नोवामैक्स का बस एक स्प्रे बदलते मौसम में फसल को देगा संपूर्ण सुरक्षा

NovaMaxx is a great tonic for crops
  • मौसम में अचानक बदलाव के कारण पौध विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है, इससे फसलों को बचाने के लिए, करें नोवामैक्स का छिड़काव। 

  • नोवामैक्स हर फसल का च्यवनप्राश, जो रखेगा फसलों को तनाव मुक्त !

  • नोवामैक्स (जिब्रालिक अम्ल 0.001%) गेहूँ, सब्जीवर्गीय, धान, मक्का, अनाज, कपास, गन्ना, मूंगफली, सोयाबीन आदि फसलों के लिए बेहद प्रभावशाली है।

  • जो ठण्ड, सूखा, अधिक पानी और कीट बीमारी के हमले जैसे तनाव से फसल को बचाने में मदद करता है।

  • इससे पौधों और फल का आकार बढ़ता है साथ ही फूल उत्तेजित भी होते हैं। यह सल्फर और कॉपर आधारित उत्पाद के साथ मिश्रित नहीं होगा बाकि सभी कीटनाशक और उर्वरक के साथ मिलाया जा सकता है।

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कद्दू वर्गीय फसल में कुकम्बर मोज़ेक वाइरस के लक्षण एवं रोकथाम के उपाय!

Symptoms and preventive measures of Cucumber mosaic virus in Cucurbits crop
  • कुकम्बर मोज़ेक वाइरस का रोगवाहक माहु कीट है। कद्दु वर्गीय फसलें, कुकम्बर मोज़ेक वाइरस के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं। 

  • इसके प्रकोप से शुरुआत में पत्तियों पर पानी से भरे पीले धब्बे विकसित होते हैं। 

  • ये धब्बे तेजी से बढ़ते हैं और हल्के भूरे या सफेद केंद्र के साथ पहले गोलाकार आकृति लेते हैं और फिर अनियमित आकृति में बदल जाते हैं।

  • ये धब्बे आपस में मिलकर बड़े घाव में परिवर्तित हो जाते हैं।

  • पौधे गंभीर रूप से बौने हो जाते हैं और पत्तियां विकृत हो जाती हैं। 

  • फूल व फल निर्माण की अवस्था में संक्रमण होने पर इसके कारण फल विकृत हो जाते हैं और इसकी वजह से पैदावार में भारी कमी आती है। 

  • अंत में पत्तियां सूख जाती हैं और पौधा भी मर जाता है। 

रोकथाम के उपाय 

  • इस कीट के नियंत्रण के लिए, एडमायर (इमिडाक्लोप्रिड 70% डब्ल्यूजी) @ 14 ग्राम + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 50 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। 

  • 3 दिन बाद, प्रिवेंटल BV @ 100 ग्राम, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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मटर की फसल में फली छेदक इल्ली के क्षति के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय!

Symptoms and control measures of pod borer caterpillars in pea crops

फल छेदक इल्ली के क्षति के लक्षण: प्रारंभिक अवस्था में ये पत्तियों को खाते हैं। फूल एवं फली की अवस्था में गंभीर रूप से विकासशील फली में छेद करते हैं और बीजों को खाते हैं। इसकी इल्ली सिर को आमतौर पर फली के अंदर और शरीर के अधिकांश हिस्से को बाहर की ओर रखती है।

नियंत्रण के उपाय: इस कीट के नियंत्रण के लिए, तुस्क (मैलाथियान 50.00% ईसी) @ 600 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 50 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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आलू की फसल में पछेती झुलसा के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय!

Symptoms and control measures of late blight in potato crops

क्षति के लक्षण: इस रोग से पौधों के पत्ते, तने एवं कंद प्रभावित होते हैं। सबसे पहले रोग के ये लक्षण पत्तियों के सिरों और किनारों पर पानी से लथपथ छोटे-छोटे भूरे धब्बे विकसित होते हैं। इन धब्बों के चारों ओर कवक की एक सफेद कपास जैसी संरचना दिखाई देती है। अनुकूल मौसम की स्थिति में जैसे – कम तापमान, उच्च आर्द्रता में रोग तेजी से फैलता है और पूरी फसल 10-14 दिनों के भीतर नष्ट हो सकती है और झुलसा हुआ रूप ले सकती है।

नियंत्रण के उपाय: इस रोग के नियंत्रण के लिए, नोवाक्रस्ट (एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकनाज़ोल 18.3% एससी) @ 300 मिली या करमानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यूपी) @ 700 ग्राम + नोवामैक्स (जिब्रेलिक एसिड 0.001 % एल) 300 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड 50 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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लहसुन की फसल में 50-55 दिन की अवस्था में पोषक तत्व प्रबंधन!

Nutrient management in garlic crops at the 50-55 days old stage

लहसुन की फसल अभी 50-55 दिन की हो रही है, इस अवस्था में अच्छे कंद विकास के लिए, बोरोन 1 किग्रा + कैल्शियम नाइट्रेट 10 किग्रा + एमओपी 20 किग्रा को आपस में मिलाकर एक एकड़ के हिसाब से समान रूप से भुरकाव कर हल्की सिंचाई करें। 

उपयोग के फायदे

बोरोन

  • फफूंद जनित रोगों से प्रतिरोध क्षमता बढ़ाता है। 

  • लहसुन के कंदों में चमक और रंग अच्छा आता है।

कैल्शियम नाइट्रेट

  • कंद का आकार बढ़ाता है, एवं बेहतर गुणवत्ता वाली उपज प्राप्त होती है।

  • लहसुन के कंद ठोस बनते हैं जिनसे इनकी भंडारण क्षमता बढ़ती हैं। 

पोटैशियम 

  • पोटैशियम पौधे में संश्लेषित शर्करा को पौधे के सभी भागो तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पोटैशियम प्राकृतिक नत्रजन की कार्य क्षमता को बढ़ावा देता है। पौधों में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ता है। पोटैशियम से उपज बढ़ती हैं। 

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भिंडी की भरपूर उपज के लिए ऐसे करें खेत को तैयार और पोषण प्रबंधन!

Watermelon and Muskmelon field preparation
  • भिंडी की फसल के लिए भुरभुरी, अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिट्टी जिसका पीएच रेंज 6.0-6.8 तक हो सबसे उपयुक्त होती है। 

  • कार्बनिक पदार्थों से भरपूर भूमि में बीज का अंकुरण एवं जड़ों का विकास अच्छा होता है। 

  • पिछली फसल की कटाई के बाद एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें। 

  • इसके बाद, गोबर की खाद 8 से 10 टन + स्पीड कम्पोस्ट 4 किग्रा + कॉम्बैट (ट्राईकोडर्मा विरिडी 1.0 % डब्ल्यूपी) @ 2 किलोग्राम, प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में समान रूप से भुरकाव करें।

  • इसके बाद 2-3 जुताई हैरो की सहायता से करें। अगर मिट्टी में नमी कम हो तो पहले पलेवा करें, फिर खेत की तैयारी करें और आखिर में पाटा चलाकर खेत समतल बना लें।

  • खेत तैयार होने के बाद, बीज की बुवाई सिफारिश की गयी दूरी पर ही करें।

  • पौध से पौध एवं कतार से कतार की दूरी 30 x 30 सेमी रखें। एक एकड़ क्षेत्र के लिए 1.5-2.2 किग्रा बीज, पर्याप्त होता है।

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जान लें रबी धान की खेती के लिए खेत की तैयारी एवं पोषण प्रबंधन!

Know about field preparation and nutrition management for rabi paddy cultivation

वैसे तो ज्यादातर किसान धान की खेती खरीफ मौसम में हीं करते हैं जब पूरे देश में मानसून की बारिश होती है। पर आजकल बहुत सारे किसान रबी सीजन में भी धन की खेती करते हैं और अच्छा मुनाफा कमाते हैं। इस सीजन में अगर आप भी धान की खेती करने की प्लानिंग कर रहे हैं तो आपको इसके लिए खेत की तैयारी से लेकर पोषण प्रबंधन आधी का ख़ास ख्याल रखने की जरूरत है। इस लेख में आइये विस्तार से जानते हैं इन्हीं विषयों की जानकारी। 

खेत की तैयारी: ऐसे खेत का चयन करें जिसकी मिट्टी अच्छी तरह से तैयार खरपतवार रहित हो तथा जल धारण क्षमता भी अधिक हो। मिट्टी में में पाए जाने वाले जैविक तत्व एवं जीव अच्छी तरह से काम करते हों। इससे पौध का जड़ विकास सही से होता है। खेत में चारों तरफ से मजबूत मेढ़ बंदी कर दें। इससे पानी खेत में लंबे समय तक संचित रखा जाता है। एक अच्छी जुताई से खेती योग्य भूमि में ऑक्सीजन की उपलब्धता बनी रहती है। एवं खरपतवार भी कम उगते हैं। धान की रोपण के लिए, मुख्य खेत की तैयारी के समय, जुताई से 1 या 2 दिन पूर्व गोबर की खाद @ 4 टन + स्पीड कम्पोस्ट @ 4 किग्रा + कॉम्बैट – ट्राईकोडर्मा विरिडी 1.0% डब्ल्यूपी @ 2 किग्रा, प्रति एकड़ के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें एवं खेत में सिंचाई कर दें और पानी को सोखने दें। जुताई के समय पानी की गहराई 2.5 सेमी रखें। धान की फसल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें तथा 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करें, इसके बाद खेत को मचाकर समतल कर ले। समतल खेत में पानी की सामान्य गहराई बनी रहती है।

पोषण प्रबंधन: रोपाई के दिन कीचड़ में यूरिया- 20 किग्रा + एसएसपी- 50 किग्रा + डीएपी- 25 किग्रा + एमओपी- 20 किलो + धान समृद्धि किट – 11 किग्रा, समृद्धि किट में शामिल उत्पाद (ट्राई कोट मैक्स – जैविक कार्बन 3%, ह्यूमिक, फुल्विक, जैविक पोषक तत्वों का एक मिश्रण, @ 4 किलोग्राम + टीबी 3 – नाइट्रोजन स्थिरीकरण बैक्टीरिया, फास्फेट घुलनशील बैक्टीरिया और पोटेशियम गतिशील बैक्टीरिया, @ 3 किलोग्राम + ताबा जी – जिंक घुलनशील बैक्टीरिया, @ 4 किलोग्राम) को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें। पौध रोपण के लिए कतार से कतार एवं पौध से पौध की दूरी 20×15 सेमी रखें।  

किसान भाई रबी मौसम में भी काफी जगहों पर धान की कीचड़ मचाकर सीधी बुवाई करते हैं। तो आइये जानते है, बुवाई से पूर्व खेत की तैयारी एवं बीज को अंकुरित व उपचारित कैसे करें!

धान की कीचड़ मचाकर सीधी बुवाई विधि 

सबसे पहले जिस किस्म का चुनाव किया गया है बुवाई के लिए, उसे किसी पात्र में पानी में डुबा दें और इसे डुबो कर अच्छी तरह से हिलाएं जिससे ख़राब बीज ऊपर तैरने लगेगा। ख़राब बीज को पात्र से निकाल कर बाहर कर दें, एवं शुद्ध बीज को 18 से 20 घंटे के लिए पानी में डूबा कर छाया में रखें। 18 से 20 घंटे पूरा हो जाने के बाद, धान को बोरे में या साफ सूती कपड़े में पानी से बाहर निकाल लें और बीज उपचार के रूप में, स्प्रिंट (कार्बेन्डाजिम 25%+ मैंकोजेब 50% डब्ल्यूएस) @ 35 ग्राम, प्रति 10 किग्रा के हिसाब से समान रूप से भुरकाव कर बीजों को अच्छी तरह से मिला लें। इसके बाद इसे पुवाल या बोरे के माध्यम से ढक कर रख दें। उचित नमी बनाए रखने के लिए, समय समय पर ऊपर से पानी का हल्का छिड़काव करते रहें। इससे अंकुरण अच्छा होता है। पर्याप्त नमी एवं तापमान मिलने पर 24 घंटे में अच्छा अंकुरण हो जायगा। फिर इसे मचाकर तैयार किये गए, भूमि में समान रूप से बुवाई कर दें एवं खेत में अधिक पानी हो तो उसे खेत से बाहर निकाल दें। 

धान की गीली सीधी बुवाई के लिए, खेत की तैयारी के समय जुताई के 2 दिन पूर्व गोबर की खाद @ 4 टन + स्पीड कम्पोस्ट @ 4 किग्रा + कॉम्बैट – ट्राईकोडर्मा विरिडी 1.0% डब्ल्यूपी @ 2 किग्रा, प्रति एकड़ के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें एवं खेत में पानी भर दें और पानी को सोखने दें। जुताई के समय पानी की गहराई 2.5 सेमी रखें। धान की फसल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें तथा 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करें एवं पाटा चलाकर खेत को अच्छी तरह से मचाकर समतल कर ले। बुवाई के दिन कीचड़ में, एसएसपी- 50 किग्रा + डीएपी- 25 किग्रा + एमओपी- 20 किलो + धान समृद्धि किट – 11 किग्रा, किट में शामिल तत्व (ट्राई कोट मैक्स – जैविक कार्बन 3%, ह्यूमिक, फुल्विक, जैविक पोषक तत्वों का एक मिश्रण, @ 4 किलोग्राम + टीबी 3 – नाइट्रोजन स्थिरीकरण बैक्टीरिया, फास्फेट घुलनशील बैक्टीरिया और पोटेशियम गतिशील बैक्टीरिया, @ 3 किलोग्राम + ताबा जी – जिंक घुलनशील बैक्टीरिया, @ 4 किलोग्राम) को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र के हिसाब से समान रूप से भुरकाव कर,  एक पाटा चलाकर खाद को कीचड़ में अच्छी तरह से मिला दें एवं बीज की बुवाई करें साथ ही अतिरिक्त पानी को बाहर निकाल दे। 

कीचड़ मचाकर सीधी बुवाई विधि से 25% तक श्रम की बचत होती है। रोपण पद्धति की अपेक्षा 7 से 10 दिन पहले इसकी फसल पक कर तैयार हो जाती है। वहीं सीधी बुवाई में नर्सरी उगाने एवं रोपाई करने की जरुरत नहीं होती है।

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प्याज की 40-45 दिन की फसल अवस्था में कंद निर्माण के लिए पोषक तत्व प्रबंधन!

Nutrient management required for bulb formation at the 40-45 day old stage of onion crop

प्याज की फसल में रोपाई के 40-45 दिन बाद, कंद निर्माण होना प्रारम्भ हो जाता है। इस अवस्था में, यूरिया 30 किग्रा + कैल्शियम नाइट्रेट 10 किग्रा + मैगनेशियम सल्फेट 10 किग्रा को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र में, सामान रूप से भुरकाव कर हल्की सिंचाई करें।

यूरिया: यह नाइट्रोज़न की पूर्ति का सबसे बड़ा स्रोत है। इसके उपयोग से, पत्तियों में पीलापन एवं सूखने की समस्या नहीं आती है। यूरिया प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को तेज़ करता है।

कैल्शियम नाइट्रेट: इसमें 15.5% नाइट्रोजन और 18.5% कैल्शियम होता है। कैल्शियम के अलावा, इससे फसलों को नाइट्रोजन की भी पूर्ती होती है। पौधों की वृद्धि के लिए कैल्शियम एक महत्वपूर्ण द्वितीयक पोषक तत्व है। कैल्शियम नाइट्रेट फसलों के लिए कैल्शियम का एक उत्कृष्ट स्रोत है। यह फसलों में उपज की गुणवत्ता और लंबी शेल्फ लाइफ को बढ़ाता है। यह पौधों में कंदो के विकास में मदद करता है। 

मैग्नीशियम सल्फेट: इसमें 9.5% मैग्नीशियम और 12% सल्फर होता है। मैग्नीशियम के साथ यह फसलों को सल्फर भी उपलब्ध करवाता है जिससे फसल की गुणवत्ता के साथ-साथ उत्पादन भी बेहतर मिलता है। यह एंजाइम एवं कार्बोहाइड्रेट के परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पौधों में क्लोरोफिल के संश्लेषण में मदद करता है और फास्फोरस ग्रहण और अवशोषण में भी सुधार करता है।

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मिर्च की फसल में काले थ्रिप्स के क्षति के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Black thrips damage symptoms and control measures in chilli crop

क्षति के लक्षण: मिर्च की फसल में होने वाला काला थ्रिप्स एक बहुत ही घातक कीट है। यह कीट पहले पत्ती की निचली सतह से रस चूसते हैं और धीरे धीरे टहनी, फूल एवं फल पर भी हमला करते हैं। फसल की फूल अवस्था में ये फूलों को प्रभावित करके फलों के विकास को रोक देते हैं। फूलों को नुकसान पहुंचाने के कारण इसे “फ्लावर थ्रिप्स” भी कहा जाता है। गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त पत्तियां पीली होकर गिर जाती हैं।

नियंत्रण के उपाय: इस  कीट के नियंत्रण के लिए, लार्गो (स्पाइनेटोरम 11.7 % एससी) @ 180-200 मिली + नीमगोल्ड (एज़ाडिरेक्टिन 3000 पीपीएम) @ 800 मिली + नोवामैक्स @ 300 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 50 मिली, प्रति एकड़, 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें

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भिंडी में सफ़ेद मक्खी एवं जैसिड के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control measures of white fly and jassid in okra crop

जैसिड: इसके प्रकोप से कोमल पत्तियाँ पीली हो जाती हैं, एवं पत्तियों के किनारे नीचे की ओर मुड़कर लाल होने लगते हैं। गंभीर संक्रमण के मामले में पत्तियों के किनारे कांसे की तरह हो जाते हैं, जिसे  “हॉपर बर्न” कहा जाता है। इससे पत्ती के किनारे टूट जाते हैं और कुचले जाने पर टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं। इस कारण फसल विकास धीमी हो जाती है।

सफेद मक्खी: पत्तियों पर क्लोरोटिक धब्बे बनाते हैं, जो बाद में आपस में मिलकर पत्ती के ऊतकों पर पीलेपन का निर्माण करते हैं। ये कीट मधुरस (हनीड्यू) का स्राव करते हैं, जिससे काली फफूंदी का विकास होता है। साथ ही पीला शिरा मोज़ेक वायरस के रोगवाहक भी है। यह भिंडी का सबसे विनाशकारी रोग है। सफ़ेद मक्खी के गंभीर संक्रमण के कारण समय से पहले पत्ते झड़ जाते हैं। 

नियंत्रण के उपाय: इन कीटों के नियंत्रण एवं अधिक फूल धारण के लिए, थियानोवा 25 (थियामेथोक्सम 25% डब्ल्यूजी) @ 40 ग्राम या पेजर (डाइफेंथियूरॉन 50 % डब्ल्यूपी) @ 240 ग्राम + न्यूट्रीफुल मैक्स  @ 250 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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