यानिहाय भाजीपाला लागवड हा शेतकऱ्यांसाठी नेहमीच फायदेशीर ठरला आहे. पुढील महिन्यात या भाज्यांची लागवड करून शेतकरी चांगला फायदा घेऊ शकतात. 

  • जानेवारी- गाजर, मुळा, पालक, वांगी, टरबूज इ.

  • फेब्रुवारी- भोपळा वर्ग, खरबूज, टरबूज, पालक, फ्लॉवर इ.

  • मार्च – गवार, कारला, भोपळा, पेठा फळे, टरबूज, भिंडी इ.

  • एप्रिल- मुळा, पालक, कोथिंबीर  इ.

  • मे- वांगी, कांदा, मुळा, मिरची, कोथिंबीर इ.

  • जून – काकडी, बीन्स, भेंडी, टोमॅटो, कांदा इ.

  • जुलै – चोलाई, चवळी, भिंडी, भोपळा वर्ग इ.

  • ऑगस्ट- टोमॅटो, फ्लॉवर, कोबी इ.

  • सप्टेंबर – सलगम, बटाटा, टोमॅटो, कोथिंबीर, बडीशेप इ.

  • ऑक्टोबर- राजमा, वाटाणे, हिरवे कांदे, लसूण, बटाटे इ.

  • नोव्हेंबर – बीट, सिमला मिरची, लसूण, मटार, भेंडी  इ.

  • डिसेंबर- मुळा, पालक, कोबी, वांगी, कांदा इ.

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बटाटा पिकाच्या साठवणुकीच्या वेळी ही खबरदारी घ्यावी?

Keep these precautions at the time of storage in potato crop
  • बटाटे खोदल्यानंतर, त्याच्यासाठी सर्वात महत्वाचे काम म्हणजे त्याची साठवण. बटाटे व्यवस्थित साठवल्यास ते अनेक महिने खराब होण्यापासून वाचवता येतात. बटाटे साठवताना खालील गोष्टी लक्षात ठेवाव्यात. 

  • बटाटा पिकाला बराच काळ साठवणूक करून ठेवण्यासाठी 2 ते 4 अंश सेंटीग्रेड तापमान योग्य आहे.

  • बटाटे रेफ्रिजरेटरमध्ये ठेवू नयेत. याचा बटाट्याच्या चवीवर विपरीत परिणाम होतो.

  • बटाट्याची साठवणूक नेहमी हवेशीर ठिकाणी करावी. 

  • गोदाम पूर्णपणे कोरडे असावे त्यात ओलावा असल्यास बटाट्याच्या साठवणुकीवर आणि सुरक्षिततेवर विपरीत परिणाम होतो.

  • जर तुम्ही बॉक्समध्ये बटाटे साठवत असाल तर बटाट्याच्या प्रत्येक थरामध्ये एक वर्तमानपत्र ठेवा.

  •  वेळोवेळी गोदामाची तपासणी करत रहा.

  • साठवण्यापूर्वी बटाटे पाण्याने स्वच्छ करू नका. यामुळे बटाट्यातील आर्द्रता वाढते आणि साठवणूक कमी होते.

  • जर बटाटे हिरवे, तपकिरी, कुजलेले दिसू लागले आणि वास येत असेल तर असे बटाटे काढून टाका, तसेच अंकुरलेले बटाटे वेगळे करा.

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