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भोपळा वर्गीय पिकांमध्ये, टरबूज पिकामध्ये फळमाशीचा हल्ला प्रामुख्याने दिसून येतो ज्यामुळे पिकाचे नुकसान होऊन उत्पादनावर परिणाम होतो.
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फळाची माशी फळांच्या आत अंडी घालते, सुरवंट अंड्यातून बाहेर पडतो आणि फळांचा लगदा खातो, ज्यामुळे फळे कुजतात.फळे वळतात आणि कमकुवत होतात आणि वेलीपासून वेगळी होतात.
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व्यवस्थापनाचे उपाय : फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% ईसी [डैनिटोल] 400 मिली प्रोफेनोफॉस 40 % + साइपरमेथ्रिन 4% ईसी [प्रोफेनोवा] 400 मिली स्पिनोसेड 45% एससी [ट्रेसर] 60 मिली/एकर या दराने फवारणी करावी.
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फळ माशीच्या चांगल्या व्यवस्थापनासाठी, 10 फ्रूट फ्लाई ट्रैपचा प्रती एकर दराने वापर करावा.
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जैविक व्यवस्थापनासाठी, बवेरिया बेसियाना [बवे कर्ब] 250 ग्रॅम/एकर या दराने उपयोग करू शकता.
तरबूज की फसल में गमी तना झुलसा के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय
तरबूज की खेती के दौरान इसके पूरे फसल चक्र में कई प्रकार के रोगों का प्रकोप देखने को मिलता है। इन रोगों की रोकथाम कर के तरबूज की अच्छी उपज की प्राप्ति की जा सकती है। तरबूज की फसल का एक प्रमुख रोग है गमी तना झुलसा और इस लेख में हम जानेंगे इसी रोग से संबंधित जानकारी एवं रोकथाम के उपाय।
लक्षण: तरबूज की फसल में गमी तना झुलसा गंभीर पर्णीय बीमारियों में से एक है। इस रोग में तने और पत्तियों पर भूरे धब्बे बन जाते हैं और यह धब्बे पीले ऊतकों से घेरे होते हैं। साथ ही तने में यह घाव बढ़कर गलन का निर्माण करता है और इससे चिपचिपे, भूरे रंग के द्रव का स्रावण होता है। इस रोग में फल शायद ही कभी प्रभावित होते हैं, लेकिन पर्णसमूह के नुकसान से उपज और फलों की गुणवत्ता भी प्रभावित हो सकती है।
नियंत्रण: गमी तना झुलसा से बचने के लिए रोग रहित बीज का उपयोग करें, साथ ही सभी कद्दू वर्गीय फसलों से 2 वर्ष का फसल चक्र रखें। इसके अलावा रोग के लक्षण दिखाई देने पर रासायनिक नियंत्रण के लिए, फफूंदनाशक जैसे जटायु (क्लोरोथॅलोनिल 75% डब्लूपी) 400 ग्राम प्रति एकड़ या एम 45 (मैंकोज़ेब 75% डब्लूपी) 600-800 ग्राम प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के दर से छिड़काव करें। इसके जैविक नियंत्रण के लिए, मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरोसेन्स) 500 ग्राम/एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।
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क्यों ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती किसानों के लिए है फायदेमंद?
रबी की फसलों की कटाई के बाद खरीफ सीजन आने तक खेत खाली रह जाता है। पर किसान भाई चाहें तो रबी तथा खरीफ के बीच वाले समय जिसे जायद कहते हैं, का सही इस्तेमाल कर के बढ़िया लाभ प्राप्त कर सकते हैं। जायद सीजन में खेती के लिए सबसे अच्छा चुनाव अगर कोई हो सकता है तो वो है मूंग की फसल का जो कम अवधि की फसल है और अच्छा मुनाफ़ा दे सकती है। इसकी खेती के फायदेमंद होने के मुख्य कारण निम्न हैं।
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इसकी खेती खरपतवारों को नियंत्रित करती है और गर्मियों में हवा के कटाव को रोकती है।
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फसल पर कीट एवं रोगों का आक्रमण बहुत कम होता है।
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फसल/किस्में परिपक्व होने में कम समय लेती हैं (60-65 दिन)
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इसकी खेती से राइजोबियम फिक्सेशन के माध्यम से कम से कम 30-50 किग्रा उपलब्ध नाइट्रोजन/हेक्टेयर जुड़ जाता है जिसे अगली खरीफ मौसम की फसल में उर्वरकों को देते समय समायोजित किया जा सकता है।
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इसकी खेती से फसल की सघनता बढ़ जाती है।
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आलू, गेहूँ और सर्दियों के मौसम की मक्का जैसी भारी उर्वरक माँग वाली फसलों के बाद उगाए जाने पर यह मिट्टी की अवशिष्ट उर्वरता का उपयोग करती है।
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धनिया की खेती से कम समय में मिल जायेगी जबरदस्त उपज और होगी खूब कमाई
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धनिया की फसल के लिए शुष्क व ठंडा मौसम अच्छा होता है। इसके बीजों के अंकुरण के लिए 25 से 26 से.ग्रे. तापमान अच्छा होता है।
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धनिया की सिंचित फसल के लिए अच्छी जल निकास वाली दोमट मिट्टी सबसे अधिक उपयुक्त होती है और असिंचित फसल के लिए काली भारी भूमि अच्छी होती है। धनिया क्षारीय एवं लवणीय भूमि को सहन नही करता है।
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सिंचित क्षेत्र में अगर, जुताई के समय भूमि में पर्याप्त नमी न हो तो भूमि की तैयारी सिंचाई करने के उपरांत करनी चाहिए। इससे जमीन में जुताई के समय ढेले भी नही बनेंगे तथा खरपतवार के बीज अंकुरित होने के बाद जुताई के समय नष्ट हो जाएंगे।
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धनिया की उन्नत किस्में जैसे फाऊजा, सुरभी, रौनक-31 की खेती कर सकते हैं। बोने के समय की बात करें तो हरे पत्तों की उपज के लिये अप्रैल – मई माह में इसकी बिजाई कर सकते हैं।
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सिंचित फसल में 15-20 किग्रा/हे तथा असिंचित फसल में 25-30 किग्रा/हे बीज की आवश्यकता होती है।
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भूमि एवं बीज जनित रोगों से बचाव के लिए बीज को करमानोवा (कार्बेंन्डाजिम + मेंकोजेब) 2.5 ग्रा./कि.ग्रा. से उपचारित करें। धनिया की अच्छी पैदावार लेने के लिए गोबर खाद 20 टन/हे का भुरकाव करें। सिंचित फसल 60 किग्रा नत्रजन, 40 किग्रा फॉस्फोरस, 20 किग्रा पोटाश तथा 20 किग्रा सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से उर्वरक का उपयोग करें।
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कद्दूवर्गीय सब्जियों की फसल के प्रमुख कीट एवं नियंत्रण के उपाय
लालभृंग: यह चमकीले लाल रंग का कीट है जो पत्तियों को विशेषकर शुरूआती अवस्था में खा कर छलनी जैसा बना देता है। ग्रसित पत्तियाँ फट जाती हैं तथा पौधों की बढ़वार रूक जाती हैं।
नियंत्रण: रासायनिक नियंत्रण के लिए मारक्विट (बायफैनथ्रिन 10% EC) 2 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड 0.5 मिली मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। जैविक नियंत्रण के लिए बवेरिया वेसियाना 2 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
लीफ माइनर: इस कीट की इल्ली पत्तियों के अंदर सुरंग बना कर हरितलवक को खाती हैं। इसके प्रभाव से पत्तियों पर सफ़ेद धारियां बन जाती हैं। यह मुख्य रूप से टमाटर, गिलकी, ककड़ी एवं समस्त कद्दू वर्गीय फसलों को नुकसान पहुँचाती है।
नियंत्रण: इसके नियंत्रण के लिए नीमगोल्ड (एजाडिरेक्टिन 0.3%) 3000 पीपीएम 150 मिली, या बेनेविया (सायट्रानिलिप्रोएल 10.26% ओडी ) 20-25 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड 5 मिली प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
फलमक्खी: इस कीट के मैगट छोटे फलों को अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। इसकी इल्ली फल को अंदर से नुकसान पहुंचती है। इससे फल पकने से पहले ही गिर जाते हैं। इल्ली का आक्रमण होने से फलों में से भूरे रंग का चिपचिपा द्रव बहता है और फल का आकार बिगड़ जाता है। फल मक्खी अंडे देने के लिए फलों में छेद करती हैं। जिससे फलों में छेद नजर आने लगते हैं। प्रभावित फलों का आकार टेढ़ा हो जाता है। कीट का प्रकोप बढ़ने पर फल सड़ने लगते हैं।
नियंत्रण: इसके मैगट पर सीधा नियंत्रण संभव नहीं है परंतु वयस्क नर मक्खियों की संख्या पर नियंत्रण करके इनके प्रकोप को कम किया जा सकता है। खेत में पौधों की रोपाई से पहले खेत की गहरी जुताई करें। इससे मिट्टी में पहले से मौजूद प्यूपा नष्ट हो जाएंगे। कीट को आकर्षित करने के लिए प्रति एकड़ खेत में 10 से 12 फेरोमोन ट्रैप लगाएं और इसके ल्यूर को 15 -20 दिन के अंतराल से बदलें। ल्यूर से नर कीट आकर्षित हो कर फंस जाते हैं। इससे फल मक्खियों की वृद्धि को नियंत्रित किया जा सकता है। प्रभावित फलों को तोड़ कर नष्ट कर दें। साथ ही रासायनिक नियंत्रण के लिए डेसिस (डेल्टामैथ्रिन 100 EC) 1 मिली प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें या सेलक्विन (क्विनलफॉस 25% EC) 2 मिली प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
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तरबूज व खरबूज में एन्थ्रेक्नोज रोग का ऐसे करें नियंत्रण
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पत्तियों पर सबसे पहले छोटे,अनियमित पीले या भूरे धब्बे दिखाई देते हैं। यह धब्बे समय के साथ फैलते हैं और गहरे होकर पूरी पत्तियों को घेर लेते हैं।
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फल पर भी ये छोटे काले गहरे धब्बे उत्पन्न होते हैं जो धीरे-धीरे फैलते हैं। नमी युक्त मौसम में इन धब्बों के बीच में गुलाबी बीजाणु जन्म लेते हैं।
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इस रोग से बचाव के लिए, वीटावैक्स (कार्बोक्सिन 37.5 + थायरम 37.5) 2.5 ग्राम/किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
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10 दिनों के अंतराल से नोवाफ़नेट (थायोफनेट मिथाइल 70% WP) 300 ग्राम प्रति एकड़ या जटायु (क्लोरोथालोनिल 75 WP) 400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
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जैविक नियंत्रण के लिए, मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरोसेन्स) 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
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पॉलीहाउस में खेती करने से मिलेंगे कई फायदे
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पॉली हाउस में पौधों को कम पानी, सीमित सूरज की किरणें, कम कीटकनाशक के साथ नियंत्रित वातावरण में उगाया जा सकता है।
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अगर किसी क्षेत्र में जलवायु खेती के अनुरूप नहीं है और खेती लगभग असंभव है वहां भी पॉलीहाउस के माध्यम से खेती की जा सकती है और पौधे उगाए जा सकते हैं।
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जैसे के लिए भारत के मैदानी इलाकों में स्ट्रॉबेरी उगाना मुश्किल है पर पॉलीहाउस में यह संभव है।
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बाहरी जलवायु पॉलीहाउस में फसलों की वृद्धि को प्रभावित नहीं करती है।
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पॉलीहाउस में खेती करने से उपज की गुणवत्ता में सुधार होता है।
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यह सब्जियों, फलों और फूलों में 90% पानी का संरक्षण करता है, जिससे उपज की शेल्फ लाइफ बढ़ता है।
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पॉलीहाउस उत्पादन को अधिकतम स्तर तक बढ़ाने के लिए Co2 की उच्च सांद्रता भी प्रदान करता है, जिसके कारण पॉलीहाउस की पैदावार खुले खेत की खेती से कहीं अधिक होती है।
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पॉली हाउस में टपक सिंचाई का इस्तेमाल होता है जिसके कारण पानी की बचत होती है।
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किसी भी मौसम में पौधों के लिए सही वातावरण निर्माण कर सकते हैं।
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पॉलीहाउस से फसलों को हवा, बारिश, वर्षा और अन्य जलवायु के कारकों से बचाया जा सकता है।
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खीरे की फसल में डाउनी मिल्डू रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय
यह खीरे का सबसे महत्वपूर्ण रोग है, और यह रोग कवक के कारण होता है। आमतौर पर इसके लक्षण पत्तियों की ऊपरी सतह पर दिखाई देते हैं। शुरूआती अवस्था में पत्तियों पर छोटे पीले अथवा नारंगी रंग के धब्बे होते हैं, और जैसे ही धब्बे बड़े होते हैं, वे अनियमित मार्जिन के साथ भूरे रंग के हो जाते हैं। संक्रमित पौधों की निचली पत्तियों की सतह पर सफेद या हलके बैंगनी रंग का पाउडर दिखाई देता हैं। इस रोग में फल प्रभावित नहीं होता है, लेकिन स्वाद में यह कम मीठा होता है।
नियंत्रण: इसके नियंत्रण के लिए प्रतिरोधी/सहिष्णु किस्में उगाएं साथ ही अधिक ऊपरी सिंचाई से बचें और पत्तियों को तेजी से सुखाने के लिए सुबह देर से सिंचाई करें। प्रकोप दिखाई देने पर मिरडोर (एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 23% एस सी) @ 200 मिली प्रति एकड़ या क्लच (मेटीराम 55% + पायराक्लोस्ट्रोबिन 5% डब्लूजी) @ 600 -700 ग्राम प्रति एकड़ के दर से छिड़काव करें।
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पशुओं में लंगड़ा बुखार रोग के लक्षणों को पहचाने और करें बचाव
पशुओं में होने वाले कुछ प्रमुख रोगों में से एक है लंगड़ा बुखार। लंगड़ा बुखार का सही समय पर इलाज नहीं करने पर पशुओं की मृत्यु तक हो सकती है। लंगड़ा बुखार को ब्लैक क्वार्टर रोग, कृष्णजंघा रोग, लंगड़िया रोग, जहरबाद रोग, एकटंगा रोग आदि कई नामों से जाना जाता है। इस रोग से छोटी आयु की गाय ज्यादा प्रभावित होती है। लंगड़ा बुखार के लक्षण नजर आने के 24 घंटों के अंदर पशुओं की मृत्यु हो सकती है। इस रोग का प्रकोप अप्रैल से जून महीने में अधिक होता है।
पशुओं में लंगड़ा बुखार के लक्षण
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पशुओं का शारीरिक तापमान बढ़ जाता है।
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पशुओं के पैर एवं पीठ के मांस में सूजन आ जाती है।
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पैर में दर्द होने के कारण पशु लंगड़ा कर चलने लगते हैं।
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पशु अधिक समय बैठे या लेटे रहते हैं।
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कुछ समय बाद सूजन ठंडा हो जाता है और सूजन वाला भाग सड़ने लगता है।
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सड़न वाले स्थान को दबाने पर चर-चर की आवाज आती है।
लंगड़ा बुखार से बचाव के उपाय
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4 महीने से ले कर 3 वर्ष तक के सभी पशुओं को प्रति वर्ष लंगड़ा बुखार का टीका लगवाएं।
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पशुओं को लंगड़ा बुखार से बचाने के लिए पशु निवास की नियमित साफ-सफाई करें।
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रोग से प्रभावित पशुओं को स्वस्थ्य पशुओं से अलग रखें।
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मूंग की फसल को रस चूसक कीट से बचाने के बेस्ट उपाय
दलहन फसलों में मूंग का एक विशेष स्थान है। लेकिन कई बार रस चूसक कीटों के प्रकोप के कारण मूंग की फसल को भारी नुकसान होता है। आज के लेख में आइये जानते हैं मूंग के रस चूसक कीटों के प्रबंधन के उपाय क्या हो सकते हैं?
थ्रिप्स: यह कीट मूंग की पत्तियों से रस चूसकर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। प्रभावित पत्तियां ऊपर की तरफ मुड़ने लगती हैं। प्रकोप बढ़ने पर पौधे पीले हो कर कमजोर हो जाते हैं और पौधों का विकास रुक जाता है।
नियंत्रण: इसके नियंत्रण के लिए प्रकोप दिखाई देते ही, लैमनोवा (लैम्ब्डा सायहॅलोथ्रिन 4.9% एस सी) 250 मिली प्रति एकड़ या प्रोफेनोवा सुपर (प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% इसी) 400 मिली प्रति एकड़ के दर से 150-200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
माहू: यह कीट फसल को कम समय में अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। यह पौधों के कोमल तने, पत्तियां, फूल एवं फलियों का रस चूसते हैं। इसके कारण पौधों में फूल कम निकलते हैं एवं फलियों में दाने नहीं बन पाते हैं।
नियंत्रण: माहू पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 5-6 पीली स्टिकी ट्रैप लगाएं। इसके साथ ही थियोनोवा 25 (थायोमिथाक्साम 25% डब्लूजी) 100 ग्राम प्रति एकड़, नोवामैक्स (जिबरेलिक एसिड 0.001%) @ 300 मिली प्रति एकड़ के दर से 150-200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
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