मिर्च की फसल पर होगा रस चूसक कीटों का हमला, कर लें तैयारी
मिर्ची की फसल में रस चूसने वाले कीट जैसे एफिड, जैसिड और थ्रिप्स का प्रकोप बहुत ज्यादा देखने को मिलता है। यह कीट मिर्च की फसल में पौधों के हरे हिस्से से रस चूस कर नुकसान पहुँचाते हैं, जिससे पत्तियां मुड़ जाती हैं और जल्दी गिर जाती हैं। रस चूसक कीटों के संक्रमण से फंगस और वायरस द्वारा फैलने वाली बीमारियों की संभावना बढ़ सकती हैं। अतः इन कीटों का समय पर नियंत्रण करना आवश्यक हैं।
नियंत्रण के उपाय
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प्रोफेनोवा (प्रोफेनोफोस 50% EC) @ 400 मिली/एकड़ या
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असताफ (एसीफेट 75% SP @ 250) ग्राम/एकड़ या
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लैमनोवा (लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 4.9% CS) @ 200-250 मिली/एकड़ या
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फिपनोवा (फिप्रोनिल 5% SC) @ 300-350 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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मिर्च में बढ़ रहा कॉलर सड़न रोग, लक्षणों को पहचान कर करें उपचार
इस रोग का प्रकोप होने पर फंगस सबसे पहले तना एवं जड़ के बीच कॉलर को ग्रसित करता है, जिस कारण मिट्टी के आस पास कॉलर पर सफेद एवं काले फफूंद दिखने लगते हैं। इसके अलावा तने के उत्तक हल्के भूरे और नरम हो जाता है और धीरे-धीरे मुरझाने लगता है। प्रकोप की अनुकूल परिस्थिति में यह रोग अन्य भाग को भी प्रभावित कर सकता है। अंत में रोग के कारण पौधे मुरझाकर मर जाते हैं।
रोकथाम हेतु इन उपायों को अपनाएं
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रोगग्रस्त पौधे के अवशेषों को नष्ट करें।
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जल निकास की व्यवस्था करें व फसल चक्र अपनाएं।
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नर्सरी का निर्माण ऊँची जगह पर करें।
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बीजों का उपचार करमानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोजेब 64%) @ 3 ग्राम/किलो बीज की दर से करें।
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बाविस्टिन (कार्बेन्डाजिम 50%) 300 ग्राम या नोवैक्सिल (मेटालेक्ज़िल 8% + मैनकोजेब 64%) @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से घोल बनाकर 10 दिन के अंतराल पर दो बार ड्रेंचिंग करें।
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भात पिकातील गॉल मिज किडीच्या नुकसानीची लक्षणे आणि नियंत्रण उपाय
प्रिय शेतकरी, या किडीमुळे भात पिकाच्या उत्पादनात 25 ते 30 टक्के किंवा त्याहून अधिक घट दिसून आली आहे. या किडीचे अळी नवीन गुच्छाचा वरचा भाग खाऊन आत प्रवेश करतात आणि गुठळ्याच्या पायथ्याशी एक ढेकूळ तयार होते जी नंतर गोल पाईपचे रूप धारण करते. त्याद्वारे “कांद्याचे पान” किंवा “सिल्व्हर-शूट” सारखा पोंगा तयार होतो. बाधित क्लस्टरमध्ये भात दिसत नाही.
नियंत्रणाचे उपाय –
या किडीच्या नियंत्रणासाठी थियानोवा 25 40 ग्रॅम + सिलीकोमॅक्स 50 मिली प्रति एकर 150 ते 200 लिटर पाण्यात मिसळून फवारणी करावी. किंवा जमिनीवर फुरी (कार्बोफुरन 3% सीजी) 10 किलो प्रति एकर दराने शिंपडा.
Shareटमाटर में जड़ ग्रंथि सूत्रकृमि पहुंचाएगा नुकसान, ऐसे करें नियंत्रण
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जड़ ग्रंथि सूत्रकृमि जिसे नेमाटोड्स भी कहते हैं दरअसल जड़ों पर आक्रमण करते हैं एवं जड़ में छोटी छोटी गाँठ बना देते हैं। इस समस्या से ग्रसित टमाटर के पौधों की वृद्धि रुक जाती है एवं पौधा छोटा ही रह जाता है। इसका अधिक संक्रमण होने पर पौधा सूखकर मर जाता है और पत्तियों का रंग हल्का पीला हो जाता है।
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इससे बचाव के लिए इसकी प्रतिरोधक किस्मों को उगाना चाहिए, भूमि की गहरी जुताई करनी चाहिए, नीम खली 80 किलो प्रति एकड़ की दर से उपयोग करना चाहिए। इसके अलावा कार्बोफ्युरोन 3% GR 8 किलो प्रति एकड़ की दर से उपयोग करना चाहिए।
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पेसिलोमाइसिस लिनेसियस (नेमेटोफ्री) बीज उपचार के लिए 10 ग्राम/किलोग्राम बीज, 50 ग्राम/मीटर वर्ग से नर्सरी उपचार करें। पेसिलोमाइसिस लिनेसियस (नेमेटोफ्री) 3 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार करें।
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मका पिकामध्ये लीफ ब्लाइट समस्या आणि प्रतिबंधात्मक उपाय
लीफ ब्लाइट (पानावर होणारा रोग) – हा मका पिकावरील प्रमुख रोग आहे. या रोगाची लक्षणे पानांवर दिसतात. पानांच्या शिराच्या मध्यभागी पिवळसर तपकिरी लंबवर्तुळाकार ठिपके तयार होतात, जे नंतर लांबीचे चौरस बनतात. त्यामुळे पाने जळलेली दिसतात. त्यामुळे सर्व पाने जळलेली दिसतात.
प्रतिबंधात्मक उपाय – जैविक व्यवस्थापन : – कॉम्बैट (ट्रायकोडर्मा विरिडी 500 ग्रॅम किंवा मोनास-कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 1% डब्ल्यूपी) 500 ग्रॅम प्रती एकर 150 ते 200 लिटर पाण्याच्या दराने फवारणी करावी.
याच्या प्रतिबंधासाठी, एम 45 (मैंकोजेब 75% डब्ल्यूपी) 700 ग्रॅम किंवा कर्मानोवा (कार्बेन्डाजिम 12%+ मैनकोजेब 63% डब्ल्यूपी) 400 ग्रॅम किंवा गोडीवा सुपर (एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% + डाइफेनोकोनाज़ोल 11.4% एससी) 200 मिली + सिलिकोमैक्स 50 मिली, प्रती एकर 150 ते 200 लिटर पाण्याच्या दराने फवारणी करावी.
Shareटमाटर की फसल में स्टेकिंग यानी सहारा देने की विधि क्यों है आवश्यक?
टमाटर का पौधा एक तरह की लता होती है, जिसके कारण पौधे फलों का भार सहन नहीं कर पाते हैं और नमी की अवस्था में मिट्टी के संपर्क में रहने से सड़ जाते हैं। जिस कारण से फसल नष्ट हो जाती हैं। इससे किसान को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। साथ ही पौधे के नीचे गिरने से कीट और बीमारी भी अधिक लगती हैं। इसलिए टमाटर को नीचे गिरने से बचाने के लिए तार से बांध कर सुरक्षित रखते हैं।
पौधों की रोपाई के 2-3 हफ्ते बाद मेड़ के किनारे-किनारे दस फीट की दूरी पर दस फीट ऊंचे बांस के डंडे खड़े कर दिए जाते हैं। इन डंडों पर दो-दो फीट की ऊंचाई पर लोहे का तार बांधा जाता है। उसके बाद पौधों को सुतली की सहायता से उन्हें तार से बांध दिया जाता है जिससे ये पौधे ऊपर की ओर बढ़ते हैं। इन पौधों की ऊंचाई आठ फीट तक हो जाती है, इससे न सिर्फ पौधा मज़बूत होता है, फल भी बेहतर होता है। साथ ही फल सड़ने से भी बच जाता है।
स्टेकिंग लगाने का तरीका और फायदे:-
👉🏻 स्टेकिंग करने के लिए, मेड़ के किनारे-किनारे 10 फीट की दूरी पर 10 फीट ऊंचे बांस के डंडे खड़े कर दिए जाते है।
👉🏻इन डंडे पर 2-2 फीट की ऊंचाई पर लोहे का तार बांध दिया जाता है। उसके बाद पौधों को सुतली की सहायता से उन्हें तार से बांध दिया जाता है, जिससे ये पौधे ऊपर की और बढ़ते हैं।
👉🏻पौधों की ऊंचाई 5-8 फीट तक हो जाती हैं, इससे न सिर्फ पौधा मजबूत होता है, बल्कि फल भी बेहतर होता है। साथ ही फल सड़ने से भी बच जाता है। इस विधि से खेती करने पर पारम्परिक खेती की तुलना में अधिक लाभ प्राप्त कर सकते है।
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धान की फसल में बढ़ेगा स्टेम बोरर का प्रकोप, जानें नियंत्रण के उपाय
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धान की फसल में स्टेम बोरर के प्रकोप से डेडहर्ट्स या मृत टिलर नजर आने लगते हैं जिन्हें वनस्पति चरणों के दौरान आसानी से आधार से खींचा जा सकता है।
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डेडहर्ट्स और व्हाइटहेड्स के लक्षण कभी-कभी चूहों और काले बग से पैदा होने वाले रोगों से होने वाले नुकसान के सामान भी हो सकते हैं।
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स्टेम बोरर की क्षति की पुष्टि करने के लिए, धान की फसल में वानस्पतिक अवस्था में डेडहार्ट और प्रजनन अवस्था में व्हाइटहेड का निरीक्षण जरूर करें।
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इसके नियंत्रण के लिए प्रोफ़ेनोवा सुपर (प्रोफेनोफोस 40% + साइपरमेथ्रिन 04% EC) @ 400 मिली/एकड़ या फिपनोवा (फिप्रोनिल 5% SC) @ 400 मिली/एकड़ या नोवालिस (फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG) @ 40 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
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